मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 59 – सारे सुखाचे सोबती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 59 – सारे सुखाचे सोबती ☆

काठी सवे देते राया

हात तुज सावराया।

बेइमान दुनियेत

आज नको बावराया।

 

थकलेले गात्र सारे

भरे कापरे देहाला।

अनवाणी पावलांस

नसे अंत चटक्याला।

 

तनासवे मन लाही

आटलेली जगी ओल।

आर्त घायाळ मनाची

जखमही किती खोल।

 

मारा ऊन वाऱ्याचा रे।

जीर्ण वस्त्राला सोसेना।

थैलीतल्या संसाराला

जागा हक्काची दिसेना।

 

कृशकाय क्षीण दृष्टी

वणवाच भासे सृष्टी।

निराधार जीवनात

भंगलेली स्वप्नवृष्टी।

 

वेड्या मनास कळेना

धावे मृगजळा पाठी।

सारे सुखाचे सोबती

दुर्लभ त्या भेटीगाठी।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नेह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – नेह ☆

जितना दबाओ, स्मृतियाँ

उतनी उभर आती हैं,

उभारो तो निर्वासन

को मचल जाती हैं,

दुधारी तलवार है

नेह की पीड़ा,

कहीं से भी थामो

कलेजा चीर कर

निकल जाती है।

©  संजय भारद्वाज

(2:01.2021, 23.12 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 81 ☆ गीत – दिल के दरवाजे …. ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  किशोर मनोविज्ञान पर आधारित एक  भावप्रवण  “गीत – दिल के दरवाजे ….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 81 – साहित्य निकुंज ☆

गीत – दिल के दरवाजे …. 

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

 

छा गई अधरों  पर फूल सी मुस्कान।

हो गया  जीवन में अब मेरा निर्माण।

तिमिर में अब अंधेरा हटता ही गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

आज इस कठिन दौर में क्या हो गया

नहीं पता किस ओर क्या क्या खो गया

कैसे  जीना जीवन तु  सिखला गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

जिंदगी का हर सफर लगता कठिन

साथ तेरा हो तो  सब है मुमकिन।

तेरा साथ ही मुझको तो भा गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

तुम ही मेरे जीवन का संधान हो

मैं नयन नीर तुम गंगा का उत्थान हो

प्रणय  की सरस गाथा वो रचता गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 71 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 71 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

आतीं जब भी मुश्किलें, यही कुचक्र का खेल

अब अपराधी बढ़ रहे, पहुँच रहे हैं जेल

 

छल-कपट से बचें सदा, यही पाप का द्वार

सदा काम आता हमें, अपना सच आचार

 

शीतल सौरभ सी पवन, तन से कर तकरार

पहनाती हो कंठ पर, ज्यूँ फूलों का हार

 

अंदर फूलों के बसे, प्रगति परक संदेश

संवर्धन के श्रोत वह, ऐसा है परिवेश

 

सूरज सबको पालता, देकर अपनी ओज

रोशन करता है जहाँ, यही सबेरे रोज

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४८॥ ☆

 

ज्योतिर्लेखावलयि गलितं यस्य बर्हं भवानी

पुत्रप्रेम्णा कुवलयदलप्रापि कर्णे करोति

धौतापाङ्गं हरशशिरुचा पावकेस तं मयूरं

पश्चाद अद्रिग्रहणगुरुभिर गर्जितैर नर्तयेथाः॥१.४८॥

 

जिसके सुरंजित प्रभारश्मि मण्डित

स्वयं ही गिरे पंख को श्री भवानी

वात्सल्य के वश , कमल दल अलग कर

बना निज लिया धार अवतंस मानी

शिव शशि प्रभा से त्ा धौत जिसके

नयन, षडानन का शिखि वहां पाना

पर्वत गुहा ध्वनित घन गर्जना से

स्वयं की , उसे तुम वहां पर नचाना

शब्दार्थ    … अवतंस = कान का आभूषण

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्दकोश ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – शब्दकोश ☆

वह लिखती रही विरह,

मैं बाँचता रहा मिलन,

चलो शोध करें,

दृष्टि बदलने से

भाव, नया रूप पा जाता है क्या?

शब्द का अर्थ बदल जाता है क्या?

और पता नहीं कैसे

मेरे पास बदले अर्थों का

एक शब्दकोष संचित हो गया है!

