हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लख चौरासी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – लख चौरासी ? ?

श्मशान से उठता गाढ़ा धुआँ

वातावरण में पसरी चिरायंध,

मृत पशु की निकाली जाती खाल

ठोका-पीटा-कसा जाता चमड़ा,

जो जीते जी निरुपयोगी रहा

न मरके किसीके काम आया

परिक्रमा चौरासी में भटकता रहा

न इत का रहा, न उत का हो पाया।

?

© संजय भारद्वाज  

अपराह्न 1:45 बजे, 25.03.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 642 ⇒ तीन तेरह (3.13) ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता  – “तीन तेरह (3.13)।)

?अभी अभी # 642 ⇒  तीन तेरह (3.13) ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

3.13

रात्रि के तीन बज गए

तेरह, फिर भी रह गए …

मैं सोया रहता हूं,

मेरे पास पड़ा रहता है

मेरा मोबाइल

और चलती रहती है

उसकी डिजिटल घड़ी ..

समय के साथ सोना

और जागना, एक साथ।

अभी समय है मेरे उठने में

अभी समय है मेरे जागने में

मैं इसलिए सोया हुआ हूं, क्योंकि मैं सुबह

चार बजे उठता हूं।

3.47

मैं उठ गया हूं

जाग भी गया हूं

तेरह फिर भी रह गए

अभी चार बजने में ..

यानी मैं समय से

पहले उठ गया हूं

तेरह मिनिट पहले।

मैं जागता रहूंगा

और तेरह मिनिट

जब तक

चार नहीं बज जाती ..

अब आप इसे डिजिटल

स्लीप कहें अथवा

डिजिटल ध्यान,

लेकिन मुझे समय के साथ

जागना भी पसंद है

और सोना भी।।

4.00

अब और तीन तेरह नहीं

क्योंकि चार बज गए हैं

घड़ी ने अपना काम किया

मुझे समय से उठा दिया..

आपका सोने का

समय समाप्त ..

शुभ प्रभात !!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 213 ☆ # “हम कब बोलेंगे ?” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “हम कब बोलेंगे  ?”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 213 ☆

☆ # “हम कब बोलेंगे ?” # ☆

जीना इसी का नाम है तो

क्यों जी रहे हैं हम ?

हर पल हर घड़ी

यह जहर क्यों पी रहे हैं हम ?

 

चारों तरफ एक

खामोशी बढ़ रही है

खामोशी नई-नई

कहानियां गढ़ रही है

 

आंखों में आंसू हैं

चेहरे पर डर का साया है

किसने यह भयानक आतंक

हर जगह फैलाया है

 

ऐसे माहौल में

कोई कैसे सांस लेगा

इस घुटन से घबराकर

कमजोर तो अपना गला

खुद ही फांस लेगा

 

हम आजाद हैं पर

कैदी सा जी रहे हैं

भावनाओं का गला घोट

होठों को सी रहें हैं

 

कब हमारी खामोशी टूटेगी ?

कब गुलामी की बेड़ियां छूटेगी ?

कब तक हमारी दुनिया

यूं ही लुटेगी ?

कब हमारे अंदर

आक्रोश की चिंगारी

बारूद बन फूटेगी ?

 

कब हम अपना मुंह खोलेंगे ?

अन्याय के खिलाफ खड़े होकर

हम कब बोलेंगे ?

हम कब बोलेंगे ? /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ कविता – धड़कन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  धड़कन।)

☆ कविता – धड़कन☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

अबकी गिनना है,

सांसों की धड़कन को,

जो बढ़ जाती है,

तेरे करीब आने से,

महकती है तेरी,

सांसों की खुशबू,

तेरे एहसास के,

करीब आने से,

चंद्र किरण सी,

चमक चपल सी,

गहराती रात के,

करीब आने से,

लहराती सी,

पूर नदी सी,

शर्माती, सिंधु के

करीब जाने से.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ लापता… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ लापता… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

दर्द में लथपथ होकर        

लगभग सभी ने

कविताएं लिखीं

युद्ध पर !

मैंने नहीं लिखी

 

क्या करती

लिखकर !

 

मदांध हाथियों के कान

नहीं सुनते

चींटियों का स्वर !

 

स्याही का रंग

रुचता नहीं उन्हें !

लहू की प्यास है

मर्मान्तक चीखों से

दहल उठी हैं

दिशाएं

 

ऐसे में

तरंगों पर सवार

अमन के एहसास

पहुंचाए हैं मैंने

उन पर लिखा है पता

उस इलाके का

जहां से इन्सानियत है

लापता

बस इतनी सी है

मेरी कविता !!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 229 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 229 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 229) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 229 ?

☆☆☆☆☆

रहने दो मुझको यूँ ही उलझा

हुआ सा अपने लोगों में

सुना है सुलझ जाने से धागे

अलग अलग से हो जाते हैं…!!

☆☆

Let me remain entangled like

this only with my own people

I have heard that the threads

get apart when untangled !!

