हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # 2 – कथासार ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ई-अभिव्यक्ति  का सदैव प्रयास रहा है कि वह अपने प्रबुद्ध पाठकों को  हिंदी, मराठी एवं अंग्रेजी साहित्य की उत्कृष्ट रचनाएँ साझा करते रहे। इस सन्दर्भ में हमने कुछ प्रयोग भी किये जो काफी सफल रहे।  ई-अभिव्यक्ति  में सुप्रसिद्ध ग्रन्थ श्रीमद भगवत गीता के एक श्लोक का  प्रतिदिन प्रकाशन किया गया एवं कल के अंक में उसका समापन हुआ। इस प्रयास का हमें पाठकों का अभूतपूर्व स्नेह एवं प्रतिसाद मिला। इस कड़ी में आज से प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा महाकवि कालिदास जी के महाकाव्य मेघदूतम का श्लोकशः  हिन्दी पद्यानुवाद के सन्दर्भ में प्रकाशित मनोगत को पढ़ने के उपरान्त कुछ प्रबुद्ध पाठकों ने ग्रन्थ के सन्दर्भ में जानकारी चाही थी । इस तारतम्य में प्रस्तुत है मेघदूतम का कथासार एवं तत्संबंधित अभिप्राय। )

(महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा  प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव)

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # 2 – कथासार ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

विरह प्रेम का अमर वैश्विक काव्य है कालिदास का मेघदूतम 

यदि कालिदास के समय में मोबाइल होता तो संभवतः मेघदूत की रचना ही न होती, क्योकि प्रत्यक्षतः मेघदूत एक नवविवाहित प्रेमी यक्ष की अपनी प्रिया से विरह की व्याकुल मनोदशा में उससे मिलने की उत्कंठा का वर्णन है. एक वर्ष के विरह शाप के शेष  चार माह वर्षा ‌ॠतु के हैं. विरही यक्ष मध्य भारत के रामगिरी पर्वत से अपनी प्रेमिका को, जो उत्तर भारत में हिमालय पर स्थित अलकापुरी में है, आकाश में उमड़ आये बादलो के माध्यम से प्रेम संदेश भेजता है. अपरोक्ष रुप से रचना का भाषा सौंदर्य, मेघो को अपनी प्रेमिका का पता बताने के माध्यम से तत्कालीन भारत का भौगिलिक व जनैतिक वर्णन, निर्जीव मेघो को सप्राण संदेश वाहक बनाने की आध्यात्मिकता, आदि विशेषताओ ने मेघदूत को अमर विश्वकाव्य बना दिया है. मेघदूत खण्ड काव्य है. जिसके २ खण्ड है. पूर्वमेघ में ६७ श्लोक हैं जिनमें कवि ने मेघ को यात्रा मार्ग बतलाकर प्रकृति का मानवीकरण करते हुये अद्भुत कल्पना शक्ति का परिचय दिया है.

उत्तरमेघ में ५४ श्लोक हैं, जिनमें विरह प्रेम की अवस्था का भावुक चित्रण है.

लौकिक दृष्टि से हर पति पत्नी में कुछ समय के लिये विरह बहुत सहज घटना है.

“तेरी दो टकियो की नौकरी मेरा लाखो का सावन जाये” आज भी गाया जाता है, किन्तु कालिदास के समय में यह विरह अभिव्यक्ति यक्ष के माध्यम से व्यक्त की जा रही थी.. यक्षिणि शायद इतनी मुखर नही थी,  वह तो अवगुंठित अल्कापुरी में अपने प्रिय के इंतजार में ही है.  इसी सामान्य प्रेमी जोड़े के विरह की घटना को विशिष्ट बनाने की क्षमता मेघदूत की विशिष्टता है.

