हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #176 – 62 – “जड़ें ज़मीन छोड़ती जा रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल जड़ें ज़मीन छोड़ती जा रहीं…”)

? ग़ज़ल # 62 – “जड़ें ज़मीन छोड़ती जा रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ये ज़िंदगी बिना कोशिश बदल सकती नहीं ,

चलने दो जैसी बात अब चल सकती नहीं। 

जड़ें ज़मीन छोड़ती जा रहीं बिना पानी के,

संस्कार बिना संस्कृति संभल सकती नहीं। 

ख़्वाब में खाने से भूख मिट नहीं सकती,

जुमलों से दिया  बाती जल सकती नहीं।

ज़िंदगी को खेत में पसीना बहाना पड़ता है,

चमकती मेट्रो में जाकर टहल सकती नहीं।

खुद्दार आतिश कहता वही जो लगता सही,

सोच किसी विचारधारा में ढल सकती नहीं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 54 ☆।। जीवन अर्थ मर्म, मानवता की ओर प्रथम कदम।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।।।जीवन अर्थ मर्म, मानवता की ओर प्रथम कदम।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 54 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। जीवन अर्थ मर्म, मानवता की ओर प्रथम कदम ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

कभी   नीम    सी    कभी      मीठी     है    जिंदगी।

मत    ज्यादा     उलझा   कि   सीधी   है  जिंदगी।।

सुख  दुःख धूप  छाँव  हर   किसी  के  जीवन  में।

पयोगे कि हर किसी की ये आपबीती है जिंदगी।।

[2]

मत   तमन्ना   रख   तू    कोई   भगवान  बनने  की।

बस आरजू   हो  अच्छे काम कुछ  इंसान बनने की।।

यह   जीवन   सफल होगा   परोपकार  कोशिश में।

हरपल कोशिश इंसानियत का सम्मान करने की।।

[3]

जान  लो  कि  मन  को  दूजे से कुछ  आशा  होती  है।

मित्रता  रिश्तों   की  यही   सही  परिभाषा होती  है।।

बिन  कहे ही जान  लें   हम  दूजे के भीतर व्यथा को।

हर रिश्ते में ही परस्पर यही इक अभिलाषा होती है।।

[4]

जान लीजिए यह जीवन  अर्थ का ही एक कदम है।

ये मिल  के बनता जाता   मानवता का  करम   है।।

हम बदलेंगे समाज बदलेगा यह  है  एक  सच्चाई।

छिपा इसी में सत्व इंसानियत का सच्चा धरम है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रश्न☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – प्रश्न ??

बड़ा प्रश्न है-

प्रकृति के केंद्र में

आदमी है या नहीं?

इससे भी बड़ा प्रश्न है-

आदमी के केंद्र में

प्रकृति है या नहीं?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 118 ☆ ग़ज़ल – “न जाने क्या होगा…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “न जाने क्या होगा…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #119 ☆  ग़ज़ल  – “न जाने क्या होगा…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

बढ़ती  महंगाई  के  चलते  ये  सोच  के  जी  घबराता है

कल आने वाली दुनिया का भगवान न जाने क्या होगा।

 

मौसम भी बदल चाहे जब तब करता रहता है मनमानी

वर्षा बिन प्यासी धरती का प्रतिदान न जाने क्या होगा।

 

पानी  ही  जग  का जीवन  है, पानी  बिन  बड़ी परेशानी

बिजली-पानी बिन भोजन का सामान न जाने क्या होगा।

 

रूपये का गया घट मान बहुत, व्यवहारों में बाजारों में

है चिन्ताओं का बोझ बढ़ा अरमान न जाने क्या होगा ?

 

नये रीति रिवाजों का है चलन, व्यवहार बदलते आये दिन

मुश्किल में फंसी हर जान है जब, आसान न जाने क्या होगा।

 

रहना  पड़ता  है लोगों को, बेमन से अधूरी छाया में

बढ़ती जाती नित बेचैनी, आदान न जाने क्या होगा।

 

माहौल गरम, दिल बैठा है, हर नये दिन नई लड़ाई है

बेदर्द जमाना मन मौजी, अनुमान न जाने क्या होगा।

 

दब कर भी अनेक बोझो में, एक बुझी-बुझी मुस्कान लिये

परवशता में पिसता कल का इंसान न जाने क्या होगा।

 

दिखती न कहीं भी कोई डगर जहां छाया हो तूफान नहीं

अरमान  ’विदग्ध’  उड़े जाते भगवान न जाने क्या होगा।   

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समग्रता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – समग्रता ??

