हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पर्यावरण विलाप ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

(डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  का  ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। हम भविष्य में डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी की चुनिंदा रचनाएँ आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय कविता पर्यावरण  विलाप 

☆ कविता – पर्यावरण  विलाप ☆

 

पांच तत्व जब मिले तब

अपना बना शरीर

किन्तु कवि क्या सोचते

इन तत्वों की पीर

निर्मल जल गंदा किया

गंदे नदी तड़ाग

बूंद बूंद को तरसते

कोसे वन भाग

दुर्गंधों से भर दिया

निर्मल था आकाश

पाव कुल्हाड़ी मार कर

किया हमीं ने नाश

भांति भांति के बृक्ष है

जीवन हित अनमोल

किंतु हमारी बुद्धि ने कभी ना समझा मोल

अब सब बैठे कर रहे पर्यावरण विलाप

सख्त जरूरत समय की सुधरे क्रियाकलाप।

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 8 – कहो तो चले अब ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता कहो तो चले अब. 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 8 – कहो तो चले अब

 

उम्र अब मुझे झझकोरने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

दबे पांव बीमारी संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझे कहलाने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

शरीर पर पड़ती झुर्रियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब||

 

उम्र अब मुझे अहसास कराने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,

बैसाखियों के संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझसे रूठने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,

दिल मधुमेह जैसी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझ पर शिकंजा कसने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

रोज नयी-नयी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र जन्म से सांस संग जिस्म में घुसी थी, सामने तो कुछ नही कहती,

रोज अटकती साँस संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र के उतार पर आकर थक गया, सामने तो अब कुछ नही कहती,

हालात से परेशां अब मैं खुद उम्र से कहता हूँ, तैयार हूँ कहो तो चले अब ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 45 ☆ परिंदे ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “परिंदे”।  यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है  से उद्धृत है। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 45 ☆

☆ परिंदे ☆

 

बचपन में मैं

जैसे ही सुबह उठकर

बालकनी में जाती,

परिंदों के झुण्ड दिखते

एक साथ कहीं दूर जाते हुए,

और फिर शाम को जब मैं फिर खड़ी होती

अलसाती शाम में आसमान को देखती हुई

वही परिंदे वापस आते हुए दिखते!

 

मेरे घर के पास

छोटे-छोटे ही परिंदे हुआ करते थे

जैसे मैना और तोते,

और मैं अक्सर माँ से पूछती,

“यह परिंदे कहाँ जाते हैं, माँ?

और शाम ढले, कहाँ से आते हैं?”

 

माँ बताती,

“इनकी किस्मत तुम्हारे जैसी थोड़े ही है!

जैसे ही परिंदे उड़ना शुरू कर देते हैं,

उन्हें दाने की खोज में

न जाने कहाँ-कहाँ जाना पड़ता है!”

 

इन परिंदों को मैं ध्यान से देखती…

खासकर मैना को…

न जाने क्यों मुझे वो बड़ी अच्छी लगती थी!

कहानियों में तोता और मैना का प्रेम

बड़ा मशहूर हुआ करता था

और जब भी मैं यह गाना सुनती,

“तोता-मैना की कहानी तो पुरानी-पुरानी हो गयी!”

मैं और ध्यान से मैना को देखती

कि क्या गुण है इस मैना में

कि हरा सा खूबसूरत तोता

इससे मुहब्बत करता है?”

 

एक दिन जब मैं मैना को ध्यान से देख रही थी,

मेरी एक सहेली ने आकर बताया,

“पता है, एक मैना को कभी नहीं देखना चाहिए?”

मैंने पूछा, “ भला, क्यों?”

उसने बताया,

“एक मैना दिखे, तो दर्द मिलता है,

दो मिलें, तो ख़ुशी,

तीन मिलें, तो ख़त आता है

और चार मिलें, तो खिलौना मिलता है!”

 

तब से, जब भी मुझे एक मैना दिखती,

मैं अपना मूंह फेर लेती!

आखिर, नहीं चाहिए था मुझे कोई ग़म!

 

अभी लॉक डाउन के दौरान

अपने बगीचे में बैठी, आसमान को अक्सर निहारती हूँ!

ख़ास बात यह है, कि मेरे घर के पास,

सबसे ज़्यादा तायदाद में चील हैं!

और उससे भी ख़ास बात यह है

कि यह झुण्ड में नहीं,

ज़्यादातर अकेली ही घूमती हैं!

