हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 153 ☆ बाल कविता – मोर और गुड़िया ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 153 ☆

☆ बाल कविता – मोर और गुड़िया ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मोर अकेला गुड़िया के सँग

बातें करता बड़ी निराली।

धरा , गगन भी हैं मुस्काए

भगवान कर रहे रखवाली।।

 

गुड़िया बोली प्रिय मोर तुम

मेरे प्यारे दोस्त बने।

कितना सुंदर रूप रंग है

अनुपम अदभुत रंग भरे।।

 

दाना तुमको रोज खिलाऊँ

मुझको नृत्य दिखाओ तुम।

दोनों ही हम भोले – भाले

मीठा गीत सुनाओ तुम।।

 

सैर कराओ बाग बगीचे

सैर कराओ घर – परिवार।

राष्ट्रीय पक्षी तुम हो प्यारे

तुमसे खुश रहता संसार।।

 

मोर बोला यूँ प्यारी गुड़िया

सैर करो मेरे संग – संग।

कहना मानो सभी बड़ों का

मन में भर लो नई उमंग।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #175 – लय साधो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता लय साधो… )

☆  तन्मय साहित्य  #175 ☆

☆ लय साधो… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

लय साधो

इस जीवन की

तन की, मन की

अपनों के सँग

अपने-पन की।

 

क्या है उलझन

सब साज सजे

सुर-ताल-राग

फिर क्यों है

अन्तस् में विचलन

 

 है भादो

 मेघ मल्हार बहे

 चिंता नहीं कर अगहन की

 लय साधो…..।

 

क्यों! है क्रंदन

लिपटे दुख के

अनगिन भुजंग

फिर भी निर्विष

रहता चन्दन,

 

भय त्यागो

सुखमय सैर करो

सुरभित वन-उपवन की

लय साधो…..।

 

साँसों का क्रम

अविरल गति से

चल रहा अथक

संचालक हम

मन में यह भ्रम,

 

पहरा दो

बहके ना पथ में

धारा पुनीत चिंतन की

लय साधो…।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 61 ☆ नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्र पर्व पर आपकी एक कविता – कुष्मांडा देवी”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 61 ✒️

?  नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

नवरात्रि के चौथे दिन ,

कूष्मांडा की उपासना ।

विधि, मंत्र, भोग, पूजा से ,

दूर होती सभी यातना ।।

 

देवी की आठ भुजाएं ,

अष्ठभुजी कहलाती ,

धनुष, बाण ,कमल, कलश ,

चक्र – गदा – सुहाती ,

आठवें हाथ जपमाला ,

जिससे करें उपासना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

वाहन सिंह और निवास ,

सूर्य मंडल माना जाता ,

देवी को सूर्य देव की ,

ऊर्जा जाना जाता ,

यश,बल,आयु में वृद्धि हो,

करो मां की साधना ।

नवरात्रि ————————– ।।

 

करें स्मरण सांचे मन से ,

परिवार रहे खुशहाल ,

सुख – समृद्धि और निरोगता ,

रहे हज़ारों साल ,

मालपुए का भोग लगा ,

कपूर – गुलाब चढ़ावना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

बेल मूल पे चतुर्थी को ,

इत्र – मिट्टी – दही चढ़ाऐं ,

फल स्वरुप मनवांछित फल ,

“सलमा “भक्त जन पाऐं ,

जय कुष्मांडा मां कर दो,

पूर्ण सब की कामना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 01 ☆ बेबस पड़े हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी का हार्दिक स्वागत है। आज से आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बेबस पड़े हैं…।) 

जीवन परिचय 

जन्म : 09 मई 1951 ई0। नरसिंहपुर मध्यप्रदेश।

शिक्षा : हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर

प्रकाशित कृतियाँ : (1) ‘मन का साकेत’ गीत नवगीत संग्रह 2012 (2) ‘परिन्दे संवेदना के’ गीत नवगीत संग्रह 2015 (3) “शब्द वर्तमान” नवगीत संग्रह 2018 (4) ”रेत हुआ दिन” नवगीत संग्रह 2020 (5)”बीच बहस में” समकालीन कविताएँ 2021 (6) महाकौशल प्रान्तर की 100 प्रतिनिधि रचनाएँ संपादन ‘श्यामनारायण मिश्र’ समवेत संकलन (7) समकालीन गीतकोश-संपादन- नचिकेता (8)नवगीत का मानवतावाद-संपादन-राधेश्याम बंधु

अन्य प्रकाशन : देश के स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में गीत, नवगीत, अनुगीत कविताओं का सतत् प्रकाशन।

