हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 39 ⇒ कृत्रिम बुद्धिमत्ता… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कृत्रिम बुद्धिमत्ता।)  

? अभी अभी # 39 ⇒ कृत्रिम बुद्धिमत्ता? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

हमने साधारण और असाधारण बुद्धि के लोग तो देखे थे, सामान्य और विशिष्ट की भी हमें पहचान थी, लेकिन असली और नकली की पहचान कहां इतनी आसान थी। जिसे आज आर्टिफिशियल कहा जाता है, हम कभी उसे बनावटी और कृत्रिम ही तो कहा करते थे। प्राकृतिक और सामान्य जीवन में तब कहां कृत्रिमता का स्थान होता था। गुरुदत्त ने कागज़ के फूल में यह भोगा है। असली फूल और शुद्ध जल का आज भी इंसाफ के मंदिर में कोई विकल्प नहीं है।

बनावटी हंसी, इमिटेशन के नाम पर आर्टिफिशियल ज्वेलरी, बनावटी चेहरे और बनावटी मुस्कान वैसे भी हमें एक कृत्रिम जीवन जीने को मजबूर कर रही है। ।

हमारी पीढ़ी किताबों से पढ़ी, पाठ्य पुस्तकों से पढ़ी, कुंजी, गैस पेपर, गाइड और नकल से नहीं। मेरे एक मित्र ने कॉलेज में अंग्रेजी विषय तो ले लिया, लेकिन अंग्रेजी में उसका हाथ तंग था। अच्छे खासे पहलवान थे, एक दिन हमें घेर लिया, आप कब फ्री हो, अंग्रेजी की इस किताब की गाइड नहीं छपी है, किसी दिन बैठकर इसे शुद्ध हिंदी में समझा दें। वे सबको शुद्ध हिंदी में ही समझाते थे, हमने भी उन्हें शुद्ध हिंदी में समझा दिया, वे परीक्षा की वैतरिणी अन्य कृत्रिम संसाधनों की सहायता से आखिर पार कर ही गए। वे आगे जाकर वकील बने और हम बैंक के बाबू ! इसे कहते हैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल।

हम कितने ओरिजनल थे कभी, औलाद नहीं हुई, नीम हकीम, मंदिर, मन्नत, ताबीज, गंडे, टोटके और व्रत उपवास क्या नहीं किए और अगर ईश्वर को मंजूर नहीं था, तो किसी बच्चे को गोद ले लिया, उसे अपने बच्चे जैसा प्यार दिया, लेकिन कभी कृत्रिम गर्भाधान और टेस्ट ट्यूब बेबी की ओर रुख नहीं किया। पहले यशोदा भी मां होती थी, आजकल सरोगेट मदर भी होने लग गई। ।

पहले बच्चे ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाते थे, गुरु सेवा करते थे, उनकी सेवा ही गुरु दक्षिणा होती थी, गुरु का गुण देखिए, गुरु गुड़ और सत्शिष्य शक्कर निकल आता था। कितने खुश होते हैं हमारे जीवन को संवारने वाले पुराने शिक्षक, जिनके ज्ञान के झरने में स्नान कर आज की पीढ़ी विश्व में उनका नाम रोशन कर रही है।

अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है जो आपको आसानी से प्रभावित कर देती है। आर्टिफिशियल शब्द डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप और शाइनिंग इंडिया की तरह इतना प्रचलित हो गया है, कि इसके आगे सामान्य, नैसर्गिक, और असली शब्द बौने नजर आने लगे हैं। चार्ल्स शोभराज और नटवरलाल से लगाकर किंगफिशर तक, शुरू से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ही तो राज रहा है। जब घी सीधी उंगली से नहीं निकलता, तो उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है। साइबर क्राइम का जमाना है, आर्डिनरी इंटेलिजेंस इनका कोई इलाज नहीं। ।

हमारे टीवी, मोबाइल, लैपटॉप और गूगल सर्च सब आर्टिफिकल इंटेलिजेंस ही तो है। संसार को आगे बढ़ना है, तो रोबोट को चौराहे पर खड़ा होना ही है। अ, आ, इ, ई और abcde सब आजकल a और i पर आकर रुक गए हैं। आज की दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया है, इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहकर जलील ना करें। कभी a कहीं का असिस्टेंट होता था, वह भी आजकल आर्टिफिशियल हो गया है। ।

बहुत ही जल्द विश्व का कोई विश्वविद्यालय जब मास्टर ऑफ एंटायर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिग्री प्रदान करेगा, तब विपक्ष के कलेजे में ठंडक पहुंचेगी। अगर हिम्मत है तो जाओ और चैलेंज करो एंटायर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिग्री को, यू आर्टिफिशियल देशभक्त और असली देशद्रोही विपक्ष। ।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 138 ☆ गीत: कोई अपना यहाँ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत: कोई अपना यहाँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 138 ☆ 

गीत: कोई अपना यहाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मन विहग उड़ रहा,

खोजता फिर रहा.

काश! पाये कभी-

कोई अपना यहाँ??

*

साँस राधा हुई, आस मीरां हुई,

श्याम चाहा मगर, किसने पाया कहाँ?

चैन के पल चुके, नैन थककर झुके-

भोगता दिल रहा

सिर्फ तपना यहाँ…

*

जब उजाला मिला, साथ परछाईं थी.

