हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ हरकारा ☆ श्री राकेश कुमार

श्री राकेश कुमार

(ई- अभिव्यक्ति में श्री राकेश कुमार जी का स्वागत है। भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”

आज प्रस्तुत है स्मृतियों के झरोखे से संस्मरणों की कड़ी में पहला संस्मरण – “हरकारा”.)   

☆ संस्मरण ☆ हरकारा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

(इतिहास के झरोखों से)

हमारे जीवन काल में अनेकों किरदार आए जिनकी वज़ह से हम अपना जीवन अच्छे से निर्वाह कर सके और आगे भी करते रहेंगे।

एक किरदार जोकि अब विलुप्त होने की कगार पर है, जिसने हमारे जीवन की खुशियाँ और गम परोसने में सर्दी, गर्मी और वर्षा की परवाह कभी भी नहीं की, वरन आंधी और तूफानों  में भी हमारी सेवा करता रहा। जी हाँ  जिसका हम रोज़ इंतजार करते थे। “पोस्टमैन” बचपन में जब घर में Door Bell की परंपरा नहीं थी या यूँ  कह लें  कि ये सब उस जमाने में रईसों के चोचले  होते थे।

दरवाज़े की सांखल / चिटकनी की आवाज़ आती थी तो भागकर पोस्टमेन  से संबंधियों के आए हुए पोस्टकार्ड पढ़ते हुए अम्माजी के हवाले कर देते थे। पिताश्री तब संध्या काल में घर पर आकर भी पूछते थे- क्या किसी की कोई चिट्ठी आई है क्या ?

इसके पीछे एक कारण ये भी था कि  हमारे परिवार के अधिकतर लोग देश के विभिन्न शहरों में बसे हुए थे।  1947 के बँटवारे  के भुक्तभोगी जो थे।

जब दीपावली और होली पर 2 रुपए का “इनाम” देने के बाद भी उसको ये सुना देते थे कि आजकल चिट्ठियां आने में अधिक समय लगने लगा है। तुम लोग काम ठीक से नहीं करते क्या ? वो भी मुस्कराते हुए चला जाता था समझता था की मेरे ऊपर एहसान कर रहे है।

बैंक की लिखित परीक्षा का परिणाम देते हुए हमारे पोस्टमैन भैया बोले थे कि” इस बार नौकरी लग जाएगी” तो हमारी दादी ने तुरंत उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था “तुम्हारे मुंह में घी शक्कर” तो वो भी बोला था इस बार बिना मिठाई के नहीं मानूंगा। शायद उसकी दुआ ही रही होगी की हमने बैंक की नौकरी से अपना जीवन यापन किया।

समय बदला इंटरनेट, मोबाइल संचार के नए-नए साधन आ गए। परंतु, हरकारों  की उपयोगिता आज भी कम नहीं हुई है। निजी क्षेत्र में कूरियर सेवा भी तीन दशक से अधिक समय से कार्यरत है परंतु अभी भी गोपनीयता की दृष्टि से पोस्ट सेवा ही विश्वसनीय है।

वर्ष 2007 में हमारे बैंक ने एक Pilot Project के अंतर्गत India Post के साथ एक करार किया था तो, पोस्ट ऑफिस की कार्य प्राणली को और अधिक नज़दीक से जानने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ कार्यरत कर्मचारी बहुत ही विषम परिस्थितियों में कार्य करते है। हालांकि बाद में वो करार भंग हो गया था।

भारतीय सिनेमा ने भी अपनी फिल्मों के माध्यम से पोस्टमैन के रोल का बखूबी चित्रण किया और अनेक फिल्मों में पोस्टमैन द्वारा समाज के प्रति निभाई जा रही जिम्मेवारी को जनसाधारण तक पहुंचाया।

बदलते हुए सामाजिक ढांचे ने पोस्टमैनों में भी कहीं कहीं लालच की बुराई भर दी है।

Black Sheep हर वर्ग में पाए जाते है।

हमारे युग में उनका योगदान सरहनीय है और हम सब उनके कृतज्ञ है। इसी प्रकार के कई अन्य किरदार भी है फिर कभी चर्चा करेंगे।

 

© श्री राकेश कुमार 

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव,निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – संस्मरण ☆ मी प्रभा… रत्नागिरीचा रम्य परिसर – लेखांक#2☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

? आत्मकथन ?

