हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सुनो वॉट्सएप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सुनो वॉट्सएप ??

कई बार की-बोर्ड पर गई

दोनों की अंगुलियाँ

पर कुछ टाइप नहीं किया,

टाइप कर भी लिया

तो कभी सेंड नहीं किया,

ख़ास बात रही

बिना टाइप किये,

बिना सेंड किये भी

दोनों ने अक्षर-अक्षर पढ़ ली

एक-दूसरे की चैट ..,

चर्चा है,

बिना बोले, बिना लिखे,

पढ़ लेनेवाला नया फीचर

वॉट्सएप की जान है,

ताज्जुब है

खुद वॉट्सएप भी

इससे अनजान है…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 148 ☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 148 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

याद बहुत करते हैं आर्यन

     मीठी – मीठी बात हैं करते।

नाना भी कम याद न करते

      फूलों की बरसात हैं करते।।

 

वीडियो कॉल मिलाएं नाना

    आर्यन मीठी बात बताए।

नाना के फोटो से पूँछें

     नाना जल्दी क्यों न आए।।

 

काम क्या ऐसा लगा आपको

     खेल खिलौने हमें न लाए।

खेलें – कूदें साथ – साथ हम

       बार – बार है याद सताए।।

 

 जो फोटो से मैंने पूछा

     सब बातें आप तक पहुँची थीं।

मुझे आज बतलाओ सच – सच

     क्या सपनों से भी ऊँची थीं।।

 

नाना ने कहा प्यारे आर्यन

  प्यारा संदेशा मुझे मिला है।

रोम – रोम मेरा हर्षित है

     कोमल मन से ह्रदय खिला है।।

 

 लाएँगे हम बहुत खिलौने

       याद मुझे भी बहुत सताती।

खेल करेंगे मिलकर दोनों

     छुक – छुक हमको रेल घुमाती।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #170 – कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बहुत हुआ बुद्धि विलास…”)

☆  तन्मय साहित्य  #170 ☆

☆ कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… 

लिखना-दिखना बहुत हुआ

अब पढ़ने की तैयारी है

जो भी लिखा गया है,उसको

अपनाने की बारी है।

 

खूब हुआ बुद्धि विलास

शब्दों के अगणित खेल निराले

कालीनों पर चले सदा

पर लिखते रहे पाँव के छाले,

क्षुब्ध संक्रमित हुई लेखनी

खुद ही खुद से हारी है…..

 

आत्म मुग्ध हो, यहाँ-वहाँ

फूले-फूले से रहे चहकते

मिल जाता चिंतन को आश्रय

तब शायद ऐसे न बहकते,

यश-कीर्ति से मोहित मन ये

अकथ असाध्य बीमारी है….

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 56 ☆ स्वतंत्र कविता – कुत्ता बेहतर है इंसान से… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता कुत्ता बेहतर है इंसान से…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 56 ✒️

?  स्वतंत्र कविता – कुत्ता बेहतर है इंसान से… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

आओ पाले ,

कुत्ते का बच्चा ,

बहुत प्यारा,वफ़ादार

और सच्चा—-

 

रोटी के सूखे

टुकड़े की आस

बैठा तक रहा है

देहरी के पास —-

 

मालिक से ग़द्दारी की ,

इसमें नहीं शक्ति ,

सभी ने स्वीकारी है ,

इसकी स्वामी भक्ति —-

 

रात भर भौं भौं

की सदाएं ,

शायद दे रहा है

मालिक को दुआएं —

 

और आदमी ???

नाम लेने से भी ,

लगता है पाप ।

दोस्त के मुंह पर

डालता है तेज़ाब ,

जिसका खाता है

उसकी आस्तीन का

बनता है सांप —-

 

इस दो पाए

जानवर से रखना दूरी

वरना मौक़ा पाते ही ,

भौंकेगा छूरी —-

 

आजकल के दोस्त भी

हो रहे हैवान से ,

आधुनिक युग में कुत्ता ,

बेहतर है इंसान से —-

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “ईश्वर के प्रति” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ “ईश्वर के प्रति”  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

तुमसे ही है दिव्यता, ऐ मेरे भगवान।

अंतर में शुचिता पले, तो हो प्रभु का भान।

अविश्वास कर दूर, विधाता को पहचानो।

चिंतन का उत्थान, ईश में खोना जानो।। 

रख सच का संसार, करो दूरी तुम ग़म से। 

सपने हों साकार, चेतना कहती तुमसे।। 

 

खिलता है जीवन तभी, जब है उर निष्पाप।

कर्म अगर होते बुरे, तो जीवन अभिशाप।।

तो जीवन अभिशाप, विचारों को शुचि रखना।

अविश्वास बेकार, सदा उजले बन रहना।।

जब सच का संसार, उजाला तब ही मिलता।

हर पल बिखरे हर्ष, खुशी से जीवन खिलता।।

 

मानवता की राह चल, मानव बने महान।

कर्मों में हो चेतना, तो हर पल उत्थान।।

तो हर पल उत्थान, दया-करुणा को वरना।

कहते हैं जो धर्म, उसी पथ पर पग धरना।।

मिलते तब भगवान, नहीं किंचित दानवता।

अविश्वास पर मार, संग में तब मानवता।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 70 – गीत – हो सके तो स्वार्थ… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  गीत “हो सके तो स्वार्थ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 70 – गीत – हो सके तो स्वार्थ… ☆

हो सके तो स्वार्थ, नफरत को जलाओ ।

फूल-सी मुस्कान, अधरों पर सजाओ ।।

 

राह में आती मुसीबत सर्वदा है,

पार करना यह हमारी भी अदा है।

लोग हों निर्भीक पथ ऐसा बनाओ।

फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।

 

जिंदगी कितने दुखों में जी रही है।

और दुख के घूँट कितने पी रही है।

दुश्मनों की आँधियों से लड़ रहे जो।

हो सके तो हाथ कुछ अपने बढ़ाओ,

 

खिंचतीं जातीं हैं दीवारें देश में ,

खुद गईं हैं खाइयाँ अब परिवेश में।

भारती-संस्कृति को अपनी न भुलाओ,

जो भरा है द्वेष दिल में वह हटाओ।

 

तिमिर छाया है घना, चहुँ ओर देखो,

मौत के पंजे फँसी है भोर देखो।

इस घड़ी में कुछ नया करके दिखाओ,

फूल-सी मुस्कान अधरों में सजाओ।।

 

जो समय के साथ आगे नित बढ़ेगा,

मंजिलों की सीढ़ियाँ निर्भय चढ़ेगा।

प्रगति के हर द्वार को मिलकर बनाओ,

फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 126 – गीत – आपके हम कुछ नहीं… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – आपके हम कुछ नहीं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 126 – गीत – आपके हम कुछ नहीं…  ✍

मत गलत हमको समझ लेना कहीं

आपके हम कुछ नहीं है, कुछ नहीं।

 

मीत कह हमको पुकारा

यह बड़ा अहसान है

पूछते हैं लोग अब तो

आपसे पहचान है

आपसे पहचान है बस कुछ नहीं।

 

आपसे परिचय हुआ है

और अब क्या चाहिये

देर तक बातें हुई हैं

कब कहा अब जाइये

जानता औकात अपनी कुछ नहीं।

 

मोम सा है आपका दिल

संग दिल हम क्यों कहें

हम नहीं नीरज ये माना

अब कहाँ जाकर रहें

है कहीं कोई जगह या फिर नहीं।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 126 – “क्या-क्या द्वन्द्व बतायें…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “क्या-क्या द्वन्द्व बतायें…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 126 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ क्या-क्या द्वन्द्व बतायें… ☆

दरवाजे आ लौट गई क्यों

तितली की बहिने

लोग बोलते दिखे  “वाह भैये

क्या हैं कह ने!”

 

पिछले दिन का जो इतिहास

बचा बाकी बस था

वह तो कथित क्रमोत्तर शब्दों

की तैराकी था

 

पानी की व्यवहल तरंग सा

उसी किनारे पर

यह प्रसंग कह रहा नदी को

जल में ही रहने

 

घर की छप्पर पर कुछ

चिडियाँ तत्पर जाने को

कहती अबभी बचा समय

है इस अफसाने को

 

जिस के पूर्व राग में

बाहर थकी उड़ाने थीं

ठिठकी है . विश्वास

जुटाये धारा में बहने

 

क्या-क्या द्वन्द्व बतायें

फूलों के घर का उन को

दिखे बगीचा फूला-फूला

यहाँ सभी जनको

 

किन्तु यहाँ जो पेड पत्तियाँ

है विश्वासों के

लगे सहज ही गिर जाने को

या किंचित ढहने

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वचन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना संपन्न हुई । अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जाएगी  💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  वचन ??

तराजू के पलड़े पर

रख दी हैं हमने

संतुष्टि और संवेदना,

दूसरे पलड़े पर

तुम रख लो

संपदा, शक्ति, जुगाड़,

वगैरह, वगैरह..,

जिस दिन

तुम झुका लोगे पलड़ा

अपनी ओर,

शब्द प्राण फूँकना

छोड़ देंगे,

यह वचन रहा,

हम लिखनेवाले

लिखना छोड़ देंगे…!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:06 बजे, 3.3.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 117 ☆ # अभी हम जिंदा है… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# अभी हम जिंदा है … #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 117 ☆

☆ # अभी हम जिंदा है … # ☆ 

यार मुस्कराओ की

अभी हम जिंदा है

हमारी जिंदादिली पर

मौत भी शर्मिंदा है

 

जो मिला खूब मिला

नहीं हमें किसी से गिला  

जिंदगी मस्ती में कटी

मस्त हर एक बंदा है

 

बाप की परवरिश व्यर्थ गयी

बहू-बेटे में शर्म नहीं रहीं

मां-बाप बोझ बन गए हैं यहां

रिश्ते दिखावे का धंधा है

 

अमीर देश में रोज बढ़ रहे हैं

नंबरों की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं

सरकार लोगों से कह रही है

भाई व्यापार बहुत मंदा है

 

रसूखदार उड़ा रहे हैं मज़ा

शोषित पीड़ित भुगत रहे सज़ा

न्याय पिंजरे में बंद है

कानून यहां पर अंधा है

 

कल का फकीर हवा में उड़ता है

ऐश्वर्य को देख नशे में झूमता है

कायदे कानून कदमों के दास है

सियासत का खेल बहुत गंदा है

 

हमारी सारी विरासतें

बिक रही है रोज़ देखते-देखते

हिसाब कौन मांगें गा

हम तो दे रहे रोज़ चंदा है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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