हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 35 ☆ मुक्तक सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  कविता  ‘मुक्तक सलिला’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 35 ☆ 

☆ मुक्तक सलिला ☆ 

प्रात मात शारदा सुरों से मुझे धन्य कर।

शीश पर विलंब बिन धरो अनन्य दिव्य कर।।

विरंचि से कहें न चित्रगुप्त गुप्त चित्र हो।

नर्मदा का दर्श हो, विमल सलिल सबल मकर।।

*

मलिन बुद्धि अब अमल विमल हो श्री राधे।

नर-नारी सद्भाव प्रबल हो श्री राधे।।

अपराधी मन शांत निबल हो श्री राधे।

सज्जन उन्नत शांत अचल हो श्री राधे।।

*

जागिए मत हे प्रदूषण, शुद्ध रहने दें हवा।

शांत रहिए शोरगुल, हो मौन बहने दें हवा।।

मत जगें अपराधकर्ता, कुंभकर्णी नींद लें-

जी सके सज्जन चिकित्सक या वकीलों के बिना।।

*

विश्व में दिव्यांग जो उनके सहायक हों सदा।

एक दिन देकर नहीं बनिए विधायक, तज अदा।

सहज बढ़ने दें हमें, चढ़ सकेंगे हम सीढ़ियाँ-

पा सकेंगे लक्ष्य चाहे भाग्य में हो ना बदा।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – हे अजातशत्रु जन नायक ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “हे अजातशत्रु जन नायक। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  हे अजातशत्रु जन नायक  ☆

हे‌ राज नीति के भीष्म पितामह,

कवि हृदय हे अटल।

हे शांति ‌मसीहा प्रेम पुजारी,

हे जननायक अविकल।।1।।

 

तुम राष्ट्र धर्म की मर्यादा ‌हो,

चरित रहा उज्जवल।

दृढ़प्रतिज्ञ हो नया लक्ष्य ले,

आगे बढ़े अटल।

हे अजातशत्रु जन नायक।।2।।

 

आती हो अपार बाधायें ,

मुठ्ठी खोले बाहें फैलाए।

चाहे सन्मुख तूफ़ान खड़ा हो,

चाहे प्रलयंकर घिरें घटायें।

वो राह तुम्हारी रोक सके ना,

चाहे अंबर अग्नि बरसायें।

स्पृहारहित निष्काम भाव,

जो टले नहीं वो अटल।

।।हे अजातशत्रु जननायक।।3।।

 

थी राह कठिन पर रूके नहीं,

पीड़ा सह ली पर झुके नहीं।

अपने ईमान से डिगे नहीं,

परवाह किसी की किये नहीं।

मैं फिर आऊंगा कह करके,

करने से कूच न डरे थे वे।

धूमकेतु बन अंबर में ,

फिर एक बार चमके थे वे।

।।हे अजातशत्रु जन नायक।।4।।

 

काल के ‌कपाल पर ,

खुद ही लिखा खुद ही मिटाया।

शौर्य का प्रतीक बन,

हर बार गीत नया गाया।

लिख लिया अध्याय नूतन,

ना कोई अपना पराया ।

सत्कर्म से अपने सभी के,

आंख का तारा बने ।

पर काल के आगे बिबस हो,

छोड़कर सबको चले।

हम सभी ‌दुख से हैं कातर ,

श्रद्धा सुमन अर्पित किये।

हिय पटल पर छाप अंकित,

आप ने मेरे किये  ।

।। हे अजातशत्रु जननायक ।।5।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१२॥ ☆

 

आपृच्चस्व प्रियसखम अमुं तुङ्गम आलिङ्ग्य शैलं

वन्द्यैः पुंसां रघुपतिपदैर अङ्कितं मेखलासु

काले काले भवति भवतो यस्य संयोगम एत्य

स्नेहव्यक्तिश चिरविरहजं मुञ्चतो बाष्पमुष्णम॥१.१२॥

जगतवंद्य श्रीराम पदपद्म अंकित

उधर पूततट शैल उत्तुंग से मिल

जो वर्ष भर बाद पा फिर तुम्हें

विरह दुख से खड़ा स्नेहमय अश्रुआविल

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ सब पर भारी – अटलबिहारी… ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ सब पर भारी-अटलबिहारी… ☆