सम्मान : (1) कला मंदिर भोपाल पवैया पुरस्कार (2) कादंबरी संस्था जबलपुर से सम्मानित

संप्रति : स्नातक शिक्षक केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा निवृत, स्वतंत्र लेखन।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 01 ☆ बेबस पड़े हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

भीड़ से हटकर खड़े हैं

तभी तो आँखों में उनकी

किरकिरी बनकर गड़े हैं।

 

वक़्त की दीवार पर चढ़

रेत में नैया डुबाते

मिल न पाया कोई मोती

दाँव पर जीवन लगाते

 

बस नदी के घाव धोते

घाट पर बेबस पड़े हैं ।

 

हो गई संवेदनाएँ

जहर में डूबी ज़ुबान

मुखर हैं अख़बार में

लड़खड़ाते से बयान

 

 आस्थाएँ हुईं मैली

 सच के मुँह ताले जड़े हैं।

 

खेत  माटी और चिड़िया

भुखमरी झूठे सवाल

सिसकियों के घर अँधेरा

रोशनी पर है बवाल

 

रोज सूरज के भरोसे

रात से हरदम लड़े हैं।

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 71 – गीत – भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  गीत “भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 71 – गीत – भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू… ☆

 भगतसिंह सुखदेव जी, राजगुरू हैं शान ।

फाँसी में हँसते चढ़े, प्राण किया बलिदान ।।

 

            भारत माँ के लाड़लों, को हम करें प्रणाम ।

            बलिदानों से देश ने, पाया आज मुकाम ।।

 

ब्रिटिश जजों ने लिख दिया, फॉंसी का आदेश ।

तब तीनों थे हँस रहे, माथे शिकन न क्लेश ।।

 

            कह कर वंदे मातरम, नाच उठे थे लाल ।

            इक दूजे के गले लग, झूमे थे दे ताल ।।

 

कलम तोड़कर जज उन्हें, देख रहे थे घूर ।

सजा मौत की सुन सभी, नाचे थे भरपूर ।।

 

            कोर्ट देखता रह गया, उत्सव जैसा हाल ।

            कैदी तो सुन कर सजा, हो जाते बेहाल ।।

 

हतप्रभ न्यायाधीघ थे, देख मौत नजदीक ।

किस माटी के तुम बने, जो दिखते निर्भीक ।।

 

            हँस कर तीनों ने कहा, हमें देश से प्यार ।

            मातृ भूमि के वास्ते, लाखों हैं तैयार ।।

 

सुनकर उनकी बात को, सहमा जज दरबार ।

लगे देखने द्वार में, कम हैं पहरेदार ।।

 

            देश प्रेम की वह छटा, तनमन भरी उमंग ।

            मस्ती में वे झूमकर, बजा रहे थे चंग ।।

 

उनको निर्भय देखकर, जनता हुयी निहाल।

बच्चे बूढ़े जग गये, तब आया भूचाल ।।

 

            फंदे को फिर चूमकर, डाल गले में हार ।

            जिन्दा आँखें रो पड़ीं, दुश्मन भी बेजार ।।

 

सत्ता भय से ग्रस्त थी, मुलजिम बना वजीर ।

अंधकार की आड़ में, खाक हुई तस्वीर ।।

 

क्रांति मशालें जल उठीं, उपजा था आक्रोश।

            अंग्रेजों के कृत्य से, जन-मन में था रोष ।।

 

काँप उठी सत्ता तभी, देखा जन सैलाब ।

सारी जनता जग उठी, गिन-गिन लिया हिसाब ।।

 

            सतलज की माटी कहे, नव पीढ़ी से आज ।

            याद रखो बलिदान को, कैसे मिला सुराज ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – परिवर्तन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – परिवर्तन ??

परम सत्य…,

शाश्वत सत्य…,

अंतिम सत्य…,

अपना पांडित्य

अपने को छलता रहा,

सारे विशेषण उदर में लिए

सत्य अपनी राह चलता रहा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 132 – भाव हमारे, भाव तुम्हारे… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – भाव हमारे, भाव तुम्हारे…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 132 – भाव हमारे, भाव तुम्हारे…  ✍

भाव हमारे, भाव तुम्हारे, ज्यों नदिया के कुल किनारे

 

जैसा जैसा सोचा तुमने

वैसा वैसा सोचा हमने

हुए पराये पल में अपने

पलने लगे आँख में सपने

सपने भी तो लगते प्यारे, सपन तुम्हारे, सपन हमारे।

 