इस अद्भुत कल्पना को काव्य में सजाया था महाकवि कालिदास ने, उसे उसी मधुरता से काव्य भाव अनुवाद किया है प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी ने।

श्रीमद्भगवत्गीता विश्व ग्रंथ के रूप में मान्यता अर्जित कर चुका है, गीता में भगवान कृष्ण के अर्जुन को रणभूमि में दिये गये उपदेश हैं, जिनसे धर्म, जाति से परे प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की चुनौतियो से सामना करने की प्रेरणा मिलती है. परमात्मा को समझने का अवसर मिलता है. जीवन “मैनेजमेंट” की शिक्षा मिलती है.

ई अभिव्यक्ति ने प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव के द्वारा भगवत गीता के श्लोकः हिंदी काव्य अनुवाद हिंदी व अंग्रेजी अर्थ का धारावाहिक प्रकाशन किया। इसे पाठकों का अभूतपूर्व प्रतिसाद मिला, जिससे सम्पादक मण्डल अभिभूत है। हमारा उद्देश्य ही आप तक सांस्कृतिक मूल्यों का उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाना है ।

गीता की इस प्रस्तुति से प्रतिदिन अनेको पाठकों ने गीता पर मनन चिंतन किया ।

हम इस आशा से यह कड़ी मेघदूतम के रूप में बढा रहे हैं ।

महाकवि कालिदास की विश्व प्रसिद्ध कृतियों में मेघदूतम्, रघुवंशम्, कुमारसंभवम्, अभिग्यानशाकुन्तलम् आदि ग्रंथ सुप्रसिद्ध हैं । इस विश्व धरोहर पर संस्कृत न जानने वाले पाठको की भी गहन रुचि है !

ऐसे पाठक अनुवाद पढ़कर ही इन महान ग्रंथों को समझने का प्रयत्न करते हैं ! किन्तु अनुवाद की सीमायें होती हैं ! अनुवाद में काव्य का शिल्पगत् सौन्दर्य नष्ट हो जाता है ! पर यदि  काव्यानुवाद श्लोकशः भावानुवाद हो तो वह आनंद यथावत बना रहता है, और यही कर दिखाया है प्रो सी बी श्रीवास्तव ने.

नयी पीढ़ी संस्कृत नही पढ़ रही है, और ये सारे विश्व ग्रंथ मूल संस्कृत काव्य में हैं, अतः ऐसे महान दिशा दर्शक ग्रंथो के रसामृत से आज की पीढ़ी वंचित है.

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ने श्रीमद्भगवत गीता, रघुवंशम्, मेघदूतम् जैसी महान रचनाओ का श्लोकशः हिन्दी भाव पद्यानुवाद का महान कार्य करके  काव्य की उसी मूल भावना तथा सौंदर्य के आनंद के साथ हमारे सांस्कृतिक ज्ञान,व प्राचीन साहित्य को हिन्दी जानने वाले पाठको के लिये सुलभ करा दिया है. यह कार्य 94 वर्षीय प्रो. श्रीवास्तव के सुदीर्घ संस्कृत, हिन्दी तथा काव्यगत अनुभव व ज्ञान से ही संभव हो पाया है. प्रो श्रीवास्तव इसे ईश्वरीय प्रेरणा, व कृपा बताते हैं.

मण्डला के प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” जी ने  महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम् के समस्त १२१ मूल संस्कृत श्लोकों का एवं रघुवंश के सभी १९ सर्गों के लगभग १८०० मूल संस्कृत श्लोकों का  तथा श्रीमद्भगवत गीता के समस्त १८ अध्यायो के सारे श्लोको का श्लोकशः हिन्दी गेय छंद बद्ध भाव पद्यानुवाद कर हिन्दी के पाठको के लिये अद्वितीय कार्य किया है।

उल्लेखनीय है कि प्रो श्रीवास्तव की शिक्षा, साहित्य, गजलों,कविताओ की 40 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं व सराहना अर्जित कर चुकी हैं.

