English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 232 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 232 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 232) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 232 ?

☆☆☆☆☆

ज़रा सी कैद से ही

घुटन होने  लगी…

तुम तो पंछी पालने

के  बड़े  शौक़ीन थे…

☆☆

Just a little bit of confinement

Made you feel so suffocated

 But keeping the birds caged

 You were so very fond of…!

☆☆☆☆☆

अधूरी कहानी पर ख़ामोश

लबों का पहरा है

चोट रूह की है इसलिए

दर्द ज़रा गहरा है….

☆☆ 

 Silent lips are the sentinels

 Of  the  unfulfilled fairytale…

 Wound is of the spirited soul

 So the pain is rather intense….

☆☆☆☆☆

हंसते हुए चेहरों को गमों से

आजाद ना समझो साहिब

मुस्कुराहट की पनाहों में भी

हजारों  दर्द  छुपे होते  हैं…

☆☆

O’ Dear, Don’t even consider that

Laughing faces are free of sorrow

Innumerable  pains are  hidden

Even behind the walls of a smile…

☆☆☆☆☆

चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफर में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस  गुमराह  हो  गए…

☆☆

  Was walking peacefully

  In  the  journey of the life

  Just casting a glance on you

  Made my journey go astray…

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 231 – पूर्णिका – सत्-शिव भज पा परमानंद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – सत्-शिव भज पा परमानंद)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 231 ☆

☆ पूर्णिका – सत्-शिव भज पा परमानंद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

प्रभु को भज पा परमानंद

गुरु पद रज पा परमानंद

.

पंचतत्व-पंचेंद्रिय देह

पंचामृत पा परमानंद

.

बहा स्वेद, कर श्रम-पूजन

कलरव सुन पा परमानंद

.

नदी जननि रखना निर्मल

पौध लगा पा परमानंद

.

जा दरिद्र नारायण तक

सेवा कर पा परमानंद

.

कविता शारद की बिटिया

चरण-शरण पा परमानंद

.

शब्द ब्रह्म आराधन कर

 सत्-शिव भज पा परमानंद

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१५.४.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रश्न ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रश्न ? ?

मैं हूँ

मेरा चित्र है;

थोड़ी प्रशंसाएँ हैं

परोक्ष, प्रत्यक्ष

भरपूर आलोचनाएँ हैं,

 

मैं नहीं हूँ

मेरा चित्र है;

सीमित आशंकाएँ

समुचित संभावनाएँ हैं,

 

मन के भावों में

अंतर कौन पैदा करता है-

मनुष्य का होना या

मनुष्य का चित्र हो जाना…?

 

प्रश्न विचारणीय

तो है मित्रो!

?

© संजय भारद्वाज  

शुक्रवार, 11 मई 2018, रात्रि 11:52 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 156 ☆ मुक्तक – ।। परदा गिरने के बाद भी ताली यूं ही बजती रहे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 156 ☆

☆ मुक्तक – ।। परदा गिरने के बाद भी ताली यूं ही बजती रहे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

स्वीर इक दिन, दीवार पर टंग जाना है।

दुनिया से दूर हमें सितारों, सा रंग जाना है।।

कर जाएं सार्थक जीवन, अपना सत्कर्मों से।

बस यही सब ही उपर, हमारे संग जाना है।।

=2=

यह न जलती है और, यह न ही गलती है।

दुयाओं की यह दौलत, कभी नहीं मरती है।।

मत संकोच करो कभी, दुआ लेने और देने में।

जिंदगी के साथ और, बाद भी यह चलती है।।

=3=

इत्र की महक दामन में, नहीं किरदार में लाओ।

काम आकर सबके आदमी, दिलदार कहलाओ।।

नेकी बदी सब जिंदा रहती , हर एक दिल में।

बन कर जिंदगी के तुम, वफादार ही जाओ।।

=4=

अहम गरुर चाहत सब, इक राख बन जाती है।

मिट्टी की देह इक दिन, बस खाक बन जाती है।।

धन दौलत शौहरत नहीं, जबान मीठी है भाती।

यही चलकर तेरा नाम, सम्मान नाक बन जाती है।।

=5=

कर जाओ ऐसा, कि डोली यादों की सजती रहे।

मिलने को यह दुनिया, राह तेरी तकती रहे।।

हर दिल में जगह बन जाए, जरूर तेरे नाम की।

परदा गिरने के बाद भी, ताली यूं ही बजती रहे।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #221 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – अनुपम भारत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – अनुपम भारत। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 221

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – अनुपम भारत…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

अपने में आप सा है, भारत हमारा प्यारा

जग में चमकता जगमग जैसे गगन का तारा।

*

हैं भूमि भाग अनुपम नदियाँ-पहाड़ न्यारे

उल्लास से तरंगित सागर के सब किनारे ।

*

ऋतुएँ सभी रंगीली, फल-फूल सब रसीले

इतिहास गर्वशाली, आँचल सुखद सजीले।

*

है सभ्यता पुरानी, परहित की भावनाएँ

सत्कर्ममय हो जीवन है मन की कामनाएँ।

*

गाँवों में भाईचारे का सुखद स्नेह व्याप्त था।

हवाएँ नरम थीं, मौसम सुहावना था।

*

लोगों में सरलता है दिन-रात सब सुहाने

त्यौहार प्रीतिमय हैं, अनुराग सिक्त गाने।

*

रामायण और गीता ज्ञान की अद्वितीय पुस्तकें हैं जो

मन को विचलित नहीं होना, बल्कि स्थिर रहना सिखाती हैं।

*

ये देश है सुहाना, धर्मों का यहां पर मेला

असहाय भी न पाता, खुद को जहाँ अकेला।

*

आध्यात्मिक है चिन्तन, धार्मिक विचारधारा

संसार से अलग है, भारत पुनीत प्यारा।

*

है ‘एकता विविधता में’ लक्ष्य अति पुराना

भारत ‘विदग्ध’ जग का आदर्श है सुहाना ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सैडिस्ट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सैडिस्ट ? ?