उन आँखों में

बसी है स्त्री देह,

देह नहीं, सिर्फ

कुछ अंग विशेष,

अंग विशेष भी नहीं

केवल मादा चिरायंध,

सोचता हूँ काश,

इन आँखों में कभी

बस सके स्त्री देह..,

केवल देह नहीं

स्त्रीत्व का सौरभ,

केवल सौरभ नहीं

अपितु स्त्रीत्व

अपनी समग्रता के साथ,

फिर सोचता हूँ

समग्रता बसाने के लिए

उन आँखों का व्यास

भी तो बड़ा होना चाहिए..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.24 बजे, 5.12.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “तीन व्यंग्य श्रद्धांजलि” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल☆

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य कविता  – “तीन व्यंग्य श्रद्धांजलि”)

🌹 आदरणीय श्री घनश्याम अग्रवाल जी को महामहिम राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी जी द्वारा 27 फ़रवरी 2023 को “वाग्धारा नवरत्न सम्मान 2023” से सम्मानित किया जाएगा। ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं – अभिनन्दन 🌹

☆ कविता  ☆ “तीन व्यंग्य श्रद्धांजलि” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆

[1]

शहीद के परिवार को

कुछ मुआवजा

और शहीद को,

दो मिनट का मौन,ं

बस, ड्यूटी खत्म

फिर इसके बाद

कैसा शहीद ?

शहीद कौन ?

[2]

किसी मृतात्मा की

शांति के लिए

जब रखा गया

” दो मिनट का मौन “

तो सभी जीवात्माएं

यही सोच रही थी

कि कब दो मिनट हो ।

[3]

” श्रद्धांजलि सभा के बाद आज कोई कामकाज नहीं होगा। “

इस घोषणा पर कइयों के

दिल की कली खिल गई,

पूरे मनोयोग से

श्रद्धांजलि दी गई

कि चलो, इसी बहाने

एक छुट्टी और मिल गई ।

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #168 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 168 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – भावना के दोहे… ☆

खड़ी सुंदरी द्वार पर, लिए हाथ में सूप।

बालों मे गजरा बंधा, सुंदर दिखता रूप।।

 

पीड़ा मन की आज तक, बांच सका है कौन।

मनवा है बैचेन तो, हूँ अब तक मैं मौन।।

 

आपस में बातें करें, है जीवन अनमोल ।

तेरी मेरी बात का, बस इतना है मोल।।

 

आंखे तेरी बोलती, उनमें बड़ा सवाल।

तू कहना क्या चाहता, पूछ रहे हो हाल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #154 ☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “प्रेम। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 154 ☆

प्रेम ☆ श्री संतोष नेमा ☆

प्रेम  से  बचकर   कहाँ  जाइएगा

जहां   जाइएगा    वहीं   पाइएगा

सृष्टि के कण-कण में है पिरोहित

कैसे     इसे   अब   ठुकराइयेगा

प्रेम ही मीरा प्रेम  राधा है

जिन्होंने प्रेम को साधा है

प्रेम सूर प्रेम ही तुलसी है

रामायण भी प्रेम गाथा है

जब तक प्रेम की प्यास जिंदा है

तब तक  चहकता हर परिंदा है

प्रेम  से रिक्त है  जिसका  हृदय

संतोष   वही  आज  शर्मिंदा  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – फ्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – फ्रेम ??

हरेक का हर फ्रेम

नाक़ामयाब निकला,

हर बार मेरा किरदार

आउट ऑफ फ्रेम निकला..!

© संजय भारद्वाज 

9:50 रात्रि, 8 फरवरी 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऐतबार… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने प्रवीन  ‘आफ़ताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण रचना “ऐतबार  

? ऐतबार… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆ ?

हम उन्हें अपना बनाने

      में  ही  मसरूफ रहे,

और वो, हमें गैरों में

      शुमार  करने  लगे…

 

जो थकते नहीं थे कभी,

      नाम  लेते  हमारा

देखकर हमें वो  अब

      रास्ता बदलने लगे हैं

 

ये  जमाने  का  चलन  है

      या फितरत आदमी  की,

जो भरोसेमंद होते थे कभी,

      गिरगिट से बनते जा रहे हैं…

 

ऐतबार किस पर करूं मैं

      और क्यों करूं, तू ही बता,

वो रहमोदिली का बेरहम

      सा अंज़ाम देते जा रहे हैं…!

~ प्रवीन रघुवंशी ‘आफताब’

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print