हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #199 – 85 – “अगर कोई पूछे बता दो …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “अगर  कोई  पूछे बता दो  …”)

? ग़ज़ल # 85 – “अगर कोई पूछे बता दो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़  इस  तरह से  जताना तुम्हारा,

सियासी  लगे  दिल  लगाना तुम्हारा।

अगर  कोई  पूछे बता दो  ये  उनको,

मेरा दिल नहीं  अब  ठिकाना तुम्हारा।

तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को,

इतिहास  कहेगा   फ़साना   तुम्हारा।

सुनेगा   भला  कौन  मेरी   यहाँ  पर,

है  अदालत  तेरी  ओ  थाना  तुम्हारा।

तुम्हारी  खुदाई  का   इतना  असर है,

‘आतिश’ हो गया  है  दिवाना  तुम्हारा।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ‘वह’.. ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ‘वह’.. ??

वह जानती है

बोलते  ही ‘देह’,

हर आँख में उभरता है

उसका ही आकार,

इस आकार को, मनुष्य

सिद्ध करने के मिशन में

सदियों से जुटी है वह !

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘त्रिकाल महादेव…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Trikaal Mahadev…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem त्रिकाल महादेव.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – त्रिकाल महादेव ??

कालजयी होने की लिप्सा में,

बूँद भर अमृत के लिए

वे लड़ते-मरते रहे,

उधर हलाहल पीकर

महादेव, त्रिकाल भए !

© संजय भारद्वाज 

16 सितम्बर 2018

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Trikaal Mahadev… ??

In the longing to be immortal,

they kept fighting and

dying for a drop of nectar…

On the other side,

Mahadev became Trikal,

the timelessly pervasive

after drinking Halahal,

the deadliest poison..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 77 ☆ मुक्तक ☆ ।। जाने किस की दुआ कब ज़िंदगी के काम आ जाए ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक ☆ ।। जाने किस की दुआ कब ज़िंदगी के काम आ जाए ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

बाद जिंदगी   के भी  आदमी  जिंदा रहता  है।

वही ही याद रहता   जो बात भले की कहता है।।

धन ऐश्वर्य अभिमान सब धरा पर धरा रह जायगा।

वही इंसान कहलाता किसी   लिए दर्द सहता है।।

[2]

जियो जीने दो का ही सिद्धान्त सबसे अच्छा है।

मधुर मुख     वाणी वेदांत   ही सबसे अच्छा है।।

वसुधैव कुटुंबकम् के अनुपालन में ही सृष्टि रक्षा।

सबका मान सम्मान  चित शांत सबसे अच्छा है।।

[3]

बुलबुले सा जीवन   कि   पल का   पता नहीं है।

मतकर कोई अभिमान कि कल का पता नहीं है।।

अहम क्रोध घृणा करते पहले स्वयं का ही पतन।

अभिमान में प्रभु की लाठी का लगता पता नहीं है।।

[4]

ना जाने जीवन की कब  आखिरी शाम आ जाये।

अंतिम बुलावा और जाने का वह पैगाम आ जाये।।

सबसे बनाकर रखो बस दिल की  नेक नियत से।

जाने किसकी दुआ कब जिंदगी के काम आ जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 141 ☆ कविता – “गायत्री मंत्र …” हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित   “गायत्री मंत्र…” का हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ कविता – “गायत्री मंत्र …” हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं।

भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात्॥

☆ हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद गायत्री मंत्र ☆

जो जगत को प्रभा और ऐश्वर्य देता है दान

जो है आलोकित परम और ज्ञान से भासमान ॥

शुद्ध है विज्ञानमय है, सबका उत्प्रेरक है जो

सब सुखो का प्रदाता, अज्ञान उन्मूलक है जो ॥

उसकी पावन भक्ति को हम, हृदय में धारण करें

प्रेम से उसके गुणो का, रात दिन गायन करें ॥

उसका ही लें हम सहारा, उससे ये विनती करें

प्रेरणा सत्कर्म करने की, सदा वे दें हमें ॥

बुद्धि होवे तीव्र, मन की मूढ़ता सब दूर हो

ज्ञान के आलोक से जीवन सदा भरपूर हो ॥ 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #191 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 191 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

निज साँसों में बस रहा, तेरा मेरा गीत।

पा लूँ तुझको मैं तभी, जीवन है संगीत।।

नेह की तरंग मन में , लेती रोज उछाल।

दिल से पूछो हमारा, यही बुरा है हाल।।

रिमझिम रिमझिम बरसता, बरसे बादल आज।

लगे न मन मेरा सजन, करने को कोई काज।।

नैन विरह में बरस रहे, हृदय करे चित्कार।

सूना आंगन सजन बिन, सावन करे पुकार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “एक नदी की मौत…” ☆ श्री संजय सरोज ☆

श्री संजय सरोज 

(सुप्रसिद्ध लेखक श्री संजय सरोज जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आप वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर, (स्टेट-जी एस टी ) के पद पर कार्यरत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  भावप्रवण कविता  – “एक नदी की मौत …)

☆ कविता ☆ ? एक नदी की मौत … – दो कविताएं ??

