हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तथास्तु…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – तथास्तु…! ??

मांग ले जो चाहे भला

कह दूँगा मैं तथास्तु..!

जिससे कभी कुछ नहीं मिला,

उसी प्रारब्ध ने यकायक कहा..,

किसी स्लाइड शो-सा

जीवन सम्मुख घूमने लगा,

और गले से स्वर निकला,

अब तक जो भी मिला

परिश्रम से ही मिला,

अखंड कर्मरत रहने की

सदा टिकी रहे जिजीविषा..,

इतना ही कहना था, …अस्तु!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 8:42 बजे, 9.4.2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #178 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 178 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

आभार

नाम लिया है आपने,  मान रहे आभार

शब्द नहीं हैं कोश में,  करो प्रेम स्वीकार।।

ज्वार

ज्वार बाजरा खा रहे, है सेहत का राज।

ताकत अब बढ़ने लगी, बोझ न लगता काज।।

पुलकन

मन पुलकित अब हो गया, आई मेरे द्वार।

पुलकन मन की जान लो, तुम ही मेरा प्यार।।

सुकुमार

लिखा प्रकृति पर पंत ने, कवि-मन है सुकुमार

शब्द -शब्द से झाँकता, पर्यावरण अपार।।

चितवन

चितवन तेरी देखकर, मन है हुआ अधीर।

बढ़ी मिलन की प्यास है, होती मन में पीर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #165 ☆ “संतोष के दोहे… घड़े पर दोहे” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे घड़े पर दोहे. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 165 ☆

☆ “संतोष के दोहे …घड़े पर दोहे☆ श्री संतोष नेमा ☆

गर्मी आते ही मुझे, खूब चाहते लोग

प्यास बुझाता आपकी, जो करते उपयोग

मिट्टी से रुँधा गया, हूँ मिट्टी का लाल

मुझसे परहित सीखिए, खा ठोकर बन ढाल

अहम करे किस बात का, हे मूरख इंसान

मिट्टी का तन बाबरे, फिर झूठी क्यों शान

बार बार मिलती नहीं, यह मानव की  देह

कहे घड़ा शीतल रहो, करो सभी से नेह

घट-पानी सेवन करें, जो भी सज्जन लोग

मिले उन्हे “संतोष” भी, दूर भगें बहु रोग

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विस्मय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विस्मय ??

रोज़ निद्रा तजना,

रोज़ नया हो जाना,

सारा देखा-भोगा

अतीत में समाना,

शरीर छूटने का भय

सचमुच विस्मय है,

मनुष्य का देहकाल ;

अनगिनत मृत्यु और

अनेक जीवन का

अनादि समुच्चय है..!

© संजय भारद्वाज 

17 सितम्बर 2017

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 157 ☆ बाल कविता – मधुमक्खी और फूल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 157 ☆

☆ बाल कविता – मधुमक्खी और फूल ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मैं मधुमक्खी मुझको भाएँ

     खिलते हुए सुहाने फूल।

महक सूँघ कर  मैं आ जाती

       चाहे हों कितने ही शूल।।

 

एक हमारी रानी मक्खी

     इक है राजा अपना होता।

शेष सभी श्रमिक हैं मक्खी

     श्रम ,अनुशासन सपना होता।।

 

नाम हमारे कई एक हैं

     मधुप, मक्षिका और उड़ान।

माखी भी मुझको हैं कहते

        उड़ते तेज गति भर शान।।

 

एक हमारा घर होता है

        जिसको छत्ता सब कहते हैं।

अपने – अपने काम करें सब

          मिलजुल करके हम रहते हैं।।

 

अनुशासन में बँधे हुए हम

         फूलों का पराग हम लाते।

कुछ पराग हम खाकर के ही

        जीवन पथ पर बढ़ते जाते।।

 

शहद हमारा है बलदायक

       थोड़ा – थोड़ा सब ही खाओ।

तन- मन में भर जाए ऊर्जा

        जीवन में नित ही सुख पाओ।।

 

कठिन परिश्रम हम सब करते

     बच्चो! तुम वैसे ही करना।

कभी न हममें पत्थर मारो

        कभी नहीं तुम हमसे डरना।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #179 – कविता – तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय के दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य  #179 ☆

☆ तन्मय के दोहे…… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कभी हँसे, रोयें कभी, जीवन हुआ कुनैन।

भागदौड़ की जिंदगी, पलभर मिले न चैन।।

भूल रहे निज बोलियाँ, भूले निज पहचान।

नव विकास की दौड़ में, भटक गया इंसान।।

नव-विकास की दौड़ में,  मची हुई है होड़।

धर्म-कर्म जो हैं नियत, सब को पीछे छोड़।।

हो जाने पर गलतियाँ, या अनुचित संवाद।

तनिक ग्लानि होती नहीं, होता नहीं विषाद।।

प्रगतिवाद के दौर  में, संस्कृति का उपहास।

निजता पर भी आँच है, भस्मासुरी विकास।।

रहा न पानी  आँख में,  हुई निर्वसन लाज।

उच्छृंखल वातावरण,  निडर विचरते बाज।।

फूलों जैसा दिल कहाँ, पैसा हुआ दिमाग।

दिल दिमाग गाने लगे, मिल दरबारी राग।।

भीतर की बेचैनियाँ, भाव-हीन संवाद।

फीकी मुस्कानें लगें, चेहरे पर बेस्वाद।।

संबंधों  के  बीच में,  मजहब की  दीवार।

देवभूमि, इस देश में, यह कैसा व्यवहार।।

निश्छल सेवाभाव से,  मिले परम् संतोष।

मिटे ताप मन के सभी, संचित सारे दोष।।

शुभ संकल्पों की सुखद, गागर भर ले मीत।

जितना बाँटें  सहज हो,  बढ़े  सभी से प्रीत।।

कर्म अशुभ करते रहे, दुआ न आये काम।

मन की निर्मलता बिना, नहीं मिलेंगे राम।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 05 ☆ यायावर यात्राएँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “यायावर यात्राएँ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 05 ☆ यायावर यात्राएँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हर शुरुआत का

