हिन्दी साहित्य – कविता ☆ चांदनी ☆ डॉ मौसमी परिहार

डॉ मौसमी परिहार

(संस्कारधानी जबलपुर में  जन्मी  डॉ मौसमी जी ने “डॉ हरिवंशराय बच्चन की काव्य भाषा का अध्ययन” विषय पर  पी एच डी अर्जित। आपकी रचनाओं का प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित प्रसारण। आकाशवाणी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘युगवाणी’ तथा दूरदर्शन के ‘कृषि दर्शन’ का संचालन। रंगकर्म में विशेष रुचि के चलते सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ पटकथा लेखक और निर्देशक अशोक मिश्रा के निर्देशन में मंचित नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत। कई सम्मानों से सम्मानित, जिनमें प्रमुख हैं वुमन आवाज सम्मान, अटल सागर सम्मान, महादेवी सम्मान हैं।  हम भविष्य में आपकी चुनिंदा रचनाओं को ई- अभिव्यक्ति में साझा करने की अपेक्षा करते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर कविता  ‘चांदनी’ )   

 ☆ कविता  – चांदनी ☆

 

आज अचानक देखा,

ठूँठ पर ,फिर निकल पडी

सफेद चांदनी के फूल की

नई कोपलें,,,,

 

और कुछ नई  कलियां भी,

तीखी धूप में, सफेद श्रृंगार

मानो  ललचा रही है धूप को,

 

हमने तो रात की  चांदनी

ही सुनी थी ,चांद वाली

अब देखो, ये चांदनी भी

बिखेर रही है ,,,,चांदनी धूप के साथ !!

 

© डॉ मौसमी परिहार

21/04/20

संप्रति – रवीन्द्रनाथ टैगोर  महाविद्यालय, भोपाल मध्य प्रदेश  में सहायक प्राध्यापक।

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 22 ☆ कविता – कठपुतली ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और  मौलिक कविता  कठपुतली।  श्रीमती कृष्णा जी ने  कठपुतली के खेल के माध्यम से काफी कुछ  बड़ी ही सहजता से कह दिया है।  वास्तव में जब हम बच्चे थे ,तो कठपुतली का नाच देखने की उत्सुकता रहती थी । अब तो मीडिया ने इस कला को काफी पीछे धकेल दिया  है किन्तु, अब भी कुछ कलाकार इसे जीवित रखे हुए हैं।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 22 ☆

☆ कविता  – कठपुतली ☆

एक बार की बात बताऊँ

कठपुतली का नाच दिखाऊँ

कहा बापू ने हमसे…

हम सभी छोटे बड़े

निकले कठपुतली को देखने

मैने कहा माँ तू चलना

वह बोली- नहीं मै घर की

कठपुतली हूँ.

 

क्या…? मै बोली

वह बोली

बड़ी होगी तो समझेगी

जा अभी तू जा.

 

आओ..आओ नाच देखलो

छम्मक छम्मक नाचे है

काम बड़ा कर जाये है

देखो …अभी सासुरे जायेगी

फिर सासु की डांट खायेगी

 

और फिर पानी भरने घाट …

बड़े बड़े मटको मे जायेगी.

घर मे जनावर को भूसा चोकर डाले…

 

हरी घाँस चरने को देगी

अब घर में  सबको भोजन परसेगी

घर के सारे काम निपटा समेट कर

पति के पैर दबा फिर सोयेगी

भोर होते ही फिर पिछली

दिनचर्या दुहरायेगी.

 

समाप्त हुआ कठपुतली का खेल

मैने देखा जो जो काम करे थी

अम्मा कठपुतली भी वही..करे

बापू से पूछा मैने यही सभी तो

अम्मा घर मे दिनभर करे है

तो बापू अम्मा को कठपुतली कहें…..

 

बेटी की बाते सुनकर वे बोले

नहीं सुनो अगले घर जाने की

तैयारी मे हमने यह कठपुतली का

नाच दिखाया अनजाने में ही

लाडो सब कुछ तूने ज्ञान है पाया

बस अगले बरस कर दूंगा ब्याह तेरा..

