हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 125 ☆ नव गीत ~ क्यों करे? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत  “~ क्यों करे?~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 125 ☆ 

☆ नव गीत ~ क्यों करे? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

*

चर्चा में

चर्चित होने की चाह बहुत

कुछ करें?

क्यों करे?

*

तुम्हें कठघरे में आरोपों के

बेड़ा हमने।

हमें अगर तुम घेरो तो

भू-धरा लगे फटने।

तुमसे मुक्त कराना भारत

ठान लिया हमने।

‘गले लगे’ तुम,

‘गले पड़े’ कह वार किया हमने।

हम हैं

नफरत के सौदागर, डाह बहुत

कम करें?

क्यों करे?

*

हम चुनाव लड़ बने बड़े दल

तुम सत्ता झपटो।

नहीं मिले तो धमकाते हो

सड़कों पर निबटो।

अंग हमारे, छल से छीने 

बतलाते अपने।

वादों को जुमला कहते हो

नकली हैं नपने।

माँगो अगर बताओ खुद भी,

जाँच कमेटी गठित  

मिल करें?

क्यों करे?

*

चोर-चोर मौसेरे भाई

संगा-मित्ती है।

धूल आँख में झोंक रहे मिल

यारी पक्की है। 

नूराकुश्ती कर, भत्ते तो

बढ़वा लेते हो।

भूखा कृषक, अँगूठी सुख की

गढ़वा लेते हो।

नोटा नहीं, तुम्हें प्रतिनिधि

निज करे।  

क्यों करे?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #175 – 61 – “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…”)

? ग़ज़ल # 61 – “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुझे न कट्टर हिंदू न मुसलमान चाहिए,

उदार हिंदू और उदार मुसलमान चाहिए।

नफ़रत भरे दिलों में खिलता कँटीला खार,

मुझे प्यार भरे गुलों का गुलिस्तान चाहिए।

उतार कर फेंको धर्मों का अहंकारी नक़ाब,

मुझे सभ्य समानता का संविधान चाहिए।

जो हो चुका वो बदलने वाला नहीं अब,

नहीं काल्पनिक अखंड हिंदुस्तान चाहिए।

आपस में लड़े तो मारे जाएँगे हम सभी,

लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए।

नफ़रती पौधों की नर्सरी में खिलते काँटे,

काँटों में फूल उगा दे वो क़द्रदान चाहिए।

न हों आबाद खार ओ खस की महफ़िलें,

दिलों में गीत ग़ज़ल का अरमान चाहिए।

अंगड़ाई लें राम रहीम के दोआबी तराने,

ख़ंजर जिसे प्यारे नहीं वो शैतान चाहिए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार्थक ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना आज शनिवार दि. 4 फरवरी से महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सार्थक ??

सारे रास्ते बंद होने का अर्थ

सब कुछ समाप्त होने की

आशंका नहीं होता,

कहीं से भी बेधकर अवरोध,

नये रास्ते बनाने की

अपार संभावना होता है…!

रात 11:03 बजे, 3 फरवरी 2023

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 53 ☆ मुक्तक ।। बहुत कुछ करके जाना है बस चार दिन की कहानी जिंदगानी में ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।बहुत कुछ करके जाना है बस चार दिन की कहानी जिंदगानी में।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 53 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।बहुत कुछ करके जाना है बस चार दिन की कहानी जिंदगानी में।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सपनों का टूटना और बनना ही तो जिंदगानी है।

ख्वाबों का बिखरना संवरना ही तो निशानी है।।

हमारे अंतरद्वंद आत्मविश्वास की परीक्षा है यह।

प्रभु की कितनी  ही  बेमिसाल कारस्तानी है।।

[2]

जिंदगी चार दिन की बस जैसे आनी जानी है।

मतकरो काम हो जिससे किसी को परेशानी है।।

जिंदगी आजमाती है हर तरह के इम्तिहान से।

यूं ही नहीं बनती दुनिया किसी की दीवानी है।।

[3]

समय की धारा में यह  उम्र यूं बह जाती है।

करते अच्छा काम तो  यादगार कहलाती है।।

हाथ की लकीरों नहीं अपने हाथ इसे बनाना।

यूं ही चले गए तो इक कसक सी रह जाती है।।

[4]

जाना तो है एक दिन पर निशान छोड़कर जाना।

हरेक पासअपने दिल का मेहमान छोड़कर जाना।।

बना कर जाना एक कोना हर दिल दिमाग में।

कुछ और नहीं अपनी पहचान छोड़कर जाना।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 117 ☆ ग़ज़ल – “यहाँ जो आज हैं नाजिर…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “यहाँ जो आज हैं नाजिर…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #118 ☆  ग़ज़ल  – “यहाँ जो आज हैं नाजिर…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

खुशी मिलती हमेशा सबको, खुद के ही सहारों में।

परेशानी हुआ करती सभी को इन्तजारों में।।

 

किसी के भी सहारे का, कभी भी कोई भरोसा क्या,

न रह पाये यहाँ वे भी जो थे परवरदिगारों में।।

 

यहाँ जो आज हैं नाजिर न रह पाएंगे कल हाजिर

बदलती रहती है दुनियां नये दिन नये नजारों में।।

 

किसी के कल के बारे में कहा कुछ जा नहीं सकता

बहुत  बदलाव आते हैं समय के संग विचारों में।।

 

किसी के दिल की बातों को कोई कब जान पाया है?