जब अँधेरा घिरा, सँग तनहाई थी.

जो थे अपने जलाया, भुलाया तुरत-

बच न पाया कभी

कोई सपना यहाँ…

*

जिंदगी का सफर, ख़त्म-आरंभ हो.

दैव! करना दया, शेष ना दंभ हो.

बिंदु आगे बढ़े, सिंधु में जा मिले-

कैद कर ना सके,

कोई नपना यहाँ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२-५-२०१२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (15 मई से 30 मई 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (15 मई से 30 मई 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

सबसे पहले हम आपसे हनुमान चालीसा की चौपाइयां जो मंत्र की तरह काम करती हैं  उनकी बात करते हैं ।  आज की चौपाइयां है :-

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥

हनुमान चालीसा की ये चौपाइयां   बार बार एकाग्र होकर पाठ करने से राजकीय मान सम्मान दिलाती है। हनुमत कृपा पर विश्वास आपको चतुर्दिक सफलता दिलाएगा।

आइए अब  मैं आपको  15 मई से 21 मई 2023 तक अर्थात विक्रम संवत 2080, शक संवत 1945 के जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी से ,जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तक के सप्ताह के ग्रहों की गोचर के बारे में बताता हूं।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा मीन राशि का रहेगा तथा मेष और वृष से होता हुआ 21 तारीख को 9:19 रात से मिथुन राशि में प्रवेश करेगा।

सूर्य प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा तथा 15 तारीख को 3:26 दिन से वृषभ राशि में प्रवेश करेगा । इसी प्रकार बुद्ध भी प्रारंभ में मेष राशि में वक्री रहेगा तथा 15 तारीख को 12:09 रात से मेष राशि में मार्गी हो जाएगा । बाकी सभी ग्रह पूरे सप्ताह एक ही राशि में   रहेंगे । राहु मेष राशि में वक्री रहेगा तथा गुरु मेष राशि में मार्गी रहेगा । मंगल कर्क राशि में , शनि कुंभ राशि में और शुक्र मिथुन राशि में गोचर करेंगे ।

मेष राशि

यह सप्ताह आपके स्वास्थ्य के लिए सामान्य है । अगर आप जन नेता हैं तो जनता में आप की छवि खराब हो सकती है  । आपके माताजी को कष्ट होगा । आपके सुख में कमी आएगी । भाई बहनों के साथ संबंध ठीक होंगे । प्रेम संबंधों में कमी होगी । विवाह संबंधों में बाधा उत्पन्न होगी । इस सप्ताह आपके लिए 17 ,अट्ठारह और 19 मई के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है । इन तारीखों में काम करने पर आपको सफलता मिलने की उम्मीद ज्यादा रहेगी ।  15 और 16 मई को आपको सावधान रहना चाहिए ।  19 मई के दोपहर के बाद से 20 और 21 मई के बीच में आपको धन की प्राप्ति हो सकती है  ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को ही हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है । धन आने का उत्तम योग है । आपके स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी हो सकती है  । व्यापार में हानि होने की भी संभावना है । जीवन साथी के स्वास्थ्य में भी बाधा है । भाई बहनों के साथ संबंधों में खराबी आएगी । इस सप्ताह आपके लिए 19 की दोपहर के बाद से तथा 20 और 21 तारीख उत्तम और सफलता दायक है ।  इस समय में आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता मिलना निश्चित है ।   17 ,अट्ठारह और 19 तारीख के दोपहर तक आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए  ।आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अत्यंत उत्तम है । शादी के बहुत उत्तम प्रस्ताव आएंगे और विवाह के तय होने की संभावना भी है ।  कचहरी के कार्यों में बाधा आएगी । धन आने का योग है ।परंतु इसमें भी कोई व्यक्ति बाधा डाल सकता है  , जिसके कारण आपको धन प्राप्त नहीं हो पाएगा । भाग्य आपका साथ देगा । संतान का सहयोग आपको प्राप्त होगा । आपके लिए 15 और 16 तारीख महत्वपूर्ण है ।  15 और 16 तारीख को आपके द्वारा किए जा रहे अधिकांश कार्य पूर्ण हो जाएंगे ।  19  , 20 और 21 को आपको सतर्क रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राहु की शांति हेतु उपाय करवाएं । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके पास अल्प मात्रा में धन आने का योग है ।  धन की मात्रा कम रहेगी । आपका स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है । कचहरी के  कार्यों में आपको पूर्ण सफलता मिलेगी ।  प्रेम संबंधों में विवाद हो सकता है ।  विवाह तय होने में बाधा होगी ।  इस सप्ताह आपके लिए 17, 18 और 19 तारीख उत्तम है । आपको चाहिए कि आप इन शुभ तारीखों का पूर्ण उपयोग करें । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है । व्यापार वृद्धि होगी । भाग्य आपका साथ देगा । कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में कमी होगी ।   भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे । शत्रु को पराजित करने के लिए यह अच्छा समय है  ।पिताजी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है ।  इस सप्ताह आपके लिए 19 की दोपहर के बाद से तथा 20 और 21 तारीख कार्यों को करने के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं । इन तारीखों में आप द्वारा किए गए कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी । इस सप्ताह आपको 15 और 16 मई को सावधान रहकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है ।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है । भाग्य के स्थान पर अपने परिश्रम पर विश्वास करें ।  धन आने में कमी होगी । आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना चाहिए । इस सप्ताह आपके अंदर  क्रोध की मात्रा बढ़ सकती है । अपने क्रोध पर काबू रखें अन्यथा आप को नुकसान उठाना पड़ सकता है । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 तारीख लाभप्रद है   ।  17 ,अट्ठारह और 19 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए ।  19 तारीख के दोपहर के बाद से तथा 20 और 21 तारीख को भाग्य  आपका साथ दे सकता है । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं  । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है ।