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #93 ☆ कविता – किशोरी बेटियां ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक  विचारणीय कविता  ‘किशोरी बेटियां इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 93 ☆

☆ कविता – किशोरी बेटियां ☆

मन में ऊँची ले उड़ाने, बढ़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

स्कूल में जो वृक्ष पर, संग खड़ी हैं ये किशोरी बेटियां

 

कोई भी परिणाम देखो, अव्वल हैं हर फेहरिस्त में

हर हुनर में लड़कों पे भारी पड़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

अब्बा अम्मी और टीचर, हौसले ही सब बढ़ा सकते हैं बस

अपना फ्यूचर खुद बखुद ही गढ़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

तालीम का गहना पहनकर, बुरके को तारम्तार कर

औरतों के हक की खातिर लड़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

“कल्पना” हो या “सुनीता” गगन में, “सोनिया” या “सुष्मिता”

रच रही वे पाठ खुद जो, पढ़ रही हैं ये किशोरी बेटियां

 

इनको चाहिये प्यार थोड़ा परवरिश में, और केवल एक मौका

करेंगी नाम, बेटों से बढ़कर होंगी साबित ये किशोरी बेटियां

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 76 – हाइबन- नक्शे का मंदिर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- नक्शे का मंदिर। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 76☆

☆ हाइबन- नक्शे का मंदिर ☆

नक्शे पर बना मंदिर! जी हां, आपने ठीक पढ़ा। धरातल की नीव से 45 डिग्री के कोण पर बना भारत के नक्शे पर बनाया गया मंदिर है। इसे भारत माता का मंदिर कह सकते हैं। इस मंदिर की छत का पूरा नक्शा भारत के नक्शे जैसा हुबहू बना हुआ है। इसके पल में शेष मंदिर का भाग है।

इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता है । भारत के नक्शे के उसी भाग पर लिंग स्थापित किए गए हैं जहां वे वास्तव में स्थापित हैं । सभी बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन इसी नक्शे पर हो जाते हैं।

कांटियों वाले बालाजी का स्थान कांटे वालों पेड़ की अधिकता के बीच स्थित था। इसी कारण इस स्थान का नाम कांटियों वाले बालाजी पड़ा।  रतनगढ़ के गुंजालिया गांव, रतनगढ़, जिला- नीमच मध्यप्रदेश में स्थित भारत माता के इस मंदिर में बच्चों के लिए बगीचे, झूले, चकरी आदि लगे हुए हैं । इस कारण यह बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

कटीले पेड़~

नक्शे पर सेल्फी ले

फिसले युवा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

09-09-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४७॥ ☆

तत्र स्कन्दं नियतवसतिं पुष्पमेघीकृतात्मा

पुष्पासारैः स्नपयतु भवान व्योमगङ्गाजलार्द्रैः

रक्षाहेतोर नवशशिभृता वासवीनां चमूनाम

अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद धि तेयः॥१.४७॥

 

वहाँ पर स्वयं पुण्य घन व्योम गंगा

सलिल सिक्त तुम पुष्प वर्षा विमल से

नियतवास  स्कन्द को देवगिरि पर

प्रथम पूजना मित्र कुछ और चल के

षडानन वही इन्द्र की सैन्य रक्षार्थ

जिनको स्वयं शम्भु ने था बनाया

रवि से प्रभापूर्ण , अति तेज वाले

जिन्होंने अनल मुख से था जन्म पाया

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 82 – गौरैया आती है…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना गौरैया आती है….। )

☆  तन्मय साहित्य  #  82 ☆ गौरैया आती है….  

रोज सबेरे खिड़की पर

गौरैया आती है

और चोंच से टिक-टिक कर

वह मुझे जगाती है।

 

उठते ही मैं उसे देख

पुलकित हो जाता हूँ

पूर्व जन्म का रिश्ता

कोई अपना पाता हूँ,

चीं चीं चीं चीं करते

जाने क्या कह जाती है……..

 

आँगन में कुछ दाने

चावल के बिखेरता हूँ

बाहर टंगे सकोरे में

पानी भर देता हूँ

रोज सुबह इस पानी से

वह खूब नहाती है………..

 

चहचहाहटें घर में

मेरे सुबह शाम रहती

इन पंखेरुओं की किलौल

सब चिंताएं हरती

साँझ, ईश वंदन, कलरव

के मन्त्र सुनाती है…………

 

मिलकर गले लगाएं

इस भोली गौरैया को

और सुरक्षा – संरक्षण

इस सोन चिरैया को

घर आँगन में जो सदैव

खुशियाँ बरसाती है…

रोज सबेरे खिड़की पर

गौरैया आती है।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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