हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 50 ☆ गीत – कुछ दीवाने कम भले हों ….. ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत  “कुछ दीवाने कम भले हों …..। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 50 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – कुछ दीवाने कम भले हों …..  ☆

 

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

जिंदगी में फासले हो,फिर भी हम चलते रहे।।

 

चित्र तेरा देखकर ही सोचता मैं रह गया।

आते रहते स्वप्न तेरे पीर सहता रह गया।

जाने कितने देखे हमने सपन तो पलते रहे।

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

 

जो हुआ विश्वास मन का टूटता ही रह गया।

जो किया संकल्प हमने छूटता ही रह गया।

क्यों करे कोई शिकायत हाथ मलते ही रहे।

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

 

हो अगर प्रतिकूल जीवन,तो है तुमसे वास्ता।

वरना इस जीवन में अपना अलग ही रास्ता।

हम समय के साथ  संध्या की तरह ढलते रहे।

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

 

कुछ दीवाने कम भले हो,प्यार तो करते रहें।

जिंदगी में फासले हो,फिर भी हम चलते रहे।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 41 ☆ धन – वैभव …. ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी  का  एक भावप्रवण रचना “ धन – वैभव ….. ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 41 ☆

☆ धन – वैभव ....

 

धन-वैभव में डूब कर, निश दिन करते पाप।

अहंकार पाले हृदय, रख दौलत का ताप  ।।

 

तृष्णा लेकर जी रहे, मन में रखें विकार  ।

अक्सर कंजूसी उन्हें, करती नित्य शिकार।।

 

धन वैभव किस काम का, जब घेरे हों रोग  ।

शांति और सुख के लिए , हो यह देह निरोग ।।

 

मिलता यश वैभव सुफल, जब होते सद्कर्म  ।

रोशन सच से ज़िन्दगी,  समझें इसका मर्म  ।।

 

बुद्धि- ज्ञान शिक्षा सुमति, और सत्य की राह ।

चले धरम के मार्ग पर, उसे न धन की चाह   ।।

 

मन के पीछे जो चला, उसके बिगड़े काम ।

मन माया का दूत है,  इस पर रखें लगाम ।।

 

कोरोना के दौर में, काम न आया दाम  ।

धन-वैभव फीके पड़े, याद रहे श्रीराम ।।

 

बेटी धन अनमोल है, उसका हो सम्मान  ।

दो कुल को रोशन करे, रख कर सबका मान ।।

 

सुख-वैभव की लालसा, रखते हैं सब लोग ।

आये जब “संतोष”धन, छूटे माया रोग  ।।

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चिरंजीव ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चिरंजीव ☆

लपेटा जा रहा है

कच्चा सूत

विशाल बरगद

के चारों ओर,

आयु बढ़ाने की

मनौती से बनी

यह रक्षापंक्ति

अपनी सदाहरी

सफलता की गाथा

सप्रमाण कहती आई है,

कच्चे धागों से बनी

सुहागिन वैक्सिन

अनंतकाल से

बरगदों को

चिरंजीव रखती आई है!

 

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

प्रात: 7:54 बजे,  13.4.2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 31 ☆ कोरोना पर वार करो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक सकारात्मक एवं भावप्रवण कविता  “कोरोना पर वार करो.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 31 ☆

☆  कोरोना पर वार करो  ☆ 

देश हमें यदि प्यारा है तो

कोरोना पर वार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

बचो-बचाओ मिलने से भी

घर से बाहर कम निकलो

भीड़-भाड़ में कभी न जाओ

कुछ दिन अंदर ही रह लो

 

हाथ मिलाना छोड़ो मित्रो

हाथ जोड़कर प्यार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

साफ-सफाई रखो सदा ही

घर पर हों या बाहर भी

हाथ साफ करना मत भूलो

यही प्राथमिक मंतर भी

 

करना है तो मन से करना

सबका ही उपकार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

मन को रखना बस में अपने

बाहर का खाना छोड़ें

घर में व्यंजन स्वयं बनाना

बाहर से लाना छोड़ें

 

शाकाहारी भोजन अच्छा

उसका ही सत्कार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

 

अपने को मजबूत बनाओ

योगासन-व्यायाम करो

बातों में मत समय गँवाओ

दिनचर्या अभिराम करो

 

प्रातःकाल जगें खुश होकर

आदत स्वयं सुधार करो

हम सबका जीवन अमूल्य है

मिलकर सभी प्रहार करो

देश हमें यदि प्यारा है तो

कोरोना पर वार करो

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 51 – ये सदी….. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है इस सदी की त्रासदी को बयां करती  भावप्रवण रचना ये सदी….. । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 51 ☆

☆ ये सदी….. ☆  

चुप्पियों को ओढ़

आई ये सदी

सबको रुलाने।

 