 

जब पहली बार अकेली चील को उड़ते हुए देखा,

बचपन की बात याद कर,

मैं आँख बंद करने ही वाली थी

कि मैंने देखा, वो चील अकेले ही बहुत खुश लग रही थी!

और कितनी लाजवाब थी उसकी उड़ान!

वो किसी शिकार को भी नहीं खोज रही थी-

वो तो बस उड़ रही थी बे-ख़याल और मस्त-मौला सी

उन्मुक्त से गगन में!

 

शायद चील इसीलिए बहुत मशहूर है

कि उसे विश्वास झुण्ड पर नहीं,

अपने हुनर पर है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ !! सावन मनभावन !! ☆ इंजी हेमंत कुमार जैन

इंजी हेमंत कुमार जैन

ई-अभिव्यक्ति में इंजी हेमंत कुमार जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप जिला भूजल सर्वेक्षण ईकाई जबलपुर में अनुविभागीय अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। आपकी हाईकू एवं समकालीन आध्यात्मिक रंग से रची रचनाओं के लेखन में विशेष अभिरुचि है। आपकी रचनाओं को विविध काव्य संग्रहों में स्थान मिला है। हम आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों से साझा कराते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक घनाक्षरी रचना *!! सावन मनभावन !!

☆ !! सावन मनभावन !!

(घनाक्षरी)

सावन मनभावन,

हर्षित है तन मन ।

हरितमा धरनी की,

जी भर निहारिए ।।

 

सावन मनभावन,

व्रत पूजा व अर्चन ।

पिंडी चढ़ा बेल पत्र

शिव को रिझाइये ।।

 

सावन मनभावन ,

प्रफुल्लित सब मन।

अमुआ की डार पर

झूला तो झुलाइये ।।

 

सावन मनभावन ,

भीगे बारिश से तन।

भजिया भुट्टे खाने का

मजा तो उठाइए ।।

 

© इंजी.हेमंत कुमार जैन

संपर्क – 522 P-97, जगदंबा कॉलोनी , विकास नगर जबलपुर मो -7000770620

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – सावन ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सावन पर अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – सावन  ✍

 

सावन की ऋतु आ गई ,आंखों में परदेश।

मन का वैसा हाल है, जैसे बिखरे केश।।

 

सावन आया गांव में, भूला घर की गैल।

इच्छा विधवा हो गई ,आंखें हुई रखैल।।

 

महक महक मेहंदी कहे ,मत पालो संत्रास ।

अहम समर्पित तो करो, प्रिय पद करो निवास।।

 

सावन में सन्यास लें, औचक उठा विचार ।

पर मेहंदी महक गई ,संयम के सब द्वार।।

 

सावन के संदेश का, ग्रहण करें यह अर्थ ।

गंध हीन जीवन अगर, वह जीवन  है व्यर्थ ।।

 

जलन भरे से दिवस हैं ,उमस भरी है रात ।

अंजुरी भर सावन लिए ,आ जाए बरसात ।।

 

मेहंदी, राखी ,आलता, संजो रहा त्यौहार।

सावन की संदूक में, महमह करता प्यार।।

 

डॉ राजकुमार सुमित्र

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

मो 9300121702

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 10 – चेहरे के समाज से  ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “चेहरे के समाज से”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 10 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ चेहरे के समाज से  ☆

 

चित्र :: आमुख

 

बिखर गईं मुस्काने

होंठों की दराज से

माँगा जिनको सबने

चेहरे के समाज से

 

चित्र :: एक

 

मौसम डरा -डरा सा

बाहर को झाँका है,

मौका परदे के विचार

से भी बाँका है

 

चुपके पूछ रहा-

कपड़े क्या सस्ते हैं कुछ?

“तो खरीद लूँगा मैं”

कस्बे के बजाज से

 

चित्र :: दो

 

पेड़ों के पत्तों में

हलचल बढ़ने  वाली

शाख -शाख पर फैली

केसर उड़ने वाली

 

फैल रही खुशबू अब

चारों ओर सुहानी

हवा लुटाती है अपनापन

इस लिहाज से

 

चित्र :: तीन

 

वहीं ज्योति सी प्रखर

धूप की बेटी के मुख

अंग -अंग पर, छाया

रंग से बदल गया रुख

 

दोनों हाथों से घर में

वह सगुन स्वरूपा

डाल रही सगनौती है

छत पर अनाज से

 

© राघवेन्द्र तिवारी

27-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-16 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ-16

 