तुला राशि

इस सप्ताह भाग्य आपकी मदद कर सकता है ।अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है । आपको स्वास्थ्य की परेशानी भी हो सकती है । संतान से भी आप को कष्ट संभव है । आपके पिताजी को भी कष्ट हो सकता है । जीवनसाथी भी कई बाधाओं से गुजर सकते हैं‌  ।  इस सप्ताह आपके लिए 17 ,अट्ठारह और 19 मई की दोपहर तक का समय उत्तम है ।आपको इस समय लाभ उठाना चाहिए । सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहना चाहिए ।इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान सूर्य को प्रातः काल तांबे के पात्र में जल लेकर जल अर्पण करें ।  सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

यह सप्ताह आपके लिए संघर्ष पूर्ण है । पूरे सप्ताह आप संघर्षरत रहेंगे । अगर आप कर्मचारी या अधिकारी हैं तो कार्यालय में भी आपके शत्रु बढ़ सकते हैं । आपके शत्रु आपको परेशान करने का प्रयास भी करेंगे । आपको अपने भाग्य पर इस सप्ताह भरोसा नहीं करना चाहिए । आपको इस सप्ताह अपने परिश्रम पर भरोसा करना चाहिए । आपके लिए 19 की दोपहर के बाद से 20 और 21 तारीख अति उत्तम है । परिणाम दायक है । सफलता देने वाली है ।   17, 18 और 19 को आपको सावधान रहना चाहिए ।आपको चाहिए कि इस सप्ताह आप प्रतिदिन शिव  जी का अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के सुंदर प्रस्ताव आएंगे ।  प्रेम संबंधों में भी प्रगति होगी ।  संतान के साथ संबंध ठीक हो सकता है ।  शत्रु शांत रहेंगे । भाई बहनों के साथ संबंधों में कड़वाहट आ सकती है ।  दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 मई उत्तम और फलदायक है ।   19, 20 और 21 को आपको सतर्क रहना चाहिए ।  इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन पाठ करें ।  सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है ।

मकर राशि

इस सप्ताह आप का स्वास्थ उत्तम रहेगा। जीवन साथी के स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है । संतान से आपको पूर्ण सहायता नहीं मिल पाएगी । संतान स्वयं भी परेशानी में  हो सकता है । इस सप्ताह आपके पास धन आने की अच्छी उम्मीद है ।कार्यालय में आपका समय ठीक रहेगा । प्रेम संबंधों में बाधा पड़ सकती है । शत्रु शांत रहेंगे । इस सप्ताह आपके लिए 17 ,18 और 19 की दोपहर तक का समय  उत्तम और शुभ फलदायक है । सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह विष्णु सहस्त्रनाम का  प्रतिदिन पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है ।

कुंभ राशि

कुंभ राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह मिलाजुला असर लेकर आ रहा है । इस सप्ताह आपके साथ कुछ अच्छा और कुछ परेशानी भरा घटित हो सकता है । आपके कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है । इसके अलावा आपका बाकी स्वास्थ्य ठीक रहेगा । भाइयों के साथ अच्छे और बुरे संबंध हो सकते हैं । माताजी के स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है । आपके सुख में कमी हो सकती है ।  संतान आपका पूर्ण सहयोग करेगी ।अगर आप छात्र हैं तो आपकी पढ़ाई लिखाई उत्तम चलेगी । शत्रु शांत रहेंगे । भाग्य आपका साथ देगा इस सप्ताह आपके लिए 19 की दोपहर के बाद से 20 और 21 तारीख पूर्ण सफलता दायक है आपको चाहिए कि आप इन  तारीखों का  उपयोग करें । आप को चाहिए कि आप इस सप्ताह रुद्राष्टक का प्रतिदिन पाठ करें ।  सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह  आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । आपके सुख में वृद्धि होगी । जनता में आपका मान सम्मान बढेगा । भाइयों के साथ संबंध खराब हो सकता है । कचहरी के कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी ।  मामूली धन आने का योग है । संतान के साथ आपका  विवाद बढ़ सकता है । छात्रों की पढ़ाई में बाधाएं आएंगी । इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 मई शुभ फलदायक है । सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक हैं । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रतिदिन पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस साप्ताहिक राशिफल का  उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं ।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – मुरली-धर… – ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? मुरली-धर ? ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

अप्रतिम कल्पना आहे बासरीच्या जन्माची. चित्रही तितकेच सुरेख.निवडलेले रंगही अचूक आणि प्रभावी. बासरीच्या जन्माची कल्पना वाचून सुचलेले  काव्य :

लहरत लहरत येता अलगद

झुळुक शिरतसे ‘बासां’मधूनी 

अधरावरती ना धरताही

सूर उमटती वेणू वनातूनी

त्याच सूरांना धारण करता

श्रीकृष्णाने अपुल्या अधरी

सूर उमटले ‘बासां’मधूनी

आणि जन्मली अशी बासरी.