कल भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी की जयंती थी। उनके स्मरण में मैंने अटल जी को सम्बोधित अपनी एक रचना की कुछ पंक्तियाँ साझा की थीं। इसके बाद अनेक मित्रों ने पूरी रचना पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की। मित्रों के अनुरोध को मान देते हुए यह रचना प्रस्तुत है।

संदर्भ के लिए पाठकों को स्मरण होगा कि 21 फरवरी 1999 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी ने बस से लाहौर की यात्रा कर इतिहास रच दिया था। इस दौरान येन केन प्रकारेण चर्चा में आने की ओछी मानसिकता के चलते अतिया शमशाद नामक पाकिस्तानी लेखिका ने कश्मीर की एवज में अटलजी से विवाह का प्रस्ताव किया था। उक्त प्रस्ताव के संदर्भ में उन दिनों उपजी और चर्चित रही रचना साझा कर रहा हूँ।

लगभग 22 वर्ष पूर्व लिखी यह रचना ‘चेहरे’ कविता संग्रह में संग्रहित है।

सब पर भारी-अटलबिहारी… ✍️

बरसों का तप

दर्शकों के सिद्धांत भी टल गये,

पाकिस्तानी बाला के

विवाह प्रस्ताव से

अटलजी भी हिल गए।

 

जीवन की संध्या में

ऐसा प्रस्ताव मिलना

नहीं किसी अलौकिक प्रकार से कम है,

लेकिन अटल जी का व्यक्तित्व

क्या किसी चमत्कार से कम है ?

 

सोचा, प्रस्ताव पर

ग़ौर कर लेने में क्या हर्ज है?

साझा संस्कृति में

बड़प्पन दिखाना ही तो फर्ज़ है।

 

कवि मन की संवेदनशील आतुरता,

राजनेता की टोह लेती सतर्कता

प्रस्ताव को पढ़ने लगी-

 

आप कुँवारे-मैं कुँवारी

आप कवि, मैं कलमनवीस

आप हिन्दुस्तानी,

मैं पाकिस्तानी

क्यों न हम एक दिल हो जाएँ

बशर्त सूबा-ए-कश्मीर हमें मिल जाए!

उत्साह ठंडा हो गया

भावनाएँ छिटक कर दूर गिरीं

सारी उमंग चकनाचूर हुई अनुभव को षड्यंत्र की बू हुई।

 

माना कि ज़माना बदल गया है

दहेज का चलन दोनों ओर चल गया है,

पहले केवल लड़के वाले मांगा करते थे

अब लड़की वाले भी मांग रख पाते हैं,

पर यह क्या; रिश्ते की आड़ में

आप तो मोहब्बत को ही छलना चाहते हैं!

 

और मांगा भी तो क्या

कश्मीर…..?

वह भी अटल जी से…..?

 

शरीर से आत्मा मांगते हो

पुरोधा से आत्मबल मांगते हो,

बदन से जान चाहते हो

अटल के हिंदुस्तान की आन चाहते हो?

 

मोहतरमा!

इस शख्सियत को समझी नहीं

चकरा गई हैं आप,

कौवों की राजनीति में

राजहंस से टकरा गयी हैं आप।

 

दिल कितना बड़ा है

जज़्बात कितने गहरे हैं

इसे समझो,

सीमाओं को तोड़ते

दिलों को जोड़ते

ज्यों सरहद की बस चलती है,

नफरत की हर आंधी

जिसके आवेग से टलती है,

मोहब्बत की हवाएँ

जिसका दम भरती हैं,

पूछो अपने आप से

क्या तुम्हारे दिलों पर

अटल की हुकूमत नहीं चलती है?