तू भी जिम्मेदारी सासुरे की निभा

 

बेटी छटपटाहट की मारी

कभी माँ और कभी कठपुतली को देखे है

 

अंतर क्या कोई बतलाये

इन दोनों की तासीर एक है

यहाँ भी पुरूष चलावे

वहाँ भी वही तमाशा करवावे है.

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 36 ☆ टुकड़े शाम के☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “टुकड़े शाम के ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 36☆

☆ टुकड़े शाम के ☆

 

हवाएं ज़ोरों से सायें-सायें करती हुई आयीं

और चली गयीं शाम के टुकड़े करती हुई –

उनके जाने के बाद हर तरफ फिर से

ऐसी शान्ति छा गयी जैसे कुछ हुआ ही न हो!

 

नहीं देखे गए मेरी भावुक नज़रों से

शाम के वो अनगिनत टुकड़े

और बीनने लगी मैं उन्हें

अपनी छोटी और नाज़ुक उँगलियों से-

पर वो टुकड़े तो किसी पैने कांच के टुकड़ों की तरह थे,

बहने लगी मेरी उँगलियों से रक्त की धारा अविरल

और मैं भी हताश होकर बैठ गयी…

 

जब दर्द की पीड़ा से निकलकर

मेरा मन कुछ और सोचने के काबिल हुआ

तब कहीं जाकर यह विचार कौंधा,

“क्या पहले नहीं हुए कभी

शाम के इस कदर टुकड़े?

माना कि यह ज़्यादा पैने थे,

पर ऐसे टुकड़ों को जोड़कर

अगली शाम हरदम फिर आई थी ख़ुशी का पैग़ाम लिए…

 

अगली सुबह के इंतज़ार में

बहते रक्त के बावजूद, मैं हौले से मुस्कुरा उठी-

मुझे पूरा भरोसा था

कि इतनी जुस्तजू भर दूँगी मैं

आफताब के सीने में

कि अगली शाम जब आएगी

तो वो होगी खुशनुमा और मुकम्मल!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 15 ☆ डायरी के पन्ने ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी आज ही लिखी एक रचना  “डायरी के पन्ने”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 15

☆ डायरी के पन्ने ☆

बचपन से लिखी

डायरी के अपरिपक्व पन्ने अब

बेमानी हो गए।

 

कुछ पन्नों को पढ़

भूली बिसरी यादों को याद कर

कुछ शर्माए कुछ मुस्कराये

और थोड़ा सा

रोमानी हो गए।

 

पीले होते पन्नों पर

जो उतारे थे

एक एक लफ्ज

वक्त के आंसुओं से भीगकर वो

आसमानी हो गए।

 

बड़ी शोहरत मिली थी

पन्नों के झूठे किस्सों पर,

अपने तुम्हारे

सच्चे किस्से क्या लिख दिये

नादानी हो गए।

 

एक डायरी ऐसी भी है

क्यों दिखाई ही नहीं देती ताउम्र

कौन लिख रहा है उसे ?

हरेक के जहन में हर पल

ज़िंदगी के हर पल

शीशे के दोनों ओर पाक साफ

जानता हूँ तुम यही कहोगे कि

रूहानी हो गए।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विश्व धरोहर दिवस विशेष – एक धरोहर जगत की ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की एक सामायिक कविता  एक धरोहर जगत की। इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

विश्व धरोहर दिवस अथवा विश्व विरासत दिवस (World Heritage Day) प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को मनाया  जाता है।  इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य  हैपूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लायी जा सके। अप्रत्याशित कारणों से 18 अप्रैल को हम ई- अभिव्यक्ति का अंक प्रकाशित न कर सके इसलिए इस कविता के विलम्ब से प्रकाशन के लिए हमें खेद है।

 ☆  विश्व धरोहर दिवस विशेष – एक धरोहर जगत की  ☆

 

विश्व धरोहर दिवस पर

बूढ़ा बरगद रोय

बोन्साई में ढल रहा

थाती सबकी होय

 

देवालय सजने लगे,

बड़ी दूर हैं देव

एक धरोहर जगत की

मानवता की ठेव!!

 

मानव के निर्माण हैं,

सात अजूबे देख!

ईश्वर के निर्माण की,

चित्रगुप्त रचे रेख!!

 

समय धार में बह गए,

राजा रंक फकीर!!

मीनारों ने कब लिखी,

अलग अलग तकरीर!!

