हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार्वकालीन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सार्वकालीन ??

मेरा समय

क्षुब्ध है मुझसे,

निरर्थक बिता देने से

क्रुद्ध है मुझ पर,

पर यह केवल

मेरा सत्य नहीं है,

स्वयं को कर्ता समझ कर

जब कभी इस कविता को बाँचोगे,

इसमें प्रयुक्त ‘मेरा’ को

स्वयं पर भी लागू पाओगे,

इसलिए कहता हूँ,

अपने समय का

और हर समय का

सार्वभौम यथार्थ कहती है,

कविता समकालीन होती है,

कविता सार्वकालीन रहती है!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 12:10 बजे,28.4.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 158 ☆ बाल गीत – बादल जी हैं बड़े चितेरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 158 ☆

☆ बाल गीत – बादल जी हैं बड़े चितेरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बादल जी हैं बड़े चितेरे।

आसमान में चित्र उकेरे।।

 

कहीं चलाते घोड़ा गाड़ी

कभी चलाते हल और बैल।

कभी भागते ट्रैक्टर लेकर

करते नित्य अनोखे खेल।।

 

कभी – कभी तो सूर्य को घेरें

जल्दी आकर बड़े सवेरे।।

 

शेर कभी भालू बन जाते

कभी बनें चितकबरे जिराफ।

कभी उड़ें पर्वत के ऊपर

कभी निकालें मुख से भाप।।

 

सोनी , मौनी , जॉनी खुश हैं

जादूगर बादल को  टेरे।।

 

कभी मौसमी वर्षा लाते

खूब बरसते झम – झम – झम – झम।

कभी ठंड में ठंड बढ़ाते

कभी बरसते बिल्कुल कम – कम।।

 

कभी – कभी ओले बरसाते

खूब बर्फ के लगते डेरे।।

 

काम करें वह बड़ी लगन से

बुझती है धरती की प्यास।

पौधे – पेड़ प्रफुल्लित होते

हरी – भरी हो जाती घास।।

 

बिन स्वार्थ के वह तो बरसें

सच में लगते बड़े कमेरे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #180 – बाल गीत – कष्ट हरो मजदूर के… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  बाल गीत “कष्ट हरो मजदूर के…”)

☆  तन्मय साहित्य  #180 ☆

बाल गीत – कष्ट हरो मजदूर के… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(बाल गीत संग्रह “बचपन रसगुल्लों का दोना” से एक बालगीत)

चंदा मामा दूर के

कष्ट हरो मजदूर के

दया करो इन पर भी

रोटी दे दो इनको चूर के।।

 

तेरी चाँदनी के साथी

नींद खुले में आ जाती

सुबह विदाई में तेरे

मिलकर गाते परभाती,

ये मजूर न माँगे तुझसे

लड्डू मोतीचूर के

चंदा मामा दूर के

कष्ट हरो मजदूर के।।

 

पंद्रह दिन तुम काम करो

तो पंद्रह दिन आराम करो

मामा जी इन श्रमिकों पर भी

थोड़ा कुछ तो ध्यान धरो,

भूखे पेट  न लगते अच्छे

सपने कोहिनूर के

चंदा मामा दूर के

कष्टहरो मजदूर के।।

 

सुना आपके अड्डे हैं

जगह जगह पर गड्ढे हैं

फिर भी शुभ्र चाँदनी जैसे

नरम मुलायम गद्दे हैं,

इतनी सुविधाओं में तुम

औ’ फूटे भाग मजूर के

चंदा मामा दूर के

दुख हरो मजदूर के

दया करो इन पर भी

रोटी दे दो इनको चूर के।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 05 ☆ सूरज सगा कहाँ है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूरज सगा कहाँ है।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 05 ☆ सूरज सगा कहाँ है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

घेर हमें अँधियारे बैठे

जाने कब होगा भुन्सारा

सूरज अपना सगा कहाँ है?

 

जले अधबुझे दिए लिए

अब भी चलती पगडंडी

सड़कें लील गईं खेतों को

फसल बिकी सब मंडी

 

गाँव गली आँगन चौबारा

निठुर दलिद्दर भगा कहाँ है?

 

रिश्ते गँधियाते हैं

संबंधों में धार नहीं है

मँझधारों में नैया

हाथों में पतवार नहीं है

 

डूब चुका है पुच्छल तारा

चाँद-चाँदनी पगा कहाँ है?

 

नहीं जागती हैं चौपालें

जगता है सन्नाटा

अपनेपन से ज़्यादा महँगा

हुआ दाल व आटा

 

कैसे होगा राम गुजारा

भाग अभी तक जगा कहाँ है?