☆☆☆☆☆

तुम्हारे एक लम्हे पर भी

मेरा हक़ नहीं…

न जाने तुम किस हक़ से

मेरे हर लम्हें में शामिल हो..

☆☆

I have no right even on

Any of your moments…

Knoweth not how you keep

Owning all of my moments…!

☆☆☆☆☆

ना जाने क्यों अधूरी सी

लगती है ज़िन्दगी मुझे..

जैसे खुद को किसी के

पास भूल आया हूँ मैं…

☆☆

Do not know why the life

seems incomplete to me

As if I have forgotten

myself with someone…

☆☆☆☆☆

तुमसे तो अच्छे हमारे दुश्मन हैं

जो बात बात में कहते हैं कि

तुम्हें छोड़ेंगे नहीं…

☆☆

My enemies are better than you;

At least they threaten

not to leave me.

☆☆☆☆☆

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 228 – पूर्णिका – राह लंबी हो भले ही ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – राह लंबी हो भले ही)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 228 ☆

☆ पूर्णिका – राह लंबी हो भले ही ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नाट्यशाला जग सकल जग

करो अभिनय कहे रग-रग

.

पटकथा लिख दी गई है

ठगे जाओ या बचो ठग

.

धूल बैठे शीश पर जा

रौंदता है गर अधिक पग  

.

रुक न थक या हारकर मन

मिले मंजिल तज नहीं मग

.

राह लंबी हो भले ही

नाप लेते उठे लघु डग

.

काट पर कहते उड़ो रे!

काट बंधन उड़ गया खग

.

सलिलशत चोट पल-पल

जो वही पत्थर बने नग

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “कविता का दिन…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता – कविता का दिन☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

विश्व भर में कविता

अच्छा है, कविता मन की थाह

सामने ला देती है

कविता, चिड़िया के घोंसले सी सुकून देती है!

कविता बहुत कुछ कहने को उकसाती है।

कविता का दिन है

और मैं खामोश कैसे रहता?

यों कवि कम, कथा ज्यादा कहता हूं

पर कविता भी लिखवा लेती है

कुछ न कुछ!

लोग भूल जाते हैं!

कि मैं भी कविता से प्यार करता हूं

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆श्रेयस साहित्य # १ – श्री राम ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # 1 ☆

☆ कविता ☆ ~ श्री राम ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

आंखें तुमको देखती,

आंखों में है प्राण

रघुवर तेरे अधर पर,

अति मीठी मुस्कान

प्राण तत्व तुम जगत के

कर धारे संधान

रोम रोम में राजते

तुममें रमते प्राण

प्राण प्रिया जू सियाजी

राजे तेरे बाम

तुम प्रिय हो इस दीन के

प्रिय है तेरो नाम

राम नाम है मंत्र मणी

जपते आठो याम

मीरा के तुम राम हो,

कबीरा के भी राम

तुलसी के उर में बसों

घट में श्री रैदास,

गुरु नानक अरदास में

गुरु वाणी में वास

रहिमन दोहन में लिख्यो

ब्रह्म राम को नाम

राम शब्द परमात्मा,

आप सभी के राम

राम नाम महिमा बड़ी,

राम नाम को छाँव

जो जानन सो जान गा

माथ मोहि तोहि पाँव

श्रेयस रचि अति सोचि के

लिखियो शब्द सियराम

रतन महा बहुमूल्य है,

नाम तुम्हारो राम l

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – माँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – माँ ? ?

माँ,

अकेले यात्रा करने से डरती थीं,

अब अकेले ही निकल गईं अनंत यात्रा पर,

साथ देने की सोचता भी,

पर क्या साथ जाना होता भी?

शास्त्र कहते हैं, वैतरणी स्वयं ही तरनी होती है, यह यात्रा अकेले ही करनी होती है।

 

माँ,

आप प्रकांड अनुभव की धनी रही,

आपकी स्मृति सदा घनी रही,

एक बार आप चल लीं जिस मार्ग पर,

सदा के लिए अंकित हो गया वह

आपके स्मृतिसर्ग पर।

 

माँ,

पहले भी कभी की होगी यह यात्रा,

पहले भी कभी चरण पड़े होंगे इसी पथ पर,

मार्ग के कंकड़-कंकड़ से परिचित होंगी आप, हर मोड़, हर घुमाव के प्रति निश्चिंत होंगी आप।

 

माँ,

भले ही अब तक यात्रा रही निरंतर है,

लेकिन इस बार थोड़ा-सा अंतर है,

एक मोड़ से अब आप

चली जाएँगी प्रभापथ की ओर,

यह पथ आपको ले जाएगा गोलोक की ओर।

 

माँ,

अब मार्ग स्मरण न रहे

तो कोई बात नहीं,

मर्त्यलोक को तजकर

गोलोक की वासी हो चुकीं आप,

आवागमन चक्र से

मुक्त हो चुकीं आप,

जीवात्मा से अब

परमात्मा हो चुकीं आप..!

?

प्रातः 8:51 बजे, गुरुवार दिनांक 13 फरवरी 2025

(आज 29 मार्च को माँ के गमन को 60 दिन हो गए।)

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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