किया करती हैं बातें जब निगाहें तक इशारों में।।

 

बड़ा मुश्किल है कुछ भी भाँप पाना थाह इस दिल की

सचाई को छुपायें रखता है जो अंधकारों में।।

 

हजारों बार धोखे उनसे भी मिलते जो अपने हैं

समझता आया दिल जिनको कि अपने जाँनिसारों में।।

 

भला इससे यही है अपने खुद पै भरोसा करना

बनिस्बत बेवजह होना खड़े खुद बेकरारों में।।

 

जो अपनी दम पै खुद उठ के बड़े होते हैं दुनिया में

उन्हीं को मान मिलता है चुनिन्दा कुछ सितारों में।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उपमान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना  शनिवार दि. 4 फरवरी से महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  उपमान ??

कल, आज और कल का

यूँ उपमान हो जाता हूँ,

अतीत में उतरकर

देखता हूँ भविष्य,

वर्तमान हो जाता हूँ..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #153 ☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “प्रेम। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 153 ☆

“प्रेम ☆ श्री संतोष नेमा ☆

प्रेम- पाठ  जिसको पढ़ना आ  गया,

जीवन की हर मुश्किल सुलझा गया

मानवता  की है   पहली    सीढ़ी,

प्रेम-ग्रंथ  हमको  यह सिखला  गया

प्रेम  हर  सवाल का  हल  है

वरना समझें सब निष्फल है

प्रेम  तोड़ता  हर  बंधन   को

प्रेम  हृदय  में  है  तो  कल है

प्रेम  इंसानियत  की  पहचान  है

नादां  हैं जो  प्रेम से अनजान  है

प्रेम  में  ही  बसते  हैं  सब  ईश्वर

प्रेम ही दुनिया में सबसे महान है

प्रेम दबा सकते नहीं नफरत की दीवारों से

प्रेम झुका सकते नहीं ईर्ष्या की तलवारों से

“संतोष” प्रेम झुका है प्रेम के आगे समझो

प्रेम डिगा सकते नहीं,तु म ऊंची ललकारो से

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मित्रता के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ मित्रता के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मिले मित्रता निष्कलुष, मित्र निभाये साथ ।

 मित्र वही जो मित्र का, कभी न छोडे़ हाथ ।।

पथ दिखलाये सत्य का, आने नहिं दे आंच ।

रहता खुली किताब-सा, लो कितना भी बांच ।।

मित्र सदा रवि-सा लगे, बिखराता आलोक ।

हर पल रहकर साथ जो, जगमग करता लोक ।।

कभी न करने दे ग़लत, राहें ले जो रोक ।

सदा मित्र होता खरा, जो देता है टोक ।।

बुरे काम से दूर रख, जो देता गुणधर्म ।

मित्र नाम ईमान का, नैतिकता का मर्म ।।

नहीं मित्रता छल-कपट, ना ही कोई डाह ।

तत्पर करने को ‘शरद’, वाह-वाह बस वाह ।।

खुशबू का झोंका बने, मीठी झिरिया नीर।

मित्र रहे यदि संग तो, हो सकती ना पीर ।।

मित्र मिले सौभाग्य से, बिखराता जो हर्ष ।

मिले मित्र का साथ तो, जीतोगे संघर्ष ।।

भेदभाव को भूल जो, थामे रखता हाथ ।

कृष्ण-सुदामा सा ‘शरद’, बालसखा का साथ ।।

मित्र नहीं तो ज़िन्दगी, देने लगती दर्द ।

मित्र रोज़ ही झाड़ दे, भूलों की सब गर्द ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – कुछ छोटी कविताएं – ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी – कुछ छोटी कविताएँ )

☆ कविता ☆  कुछ छोटी कविताएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

[1]

औरतों ने जादू के ज़ोर से

शैतान को इन्सान बनाना चाहा

कामयाब नहीं हुईं तो

जादू से ख़ुद को पत्थर कर लिया

पत्थर से इन्सान होने का जादू

उन्हें नहीं आता था।

 

[2]

मैं बनी बनाई दुनिया में

कुछ लोगों के साथ रह रहा था

मैंने कल्पना में एक और दुनिया बसाई

उस दुनिया में सिर्फ़ वही लोग रहते हैं

मैं जिनके साथ रहना चाहता आया था।

 

[3]

गौरैया के पास तिनकों के अलावा

कोई सम्पत्ति नहीं होती

उसे इससे अधिक चाहिए भी नहीं।

 

[4]

मर चुके रीति रिवाज़ों के शव सड़ांध मार रहे थे

और हम उन्हें कन्धों पर ढोए जा रहे थे

ये शव हमारी आत्मा पर काबिज़ हुए

और हम इन्सानों से प्रेत हो गए।

 

[5]

माँ अचानक नींद से जागती है

और चिल्लाती है – भागो, हमला आया

बदहवास सी वह सबको ग़ौर से देखती है

फिर कहती है -सो जाओ, सब ठीक है

विस्थापित माँ का हर सपना

दरअसल विस्थापन से शुरू होता है।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संस्कार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना  शनिवार दि. 4 फरवरी से महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – संस्कार ??

माप-जोखकर खींचता रहा

मानक रेखाएँ जीवन भर,

पर बात नहीं बनी,

निजी और सार्वजनिक

दोनों में पहचान नहीं मिली,

आक्रोश में उकेर दी

आड़ी-तिरछी, बेसिर-पैर की

निरुद्देश्य रेखाएँ,

यहाँ-वहाँ अकारण

बिना प्रयोजन..,

चमत्कार हो गया,

मेरा जय-जयकार हो गया!

आलोचक चकित थे,

आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग का

ऐसा शिल्प आज तक

देखने को नहीं था मिला,

मैं भ्रमित था,

रेखाएँ, फ्रेम, बॉक्स,

आउट ऑफ बॉक्स. ,

मैंने यह सब

कब सोचा था भला?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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