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पास मेरे है ख़ज़ाने यादों के… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(ई- अभिव्यक्ति में श्री अरुण कुमार दुबे जी का हार्दिक स्वागत। संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। सम्प्रति – मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त उप पुलिस अधीक्षक। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि।  आज प्रस्तुत है  आपकी एक भाव प्रवण रचना “पास मेरे है ख़ज़ाने यादों के…“)

✍ कविता ☆ पास मेरे है ख़ज़ाने यादों के… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

कौन कहता बात है ये झूठ सच्चाई नहीं

गर्दिशों में साथ देती खुद की परछाई नहीं

 

भूलना अपने नहीं दौलत तुम्हें कितनी मिले

ज़र-जमीं से हो सकेगी इनकी भरपाई नहीं

 

दाँत खाने औ दिखाने के अलग है शाह के

आँख सच देखे कहाँ से ऐसी  बीनाई नहीं

 

दोस्ती रिश्ता बनायें जब बराबर के मिलें

वो उछलता है जरा में  जिसमें’ गहराई नहीं

 

आसरा यादें बनी है हर घड़ी है साथ जब

तू नहीं तो ज़िन्दगीं में मुझको तनहाई नहीं

 

है बुनाई इस तरह रिश्तों की रखना ध्यान ये

लग गई गर ख़ौप तो फिर इसकी तुरपाई नहीं

 

पास मेरे है ख़ज़ाने यादों के और क्या रखा

अय अरुण मैंने वसीयत अपनी’ लिखवाई नहीं

 

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 01 – पपड़ाये हैं अधर नदी के… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पपड़ाये हैं अधर नदी के…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 01 – पपड़ाये हैं अधर नदी के… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पपड़ाये हैं अधर नदी के

है व्याकुल प्यासी

 

जर्जर जीर्ण-शीर्ण दिखते हैं

झील, सरोवर, ताल

मेघ, रूठकर गये

कछारों पर छाया दुष्काल

प्रकृति कराह रही निर्वसना

बेबस अबला सी

 

नींद नहीं खुल रही

नशेड़ी पहरेदारों की

इज्जत लूट रहे आतंकी

हरित कछारों की

वृक्षावलियाँ आज हुई हैं

महलों की दासी

 

नदियों की सेवा करते थे

जो निर्झर नाले

वृक्ष हुए उद्गम से गायब

रस देने वाले

लोक घुनें हैं मूक

नहीं मुखड़े पर उल्लासी 

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 76 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे..”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 76 – मनोज के दोहे…

1 आभार

सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।

कविता तट तक जा सका,नाप सका कुछ थाह।।

2 ज्वार

ज्वार बाजरा खाइए, मिटें उदर के रोग।

न्यूट्रीशन तन को मिले, होता उत्तम भोग।।

3 सुकुमार

बाल्यकाल सुकुमार है, रखें सदा ही ख्याल।

संस्कारों की उम्र यह, होता उन्नत भाल।।

4 पुलकन

मन की पुलकन बढ़ गई, मिली खबर चितचोर।

बेटी का घर आगमन, बाजी ढोलक भोर ।।

5 चितवन

चितवन झाँकी राम की, सीता सँग घनश्याम।

आभा मुख की निरखते, हृदय बसें श्री राम।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सूत्र…(2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सूत्र…(2) ??

उदासीन हो;

उदासीनता बयान करो,

इस विषय पर

एक रचना हो सकती है,

कुछ नहीं लिखता

यह सोच कर,

जो सूत्र,

सूक्ति ना दे पाठक को

भला कविता कैसे हो सकती है?

© संजय भारद्वाज 

प्रातः 10:19 बजे, 19 अप्रैल 2020 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 137 – जोड़ लिया है कैसा नाता… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जोड़ लिया है कैसा नाता…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 137 – जोड़ लिया है कैसा नाता…  ✍

जोड़ लिया है कैसा जाता

इधर उधर जब हो जाती तो

जाने कैसा मन घबराता।

जनम जनम के प्यासे मन को

पनघट का आधार मिला

जिसे सदा दुत्कार मिली हो

उसको गहरा प्यार मिला

क्या जानूँ तुम किन जन्मों की

पत्नी, प्रेयसी या माता।

सुबह शाम या सोते जगते

नयनों में छवि उतराती

तुम जीवन की चटक चाँदनी

हो मेरी पुण्य प्रभाती।

शक्ति भक्ति आसक्ति तुम्हीं हो

नींद तुम्हीं तुम जगराता।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 136 – “उलझ गई संध्या फिर…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  उलझ गई संध्या फिर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 136 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

उलझ गई संध्या फिर ☆

खेत गुनगुनाते हैं सटे हुये

गैल के

टिप्पणियाँ व विचार

सुनते अप्रैल के

 

पलपल हैं बाँट रहे

सुषमा भिनसार से

फसल कटी, दिखे ठूँठ

बासी अखवार से

 

रोचक हैं सब पदान्त

मुस्काते छन्दों के

बजती हैं  घंटियाँ

गले बँधी बैल के

 

बहुत सरसराहट है हवा

की तरोताजा

भूल गये आज कहीं

यही गली महाराजा

 

समय के चितेरे कुछ

उड़े फड़फड़ा पाँखें

लौट नहीं पाया सच

उनकी खपरैल से

 

छाती में इंतजार का

छँटना तय लेकर

देहरी की ओट चमक

जाते हैं नथ बेसर

 

दुलहिने दिशाओं की

दबे छिपे बतियातीं

उलझ गई संध्या फिर

बालों में छैल के

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-04-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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