हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 238 – सुमित्र के दोहे… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  – सुमित्र के दोहे।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 238 – सुमित्र के दोहे… ✍

आंसू सूखे आंख के, सूख रही है देह।

इन यादों का क्या करूं, होती नहीं सदेह।।

*

याद तुम्हारी कुसुम -सी, खिली बिछी तत्काल ।

या समुद्र के गर्भ में, बिखरी मुक्ता माल।।

*

घन विद्युत सी याद है, देती कौंध उजास।

कभी-कभी ऐसा लगे, करती है परिहास।

*

सूना सूना घर मगर, दिखे नहीं अवसाद।

इसमें क्या अचरज भला, महक रही है याद।।

*

मास दिवस या वर्ष सब, होते गई व्यतीत।

किंतु याद की कोख में, है जीवन अतीत।।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 238 – “कहीं कहीं नैराश्य…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत कहीं कहीं नैराश्य...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 238 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “कहीं कहीं नैराश्य...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

बदली ‘ साड़ी को सम्हाल

धीरे से चलती है ।

पता नहीं बारिश यह भैया

किसकी गलती है ॥

 

बूँद बूँद टपका कर

पानी छप्पर छानी से ।

बरस रहा है आया

जैसे हो रजधानी से ।

 

क्या मेंड़े क्या खेत

भरे पोखर पिछवाड़े के –

बहिन इन सभी की मुँहबोली

मुदिता मिलती है ॥

 

सरिता में बह जाने का

बेशक तो मन करती ।

इसी लिये बलखाकर

मग में  धीमे से चलती ।

 

बड़ी हड़बड़ी में घबराहट

जैसे पानी बन –

एक शिकायत लिये वहीं

आँखो में पलती है ॥

 

कहीं कहीं नैराश्य

छपछपाता पगथलियों में ।

जहाँ बहाकरती है ‘बदली’

छुपछुप गलियों में ।

 

कई कई परछाई बनकर

कलकल करती है –

जिसकी छाया सबके मन में

हिलती डुलती है ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

31-05-2025

 संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमानुष ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अमानुष ? ?

किसी भूखे को रोटी देते समय

फोटो खिंचवाने की इच्छा जगे,

निर्वसन को कपड़ा ओढ़ाते हुए

दाता होने का अहंकार जन्मे,

निर्धन को छोटी-मोटी राशि देते समय

जयकारा लगवाने की लालसा उत्पन्न हो,

किसी भी तरह की सहायता करते हुए

समाजसेवा का तमगा लगाने का मन करे,

तो तुम कुछ और तो हो सकते हो,

पर यकीन मानना मनुष्य नहीं हो सकते!

?

© संजय भारद्वाज  

20.52 बजे, 29.5.25

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री महावीर साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ छोटा सा जीवन… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता छोटा सा जीवन।)

☆ कविता – छोटा सा जीवन☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

जिंदगी चलती है यूं,

नदिया का जैसे पानी,

गिरती, उछलती, लहरों जैसी,

बहती हुई जवानी,

नदिया जैसे, राह न पूछे ,

सागर से मिल जाती है,

गिरती पड़ती, सीधी, मुड़ती

सागर में ही समाती है,

छोटा सा जीवन,

गर्व न करना,

मिलजुल कर ही,

सबसे रहना,

जग में आए,

न कुछ लाए,

खाली हाथ आए,

हाथ पसारे जाए,

जग में जीवित रहना है,

ऐसा कुछ करना है,

याद दिलों में रह जाए,

नेक कर्म ही करना है.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – कविता ☆ बोलना और सुनना… ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ बोलना और सुनना… डॉ जसवीर त्यागी 

उन्होंने कहा-

कितना भी बोलो

कोई नहीं सुनता आजकल

 

सब मनमानी करते हैं

हर कोई फायदे की फिसलन की ओर

फिसल रहा है

 

जानता हूँ

कि कोई नहीं सुनता

 

फिर भी मैं बोलूँगा

चाहे कोई सुने,चाहे ना सुने

 

कोई पेड़ तो सुनेगा

कोई चिड़िया तो सुनेगी

 

कोई तितली तो सुनेगी

कोई ततैया तो सुनेगा

 

नदी-पहाड़

और धरती-आसमान तो सुनेंगे

 

फिर भी

अगर किसी ने नहीं सुना

 

तो आखिर में

समय तो सुनेगा ही।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 237 – नव आविष्कृत सॉनेट… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  – नव आविष्कृत सॉनेट…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 237 ☆

☆ नव आविष्कृत सॉनेट… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

(मीटर- क ख ग घ्  क ख ग घ्  च छ ज च छ)

☆ 

कब कहाँ कैसे किया क्यों कह कहेगा कौन?

अनजान अब अज्ञानता से चाहता है मुक्ति।

आत्म फिर परमात्म से हो चाहता संयुक्ति।।

प्रश्न पूछे निरंतर उत्तर मिला बस मौन।।

नर्मदा में जो सलिल वह ही समेटे दौन।

यहाँ भी पुजती, वहाँ भी पुज रही है शक्ति।

काम का प्राबल्य क्यों गायब अकामा भक्ति।।

दादियों को छेड़ते पोते, भटकता यौन।।

लक्ष्य चुनकर पंथ पर पग रख बढ़ो पग-पग

गिर उठो सँभलो, नहीं तुम कोशिशें छोड़ो

नापता जो नापने दो बनाए नव माप।

कहो हर अटकाव से, भटकाव से मत ठग

हौसलों को दे चुनौती जो उसे तोड़ो

आप अपने आप जाता आप ही में व्याप।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२९.५.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – फेरा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – फेरा ? ?