☆ मी प्रभा… रत्नागिरीचा रम्य परिसर – लेखांक#2☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

अकरावी पास झाल्यावर मी शिरूरला सी.टी.बोरा काॅलेजला प्रवेश घेतला. राणी गायकवाड आणि मी अगदी सख्ख्या मैत्रिणी ! काॅलेजमधे मी आर्टसला गेले तर ती काॅमर्सला! काॅलेजमध्ये प्रवेश घ्यायच्या आधीच तिचं माझं किरकोळ कारणांवरून भांडण झालं. आम्ही शाळेत असताना काॅलेजमधला एक मुलगा आमच्या मागं लागलाय, असं राणीच्या भावाला कुणीतरी सांगितलं. मग त्यानं त्याला बरीच मारहाण केली होती. आम्ही काॅलेजमधे गेल्यावर तो मुलगा आमच्या दोघींशी बोलू इच्छित होता, पण आम्ही त्याच्याशी बोललो नाही. पण एक दिवस तो मला लायब्ररीत भेटला आणि काही पुस्तकं वाचायला दिली. मी त्याच्याशी बोलू लागले, तो मला म्हणाला, “राणीने मला मार बसवला, मी तिचा बदला घेणार आहे “! त्या काळात मी राणीशी बोलत नव्हते, आमची मैत्री तुटली याचा काहीजणांना आनंद झाला होता. पण दिवाळीच्या आधी आम्ही बोलू लागलो. आमची मैत्रीण संजू कळसकरनी आमच्यात समझौता घडवून आणला! दुस-या दिवशी आम्ही दोघी काॅलेजमधे बरोबर गेलो, राणी म्हणाली ‘चल आपण त्याला सांगू ‘ आम्ही बोलायला लागलो, तर तो आमच्याशी भांडायला लागला, आणि म्हटला, “तुम्ही दोघी माझ्या घरी चला”. राणी म्हणाली मी नाही येणार आणि ती घरी निघून गेली. पण मी गेले त्याच्या घरी ,मला त्यात काही  अनैतिक वाटले नाही. खरोखर ते  फक्त एक भांडण होते,पण संशयास्पद वातावरण निर्माण झाले एवढे नक्कीच.  तो खूपच चिडलेला होता, पण तो माझ्याशी काही गैरवर्तन  करेल असं मला मुळीच वाटलं नाही. त्याची आई म्हणाली जेऊन जा, त्याची बहीण एक वर्ष आमच्या वर्गात होती तिनं ताट वाढलं, तेवढ्यात तिथे पवारांचा नोकर मला न्यायला आला. कारण अशी अफवा पसरली की मी त्या मुलाबरोबर पळून गेले! तो मुलगा त्या अर्थाने मला कधीच आवडला नव्हता. त्याच्याबद्दल माझ्या मनात प्रेम, आकर्षण मुळीच नव्हतं, राणीलातरी तो कधी काळी आवडला होता. एकदा आम्ही “होली आयी रे” सिनेमा पहायला गेलो, तेव्हा ती प्रेमेन्द्रला पाहून  म्हणाली होती, “हा त्या पोरासारखाच दिसतो ना,तो आवडतो मला “! जो मुलगा मला कधीच आवडला नव्हता त्याच्याबरोबर पळून गेल्याच्या अफवेमुळे मला काॅलेज सोडावं लागलं. मला काहीच न विचारता माझे आईवडील मला गावाला घेऊन गेले आणि मी स्वतःला निर्दोष शाबित करू शकले नाही. दिवाळीच्या सुट्टीत आजोळी गेल्यावर या विषयावर चर्चा झाली. काका म्हणाले “काॅलेजमधे अशा गोष्टी होणारच!” पण माझ्यासमोर कोणी बोलत नव्हतं ,माझी मानसिकता जाणून घ्यायचा कोणी प्रयत्न केला नाही, माझं “लव अफेअर” असल्याचं गृहित धरलं होतं जणू ! मला त्या गोष्टीचा प्रचंड मानसिक त्रास झाला. 

माझी आई म्हणाली ‘ तू काही दिवस इथे रहा.’ माझी मावशी त्या काळात रत्नागिरीला रहात होती. थोडे दिवस आजीआजोबांकडे राहिल्यानंतर मी मावशीकडे रत्नागिरीला गेले !

रत्नागिरी हे मला आवडलेलं नितांत सुंदर शहर. तिथे मला अंजू पिंगळे नावाची मैत्रीण मिळाली.  काका एसटीमध्ये ऑफिसर होते आणि एसटीच्या ऑफिसर्स क्वार्टर्समध्ये रहात होते. मावशीचा फ्लॅट खूपच सुंदर होता आणि तिनं तो ठेवलाही खूप सुंदर होता !

त्याच बिल्डींग मध्ये रहाणा-या ठाकुरकाकींची मैत्रीण लेखिका कुसुम अभ्यंकर होत्या. त्या एकदा मला भेटल्या. मी त्यांच्या वाचलेल्या कादंब-यांची नावं सांगितली, त्या माझ्याशी खुप छान बोलल्या !