नदी के चेहरे को मलती दूधिया रोशनी,

 और उसके चेहरे पर बरसता जीवन रस,

 जैसे-जैसे बरसता जाता जीवन रस,

 वैसे वैसे और थिरकती, उछलती, नाचती नदी ,

और रेंवे* तेज कर देते अपना संगीत।

 

 शांत हो गई है अब नदी,

 फैल गई है उसके चेहरे पर रक्तिम आभा ,

आ गए हैं पलकों के नीचे लाल लाल डोरे

 शायद सोने जा रही है नदी,

  थक जो गई है रात के करतब से ।

 

पर उसे जगायेंगे,

 हां ! अब हम उसे जगायेंगे,

 और पोतेंगे उसके चेहरे पर  चर्म रस , अम्ल रस,

 और मलेंगे मल रस,

 और खिलाएंगे प्लास्टिक और कांच बेशुमार,

 अभागों ! बदरंग और कुरूप हो जाएगी यह नदी,

 हाय! मर जाएगी यह नदी….

 

*रेंवे=एक प्रकार का कीडा जो नदी के पास रहता है और रात मे आवाज करता है।

©  श्री संजय सरोज 

नोयडा

मो 72350 01753

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #177 ☆ एक बुंदेली पूर्णिका – “जोन खों समझो हमने अपनों…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक बुंदेली पूर्णिका – “जोन खों समझो हमने अपनों…. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 177 ☆

 ☆ एक बुंदेली पूर्णिका – “जोन खों समझो हमने अपनों…☆ श्री संतोष नेमा ☆

तुमने   झूठी       दई    दुहाई

लुटिआ  प्रेम की  खूब  डुबाई

तुम   कांटों की  बात करो मत

चोट   फूल    की  हमने  खाई 

धोखा   बहुतई  खा  लये हमने

देब   तुमहि   ने   कोई    बुराई

जोन  खों समझो  हमने अपनों

हो    गई    देखो   वोई    पराई

खूब   करो   विस्वास  सबई  पै

दुनियादारी   समझ    ने    पाई

झूठ-कपट   को   ओढ़   लबादा

तुमने     ऐसी     नीत     निभाई

भोलो  सो   “संतोष”   तुम्हे   जा

बात   समझ   में   देर   सें   आई

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चौकन्ना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – चौकन्ना ??

सीने की

ठक-ठक

के बीच

कभी-कभार

सुनता हूँ

मृत्यु की

खट-खट भी,

ठक-ठक..

खट-खट..,

कान अब

चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा ये

ठक-ठक और

खट-खट तो

जन्म से ही

चल रही हैं साथ

और अनवरत..,

आदमी यदि

निरंतर

सुनता रहे

ठक-ठक के साथ

खट-खट भी,

बहुत संभव है

उसकी सोच

निखर जाए,

खट-खट तक

पहुँचने से पहले

ठक-ठक

सँवर जाए..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 169 ☆ बाल कविता – परी, चाँद की सुखद कहानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 169 ☆

☆ बाल कविता – परी, चाँद की सुखद कहानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

दादी कहें मुझे शहजादी

    नाम मेरा सुमन रानी।

दादी से मैं रोज ही सुनती

   परी , चाँद की सुखद कहानी।।

 

सपने में शहजादी बनकर

   चली सैर को नभ में मैं।

परियों से मिल करी दोस्ती

   खुशियाँ सबमें भर दूँ मैं।।

 

चंदा से मैं बातें करने

   पहुँची चंद्र लोक में मैं।

क्या – क्या करते चंदा मामा

   आज पूछती तुमसे मैं।।

 

रोज – रोज ही घट बढ़ जाते

   और कभी तो तुम छिप जाते।

दूज चाँद पर बालक बनते

    पूनम को चाँदी बरसाते।।

 

कहा उन्हें समझाकर मैंने

   सदा रोज पूनम से निकलो।

घटना – बढ़ना बंद करो तुम

 नहीं कभी तुम पथ से फिसलो।।

 

सपना टूटा जगी खुशी से

       नभ से चाँदी बरस रही थी।

 चंदा को मैं मामा कहकर

      फूलों – सी मैं सरस् रही थी।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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