हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 99 – “वे अव्यक्त हुये जाते हैं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “वे अव्यक्त हुये जाते हैं…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 99 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “वे अव्यक्त हुये जाते हैं”|| ☆

दिखते पिता इस तरह

बैठे आगे कमरे में

कभी किसीके लहजे

में तो घर के चेहरे में

 

टँगी गंध है रही खूँटियों

पर कुछ जिस्मानी

उनके कपड़ों से आती

है जानी पहचानी

 

वहीं हृदय के घाव रहे

बेशक बिन मरहम के

विवश पड़ा हो कोई

चौपाया ज्यों कचरे में

 

धुँधली हुई निगाह पाँव

में आ बैठा कम्पन

जिससे पता चला

करता बाकी है स्पंदन

 

कभी बोलते तो ऐसा

सब लोग सुना करते

कोई शख्स कुँये से

बोले काफी गहरे में

 

छडी पास में बुझी बुझी

सी दिखती कोने में

वे अव्यक्त हुये जाते

हैं जीवित होने में

 

पर कराहना उनका

जैसे बतला जाता है

कोई कंकड़ कहीं

गिरा हो पानी ठहरे में

 

रहते थे चुप चाप घरेलू इन

सम्बन्धो पर

चले गये बिन कहे चार

लोगों के कन्धों पर

 

समझ नपाये उन्हें  कभी

जाने अनजाने ही

उलझे रहे निदान खोजते

इसी ककहरे मे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-07-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैमाना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पैमाना ??

कुछ को वेदना नचाती है,

कुछ से वेदना रचाती है,

अब इतना रच चुके हो;

कितना और रचोगे,

तनिक

संकेत कर सको तो करो..,

मेरा मौन,

मेरी वेदना का पैमाना है,

किंचित

माप सको तो माप लो..!

© संजय भारद्वाज

9:53 बजे प्रात:, 30.11.21

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 90 ☆ # पल पल बदलती दुनिया में …  # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पल पल बदलती दुनिया में…  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 90 ☆

☆ # पल पल बदलती दुनिया में… # ☆ 

पल पल बदलती दुनिया में

ना जाने क्या कल होगा ?

फुलों से भरा  होगा दामन

या कांटों का कोई छल होगा ?

 

नभ में गरज रहे बादल

धरा फैलाये है आंचल

तपती देह की प्यास बुझाने

अंबर से टपकेगा वर्षा का जल

क्या खूब होगी बारिश या

तरसाता यह बादल होगा ?

 

काली काली घटाएं छाई है

वसुधा से मिलने आई है

तड़प देख कर अचला की

निर्मल जल लाई है

प्रणय में हिमखंड टूटेंगे या

अवरोध पवन का प्रबल होगा ?

 

बरसात में साथी छूट रहे हैं

रिश्ते नाते सब टूट रहे हैं

धोखे हैं कदम कदम पर

दोस्त बनकर लूट रहे हैं 

गले मिलों तो जरा संभलकर

ना जाने कौन कातिल होगा ?

 

पल पल बदलती दुनिया में

ना जाने क्या कल होगा ?

फूलों से भरा होगा दामन

या कांटों का कोई छल होगा ? /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 101 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 101 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 101) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 101 ?

? वो हूँ मैं… ?

गुज़ार दिये होंगे तुमने,

कई दिन, महीने और साल

काट ना सकोगे

जो एक रात, वो हूँ मैं…,

की होगी गुफ्तगू तुमने

कई दफा कई लोगों से,

दिल पर जो लगेगी

जो एक बात, वो हूँ मैं…,

भीड़ में जब तन्हा,

खुद को पाओगे तुम,

अपनेपन का एहसास कराये,

जो साथ, वो हूँ मैं…,

बिताये होंगे तुमने तमाम

हसीन पल सबके साथ,

भुला नहीं पाओगे,

जो एक याद, वो हूँ मैं…,

☆☆☆☆☆

? That is Me Only…! ?

Countless days, months

and the years,

You might have spent,

But the dreadful night

That you couldn’t pass

I am that sleepless night only…

Many a time, on

myriad occasions,

You may have conversed

with umpteen people

But that hurtful comment

you’ll always remember

That remark is me only…

When you find yourself

lonely in the crowd,

Surely you’ll find me

as someone

who makes you feel

loved again thoroughly,

That comforting companion is me only…

You may have spent

umpteen pleasurable

moments with many people

But the one, that can

never be erased

I’m that lasting memory only…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 101 ☆ सॉनेट ~ आस्था ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट ~ आस्था)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 101 ☆ 

☆ सॉनेट ~ आस्था ☆

आस्था क्षणभंगुर चोटिल हो

पल-पल में कुछ भी सुन-पढ़कर

दुश्मन की आसान राह है

हमें लड़ाए नित कुछ कहकर

 

मैं-तुम चतुर हद्द से ज्यादा

शीश छिपाते शुतुरमुर्ग सम

बंद नयन जब आए तूफां

भले निकल जाए चुप रह दम

 

रक्तबीज का रक्त पी लिया

जिसने वह क्या शाकाहारी?