मावशी आणि तिच्या  मैत्रीणींबरोबर मी हेदवी, गुहागर, आणि आजूबाजूच्या ब-याच ठिकाणच्या सहली केल्या.  रत्नागिरी मला इतकं आवडलं होतं की मला आयुष्यभर रत्नागिरीत रहायला आवडलं असतं ! खूपच निसर्गरम्य परिसर आहे. वाईटातून काही चांगले घडत होते, काळजावरचे चरे नंतरच्या काळात  कवितेत उतरले !

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ विजय दिवस विशेष – अंखियों के झरोखों से ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है  एक संस्मरण  ‘अंखियों के झरोखों से’ )  

☆ विजय दिवस विशेष –  अंखियों के झरोखों से ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

सन् 1971 भारत-पाक युद्ध। 16 दिसंबर स्वर्णिम विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे जवानों ने जबरदस्त साहस दिखाया था, दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे,93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने तिरंगे के सामने आत्मसमर्पण किया था। जनरल नियाजी के साथ 8 पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों को संस्कारधानी के सीएमएम में युद्धबंदी के रूप में रखा गया था।
शत्रु सेना के आत्मसमर्पण के बाद इन अधिकारियों को रखने के लिए जबलपुर को सबसे उपयुक्त और सुरक्षित माना गया था।सीएमएम में लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी के साथ मेजर जनरल मुहम्मद हुसैन,मेजर जनरल हुसैन शाह,मेजर जनरल राव फरमान अली,मेजर जनरल मुहम्मद जमशेद,मेजर जनरल काजी अब्दुल मजीद खान,रियर एडमिरल मुहम्मद शरीफ ,एयर कमांडर इनामुलहक को विशेष सुरक्षा में रखा गया था।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ #88 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में (भोपाल एवं जबलपुर)–4 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है.

श्री अरुण डनायक जी ने महात्मा गाँधी जी की मध्यप्रदेश यात्रा पर आलेख की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार की है। आप प्रत्येक सप्ताह बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में  के अंतर्गत महात्मा गाँधी जी  की यात्रा की जानकारियां आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ आलेख #88 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में (भोपाल एवं जबलपुर) – 4 ☆ 

गांधीजी का मध्यप्रदेश में छठवीं बार आगमन 1933 में हुआ और इस दौरान वे बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, बैतूल,इटारसी  सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, मंडला , सोहागपुर,  बाबई, हरदा, खंडवा गए। गांधीजी ने 28 नवंबर 1933 से शुरू किए अपने इस दौरे में कुल सत्रह दिन मध्य प्रदेश में बिताए। इस हरिजन दौरे के दौरान उन्होंने  अस्पृश्यता निर्मूलन और जातिगत ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करने पर बल दिया।  उनके दमोह और सागर दौरे की कुछ झलकियां निम्न हैं:-     

गांधीजी का दमोह  आगमन – महात्मा गांधी रेहली तथा गढाकोटा होते हुए 2 दिसंबर,1933 को क्षेत्र के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी पंडित जगन्नाथ प्रसाद पटैरिया शेवरले कार से दमोह पहुंचे। चुंगी नाके पर उनका स्वागत किया गया तथा उन्हें एक विशाल जूलूस में मुख्य बाजार ले जाया गया। दमोह में उनका अभूतपूर्व स्वागत किया गया, उनके सिर पर छत्र रखा गया, सड़कों पर अभ्रक डाला गया और पूरे रास्ते उन पर पुष्पवर्षा की गई। गांधीजी ने वर्तमान गांधी चौक  में एक विशाल सभा को संबोधित किया,जहाँ झुन्नी लाल वर्मा द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। अन्य स्थानों की भांति यहां भी उन्हें थैलियां भेंट की गयी। इस अवसर पर दमोह की यह विशेषता रही कि यहां ईसाईयों ने भी, जिनमें अंग्रेज भी शामिल थे, थैली प्रदान करी। इससे गांधीजी अत्यंत प्रसन्न हुये। बाद में उन्होंने हरिजनों के लिए एक बाल्मीकि गुरुद्वारे का भूमिपूजन किया था। इधर दमोह में आज जहां टोपी लेन है, वहां सैकड़ों टेलर मास्टर जमा थे। लोग गांधी टोपियां सिला रहे थे।