बांस,वेणू =बांबू

© सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #189 – 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…”)

? ग़ज़ल # 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

बेचारगी में ग़म रहा बेहिसाब,

मुसलसल आता रहा बेहिसाब।

गरम ठंडा तूफ़ान खूब गुज़रा,

इनका भी रखना पड़ा हिसाब।  

अदब की महफ़िलें आबाद रहीं,

मेहरून्निसा संग आया महताब।

दुश्मन हर चाल सोचकर रखता,

दाव दोस्तों का खासा लाजवाब।  

फलक से डोली में आएगी हसीना,

‘आतिश’ यही नियति का इंतख़ाब।  

* इंतख़ाब – चुनाव

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 67 ☆ ।।जो जीवन शेष है कि वही जीवन विशेष है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक  ☆ ।।जो जीवन शेष है कि वही जीवन विशेष है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ढल रही शाम बस चलने  की तैयारी है।

मत यूं सोचो किअभी करने की बारी है।।

आखिरी श्वास तक चलती साथ जिंदगी।

अभी तो भीतर बाकी क्षमता खूब सारी है।।

[2]

करते रहो मत सोचो कि  उम्र बची नहीं है।

कि शुभ मुहूर्त की डोली अभी सजी नहीं है।।

आज करो अभी करो अरमानों को पूरे तुम।

जान लो ये बात कि कल आता कभी नहीं है।।

[3]

जिंदगी को अवसाद नहीं आसान बना लो।

समस्या नहीं समाधान का फरमान बना लो।।

जो जीवन शेष है वह जीवन  ही विशेष है।

जाने से पहले पहले खुद को इंसान बना लो।।

[4]

साठ सालआयु पर जिम्मेदारी नई आती है।

वरिष्ठनागरिक की भूमिका भी निभाती है।।

आपकीअनुभवी उम्र बहुत मायने है रखती।

नई पीढ़ी समाज को ये राह दिखा जाती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 131 ☆ “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #131 ☆ ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

सिर्फ बाते व्यर्थ है, कुछ काम होना चाहिये

हर हृदय को शांति-सुख-आराम होना चाहिये।

 

बातें तो होती बहुत पर काम हो पाते हैं कम

बातों में विश्वास का पैगाम होना चाहिये।

 

उड़ती बातों औ’ दिखाओं से भला क्या फायदा ?

काम हो जिनके सुखद परिणाम होना चाहिये।

 

हवा के झोंको से उनके विचार यदि जाते बिखर

तो सजाने का उन्हें व्यायाम होना चाहिये।

 

लोगों की नजरों में बसते स्वप्न है समृद्धि के

पाने नई उपलब्धि नित संग्राम होना चाहिये।

 

पारदर्शी यत्न ऐसे हों जिन्हें सब देख लें

सफलता जो मिले उसका नाम होना चाहिये।

 

सकारात्मक भावना भरती है हर मन में खुशी

सबके मन आनन्द का विश्राम होना चाहिये।

 

आसुरी दुशवृत्तियों  के सामयिक उच्छेद को

साथ शाश्वत सजग तत्पर ’राम’ होना चाहिये।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 152 – तुझे रूप दाता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 152 – तुझे रूप दाता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

तुझे रूप दाता स्मरावे किती रे ।

नव्यानेच आता भजावे  किती रे।

 

अहंकार माझा मला साद घाली ।

सदाचार त्याला जपावे  किती रे।

 

नवी रोज स्पर्धा  इथे जन्म घेते।

कशाला उगा मी पळावे किती रे ।

 

नवी रोज दुःखे  नव्या रोज  व्याधी।

मनालाच माझ्या छळावे किती रे।

 

कधी हात देई कुणी सावराया।

बहाणेच सारे कळावे किती रे ।

 

पहा  सापळे हे जनी पेरलेले ।

कुणाला कसे पारखावे किती रे।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकावर बोलू काही ☆ सागरात हिमशिखरे… सुश्री मेधा आलकरी ☆ परिचय – सौ. माधुरी समाधान पोरे ☆

सौ. माधुरी समाधान पोरे

(सौ. माधुरी समाधान पोरे आपलं ई-अभिव्यक्तीवर हार्दिक स्वागत)

अल्प परिचय

शिक्षण- बी. ए. आवड- वाचन, लेखन छंद- वारली पेंटिंग,  शिवणकाम.

? पुस्तकावर बोलू काही ?

☆ सागरात हिमशिखरे… सुश्री मेधा आलकरी ☆ परिचय – सौ. माधुरी समाधान पोरे ☆

पुस्तक परिचय

पुस्तकाचे नाव – सागरात हिमशिखरे (अकरा देशांचा सफरनामा)

लेखिका – मेधा आलकरी

जगण्याची ओढ अशी उडण्याचे वेड असे

घरट्याच्या लोभातही गगनाचे भव्य पिसे

अशी मनःस्थिती झाली नाही अशी व्यक्ती सापडणं अशक्यच. घर हवं नि भटकणंही, हेच जीवन जगण्याचं मर्म असतं. मेधा अलकरींच्या कुंडलीत भटकण्याचे ग्रह उच्चस्थानी, आणि जोडीदारही साजेसा मग कायं सोने पे सुहागा….