क्या सच ही पानी, खूं अपना

जो पीता नहिं मांसाहारी

 

आस्था-अंधभक्त की जय-जय

रंग बदलो, हो गिरगिट निर्भय

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

८-७-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #133 ☆ गुरु पूर्णिमा विशेष – गुरु का हमारे जीवन में महत्व ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 132 ☆

☆ ‌ गुरु पूर्णिमा विशेष – गुरु का हमारे जीवन में महत्व ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई ।

जौ बिरंचि संकर सम होई ।

(रा०च०मा०)

गुरु गोविन्द दोनों खड़े,काके लागूं पाय।

बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय ।।

(महात्मा कबीर)

आइए सर्व प्रथम गुरु शब्द की समीक्षा करें। यह जानें कि हमारे जीवन में गुरु की आवश्यकता क्यों?

गुरु शब्द का आविर्भाव गु+रू =गुरु दो अक्षरों के संयोग से निर्मित हुआ है। गु का मतलब अंधकार तथा रू का मतलब  है प्रकाश अर्थात जो शक्ति हमारे हृदय के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश भर दे वही गुरु है, जो ज्ञान नौका बन कर शिक्षा रूपी पतवार से भव निधि से पार करा दे वही गुरु है।

तभी तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा-

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥

(रा०च०मा०)

कई जन्मों के पुण्य फल एवम् शुभ कर्मों के परिणाम स्वरूप सदगुरु का आश्रय प्राप्त होता है तथा सदगुरु शिष्य की पात्रता को परखते हुए अपने चरणों में स्थान देकर आश्रय प्रदान करता है, और अभयदान दे भवसागर से पार उतार कर जीवन के सारे कष्ट हर लेता है। इष्ट प्राप्ति कराते हुए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। सत्पात्र शिष्य को ही गुरु श्री दीक्षा प्रदान करते हैं, और वह शिष्य ही‌ गुरु दीक्षा का सम्मान करते हुए उनके बताए मार्ग का अनुसरण कर दिनों-दिन आत्मिक उन्नति करते हुए अपने गुरु का सम्मान बढ़ाता है। इसका अनुभव उन सभी भक्तों, शिष्यों तथा जिज्ञासु जनों को हुआ होगा, जो गुरु के प्रति अनन्य श्रद्धा भक्ति तथा जिज्ञासु भाव लेकर गए होंगे। गुरु संशय का नाश करते हैं। भ्रम का निवारण करते हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में उक्त तथ्यों को अपने दोहे के माध्यम से पारिभाषित किया है।

भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ।
सदगुर मिलें जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ॥

तथा इसी तथ्य को पारिभाषित करते हुए महाकवि सुंदर दास जी लिखते है कि-

परमात्मा जीव को माया मोह में फंसा कर आवागमन के चक्कर में डाल देता है, लेकिन उस मोह माया के चक्रव्यूह से मुक्ति तो गुरु ही प्रदान करता है। उसका एक  समसामयिक उदाहरण प्रस्तुत है ध्यान दें-

गोविंद के किए जीव जात है रसातल कौं
गुरु उपदेशे सु तो छुटें जमफ्रद तें।
गोविंद के किए जीव बस परे कर्मनि कै
गुरु के निवाजे सो फिरत हैं स्वच्छंद तै।।
गोविंद के किए जीव बूड़त भौसागर में,
सुंदर कहत गुरु काढें दुखद्वंद्व तै।
औरउ कहांलौ कछु मुख तै कहै बताइ,
गुरु की तो महिमा अधिक है गोविंद तै।

(सुन्दर दास जी)

श्री गुरु के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए कूटनितिज्ञ चाणक्य जी भी कहते हैं – जो लोग समझते हैं कि गुरु के निकट रहने से उनकी अच्छी सेवा होती है यह बात कतई   ठीक नहीं । गुरु की न तो निकटता ठीक है न तो दूरी उनके अति निकटता हानिकारक है तो दूरी फलहीन। ऐसे में गुरु सेवा मध्यम भाव से करना चाहिए। अर्थात्—

अत्यासन्ना विनाशाय दूरस्था न फलप्रदा:।
सेव्यन्ता मध्यभागेन वह्निगुर्रु: स्त्रिय:।।

