हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दो कविताएं ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆

डॉ प्रतिभा मुदलियार

☆ कविता ☆ दो कविताएं ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆

[1]

☆ स्त्री कभी हारती नहीं ☆

स्त्री 

कभी हारती नहीं। 

 

किसी हताश क्षण में

वह चाहती है  

थोडा सा समय

अपना सा कंधा कोई। 

 

चाहती है वह

अपना एक अदद

खाली कोना कोई 

या फिर 

अपना बिस्तर

और ज़रा सी रुलाई। 

 

कभी चाहती है 

गरम चाय की प्याली

या एक पुरा दिन खाली। 

 

फिर है वह उठती

ताकत से दुगुनी 

और है निकलती

लड़ने जंग एक नयी। 

 

चाय, कोना, कंधा

बिस्तर या रुलाई

कमज़ोरी नही उसकी 

यहां से पाती है वह

ऊर्जा एक नयी। 

[2]

☆ विशेषण ☆ 

उन्होंने दिया है

हमें एक विशेषण

मजबूत और सशक्त

उनको लगता है

हमें नहीं होती है ज़रूरत किसी की

हम सबकुछ सहन कर सकती हैं

सब पर जीत हासिलकर कर लेंगी

वे तलाशते हैं हमें उनको सुनने

या उनका सलीब उठाने

उन्हें नहीं लगता कि कभी

हमें भी सुना जाय शिद्दत से

पूछा जाया कभी कि

हम थकी हैं, दुखी हैं चिंतित या घबरायी..

गृहित लिया जाता है हमें

समुद्र के पानी में घिरी चट्टान सा

या कोहरे में प्रकाशस्तम्भ सा।

हमारी एक अदद गलती की माफी नहीं होती

गुस्से में यदि हम अपना आप खो देती हैं

तो हिस्टेरिक हैं,

या अपना काबू खो देती हैं

तो कमज़ोर,

हमारी पल भर की गैरहाजिरी नोट की जाती है

और उपस्थिति सामान्य होती है,

बहुत दोगला है तुम्हारा नज़रिया

थोडा बदलिए ..हम मज़बूत हैं

हर दिन जुटाती हैं हिम्मत हम

तुम्हारी सोच का, तुम्हारी नज़रों

का सामना करने।

पर हैं तो इन्सान

आँसू निकलते हैं हमारे भी

और आह भी उठती है

चाहती हैं हम कि महसूस किया जाय

हमारा होना और ना होना भी।

©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मानसगंगोत्री, मैसूरु-570006

मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 147 ☆ बाल गीत – भारत के सपूत नेताजी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’… ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 147 ☆

☆ बाल गीत – भारत के सपूत नेताजी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

भारत के सपूत नेताजी

मिलकर हम गुणगान करें।

देश की खातिर अमर हो गए

आओ सभी प्रणाम करें।।

 

कतरा – कतरा लहू तुम्हारा

काम देश के आया था।

इसीलिए तो आजादी का

झंडा भी फहराया था।

 

वतन कर रहा याद आपको

हम शुभ – शुभ सारे काम करें।

देश की खातिर अमर हो गए

आओ सभी प्रणाम करें।।

 

गोरों को भी खूब छकाया

जोश नया दिलवाया था।

ऊँचा रखकर शीश धरा का

शान – मान करवाया था।

 

कुर्बानी को याद रखें हम

राष्ट्र की ऊँची शान करें।

देश की खातिर अमर हो गए

आओ सभी प्रणाम करें।।

 

नेताजी उपनाम आपका

सब श्रद्धा से हैं लेते।

नेता आज नई पीढ़ी के

बीज घृणा के हैं देते।

 

भेदभाव का जहर मिटाएँ

सदा ऐक्य का मान करें।।

देश की खातिर अमर हो गए

आओ सभी प्रणाम करें।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #169 – तन्मय के दोहे – धूप छाँव टिकती कहाँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं तन्मय के दोहे – “धूप छाँव टिकती कहाँ…”)