उपजत आवड आणि फोटोंची योग्य निवड यामुळे पुस्तकाला जिवंतपणा आला.पुस्तकातील फोटोंचं पूर्ण श्रेय त्यांच्या पतींचे.

मेधाताईंनी देशविदेशात, सप्तखंडांत मनापासून भटकंती केली. किती वैविध्यपूर्ण प्रदेशातून त्या वाचकांना हिंडवून आणतात ते नुसतं लेखांची शीर्षक वाचलं तरी ध्यानात येतं.अनेक खंडात फिरण्याचे अनुभव, समुद्राचे नाना रंग, ज्वालामुखीचे ढंग, पुरातन संस्कृतीचे अवशेष आणि वैभव, तर दुसरीकडे जंगलजीवनाचा थरार, यामधे फुलांचे सोहळे असे चितारले आहेत की जणू वाचक शब्दातून त्यांच सौंदर्य जाणवू शकतो. हे सामर्थ्य आहे लेखनाचं.

सागरात हिमशिखरे हा लेख समुद्राचे बहुविध मूड दाखवतो. अंटार्क्टिका हे पृथ्वीचं दक्षिण टोक. तिथे निसर्गाचे अनेक चमत्कार पाहायला,अनुभवायला मिळतात. या प्रवासाची आखणी खूप आधीपासून करावी लागते.  इथला अंदाज वर्तवणं अशक्य. इथले रहिवासी पेंग्विन. आर्क्टिकचा राजा हा मान आहे पेंग्विनचा, मानवसदृश हावभाव न्याहाळणं हा अद्वितीय अनुभव आहे. त्यांची परेड म्हणजे  पर्यटकांच्या नयनांना मेजवानीच. सील माशाचं जगणं, अल्ब्राट्रास ह्या मोठया पक्ष्याचं विहरणं हे वाचताना देहभान हरपतं. हिमनगाच्या जन्माची कहाणी त्याचा जन्म रोमांचकारी अनुभव आहे. निसर्गमातेची ही किमयाचं! चिंचोळया समुद्रमार्गातून जाताना बसणारे हेलकावे, हिमनदी, उंच बर्फाचे कडे, शांत समुद्र, त्यात पडलेले पर्वताचे प्रतिबिंब, कयाकमधून हिमनदयांच्या पोकळयातून वल्हवणं यामुळे सर्वांच जवळून दर्शन होतं. इथे अनेक पथक संशोधनासाठी येतात. आपल्या भारताचंही पथक इथं आहे ही अभिमानाची बाब आहे. खरंच शुभ्र शिल्पांनी नटलेल्या या महासागराची, द्वीपकल्प ची सफर एकमेवाद्वितीय!

यातील पेरूची फोड तर फारच गोड पेरू  हा प्राचीन संस्कृतीचा, भव्यतेचा आणि अनोख्या सौंदर्याचा देश. शाकाहारी मंडळींना विदेशात फिरताना येणारा शाकाहाराचा अर्थ किती वेगळा भेटतो हे जाणवतं. बर्‍याचदा ब्रेड-बटरवरच गुजराण करावी लागते. तेथील सण, समारंभ, यात्रा, जत्रा, रंगबेरंगी पोषाखातील स्री-पुरूष, असे अनेक सोहळे पाहायला मिळतात.  अनेक भूमितीय आकृत्या, प्राणी, पक्ष्यांच्या आकृत्या, नाझका लाइन्सची चित्रं पाहून कोकणातील कातळशिल्प आठवतात.  ही कुणी व का काढली असतील हे वैज्ञानिकांनाही गूढच आहे. माचूपिचू हे प्रगत संस्कृतीची देखणी स्थानं. म्युझियम, सूर्योपासकांचं सूर्यमंदिर, दगडी बांधकामाच्या जुन्या भक्कम वास्तू असा सारा समृद्ध इतिहास कवेत घेऊन हे शहर वसलं आहे. खरंच हा दीर्घ लेख वाचावा- आनंद घ्यावा असाच आहे.

समुद्रज्वाला हा बिग आयलंडमधील जागृत ज्वालामुखी या लाव्हांचे वर्णन या लेखात आहे. 1983 पासून किलुआ ज्वालामुखी जागृत आहे. 2013 मधे त्याचा उद्रेक होऊन पाचशेएकर जमीन निर्माण झाली. आजही तो खदखदतोय. हे रौद्र रूप, गडद केसरी लाव्हा हे दृश्य खूपच विलोभनीय.  हा नेत्रदीपक, अनुपम निसर्गसोहळा डोळयांनी पाहताना खूप छान वाटते. या लव्हांचा कधी चर्र, कधी सापाच्या फुत्कारासारखा, तर कधी लाह्या फुटल्यासारखा आवाज असतो.

लेखिकेला मोहात टाकणारा फुलांचा बहर त्यांनी मनभरून वर्णन केलाय फूल खिले है गुलशन गुलशन!  या लेखात. बत्तीस हेक्टरचा प्रचंड मोठा परिसर, वेगवेगळया आकाराची रंग आणि गंध यांची उधळण करणारी असंख्य फुलं! खरंखुरं नंदनवन! एप्रिल आणि मे महिन्यात आठ लाख पर्यटक हजेरी लावून जातात. हाॅलंडची आन-बान-शान असलेला ट्युलिप हे हाॅलंडचं राष्ट्रीय पुष्प! या  बागेत फिरताना मनात मात्र एक गाणे सतत  रूंजी घालत होते…..’दूर तक निगाहमे हैं गुल खिले हुए’.

लाजवाब लिस्बन या लेखात लिस्बन या शहराचे वर्णन केले आहे. हे सात टेकड्यांवर वसलेले शहर आहे. सेंट जॉर्ज किल्ला उभा आहे. या किल्ल्यांचे अठरा बुरूज प्राचीन ऐश्वर्याची साक्ष देतात. तटबंदीवरून शहराचा मनोरम देखावा दिसतो.  गौरवशाली इतिहास, निसर्गसौंदर्य, स्वप्ननगरीतल्या राजवाड्यांचा तसेच भरभक्कम गडकिल्ल्यांचा आणि खवय्यांचा हा लिस्बन खरोखरच लाजवाब!

हाऊस ऑफ बांबूज या लेखात गोरिलाभेटीचा छान अनुभव मांडला आहे. हा मर्कटजातीतील अनोखा प्राणी,  याचे अस्तित्व पूर्व अफ्रिकेतील उत्तर रंवाडा, युगांडा व कांगो या तीन सीमा प्रदेशात आहे.   हा कुटुंबवत्सल प्राणी आहे. पण त्याच्या परिवाराच्या सुरक्षिततेला धोका आहे अशी शंका आली तर तो काहीही करू शकतो. त्याच्यासमोर शिंकायचे नाही, मनुष्याच्या शिंकेतू न त्याला जंतूसंसर्ग होण्याची शक्यता असते. घनदाट जंगल,  नयनमनोहर सरोवर आणि वन्यजीवांना मुक्त संचार करता यावा अशी अभयारण्यं, एक निसर्ग श्रीमंत देश! रवांडाच्या हस्तकलेचा एक वेगळाच बाज आहे.

आलो सिंहाच्या घरी या मसाई माराच्या जंगलसफारीवर लिहलेला लेख वाचताना लक्षात येत की, प्राणी दिसण्याची अनिश्चितता नेहमीच असते. प्राणी दिसले तरी शिकारीचा थरार दिसेल याचा नेम नाही. पण विविधतेनं नटलेलं जंगल पाहण्याचा, तेथील सुर्योदय-सूर्यास्त अनुभवण्याचा, तंबूत राहण्याचा आणि मसाई या अदिवासी जमातीची संस्कृती जवळून पाहण्याचा अनुभव आपल्या कक्षा रुंदावतो.

भव्य मंदिराच्या रंजक आख्यायिका या लेखात जपानमधील पर्यटनात मंदिराचा वाटा  मोठा आहे. तिथला परिसर, स्वच्छता, शांतता सारचं अलौकिक.  परंपरा जपणारे भाविक नवीन वर्षाच स्वागत सकाळी लवकर उठून मंदिरात जातात. खरंच  ‘उगवत्या सूर्याचा देश’  हे जपानचं नाव अगदी सार्थक आहे असे वाटते.

चीन देशाच्या रापुन्झेल ह्या लेखात लांब केसांच्या एका तरुणीच्या जर्मन परीकथेचा  उल्लेख येतो. पायापर्यंत लांब केसांच्या  असलेल्या ‘रेड याओ’ जमातीतील स्त्रीयांच्या  लांब केसाच्या मजेदार कथा आहेत.  केस हा स्त्रीयांचा आवडता श्रृंगार. तिथल्या केसांबद्दल काय रूढी आहेत याच्या गमतीदार कहाण्या वाचायला मिळतात.

प्रवास माणसाला,  आयुष्याला अनुभवसमृद्ध करतो. आपण गेलो नसलो तरी त्यांच वर्णन वाचून आपलं निसर्गाबद्दलचं आणि संस्कृतीच ज्ञान वाढतं. मेधाताईंच हे पुस्तक वाचकाला निखळ आनंद देईल अशा ऐवजाने भरलेले आहे.

सागरात हिमशिखरे हा अकरा देशांचा सफरनामा वाचत असताना खरोखरं सफर करून आल्यासारखं वाटंल!!

संवादिनी – सौ. माधुरी समाधान पोरे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #182 ☆ ख़ुद से जीतने की ज़िद्द ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख ख़ुद से जीतने की ज़िद्द। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 182 ☆

☆ ख़ुद से जीतने की ज़िद्द 

‘खुद से जीतने की ज़िद्द है मुझे/ मुझे ख़ुद को ही हराना है। मैं भीड़ नहीं हूं दुनिया की/ मेरे अंदर एक ज़माना है।’ वाट्सएप का यह संदेश मुझे अंतरात्मा की आवाज़ प्रतीत हुआ और ऐसा लगा कि यह मेरे जीवन का अनुभूत सत्य है, मनोभावों की मनोरम अभिव्यक्ति है। ख़ुद से जीतने की ज़िद अर्थात् निरंतर आगे बढ़ने का जज़्बा, इंसान को उस मुक़ाम पर ले जाता है, जो कल्पनातीत है। यह झरोखा है, मानव के आत्मविश्वास का; लेखा-जोखा है… एहसास व जज़्बात का; भाव और संवेदनाओं का– जो साहस, उत्साह व धैर्य का दामन थामे, हमें उस निश्चित मुक़ाम पर पहुंचाते हैं, जिससे आगे कोई राह नहीं…केवल शून्य है। परंतु संसार रूपी सागर के अथाह जल में गोते खाता मन, अथक परिश्रम व अदम्य साहस के साथ आंतरिक ऊर्जा को संचित कर, हमें साहिल तक पहुंचाता है…जो हमारी मंज़िल है।