 

युग को शांति का

शक्तिशाली योद्धा मिला है,

इस योद्धा के सम्मान में गीत गाओ,

नफरत और जंग की सड़क पर

हिन्दुस्तानी मोहब्बत और

अमन की बस आती है,

इस बस में चढ़ जाओ।

 

बहुत हुआ

अब तो मन की कालिख धो लो,

शांति और खुशहाली के सफर में

इस मसीहा के संग हो लो।

 

काश! शादी करके यहाँ बसने का

आपका खयाल चल पाता,

हमें तो डर था

कहीं घरजवाई होने का

प्रस्ताव न मिल जाता।

 

प्रस्ताव मिल जाता तो

हमारा तो सब कुछ चला जाता

पर चलो तुम्हारा

तो कल सुधर जाता

यहाँ का अटल

वहाँ भी बड़ी शान से चल जाता।

 

सारी दुनिया आज दुखियारी है

हर नगरी अंधियारी है,

अंधेरे मे चिंगारी है

सब पर जो भारी है

हमें दुख है, हमारे पास

केवल एक अटलबिहारी है।

 

वैसे भी तुम्हारे हाल तो खस्ता हैं

ऐसे में अटलजी से

रिश्ता जोड़ने का खयाल अच्छा है।

 

वाजपेयी जी!

सौगंध है आपको,

हमें छोड़ मत जाना

क्योंकि अगर आप चले जाएँगे,

तो-

वेश्या-सी राजनीति

गिद्धों-से राजनेताओं

और अमावस-सी अंधेरी व्यवस्था में

दीप जलाने, राह दिखाने

दूसरा अटल कहाँ से लायेंगे ?

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 21 ☆ आदमी आदमी को करे प्यार जो ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  संस्कारधानी जबलपुर शहर पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “आदमी आदमी को करे प्यार जो“।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 21 ☆

☆  आदमी आदमी को करे प्यार जो 

 

आदमी आदमी को करे प्यार जो, तो धरा स्वर्ग हो मनुज भगवान हो

घुल रहा पर हवा में जहर इस तरह , भूल बैठा मनुज धर्म ईमान को

राह पर चल सके विश्व यह इसलिये , दृष्टि को दीौप्ति दो प्रीति को प्राण दो

 

रोज दुनियां बदलती चली जा रही,  और बदलता चला जा रहा आदमी

आदमी तो बढ़े जा रहे सब तरफ , किन्तु होती चली आदमियत कीकमी

आदमी आदमी बन सके इसलिये , ज्ञान के दीप को नेह का दान दो

 

हर जगह भर रही गंध बारूद की , नाच हिंसा का चलता खुला हर गली

देती बढ़ती सुनाई बमो की धमक , सीधी दुनियां बिगड़ हो रही मनचली

द्वार विश्वास के खुल सकें इसलिये , मन को सद्भाव दो सच की पहचान दो

 

फैलती दिख रही नई चमक और दमक , फूटती सी दिखती सुनहरी किरण

बढ़ रहा साथ ही किंतु भटकाव भी ,  प्रदूषण घुटन से भरा सारा वातावरण

जिन्दगी जिन्दगी जी सके इसलिये स्वार्थ को त्याग दो नीति को मान दो

 

प्यास इतनी बढ़ी है अचानक कि सब चाहते सारी गंगा पे अधिकार हो

भूख ऐसी कि मन चाहता है यही हिमालय से बड़ा खुद का भण्डार हो

जी सकें साथ हिल मिल सभी इसलिये मन को संतोष दो त्रस्त हो त्राण दो

 

देश है ये महावीर का बुद्ध का,  त्याग तप का जहां पै रहा मान है

बाह्य भौतिक सुखो से अधिक आंतरिक शांति आनंद का नित रहा ध्यान है

रह सकें चैन से सब सदा इसलिये त्याग अभिमान दो त्याग अज्ञान दो

 

आदमी के ही हाथों में दुनियां है ये आदमी के ही हाथो में है उसका कल

जैसा चाहे बने औ बनाये इसे स्वर्ग सा सुख सदन या नरक सा विकल

आने वालो और कल की खुशी के लिये युग को मुस्कान का मधुर वरदान दो

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ पापा… ☆ डॉ श्रीमती मिली भाटिया

डॉ मिली भाटिया 

डॉक्टर मिली के प्रेरणास्रोत उनके पापा श्री दिलीप भाटिया  हैं ! डॉक्टर मिली कहती हैं, उनकी मम्मी  श्यामा भाटिया ईश्वर के घर से उनको आशीर्वाद देकर उनकी उपलब्धि से ख़ुश होंगी। आज प्रस्तुत है श्री दिलीप भाटिया जी, सेवानिवृत्त परमाणु वैज्ञानिक के 73 वे  जन्मदिवस पर उनकी पुत्री डॉ मिली भाटिया जी द्वारा रचित भावप्रवण कविता। कृपया शब्दशिल्प नहीं भावनाओं को आत्मसात करें।