 होता है अंत कभी

 यायावर यात्राएँ

 होती हैं अंतहीन

 

धूप गाँठ में बाँधे

चल रही विरासत

कंठ में उतरती है

घूँट भर इबारत

 

भटके हैं बंजारे

चलते जो दिशाहीन।

 

शब्दों के महाजाल

अर्थवान मछली

प्यास के समुंदर में

नाच रही बिजली

 

चाँद के झरोखे से

झाँकते तमाशबीन।

 

दूध के कटोरे में

रोटी के ख़्वाब

मरे पड़े ग्रंथालय

बंद हर किताब

 

हो गया सियासत में

मुखपृष्ठ तक अधीन।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 64 ☆ ईद मुबारक!… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है ईद पर्व पर आपका एक स्नेहिल गीत – “ईद मुबारक!

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 64 ✒️

?  ईद मुबारक… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

दिल में खुशियां तो ईद होती है ।

रात ख़्वाबों में दीद होती है ।।

ईद ऐसा त्यौहार है यारो ।

जिसमें दुश्मन से प्रीत होती है ।।

आओ मिल जाएं गले आपस में ।

मीठी सेवइयों की रीत होती है ।।

पहल करता जो सलाम करने की ।

सवाब मिलता है जीत होती है ।।

हो मुबारक सभी को सलमा ईद ।

तुम सभी से ही ईद होती है ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ तज़ुर्बा… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक ☆

श्री अरविन्द मोहन नायक

(ई-अभिव्यक्ति में श्री अरविन्द मोहन नायक जी का हार्दिक स्वागत। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं टेलीकम्यूनिकेशन में स्नातक। सार्वजनिक क्षेत्रों में 37 वर्षों में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए ओएनजीसी से महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत। कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर की समितियों में वरिष्ठ पदों का सफलतापूर्वक निर्वहन। आजीवन सदस्यता – FIETE, FIEI, SMCSI, MISTD। प्रकाशित कार्य – चार काव्य संकलन, यथा – ‘प्रयास’, ‘एहसास’, ‘आरोह’ एवं ‘सफर’।  भावी योजनाएँ (सूक्ष्म संकेत) – लेखन के साथ-साथ जन जागरण और युवाओं में नई चेतना के संचार हेतु प्रयासरत। हम आपके साहित्य को अपने प्रबुद्ध पाठकों से समय -समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना ‘तजुर्बा’।)

✍ कविता ☆ तजुर्बा… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक

मामला दिल का है यारो, दिल से ही फिर बोलिए

दिमाग़ों से बढ़ती उलझन, उससे दिल मत तोलिये 

दुनियादारी, रिश्ते-नाते, बनते हैं और बिगड़ते

गर्मजोशी गर नहीं तो, और कुछ मत बोलिए

बेतकल्लुफ़ होना है बेहतर, बेमुरव्वत बस न बनें

मसले होते दिल के नाज़ुक, बाअदब ही बोलिए

ख़ामोशी है दवा ऐसी, जरूरी बातें करें

बेवजह रिश्ते बिगड़ते, बेअदब मत बोलिए

माथे पर आई शिकन एक, हाल कर देती बयां

आंखों में हो हया गर तो, इशारे से बोलिए

तजुर्बा ‘नायक’ का कहता, मूक रहना सीख लो

फ़र्क इससे बहुत पड़ता, बेअसर मत बोलिए

© श्री अरविन्द मोहन नायक 

सम्पर्क : २०३ नेपियर ग्रैंड, होम साइंस कॉलेज के समीप, नेपियर टाऊन, जबलपुर म प्र – ४८२००१

मो  +९१ ९४२८० ०७५१८ ईमेल – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 75 – गीत – ज्ञान का दीपक जलाकर… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 75 – गीत – ज्ञान का दीपक जलाकर…

ज्ञान का दीपक जलाकर,

तिमिर से हम मुक्ति पाएँ।

गीत हम सद्भावना के,

आइए मिल गुनगुनाएँ ।

 

सृजन के प्रहरी बने सब,

प्रगति की हम धुन सजाएँ।

देश में उत्साह भरकर,

नव सृजन का जश्न गाएँ।

 

सूर्य जैसा दमक सके न,

पछताना न इस बात पर।

जग मगाना सीख लेना,

लघु-दीपकों से रात-भर ।

 

खुश रहे इस देश में सब,

दर्द कोई छू न जाए।

द्वार में दीपक रखें मिल,

रूठने कोई न पाए।

 

बेबसों के अश्रु पौछें,

साथ में उनके खड़े हों।

लड़खड़ाते चल रहे जो,

दें सहारा तब बड़े हों ।

 

यदि भटक जाए पथिक तो,

मार्ग-दर्शक बन दिखाएँ।

हो सके तो मंजिलों तक,

राह निष्कंटक बनाएँ।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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