☆  तन्मय साहित्य  #169 ☆

☆ तन्मय के दोहे – धूप छाँव टिकती कहाँ 

बदतमीज  मौसम  हुआ,  हवा हुई है आग।

बीज  विषैले हो गए, फसलों  में  है  दाग।।

धूप  कभी  अच्छी  लगे, कभी लगे संताप।

मन के जो अनुरूप हो, वैसे भरे अलाप।।

धूप छाँव टिकती कहाँ, एक ठिकाने ठौर।

जैसे  टिके न पेट में,  मुँह से खाया  कौर।।

वे  पढ़ पाते  हैं   कहाँ, जो  लिखते  हैं  आप।

सुबह-शाम मन में चले, बस रोटी का जाप।।

सीधे-सादे  श्रमजीवी,  रहते आधे  पेट।

हरदम होती ही रहे, पीठ पेट की भेंट।।

रोज   रोपते  रोटियाँ, रोज  काटते  खेत।

इनको एक समान है, सावन भादौ चैत।।

भादौ में छप्पर चुए, जेठ  सताये घाम।

ठंडी में ठिठुरे यहाँ, कष्ट चले अविराम।।

थाली नित  खाली रहे, पेट  रहे  बीमार।

आँख दिखाए सेठ जी, सिर पर ठेकेदार।।

पेट पीठ में  मित्रता, रोटी  के  मन  बैर।

रोज रात सँग भूख के, करें स्वप्न में सैर।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 55 ☆ कविता – बेचारी… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “बेचारी…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 55 ✒️

?  कविता – बेचारी…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

यौवनावस्था  में  पुरुष, कमाने को लेकर रौब जमाते हैं ।

कर्तव्य परायणता को नकार कर, भगवान बन जाते हैं ।।

माता पिता  हृदय  थामकर, आश्चर्य  से  देखते  रह जाते हैं ।

बच्चे चिड़िया के बच्चों की तरह, पंख आने पर उड़ जाते हैं ।।

बहू को बेटी बनाने की होड़ में सदा, ससुर प्रथम आते हैं ।

बेटे बहू की आड़ लेकर संगिनी का, अनादर करवाते हैं ।।

वृद्धावस्था में आकर शरीर मन विचारों से, शिथिल हो जाते हैं ।

पति के सानिध्य को तरसती पत्नी के, सारे सपने खो जाते हैं ।।

क्या  समर्पित  त्यागमयी  नारी  के, जीवन  की  यही  थाती  है ।

फिर क्यों कहते हैं लोग कि, पति और पत्नी दीया और बाती हैं ।।

फंड – पेंशन के कारण बच्चे, पिता के आसपास मंडराते हैं ।

मां को नकारते हुए अनजाने में ही, पिता  के  गुण  गाते हैं ।।

भीगे तरल  नेत्र  बच्चों  के  चेहरों को, निहारते रह जाते हैं ।

तब ममता की मारी मां को, बचपन के दिन याद आते हैं ।।

जीवन की सांझ में विचारी पत्नी, पति के साथ को तरसती है ।

एकाकी  जीवन  में  चारों  ओर  घोर  निराशा ही बरसती है ।।

बीमार पत्नी को अकेला छोड़ पति, अलग कमरे में सो जाता है ।

पति  के  होते  हुए  पत्नी  का हाल विधवा नारी सा हो जाता है ।।

तब उसे मंदा, नंदा,गीता, इंद्रा विधवा सखियां, याद आती हैं ।

ह्रदय  वेदना  से  फटने  लगता  है  और  आंखें  भीग जाती हैं ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द ??

शब्दों के ढेर सरीखे

रखे हैं, काया के

कई चोले मेरे सम्मुख,

यह पहनूँ, वो उतारूँ

इसे रखूँ , उसे संवारूँ..?

 

तुम ढूँढ़ते रहना

चोले का इतिहास

या तलाशना व्याकरण,

परिभाषित करना

चाहे अनुशासित,

अपभ्रंश कहना

या परिष्कृत,

शुद्ध या सम्मिश्रित,

कितना ही घेरना

तलवार चलाना,

ख़त्म नहीं कर पाओगे

शब्दों में छिपा मेरा अस्तित्व!

 

मेरा वर्तमान चोला

खींच पाए अगर,

तब भी-

हर दूसरे शब्द में,

मैं रहूँगा..,

फिर तीसरे, चौथे,

चार सौवें, चालीस हज़ारवें और असंख्य शब्दों में

बसकर महाकाव्य कहूँगा..,

 

हाँ, अगर कभी

प्रयत्नपूर्वक

घोंट पाए गला

मेरे शब्द का,

मत मनाना उत्सव

मत करना तुमुल निनाद,

गूँजेगा मौन मेरा

मेरे शब्दों के बाद..,

 

शापित अश्वत्थामा नहीं

शाश्वत सारस्वत हूँ मैं,

अमृत बन अनुभूति में रहूँगा

शब्द- दर-शब्द बहूँगा..,

 

मेरे शब्दों के सहारे

जब कभी मुझे

श्रद्धांजलि देना चाहोगे,

झिलमिलाने लगेंगे शब्द मेरे

आयोजन की धारा बदल देंगे,

तुम नाचोगे, हर्ष मनाओगे

भूलकर शोकसभा

मेरे नये जन्म की

बधाइयाँ गाओगे..!

 

‘शब्द ब्रह्म’ को नमन। आपका दिन सार्थक हो।

© संजय भारद्वाज 

(कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ “गुलाबों की खेती” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ 🌹 गुलाबों की खेती 🌹 ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

– कोटि कोटि दीप जलते हैं

सुबह की पलकों पर

स्वप्न पलते हैं

अनगिनत–‘-

कल्पना के नीड़ में,

हाथ उठते हैं प्रार्थनाओं के लिए

अनवरत——

ब्रह्माण्ड की तरंगें

गुलाबों में तब्दील होती रहती हैं ।

इतनी सारी खुशबुएं

फिर भी नहीं पहुंच पातीं

मौत के सौदागरों तक—-

जो बारुद की फसलें उगाते हैं

बेगुनाहों के लहू से

श्रृंगार करते हैं

दानवी लिप्सा का !

उन्हें कोई तो समझाए

गुलाबों की खेती बेहद मुनाफेवाली है !

थोड़ी सी मशक्कत

और अपने हाथ

महकने लगते हैं

समूची कायनात के साथ !!!!

 

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ‘है’ और ‘था’… (1) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – ‘है’ और ‘था’… (1) ??

‘है’ और ‘था’,

देखें तो

दोनों के बीच

केवल एक पल खड़ा है,

‘है’ और ‘था’,

सोचें तो इक पल में

जीवन और मृत्यु का

अंतर कटा है..!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 3:22 बजे, 22.5.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 69 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 69 – मनोज के दोहे  ☆

1 फागुन

फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।

छोड़ चला संसार को, परम हमारा  मित्र।।

2 फाग

उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।

प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।

3 पलास

रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।

बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।

4 वन

वन में झरे पलास जब, लगें गिरे अंगार।

आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।

5 जोगी

धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।

तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 125 – गीत – आज नहीं… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – आज नहीं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 125 – गीत – आज नहीं…  ✍

आज नहीं, कल बात करेंगे, अभी सफर से आई हो।

कल भी कितनी बात करेंगे

हाँ या ना उत्तर दोगी

कोई मुश्किल प्रश्न किया तो

अलमारी में रख लोगी

ऐसे ही चलती है दुनिया, किसकी भली चलाई हो ।

 

तुम्हें देखने उस नगरी के

कितने लोग जुड़े होंगे

संयम के शहजादों के भी

सहसा पाँव मुड़े होंगे

सच कहना, उस भरी भीड़ क्या, याद शहर की आई हो।

 

वापस आई राजनगर से

रूप नगर की शहजादी

स्वागत का अधिकार नहीं है

कहने भर की आजादी

नहीं, नहीं, कुछ नहीं कहूँगा, नाहक ही घबराई हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 125 – “॥ गजल ॥” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है आपकी – “॥ गजल ॥)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 125 ☆।। कविता ।। ☆

☆ ॥ गजल ॥ ☆

अपने पुराने घर खिड़की मे

अतीत होते हुये बह तुम थे

आइनों की बडी कतारों में

व्यतीत होते हुये वह तुम थे

कभी कहीं पर तुम्हें देखा है

प्रतीत होते हुए वह तुम थे

गौर से देखता तारोंकोगहन

निशीथ होते हुए वह तुमथे

लिखेहैंबहुतगीतअभिनवसे

अगीत होते हुये वह तुम थे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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