☆ कविता ☆ पापा… ☆ डॉ श्रीमती मिली भाटिया ☆ 

पापा…

पापा शब्द में दुनिया बसती है मेरी

पापा से ही पीहर मेरा,

पापा से ही मायका

पापा ही भाई का रूप

पापा ही मेरे बचपन से दोस्त

पापा मेरे गुरु

पापा मेरे सरल

पापा मेरे अटल

पापा मेरी छाँव

पापा मेरी शान

पापा मेरे ईश्वर “राम” जैसे

पापा हैं  श्रवणकुमार

पापा को हमेशा चुप रहते देखा

आँसू छुपाकर जीते देखा

बच्चों में ख़ुशियाँ तलाशते देखा

दादी की जी-जान से सेवा करते देखा

मम्मी का हमेशा साथ देते देखा

सरल सादा जीवन जीते देखा

सबकी सेवा तन-मन-धन से करते देखा

उनकी मुस्कुराहट के पीछे दर्द को

शायद किसी ने नहीं देखा

मेरे लिए “माँ” बनकर जीते

मेरी ज़िद्द पूरी करते

मेरी बेटी को बेस्टफ़्रेंड कहते

अब्दुल कलाम जी से सम्मानित

रक्तदान का रिकार्ड बनाते

सबसे अच्छे मेरे पापा

जन्मदिन मुबारक पापा!!

 

डॉक्टर मिली भाटिया

रावतभाटा – राजस्थान

मोबाइल न०-9414940513

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.११॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.११॥ ☆

कर्तुं यच च प्रभवति महीम उच्चिलीन्ध्राम अवन्ध्यां

तच च्रुत्वा ते श्रवणसुभगं गर्जितं मानसोत्काः

आ कैलासाद बिसकिसलयच्चेदपाथेयवन्तः

संपत्स्यन्ते नभसि भवतो राजहंसाः सहायाः॥१.११॥

सुन कर्ण प्रिय घोष यह प्रिय तुम्हारा

जो करता धरा को हरा , पुष्पशाली

कैलाश तक साथ देते उड़ेंगे

कमल नाल ले हंस मानस प्रवासी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ भूमिका ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ भूमिका☆

उसने याद रखे काँटे,

पुष्प देते समय

अनायास जो

मुझसे, उसे चुभे थे,

मेरे नथुनों में

बसी रही

फूलों की गंध सदा

जो सायास

मुझे काँटे

चुभोते समय

उससे लिपट कर

चली आई थी,

फूल और काँटे का संग

आजीवन है

अपनी-अपनी भूमिका पर

दोनों कायम हैं।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 64 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 64 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

निर्मल अंतःकरण हो, अंदर-बाहर एक

बिरले ही ऐसे यहाँ,  जो होते हैं नेक

 

रखें हौसला शेर सा, जिनके हाथ कमान

सैनिक अपने देश के, होते बहुत महान

 

चित्र राम का हृदय में, रखते हरदम भक्त

काज समर्पित राम को, करते प्रभु आसक्त

 

हिल-मिल रहिए प्रेम से, बना रहे सौजन्य

सबको लेकर जो चले, वही जगत में धन्य

 

संगम गंगा-जमुना का, देता शुभ संदेश

मिल-जुल कर रहते सभी, ऐसा अपना देश

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१०॥ ☆

त्वां चावश्यं दिवसगणनातत्पराम एकपत्नीम

अव्यापन्नाम अविहतगतिर द्रक्ष्यसि भ्रातृजायाम

आशाबन्धः कुसुमसदृशं प्रायशो ह्य अङ्गनानां

सद्यः पाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि॥१.१०॥

लखोगे सुनिश्चित विवश जीवशेषा

तो गिनते दिवस भ्रात की भामिनी को

आशा ही आधार , पति के विरह में

सुमन सम सुकोमल सुनारी हृदय को

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

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