जनम जनम तड़पाया तुमने

खूब प्यास भोगी है हमने

अब जाकर पहचाना तुमने

तुमको सबकुछ माना हमने।

 

मुश्किल खुले अघर के द्वारे, धन्यवाद दो शब्द उचारे

ढाई आखर भाव तुम्हारे, ढाई आखर भाव हमारे।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 131 – “ऐसी क्या सामाजिक रचना होती है शहरी?…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  ऐसी क्या सामाजिक रचना होती है शहरी?)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 131 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

ऐसी क्या सामाजिक रचना होती है शहरी?… ☆

कपडा धोने की मशीन को

देख देख महरी

मेरी कब होगी यह उसकी

इच्छा है गहरी

 

हाथों में छाले मलकिन क्यों

भोंका करती है

बात बात पर उसको यों ही

टोका करती है

 

इतना समझाती पर मेरी

सुनती नहीं कभी

मुझ को लगता हो बैठी वह

निश्चित ही बहरी

 

एक रबर की इक टायर की

चप्पलको पहने

एल्यूमिनियम के हाथों में

शोभित हैं गहने

 

और क्षीण जर्जर साड़ी

का मतलब बेमानी

इसकी काया पर लोगों की

नजरें हैं ठहरी

 

शीश झुका लोगों के घर में

आती जाती है

बेचारी मरते खटते

खुद से शरमाती है

 

लोगो की आदत स्वभाव को

जान चुकी रमिया

ऐसी क्या सामाजिक रचना

होती है शहरी ?

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-03-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 122 ☆

☆ # ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा… # ☆ 

ये तख्त रहेगा ना ताज रहेगा

ये महल रहेगा ना राज़ रहेगा

जहां सज रही थी रंगीन महफ़िले

ये रंगमहल रहेगा ना साज रहेगा

कुछ पल की ये रंगीनियां हैं

नाचती तितलियों की झलकियां हैं

कुछ प्रेम कहानियां बनी थी

वो आज भी अमर कहानियां हैं

ये ऊंचे ऊंचे महल ऐश्वर्य  बताते हैं

अपने वैभव की झलक दिखाते हैं

जिन्होंने जीती है कठिन लड़ाइयां

अपने शौर्य की निशानियाँ दर्शाते हैं

कितने हुए राजे रजवाड़े

उन्हें आज कौन याद करते हैं

जिन्होंने लगा दी जान की बाजी

ऊन शूरवीरों को जांबाज कहते हैं

उनके ही लगे हैं स्टेच्यू

हर शहर, हर चौराहे पर

उनके चरण छूकर ही

आजादी का आगाज़ करते हैं

जिन्होंने गद्दारी की वे मिट गये जमाने में

जिन्होंने मक्कारी की वे तिरस्कृत हैं फसानों में

जमाना वीरों को याद रखता है

जो गीत बनकर गाए जाते हैं दीवानों में

अहंकार, घमंड विनाश की राह है

छल कपट से आक्रमण बुजदिलों की चाह है

सत्य की जगह झूठ को मानने वाले

इतिहास में कायर, डरपोक, कमजोर और तानाशाह हैं /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मातारानी के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

“मातारानी के दोहे” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मातारानी है नमन्,सदा झुका यह माथ।

जननी तेरा नित रहे,मेरे सिर पर हाथ।।

नौ रूपों में आप तो,रहतीं हरदम भव्य।

रोशन तेरी दिव्यता,महिमा हर पल श्रव्य।।

साँचा है दरबार माँ,है कितना अभिराम।

जिसने भी श्रद्धा रखी,बनते उसके काम।।

माँ तुम हो नेहमय,देतीं हो आलोक।

सिंहवाहिनी की दया,करे परे हर शोक।।

नवरातें मंगल करें,शुभ करती हैं नित्य।

दिवस उजाला कर रहे,बनकर के आदित्य।।

विन्ध्यवासिनी माँ तुम्हें,बारंबार प्रणाम।

तुम से ही बनते सदा,मेरे बिगड़े काम।।

भक्त आपका कर रहे,श्रद्धामय हो जाप।

प्रबल शक्ति,आवेग है,प्रखर आपका ताप।।

संयम को मैं साधकर,शरण आपकी आज।

माता हे! सुविचारिणी,सब पर तेरा राज।।

माता हरना हर व्यथा,देना जीवनदान।

चलूँ धर्मपथ,नीतिपथ,कर पूरण अरमान।।

सदा आप में है भरा, ज्ञान, भक्ति, तप,योग।

हरतीं हो हे मातु ! नित,काम,क्रोध अरु रोग।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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