 

तलवारों की तिश्नगी,

या तोपों की प्यास!

किले धराशायी हुए,

झूठ धरोहर आस!!

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अजर  ☆

कौन कहता है

निर्जीव वस्तुएँ

अजर होती हैं,

घर की कलह से

घर की दीवारें

जर्जर होती हैं।

# घर में रहें। स्वस्थ रहें।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

20.9.2018 11.15 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 30 – इस सदी में भी  ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री जीवन के कटु सत्य को उजागर कराती एक सार्थक रचना ‘इस सदी में भी । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– विशाखा की नज़र से

☆ इस सदी में भी  ☆

 

चहकती हो मुंडेर पर

लगाती हो आवाज़

दाना लेकर आऊँ तो

उड़ जाती क्यों बिन बात

 

ओ ! चिरैया

तुम स्त्रियों की भांति कितनी

डरी , सहमी हो

शायद ! तुम भी भूली नहीं हो

पिंजरा और अपना इतिहास

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 4 ☆ यह फुर्सत के पल मिले हैं कई सालों के बाद ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  जीवन के स्वर्णिम कॉलेज में गुजरे लम्हों पर आधारित एक  समसामयिक भावपूर्ण कविता  “यह फुर्सत के पल मिले हैं कई सालों के बाद”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 4 ☆

☆  यह फुर्सत के पल मिले हैं कई सालों के बाद ☆

 

यह गुजरे जमाने  ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,

यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।

 

अब शाम की चाय की प्याली भी टकराने लगी है,

पुरानी डायरी फिर संदूक से निकलकर होठों की मुस्कान बनने लगी है,

यह सुबह का अखबार भी शाम को पलटने लगा है,

 

यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,

यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।

 

ये अब गुजरे दिनों के किस्से भी दोहराने लगे हैं,

अब दोपहर का खाना भी साथ परोसने लगा हैं ,

ये पुरानी सी गजल भी गुनगुनाने लगे हैं ,

ये हर दिन रविवार सा लगने लगा हैं  ।

 

यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,

यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।

 

देर तक पिक्चर देखना फिर  देर से सोकर उठना,

ये बेफिक्री का आलम आराम की जिंदगी अच्छी लगना,

मौसम आएंगे और चले जाएंगे,

ये पल जाएंगे फिर ना आएंगे,

हर दिन हर पल ताजा हो जाएंगे।

आओ इन्हें जी ले, ये पल फिर ना मिल पाएंगे,

 

यह गुजरे जमाने ताजा हुए हैं, कई सालों के बाद,

यह भागती दौड़ती सी जिंदगी रुक सी गई है कई सालों के बाद ।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 3 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

 ☆ Anonymous Litterateur of Social  Media # 3/ सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 3☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

ज़रा सी कैद से ही

   घुटन होने  लगी…

    तुम तो पंछी पालने

      के  बड़े  शौक़ीन थे…

 

  Just a little bit of confinement

   Made you feel so suffocated

    But keeping the birds caged

      You were so very fond of…!

§

  लगता था जिन्दगी को

  बदलने में वक्त लगेगा

    पर क्या पता था बदला

      वक्त जिन्दगी बदल देगा…!

 

  Always felt, it would take

 Time  to  change  the life…

  Never knew that changed

   time would change the life…!

§

  हालात तो कह रहे हैं

 मुलाकात नहीं मुमकिन

   पर उम्मीद कह रही है

    थोड़ा  इंतजार  कर…

 

  Circumstances are saying

    It’s not possible to meet

     But the expectation  says

       Just  wait  for a  while..!

§

अब तो तन्हाई भी

  मुझसे है कहने लगी

    मुझसे ही कर लो मोहब्बत

      मैं  तो  बेवफा नहीं…

 

  Now,  even loneliness

   has also started saying 

    Please fall in love with me

      At least I am not unfaithful…

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजेय ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अजेय  ☆

समुद्री लहरों का

कंपन-प्रकंपन,

प्रसरण-आकुंचन,

मशीनों से

मापनेवालों की

आज हार हुई,

मेरे मन में

उमड़ती-घुमड़ती लहरें,

उनकी पकड़

और परख से दूर

सिद्ध हुईं..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

7 नवम्बर 2016 रात्रि 9.40 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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