उच्चरित शब्द

अभिदा है,

शब्द की

सीमाएँ हैं

संज्ञाएँ हैं

आशंकाएँ हैं,

चुप्पी

व्यंजना है,

चुप्पी की

दृष्टि है

सृष्टि है

संभावनाएँ हैं!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 10:44 बजे, 2.9.18

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 

 

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी का साहित्य # 51 – ये मेरी धरती माँ ☆ ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है आपकी प्रथम हिंदी रचना   ” ये मेरी धरती माँ ”। आपका इस अभिनव प्रयास के लिए अभिनन्दन ।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी का साहित्य # 51 ☆

☆ ये मेरी धरती माँ ☆

 

ये मेरी धरती माँ सबसे पावन है।

सितारा दुनियाँ का सबको मनभावन है।।धृ।।

 

चरण रज माँ तेरी जलधि नित धोता है।

उन्नत माथे पे हिमालय रहता है।

नदियों  की धाराओं से हर गली उपवन है।।१।।

 

घनेरे जंगल ये घटाये लाते हैं।

सुनहरे झरने तो तराने गाते हैं।

खेत खलिहानो में मचलता सावन है।।२।।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम कही रघुनंदन है।

नटखट राधा के देवकीनंदन है।

रुप इन दोनों के सभी घर आंगण है।।३।।

 

वेद उपनिषदों  की अमृत गाथा है

कुरान और धम्मदीप सबको मन भाता है।

सहिष्णु भूमि  के चरणों में वंदन है।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆  सावन का मौसम ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक रचना  “ सावन का मौसम”।  कुछ अधूरी कहानियां  कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी  कहते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆ 

☆  सावन का मौसम ☆ 

ये सावन का मौसम

ये ठंडी-ठंडी हवायें

चलो आज हम तुम

कहीं दूर घूम आयें

ये गुपचुप का ठेला

ये लोगों का मेला

ये गरमागरम चाट

खायें, एक दूसरे को खिलायें

गार्डन में देखो बच्चों की टोली

ऊधम मचाती बिंदास बोली

कूद कूदकर खेलें हैं होली

छींटो  से खुदको कोई कैसे बचायें

ये दिलकश नज़ारा

ये जल की बहती धारा

ये बिखरी हुई बूंदें

ये धुंध  में लिपटा किनारा

ये दृश्य तो आंखों से

दिल में उतर जायें

हरी भरी वसुंधरा

प्रणय गीत गायें

अंबर के मेघों को

मिलने बुलायें

प्रकृति का ये खेल देखो

दौड़कर घिर आई

काली घटाएं

चलो रिमझिम फुहारों में

हम तुम भी भींगें

हृदय पटल पर

प्रेम गीत लिखें

भीगा – भीगा  तन-मन हों

भीगी  हों सांसें

ऐसे सावन को भला

कोई कैसे भूल पाएं ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – सस्वर दोहे ☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के दोहे ☆ स्वरांकन एवं प्रस्तुति श्री जय प्रकाश पाण्डेय

डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी ने चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त साहित्यिक सेवाओं में विशिष्ट योगदान दिया है। अब तक आपकी नौ काव्य  कृतियां  प्रकाशित हो चुकी हैं एवं तीन  प्रकाशनाधीन हैं। चिकित्सा एवं साहित्य के क्षेत्र में कई विशिष्ट पदों पर सुशोभित तथा  शताधिक पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी  से हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए उनके साहित्य की अपेक्षा करते हैं। अग्रज श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के  दोहों का स्वरांकन प्रेषित किया है, जिसे हम अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं।

☆ डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के दोहे ☆  

श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के ही शब्दों में  
सागर, मध्यप्रदेश से ख्यातिलब्ध वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी का चिकित्सा सेवाओं के अतिरिक्त कवि एवं गीतकार के रूप में हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान है। हमारे अनुरोध पर डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी ने अपने दोहे ई – अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा करने का सुअवसर हमें दिया है।
आप परम आदरणीय डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया जी के दोहे उनके चित्र अथवा यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनके ही स्वर में सुन सकते हैं।

आपसे अनुरोध है कि आप यह कालजयी रचना सुनें एवं अपने मित्रों से अवश्य साझा करें। ई- अभिव्यक्ति इस प्रकार के नवीन प्रयोगों को क्रियान्वित करने हेतु कटिबद्ध है।

 

© डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया

“श्री रघु गंगा” सदन,  जिया माँ पुरम फेस 2,  मेडिकल कालेज रोड सागर (म. प्र.)470002

मोबाईल:  9425635686,  8319605362

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