अज्ञान तिमिर तो गुरु कृपा से ही दूर होना संभव है, क्यो कि गुरु अपने वाणी के प्रभाव से शिष्य के भीतर श्रद्धा भक्ति तथा प्रबल कर्मानुराग पैदा कर देता है। तभी तो श्री राम एवम् श्री कृष्ण को भी गुरु के आश्रित होकर शिक्षा ग्रहण करना पड़ा था। आइए उस गुरु को अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर गुरु नाम का जाप करें।

गुरु देव जी त्वं पाहिमाम्।

शरणागतम् शरणागतम्।।

ॐ श्री बंगाली बाबा समर्पणस्तु

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुक्तक – ।। जिन्दगी मुझे खुद वापिस बुलाने लगी है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना ।जिन्दगी मुझे खुद वापिस बुलाने लगी है)

☆ मुक्तक – ।। जिन्दगी मुझे खुद वापिस बुलाने लगी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

हक़ीक़त मुझे आईना, दिखाने लगी   है।

कौन दोस्त दुश्मन, यह बताने लगी  है।।

सुन रहा जबसे दिल, की आवाज़  अपनी।

हर तस्वीर साफ़ अब, नज़र आने लगी है।।

[2]

जिंदगी धुन कोई नई सी, गुनगुनाने लगी है।।

गर्द साफ जहन से, जिंदगी मुस्कारानें लगी है।

बस आस्तीन छिपे दोस्तों को, जरा  पहचाना।

तबियत अब खुद ही, सुधर जाने लगी    है।।

[3]

आज मुश्किल खुद ही, रास्ता बताने लगी है।

जिन्दगीआजआसान सी, नज़र आने लगी है।।

जरा मैंने दिल सेअपने, नफरत को  निकाला।

हवा खुद मेरे चिरागों को, जलाने लगी   है।।

[4]

उम्मीद रोशन नई, जिन्दगी में चमकाने लगी है।

सही गलत समझ खूब, मुझको आने लगी है।।

बहुत दूर नहीं गया मैं, किसी गलत  राहों पर।

अब जिन्दगी मुझे वापिस, बुलाने    लगी है ।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 90 ☆ ’’विश्व में भगवान…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता  “विश्व में भगवान…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 90 ☆ ’’विश्व में भगवान…”  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

एक तो जागृत प्रकृति है, दूसरा इन्सान है

बुद्धि और विवेक का जिसको मिला वरदान है।

निरन्तर चिन्तन मनन से कर्म से विज्ञान से

नव सृजन के प्रति सजग नित मनुज ही गतिवान है।

भूमि-जल-आकाश में जो भी जहाँ कुछ दिख रहा

वह सभी या तो प्रकृति या मनुज का निर्माण है।

प्रकृति पर भी पा विजय इन्सान आगे बढ़ गया

और आगे कर रहा नित नये अनुसंधान है।

चल रहा उसकी प्रगति का बिन रूकावट सिलसिला

अपरिमित ब्रम्हाण्ड में उड़ रहा उसका यान है।

खोज जारी है रहस्यों की तथा भगवान की

अमित भौतिक आध्यात्मिक विजय का अभियान है।

आदमी से बड़ा कोई नहीं दिखता विश्व में

वास्तव में आदमी ही इस जगत का प्राण है।

प्रकृति औ’ परमात्मा ही हैं नियंता विश्व के

साथ ही पर मुझे लगता तीसरा इन्सान है।

चेतना परिव्याप्र है जो मानवी मस्तिष्क में

शायद यह ही चेतना इस विश्व में भगवान है।          

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – भय  ??

साँप का भय

बहुत है मनुष्य में,

दिखते ही बर्बरता से

कुचल दिया जाता है,

सूँघते ही मनुष्य

भाग खड़ा होता है,

मनुष्य का भय

बहुत है साँप में..!

© संजय भारद्वाज

रात्रि 8.18 बजे, 7.7.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #140 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना के दोहे …।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 140 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … दिल ☆

दिल से दिल की दूरियां, दूर करो तुम आज।

प्रणय निवेदन कर रहे, बन जाओ सरताज।।

दिल कितना बेचैन है, देख लिया है आज।

मिलने को आतुर हुआ, रख ली उसने लाज।।

मजबूरी मेरी रही, आया नहीं मैं पास।

दिल तो तेरे पास है, बस इतनी थी आस।।

दिल तो तेरा हो गया, रखना उसका मान।

चोट न अब उसको लगे, कभी न हो अपमान।।

हमने बस अब कर दिया, सब कुछ तेरे नाम

दिल की सारी ख्वाहिशें, दिल है तेरे नाम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print