‘अगर देखना चाहते हो/ मेरी उड़ान को/ थोड़ा और ऊंचा कर दो / आसमान को’ प्रकट करता है मानव के जज़्बे, आत्मविश्वास व ऊर्जा को..जहां पहुंचने के पश्चात् भी उसे संतोष का अनुभव नहीं होता। वह नये मुक़ाम हासिल कर, मील के पत्थर स्थापित करना चाहता है, जो आगामी पीढ़ियों में उत्साह, ऊर्जा व प्रेरणा का संचरण कर सके। इसके साथ ही मुझे याद आ रही हैं, 2007 में प्रकाशित ‘अस्मिता’ की वे पंक्तियां ‘मुझ मेंं साहस ‘औ’/ आत्मविश्वास है इतना/ छू सकती हूं/ मैं आकाश की बुलंदियां’ अर्थात् युवा पीढ़ी से अपेक्षा है कि वे अपनी मंज़िल पर पहुंचने से पूर्व बीच राह में थक कर न बैठें और उसे पाने के पश्चात् भी निरंतर कर्मशील रहें, क्योंकि इस जहान से आगे जहान और भी हैं। सो! संतुष्ट होकर बैठ जाना प्रगति के पथ का अवरोधक है…दूसरे शब्दों में यह पलायनवादिता है। मानव अपने अदम्य साहस व उत्साह के बल पर नये व अनछुए मुक़ाम हासिल कर सकता है।

‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती/ लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती’… अनुकरणीय संदेश है… एक गोताखोर, जिसके लिए हीरे, रत्न, मोती आदि पाने के निमित्त सागर के गहरे जल में उतरना अनिवार्य होता है। सो! कोशिश करने वालों को कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता। दीपा मलिक भले ही दिव्यांग महिला हैं, परंतु उनके जज़्बे को सलाम है। ऐसे अनेक दिव्यांगों व लोगों के उदाहरण हमारे समक्ष हैं, जो हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं। के•बी• सी• में हर सप्ताह एक न एक कर्मवीर से मिलने का अवसर प्राप्त होता है, जिसे देख कर अंतर्मन में अलौकिक ऊर्जा संचरित होती है, जो हमें शुभ कर्म करने को प्रेरित करती है।

‘मैं अकेला चला था जानिब!/ लोग मिलते गये/ और कारवां बनता गया।’ यदि आपके कर्म शुभ व अच्छे हैं, तो काफ़िला स्वयं ही आपके साथ हो लेता है। ऐसे सज्जन पुरुषों का साथ देकर आप अपने भाग्य को सराहते हैं और भविष्य में लोग आपका अनुकरण करने लग जाते हैं…आप सबके प्रेरणा-स्त्रोत बन जाते हैं। टैगोर का ‘एकला चलो रे’ में निहित भावना हमें प्रेरित ही नहीं, ऊर्जस्वित करती है और राह में आने वाली बाधाओं-आपदाओं का सामना करने का संदेश देती है। यदि मानव का निश्चय दृढ़ व अटल है, तो लाख प्रयास करने पर, कोई भी आपको पथ-विचलित नहीं कर सकता। इसी प्रकार सही व सत्य मार्ग पर चलते हुए, आपका त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता। लोग पगडंडियों पर चलकर अपने भाग्य को सराहते हैं तथा अधूरे कार्यों को संपन्न कर सपनों को साकार कर लेना चाहते हैं।

‘सपने देखो, ज़िद्द करो’ कथन भी मानव को प्रेरित करता है कि उसे अथवा विशेष रूप से युवा-पीढ़ी को उस राह पर अग्रसर होना चाहिए। सपने देखना व उन्हें साकार करने की ज़िद, उनके लिए मार्ग-दर्शक का कार्य करती है। ग़लत बात पर अड़े रहना व ज़बर्दस्ती अपनी बात मनवाना भी एक प्रकार की ज़िद्द है, जुनून है…जो उपयोगी नहीं, उन्नति के पथ में अवरोधक है। सो! हमें सपने देखते हुए, संभावना पर अवश्य दृष्टिपात करना चाहिए। दूसरी ओर मार्ग दिखाई पड़े या न पड़े… वहां से लौटने का निर्णय लेना अत्यंत हानिकारक है। एडिसन जब बिजली के बल्ब का आविष्कार कर रहे थे, तो उनके एक हज़ार प्रयास विफल हुए और तब उनके एक मित्र ने उनसे विफलता की बात कही, तो उन्होंने उन प्रयोगों की उपादेयता को स्वीकारते हुए कहा… अब मुझे यह प्रयोग दोबारा नहीं करने पड़ेंगे। यह मेरे पथ-प्रदर्शक हैं…इसलिए मैं निराश नहीं हूं, बल्कि अपने लक्ष्य के निकट पहुंच गया हूं। अंततः उन्होंने आत्म-विश्वास के बल पर सफलता अर्जित की।