रास्ते का वह जिन्न,

भीड़ की राह रोकता

परेशानी का सबब बनता,

शिकार पैर पटकता,

बाल नोंचता,

जिन्न को सुकून मिलता,

जिन्न हँसता..,

पुराने लोग कहते हैं-

साया जिस पर पड़ता है

लम्बा असर छोड़ता है..,

 

रास्ता अब वीरान हो चुका,

इंतज़ार करते-करते

जिन्न बौरा चुका,

पगला चुका,

सुना है-

अपने बाल नोंचता है,

सर पटकता है,

अब भीड़ को सकून मिलता है..,

झुंड अब हँसता है,

पुराने लोग सच कहते थे-

साया जिस पर पड़ता है

लम्बा असर छोड़ता है..।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #45 – नवगीत – कहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’  ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम नवगीतकहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ

? रचना संसार # 45 ☆

नवगीत – कहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 

उदासीन मन मूक हैं सब दिशाएँ।

कहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ।।

 *

धुआं चिमनियों से निकलने लगा है।

लपट आग की है हृदय में दगा है।।

बिके खेत सारे न चुकता उधारी।

हुए बंधुआ पर न भरती तगारी।।

कटी शाख बरगद तड़पती लताएँ।

 *

बुने जाल मकड़ी समाधान कैसा।

शपथ भूलते सत्य भगवान पैसा।।

हिरण काँपते अब सजी हैं मचानें।

मुनादी हुई बंद हैं सब दुकानें।।

हुए आज लाचार हैं आपदाएँ।

 *

समाधान कैसा करे काँव कागा।

विदेशी चलन है स्वदेशी न जागा।।

बिना पंख उड़ने चली देख मैना।

क्षितिज से गिरी रो रहे खूब नैना।।

परीक्षा घड़ी मौन हैं सब शिलाएँ

 *

न गंगा बची है न यमुना नदी भी।

बहे मैल नित मौन नव ये सदी भी।।

शरद रश्मियों के छिपे हैं उजाले।

बहुत भूख हैं पर न मिलते निवाले।।

चले चूर मद देख पछुआ हवाएँ।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #272 ☆ भावना के दोहे – ग्रीष्म-वर्षा ऋतु ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – ग्रीष्म-वर्षा ऋतु)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 272 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – ग्रीष्म-वर्षा ऋतु ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पंछी मन -मन डोलता, आ जाओ प्रिय पास।

चैन नहीं है रात दिन, बीत रहा  मधुमास।।

*

तेवर देखो ग्रीष्म के, जीवों से संग्राम।

बढ़ते उसके पाँव है, मिले नहीं आराम।।

*

कहे चिरैया सुन अभी, मेरे मन की बात।

जगह – जगह पर बाज है, रहें कहाँ दिन रात।।

*

कहते जिसको भारत ये, गौरैया का देश।

गौरैया दिखती नहीं, नहीं बचा अवशेष।।

*

 देखे पोखर राह तो, आए बारिश शाम।

प्रभु! अब बरखा कीजिए, दुष्कर जल बिन काम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #254 ☆ बुंदेली पूर्णिका – सच्चाई को तुम झुठला रये का हुई है… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है बुंदेली पूर्णिका – सच्चाई को तुम झुठला रये का हुई है आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 254 ☆

☆ बुंदेली पूर्णिका – सच्चाई को तुम झुठला रये का हुई है☆ श्री संतोष नेमा ☆

बात जरा सी समझ ने पा रये का हुई है

सच्चाई  को  तुम  झुठला  रये का हुई है

*

आपहिं आप  खूब फेंक  रये  झूठी  सच्ची

झूठ  बोल  खें आँख  दिखा  रये का हुई है

*

कभू   कोउ   की  मदद  करी  ने तुमने भैया

बेमतलब   एहसान   जता   रये  का हुई है

*

कर्जा   बनिया  को   मूढ़े   धरत  फ़िरत  हो

कै  कै  थक  गए  कहां  पटा  रए  का  हुई है

*

सीधी गैल कभू  ने चल ख़ें तुम हो आए

अब  काहे  खो  तुम  चिल्ला  रए का हुई है

*

पी  लओ  खूब   घाट- घाट  को  तुमने पानी

खुद  को  घाट  खुदई  बिसरा  रए का हुई है

*

खुद  पै   कभू   लगाम  धरी   ने  तुमने बबुआ

देख  सूरतिया  जी  ललचा  रए  का हुई है

*

बात  सयानों  की  “संतोष” कभू ने तुमने मानी

हाथ  धर   खे  अब   पछता   रए  का हुई है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – महाकाव्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – महाकाव्य ? ?

तुम्हारा चुप,

मेरा चुप,

कितना

लम्बा खिंच गया,

तुम्हारा एक शब्द,

मेरा एक शब्द,

मिलकर

महाकाव्य रच गया!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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