अथाह अँधेरा,

एकाएक प्रदीप्त उजाला,

मानो हज़ारों

लट्टू चस गए हों,

नवजात का आना,

रोना-मचलना,

थपकियों से बहलना,

शनै:-शनै:

भाषा समझना,

तुतलाना,

बातें मनवाना,

हठी होते जाना,

उच्चारण में

आती प्रवीणता,

शब्द समझकर

उन्हें जीने की लीनता,

चरैवेति-चरैवेति…,

यात्रा का

चरम आना,

आदमी का हठी

होते जाना,

येन-केन प्रकारेण

अपनी बातें मनवाना,

शब्दों पर पकड़

खोते जाना,

प्रवीण रहा जो कभी,

अब उसका तुतलाना,

रोना-मचलना,

किसी तरह

न बहलना,

वर्तमान भूलना

पर बचपन उगलना,

एकाएक वैसा ही

प्रदीप्त उजाला,

मानो हज़ारों

लट्टू चस गए हों

फिर अथाह अँधेरा..,

जीवन को फेरा

यों ही नहीं

कहा गया मित्रो!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 10:10 बजे, शनिवार, 26.5.18

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री महावीर साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – कविता ☆ सबेरा… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ सबेरा… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

धुआँ धुआँ

धुँधलाती शाम

टूट रही है

कतरा कतरा

 

रात होने में

कुछ ही घड़ियां बाकी हैं

वक्त के चेहरे पर

कालिख पोतने

तैयार बैठा है

अंधेरा

 

जुगनुओं को

कम न आँको

उन्हें आवाज़ दो

चकमक पत्थर वालों को भी

 

ढिबरी कंदील दीये मशाल

बिजली के लट्टू

जो भी मिले

जलाना शुरु कर दो

 

रोशनी के औजार तेज करो

सान पर चढ़ाओ

उन्हें

 

वे ही लेकर आयेंगे

सबेरा

तुम देखना।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 162 ☆ गीत – ।। बुला रहा है सबेरा कि सब साथ-साथ चलो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 162 ☆

☆ गीत – ।। बुला रहा है सबेरा कि सब साथ-साथ चलो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

बुला   रहा   है   सबेरा   कि   सब   साथ-साथ   चलो।

अब नहीं करना है तेरा मेरा कि सब साथ- साथ चलो।।

****

जला सको तो एक दीप जलाओ हम सब के लिए।

हंसा सको तो सबको हंसाओ हम सब के लिए।।

आतंक से लड़ने के लिए भी सब साथ- साथ चलो।

बुला रहा है सबेरा कि सब साथ-साथ चलो।।

***

मिल कर हम चलेंगे तो ही मंजिल की प्रीत पाएंगे।

साथ – साथ ही लड़ेंगे तो ही हम जीत पाएंगे।।

मिलकर रहे हर एक चेहरा सब साथ- साथ बढ़ो।

बुला रहा है सबेरा कि सब साथ-साथ चलो।।

****

जोश एकता सहयोग समय की आज बनी मांग है।

आज हर किसीको भूलना होगा मतभेद का स्वांग है।।

लड़ रही फौज सीमा परआप भी साथ-साथ चलो।

बुला रहा है सबेरा कि सब साथ-साथ चलो।।

****

जान लो देखने को सबेरा जागना बहुत जरूरी है।

जीत लिए कभी नहीं हिम्मत हारना बहुत जरूरी है।।

संकट का समय तो एक ही मंत्र कि साथ-साथ बढ़ो।

बुला रहा है सबेरा कि सब साथ-साथ चलो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #227 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – भ्रष्टाचार निवारण… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – भ्रष्टाचार निवारण। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 227

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – भ्रष्टाचार निवारण…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मन ही करता है जीवन की हर गति का संचालन

सिर्फ संयमी मन कर सकता नीति नियम का पालन।

यदि मैला है मन तो झूठी सदाचार की बातें

नहीं लालची मन से संभव भ्रष्टाचार निवारण ॥ । ॥

*

उजले कपड़े बड़ी डिगरियाँ और ऊँचा सिंहासन

मन को सही आँक सकने के नहीं सही कोई साधन ।

सबकी समझ सोच होती है अलग-अलग इस जग में

अपवित्र मन ही होता है हर बुराई का कारण ॥ 2 ॥

*

सही दृष्टि से हो न सका स‌दशिक्षा का निर्धारण

 इसीलिये उदण्ड हुआ मन तोड़ रहा अनुशासन ।

संयमहीन व्यक्ति का मन आतंकवाद की जड़ है

जिससे तंग सभी देशों का जग में आज प्रशासन ॥ ३ ॥

*

नीति-नियम कानून कड़े हों , हो निष्पक्ष प्रशासन

इतने भर से संभव कम भ्रष्टाचार-निवारण।

सोच-विचार-आचरण सबके पावन हितकारी

इसके लिये चाहिये मन को पावन शिक्षा-साधन ॥ 4 ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares