श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  गीत “हो सके तो स्वार्थ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 70 – गीत – हो सके तो स्वार्थ… ☆

हो सके तो स्वार्थ, नफरत को जलाओ ।

फूल-सी मुस्कान, अधरों पर सजाओ ।।

 

राह में आती मुसीबत सर्वदा है,

पार करना यह हमारी भी अदा है।

लोग हों निर्भीक पथ ऐसा बनाओ।

फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।

 

जिंदगी कितने दुखों में जी रही है।

और दुख के घूँट कितने पी रही है।

दुश्मनों की आँधियों से लड़ रहे जो।

हो सके तो हाथ कुछ अपने बढ़ाओ,

 

खिंचतीं जातीं हैं दीवारें देश में ,

खुद गईं हैं खाइयाँ अब परिवेश में।

भारती-संस्कृति को अपनी न भुलाओ,

जो भरा है द्वेष दिल में वह हटाओ।

 

तिमिर छाया है घना, चहुँ ओर देखो,

मौत के पंजे फँसी है भोर देखो।

इस घड़ी में कुछ नया करके दिखाओ,

फूल-सी मुस्कान अधरों में सजाओ।।

 

जो समय के साथ आगे नित बढ़ेगा,

मंजिलों की सीढ़ियाँ निर्भय चढ़ेगा।

प्रगति के हर द्वार को मिलकर बनाओ,

फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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