आजकल अपने बनाए रिकॉर्ड तोड़ कर नए रिकॉर्ड स्थापित करने के कितने उदाहरण देखने को मिल जाते हैं। कितनी सुखद अनुभूति के होते होंगे वे क्षण …कल्पनातीत है। यह इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि ‘वे भीड़ का हिस्सा नहीं हैं तथा अपने अंतर्मन की इच्छाओं को पूर्ण कर सुक़ून पाना चाहते हैं।’ यह उन महान् व्यक्तियों के लक्षण हैं, जो अंतर्मन में निहित शक्तियों को पहचान कर अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर नये मील के पत्थर स्थापित करना चाहते हैं। बीता हुआ कल अतीत है, आने वाला कल भविष्य तथा वही आने वाला कल वर्तमान होगा। सो! गुज़रा हुआ कल और आने वाला कल दोनों व्यर्थ हैं, महत्वहीन हैं। इसलिए मानव को वर्तमान में जीना चाहिए, क्योंकि वर्तमान ही सार्थक है… अतीत के लिए आंसू बहाना और भविष्य के स्वर्णिम सपनों के प्रति शंका भाव रखना, हमारे वर्तमान को भी दु:खमय बना देता है। सो! मानव के लिए अपने सपनों को साकार करके, वर्तमान को सुखद बनाने का हर संभव प्रयास करना श्रेष्ठ है। इसलिए अपनी क्षमताओं को पहचानो तथा धीर, वीर, गंभीर बन कर समाज को रोशन करो… यही जीवन की उपादेयता है।

‘जहां खुद से लड़ना वरदान है, वहीं दूसरे से लड़ना अभिशाप।’ सो! हमें प्रतिपक्षी को कमज़ोर समझ कर कभी भी ललकारना नहीं चाहिए, क्योंकि आधुनिक युग में हर इंसान अहंवादी है और अहं का संघर्ष, जहां घर-परिवार व अन्य रिश्तों में सेंध लगा रहा है; दीमक की भांति चाट रहा है, वहीं समाज व देश में फूट डालकर युद्ध की स्थिति तक उत्पन्न कर रहा है। मुझे याद आ आ रहा है, एक प्रेरक प्रसंग… बोधिसत्व, बटेर का जन्म लेकर उनके साथ रहने लगे। शिकारी बटेर की आवाज़ निकाल कर, मछलियों को जाल में फंसा कर अपनी आजीविका चलाता था। बोधि ने बटेर के बच्चों को, अपनी जाति की रक्षा के लिए, जाल की गांठों को कस कर पकड़ कर, जाल को लेकर उड़ने का संदेश दिया…और उनकी एकता रंग लाई। वे जाल को लेकर उड़ गये और शिकारी हाथ मलता रह गया। खाली हाथ घर लौटने पर उसकी पत्नी ने, उनमें फूट डालने की डालने के निमित्त दाना डालने को कहा। परिणामत: उनमें संघर्ष उत्पन्न हुआ और दो गुट बनने के कारण वे शिकारी की गिरफ़्त में आ गए और वह अपने मिशन में कामयाब हो गया। ‘फूट डालो और राज्य करो’ के आधार पर अंग्रेज़ों का हमारे देश पर अनेक वर्षों तक आधिपत्य रहा। ‘एकता में बल है तथा बंद मुट्ठी लाख की, खुली तो खाक़ की’ एकजुटता का संदेश देती है। अनुशासन से एकता को बल मिलता है, जिसके आधार पर हम बाहरी शत्रुओं व शक्तियों से तो लोहा ले सकते हैं, परंतु मन के शत्रुओं को पराजित करन अत्यंत कठिन है। काम, क्रोध, लोभ, मोह पर तो इंसान किसी प्रकार विजय प्राप्त कर सकता है, परंतु अहं को पराजित करना आसान नहीं है।

मानव में ख़ुद को जीतने की ज़िद्द होनी चाहिए, जिस के आधार पर मानव उस मुक़ाम पर आसानी से पहुंच सकता है, क्योंकि उसका प्रति-पक्षी वह स्वयं होता है और उसका सामना भी ख़ुद से होता है। इस मन:स्थिति में ईर्ष्या-द्वेष का भाव नदारद रहता है… मानव का हृदय अलौकिक आनन्दोल्लास से आप्लावित हो जाता है और उसे ऐसी दिव्यानुभूति होती है, जैसी उसे अपने बच्चों से पराजित होने पर होती है। ‘चाइल्ड इज़ दी फॉदर ऑफ मैन’ के अंतर्गत माता-पिता, बच्चों को अपने से ऊंचे पदों पर आसीन देख कर फूले नहीं समाते और अपने भाग्य को सराहते नहीं थकते। सो! ख़ुद को हराने के लिए दरक़ार है…स्व-पर, राग-द्वेष से ऊपर उठ कर, जीव- जगत् में परमात्म-सत्ता अनुभव करने की; दूसरों के हितों का ख्याल रखते हुए उन्हें दु:ख, तकलीफ़ व कष्ट न पहुंचाने की; नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने की … यही वे माध्यम हैं, जिनके द्वारा हम दूसरों को पराजित कर, उनके हृदय में प्रतिष्ठापित होने के पश्चात्, मील के नवीन पत्थर स्थापित कर सकते हैं। इस स्थिति में मानव इस तथ्य से अवगत होता है कि उस के अंतर्मन में अदृश्य व अलौकिक शक्तियों का खज़ाना छिपा है, जिन्हें जाग्रत कर हम विषम परिस्थितियों का बखूबी सामना कर, अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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