शासन हर वर्ष कालिदास समारोह, तथा संस्कृत के नाम पर करोंडों रूपये व्यय कर रहा है ! जन हित में इन अप्रतिम अनुदित कृतियों को आम आदमी के लिये संस्कृत में रुचि पैदा करने हेतु इन पुस्तकों को इलेक्ट्रानिक माध्यमों से प्रस्तुत किया जाना चाहिये, जिससे यह विश्व स्तरीय कार्य समुचित सराहना पा सकेगा !

प्रो श्रीवास्तव ने अपने ब्लाग http://vikasprakashan.blogspot.com  पर अनुवाद के कुछ अंश सुलभ करवाये हैं.

ई बुक्स के इस समय में भी प्रकाशित पुस्तकों  को पढ़ने का आनंद अलग ही है, उन्होने बताया कि इन ग्रंथो को पुस्तकाकार प्रकाशन कर भी सुलभ किया गया है।

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

?आप कल से प्रतिदिन एक श्लोक का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद आत्मसात कर सकेंगे।?

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य ☆ पाक्षिक स्तम्भ – संस्कृति  एवं साहित्य #1☆ मर्यादित संस्कृति की विजय ☆ डॉ श्याम बाला राय

डॉ श्याम बाला राय

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार  एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ श्याम बाला राय जी  के हम हार्दिक आभारी हैं।  अपने ई-अभिव्यक्ति  में प्रथम पाक्षिक स्तम्भ – संस्कृति  एवं साहित्य प्रारम्भ करने के हमारे आग्रह को स्वीकार किया। आपकी उपलब्धियां इस सीमित स्थान में उल्लेखित करना संभव नहीं है। कई रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं  में  प्रकाशित। कई राष्ट्रीय / प्रादेशिक /संस्थागत  पुरस्कारों /अलंकारों से पुरस्कृत /अलंकृत ।  लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित। कई साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं  का प्रतिनिधित्व। आकाशवाणी से समय समय पर रचनाओं का प्रसारण । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता   ‘मर्यादित संस्कृति की विजय’।)

(अब आप प्रत्येक माह के 15 तारीख को  आपकी कविता एवं 30/31 तारीख को आपकी लघुकथा नियमित  रूप से आत्मसात कर सकेंगे। )

 

☆ पाक्षिक स्तम्भ – संस्कृति  एवं साहित्य #1☆ मर्यादित संस्कृति की विजय ☆

 

ए मेरे वतन तीर्थ, तू है इतना महान,

आने न दिया वायरस, बैक्टीरिया,  है ये तेरा कमाल ,

एक नदी में,एक जगह पर खाते पीते रहते लोग,

पञच तत्व के स्वच्छीकरण में लगा ये तीर्थ महान,

 

दे दिया एच आई वी कांगो ने,

पनपाया नीपह को मलेशिया ने,

ईबोला ने बोला सूडान से,

फैलाया बर्ड फ्लू होंगकोंग ने

कहर कोरोना का चीन ने दिया,

अमर्यादित देशों की रही यही कहानी,

 

पवित्र पूजा तीर्थ कहानी,

दुर्गा पूजा, नागपञचमी, नवरात्रि

वैष्णो देवी, स्वर्ण मन्दिर, जगन्नाथ धाम,

बद्रीनाथ, केदारनाथ, शिरडीधाम,

जाते भीड़ के साथ,

कुम्भ, पुष्कर, रामेश्वर, गंगासागर

करते स्नान एक साथ,

 

अष्टविनायक,  सिद्धिविनायक

द्वाद्श ज्यतिर्लिंग में होती भीड़ भयानक,

फिर कभी न होते हम वायरसी,

यह है मेरी मेरी मर्यादा की कहानी।

 

©  डॉ श्यामबाला राय

द्वारा श्री यश्वन्त सिंह, यू- 28, प्रथम तल, उपाध्याय ब्लाक, शकरपुर, दिल्ली – 110092

मोबाइल न0 – 9278280879

[email protected]

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