पैर पूजे थे हमीं ने

देहरी दीपक जलाए

और हर्षित हो सभी ने

सुखद मंगल गीत गाए,

उम्मीदें थी अब खुलेंगे

द्वार सब जाने अजाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

गांव घर सारे नगर के

पथिक बेचारे डगर के

घाव पावों के पसीजे

अश्रु छलके दोपहर के,

भूख इस तट उधर संशय

है न कोई तय ठिकाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

तुम अदृश्या, सर्वव्यापी

कोप से यह सृष्टि कांपी

ईद, दिवाली नहीं

कैसे मनेगा पर्व राखी,

क्रुध्द हो किस बात से

अवरुद्ध है सारी उड़ाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

जोश यौवन का लिए तुम

उम्र केवल बीस की है

हे सदी! है नजर तुम पर

वक्त खबर नवीस की है,

अंत में होगी विकल तब

कौन से होंगे बहाने

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ -12 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ – 12 ☆

मेरे शब्द

चुराने आए थे वे,

चुप्पी की मेरी

अकूत संपदा देखकर

मुँह खुला का खुला

रह गया…..,

समर्पण में

बदल गया आक्रमण,

मेरी चुप्पी में

कुछ और पात्रों का

समावेश हो गया!

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 8:07 बजे, 2.9.18)
(कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आई कांट ब्रीथ ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार

डॉ प्रतिभा मुदलियार

(डॉ प्रतिभा मुदलियार जी का अध्यापन के क्षेत्र में 25 वर्षों का अनुभव है । वर्तमान में प्रो एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय। पूर्व में  हांकुक युनिर्वसिटी ऑफ फोरन स्टडिज, साउथ कोरिया में वर्ष 2005 से 2008 तक अतिथि हिंदी प्रोफेसर के रूप में कार्यरत। कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत।  इसके पूर्व कि मुझसे कुछ छूट जाए आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया डॉ प्रतिभा मुदलियार जी की साहित्यिक यात्रा की जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें –

जीवन परिचय – डॉ प्रतिभा मुदलियार

आज प्रस्तुत है डॉ प्रतिभा जी की एक समसामयिक कविता  आई कांट ब्रीथ।  यह कविता इस बात का प्रतीक है कि मानवीय संवेदनाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आहत हुई हैं । जॉर्ज फ्लॉयड  एक प्रतीक हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रंगभेद, धार्मिक भेदभाव, जातिवाद, नस्लवाद, कट्टरता के विरुद्ध स्वर प्रखर होना स्वाभाविक है और मानवता के हित में साहित्यकार इससे अछूते नहीं हैं। )

☆ आई कांट ब्रीथ ☆

 

नहीं ली जाती है सांस

जब उठ खडे होते हैं

प्रश्न

वर्ण, रंग और व्यक्ति की

पहचान पर।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब रौंध दी जाती

व्यवस्था के हांथों

प्रतिरोध में उठी आवाज़।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब तोड दिए जाते हैं

पैरों तले

हक के लिए उठे हाथ।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब गर्दन पर

कस दिया

जाता है सत्ता का घुटना।

 

नहीं ली जाती है सांस

जब व्यवस्था के बाशिंदे

महज़ कुछ सिक्कों की खातिर

घोटने लगते हैं गला

और तत्पर हो जाते है

अनायास दोहराने

क्रूर और बर्बर

इतिहास।

 

ज़ॉर्ज फ्लायड

तुम्हारी

घुटी सांस के

साथ घुट रही हैं

सांसें सबकी

रच रहा है

वर्तमान

शब्द शिल्प

तुम्हारे जरिए

रचता रहेगा

श्वास लेख

अंटिल वी ब्रीथ

 

©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री, मैसूर 570006

दूरभाषः कार्यालय 0821-419619 निवास- 0821- 2415498, मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    [email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऐन सर्दियों में ☆ श्री भगवान् वैद्य ‘प्रखर’

श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’

( श्री भगवान् वैद्य ‘ प्रखर ‘ जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप हिंदी एवं मराठी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपका संक्षिप्त परिचय ही आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचायक है।

संक्षिप्त परिचय : 4 व्यंग्य संग्रह, 3 कहानी संग्रह, 2 कविता संग्रह, 2 लघुकथा संग्रह, मराठी से हिन्दी में 6 पुस्तकों तथा 30 कहानियाँ, कुछ लेख, कविताओं का अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी की राष्ट्रीय-स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधाओं की 1000 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से छह नाटक तथा अनेक रचनाएँ प्रसारित
पुरस्कार-सम्मान : भारत सरकार द्वारा ‘हिंदीतर-भाषी हिन्दी लेखक राष्ट्रीय पुरस्कार’, महाराष्ट्र राजी हिन्दी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा कहानी संग्रहों पर 2 बार ‘मूषी प्रेमचंद पुरस्कार’, काव्य-संग्रह के लिए ‘संत नामदेव पुरस्कार’ अनुवाद के लिए ‘मामा वारेरकर पुरस्कार’, डॉ राम मनोहर त्रिपाठी फ़ेलोशिप। किताबघर, नई दिल्ली द्वारा लघुकथा के लिए अखिल भारतीय ‘आर्य स्मृति साहित्य सम्मान 2018’

