ई-अभिव्यक्ति: संवाद– 6

होली पर्व पर आप सबको e-abhivyakti की ओर से हार्दिक शुभकामनायें। होली पर्व के अवसर पर इतनी रचनाएँ पाकर अभिभूत हूँ। आपके स्नेह से मैं कह सकता हूँ कि आज का अंक होली विशेषांक ही है।
उत्तराखंड के एक युवा लेखक हैं श्री आशीष कुमार। “Indian Authors” व्हाट्सएप्प ग्रुप पर साझा की गई उनकी निम्न पंक्तियों ने जैसे थोड़ी देर के लिए बचपन लौटा दिया हो। जरा आप भी पढ़ कर लुत्फ लीजिये।
“अगर आप कहीं रास्ते में हैं….और अचानक से कोई सनसनाता हुआ पानी या रंग का गुब्बारा आप पर आकर छपता है…..तो गुस्सा न हों, न उन बच्चों को डांटे…
उनको कोसने के बजाए खुद को भाग्यशाली समझें… कि आपको उन नादान हाथों ने चुना है जो हमारी परम्परा को, संस्कृति को जिन्दा रखे हुए हैं… जो उत्सवधर्मी हिन्दोस्तान को और हिंदुस्तान में उत्सव को जिन्दा रखे हुए हैं… ऐसे कम ही नासमझ मिलेंगे.. वैसे भी बाकी सारे समझदार वीडियोगेम , डोरेमोन, और एंड्रॉइड या आईओएस के अंदर घुसे होंगे ।
तो कृपया इन्हें हतोत्साहित न करें…बल्कि यदि आप उन्हें छुपा देख लें तो जानबूझ कर वहीं से निकलें..आपकी Rs.400 की शर्ट जरूर खराब हो सकती पर जब उनकी इस शरारत का जबाब आप मुस्कुराहट से देंगे न.. तो उनकी ख़ुशी,आपको Rs.4000 की ख़ुशी रिटर्न करेगी…
और होली जिन्दा रहेगी, रंग जिन्दा रहेंगे, हिंदुस्तान में उत्सव जिन्दा रहेगा और हिंदुस्तान जिन्दा रहेगा।” *?होली है?* “
– साभार श्री आशीष कुमार
यह तो पर्व का एक पक्ष हुआ। यदि इस पर्व के दूसरे पक्ष के लिए अपना पक्ष नहीं रखूँगा तो यह मेरी भावनाओं के साथ अन्याय होगा। मुझे अक्सर लगता है कि हमारा जीवन टी वी के समाचार चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह हो गया है। ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह हमारा जीवन भी उतार चढ़ाव से भरा हुआ है। क्या आपको नहीं लगता कि ये ब्रेकिंग न्यूज़ के विषय हमारी संवेदनाओं को कभी भी जागृत या सुप्तावस्था में ले जाते हैं? ब्रेकिंग न्यूज़ ही बाध्य करते हैं कि किस पर्व की क्या दिशा हो? और न्यूज़ चैनलों की बहसों के ऊपर बहस करने का जिम्मा आप पर छोड़ता हूँ।
इस संदर्भ में मुझे मेरी कविता “तिरंगा अटल है, अमर है” की निम्न पंक्तियाँ याद आती हैं:
समय अच्छे-अच्छे घाव भर देता है
जीवन वैसे ही चल देता है
ब्रेकिंग न्यूज़ बदल जाती है
सोशल मीडिया के विषय बदल जाते हैं
शांति मार्च दूर गलियों में गुम जाते हैं
कविताओं के विषय बदल जाते हैं
तिरंगा अटल रहता है
रणनीति और राजनीति
सफ़ेद वस्त्र बदलते रहते हैं
गंगा-जमुनी तहजीब कहीं खो जाती है
रोटी, कपड़ा और मकान का प्रश्न बना रहता है
जिजीविषा का प्रश्न बना रहता है….
आज बस इतना ही।
पुनः होली की शुभकामनाओं के साथ।
हेमन्त बावनकर