हम आज प्रस्तुत कर रहे हैं श्री भगवान वैद्य ‘प्रखर’ जी  द्वारा सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  की एक भावप्रवण  अप्रतिम मराठी कविता  का अतिसुन्दर हिंदी भावानुवाद ‘ऐन सर्दियों में

☆ ऐन सर्दियों में ☆

भरोसे के इन दरख्तों ने ही

विश्वासघात किया हमारा

ऐन सर्दियों में ।

 

आश्रय नकारना

उन्हें संभव न हुआ

तब उन्होंने ईंटे निकाल लीं

अपने घर की दीवारों की

 

अब खुले में हम

प्रतीक्षा कर रहे हैं

परों के झड़ने की

या किसी शिकारी के मर्मभेदी तीर की ।

 

श्री भगवान् वैद्य ‘प्रखर’ 

30 गुरुछाया कॉलोनी, साईं नगर अमरावती – 444 607

मोबाइल 8971063051

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अगर प्यार है…. ☆ डॉ सीमा सूरी

डॉ सीमा सूरी

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार  एवं सामाजिक कार्यकर्ता  डॉ सीमा सूरीजी  का ई-अभिव्यक्ति  में हार्दिक स्वागत हैं। आपकी उपलब्धियां इस सीमित स्थान में उल्लेखित करना संभव नहीं है। आपने कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंचों  पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है एवं आयोजनों का सफल संचालन भी किया है।  आपकी कई रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं  में  प्रकाशित हुई हैं । आप कई राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों / अलंकारों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता अगर प्यार है….। )

☆ अगर प्यार है…. ☆ 

दूरी में क्यो अपनो को प्यार नही जताते लोग

उनके बिना नही जीवन है, क्यो नही बतलाते लोग

ज़रा सी तो बात है फिर भी क्यो छिपाते लोग

न जाने किस बात पे खुद पे यू इतराते लोग

माना समझा करते हैं हम, नही किसी का करते हैं गम

नही कोई उम्मीद लगाते, नही किसी का किया भुलाते

पर कह देना और जताना, ऐसे में ही अच्छा लगता है

दूर हैं सब जब ,समय बहुत है

हर रिश्ता सपना लगता है

क्या घट जाएगा उनका जो

थोड़ा सा प्यार जता दे तो

उनको भी तो फिक्र हमारी

बस इतना बतला दें वो

हर रिश्ता, बस प्यार मांगता

और थोड़ा सा यह अहसास

दूर भले है, फिर भी अपना, सदा रहेगा अपने पास

यही समय है कह देने का

अपनो को बतला दो आज

उनसे कितना प्यार तुम्हे है

जल्दी से जतला दो आज

कोई फर्क न पड़ता इस से, बल्कि और निखरता है

वो रिश्ता जो हर प्यारे से केवल प्यार ही करता है।

मन मे रख कर मत बांधो तुम

अपने प्रेम खजाने को

जितना बाँट दो, उतना बढ़ता

इस प्रेम को बढ़ जाने दो

 

©  डॉ सीमा सूरी

प्लाट नम्बर 70 ,प्रताप नगर जेल रोड ,नई दिल्ली 11 00 64

दूरभाष :84477 41053, 9958331143

 

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 2 – परिंदो का आसमान ☆ – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता परिंदो का आसमान 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 2 – परिंदो का आसमान ☆

  

ऐ परिंदो आसमान में दूर ऊपर कहां तुम जाते हो,

कौन वहां रहता है तुम्हारा, तुम किस से मिलने जाते हो ||

 

सर्दी गर्मी हो या बारिश, हर मौसम में रोज सवेरे जाते हो,

ऐसा वहां क्या करते हो, सब साथ शाम को लौटकर आते हो ||

 

यहां तो असंख्य पेड़ पौधे और तुम्हारा खुद का घरोंदा है,

क्या वहां भी पेड़ पौधे और घरोंदा है जो रोज वहां जाते हो ||

 

सुना है आसमान में स्वर्ग होता है, जो एक बार वहां जाता है,

लौट कर नहीं आता, तुम रोज स्वर्ग से वापिस कैसे आ जाते हो ||

 

मेरा छोटा सा एक काम कर दो, वहां माता-पिता मेरे रहते हैं,

पैर छू कर उनका आशीर्वाद ले आना, रोज जो तुम स्वर्गजाते हो ||

 

या फिर इतना सा कर देना, अदब से पंखों पर अपने उनको बैठा लाना,

एक बार जी भर के मिल लूँ फिर ले जाना, तुम तो रोज स्वर्ग जाते हो ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002

Please share your Post !

Shares