सागर :-  “संसार के सर्वश्रेष्ठ महान पुरुष,त्यागी महात्मा गांधी का हृदय से स्वागत कीजिए” यह पंक्तियां उस आमंत्रण पत्र  का हिस्सा हैं जो 1, 2 व 3 दिसंबर,1933 को बापू के सागर जिले के विभिन्न स्थानों के  दौरे के लिए छापा गया था। बापू का कार्यक्रम मूलतः आज के देवरी विधानसभा क्षेत्र में स्थित अनंतपुरा गांव जाने के लिए बना था, जहां उन्हें एक नवयुवक जेठालाल द्वारा संचालित  ‘खादी निवास’ नामक बुनकरों की बस्ती में चल रहे काम का निरीक्षण करना था। गांधीजी  नरसिंहपुर जिले के करेली रेलवे स्टेशन पर 1 दिसंबर 1933 उतरे और  करेली और बरमान के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हुए वे कार से देवरी पहुंचे थे, जहां दलितों के बीच उन्होंने आधा घंटा बिताया और मुरलीधर मंदिर के कपाट हरिजनों के लिए खुलवा  दिए। इसके बाद वे  अनंतपुरा ग्राम में पूरा दिन और पूरी रात रुके। बाद में गांधीजी ने ‘अनंतपुरा में मैंने क्या देखा’ प्रसंशात्मक  लेख लिखा, जो 15 दिसंबर 1933 के हरिजन में छपा।  

गांधी का आगमन सागर के लिए बड़ी घटना थी। यहाँ भी उन्होंने कोरी समाज के मंदिर की नींव रखी। दलितों को जहां मंदिर प्रवेश में दिक्कतें थीं तो उनके खुद के पूजास्थल बनवाना भी उस समय क्रांतिकारी कदम था। गांधीजी ने  गल्लामंडी प्रांगण की आमसभा को संबोधित किया और फिर इसी कार्यक्रम में गांधी अपने उपयोग की चीजें भी नीलाम कर हरिजन आंदोलन के लिए धन एकत्रित किया। बहुतों ने सामान खरीदा। कइयों ने सामान लिए बिना भी अपने गहने और रूपये गांधी जी को दे दिए।

गांधी यात्रा के कुछ संस्मरण :-      

(i) गांधीजी  जब रायपुर से बिलासपुर जा रहे थे तो रास्ते में एक वृद्धा मोटर के सामने खडी हो गयी और बोली की मरने के पहले वह गांधीजी के चरण धोकर पुष्प चढ़ाना  चाहती है। गांधीजी ने हंसकर कहा कि इसके लिए वे एक रुपया लेंगे। वृद्धा के पास रुपया न था वह बोली मैं घर जाकर देखती हूँ शायद कुछ मिल जाय। आसपास खड़े लोगों ने उसे रुपया देना चाहा पर वह इसके लिए तैयार न हुई, गांधीजी ने भी हँसते हुए अपने चरण आगे बढ़ा वृद्धा की इच्छा पूरी की। बिलासपुर में गांधीजी की विशाल सभा शनिश्चरा पड़ाव पर हुयी। सभा की समाप्ति पर लोग चबूतरे की ईंट, पत्थर और  मिटटी तक घर ले गए.

(ii)  गांधीजी के बैतूल से इटारसी जा रहे थे। एक छोटे से स्टेशन ढोढरा पर रेल गाडी रुकी, बाहर अपार जनसमूह महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहा था। दीनता और गरीबी इतनी की आम जन के पास ठीक से तन ढकने को कपडे तक न थे। गांधीजी डिब्बे से बाहर आये, मनकीबाई नामक महिला ने उन्हे माला अर्पित की और गांधीजी को कुछ सिक्के यह कहते हुए दिए कि उसने गांव  वालों से एक एक पैसा मांगकर एकत्रित किया है। गांधीजी ने इसे दरिद्रनारायण का प्रसाद मानते हुए ग्रहण किया.

क्रमशः….

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण # 115 ☆ एक रिकवरी ऐसी भी ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय व्यंग्य  ‘एक रिकवरी ऐसी भी…!’ )  

☆ संस्मरण # 115 ☆ एक रिकवरी ऐसी भी ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

बैंकों में बढ़ते एनपीए जैसे समाचार पढ़ते हुए उस ईमानदार मृतात्मा की याद आ गई, जिसने अपने बेटे को सपना देकर अपने पुराने लोन को पटाने हेतु प्रेरणा दी। 

किसी ने ठीक ही कहा है कि कर्ज, फर्ज और मर्ज को कभी नहीं भूलना चाहिए, लेकिन इस आदर्श वाक्य को लोग पढ़कर टाल देते है। कर्ज लेते समय तो उनका व्यवहार अत्यंत मृदु होता है, लेकिन मतलब निकलने के बाद वे नजरें चुराने लगते है, कई ऐसे लोग है जो बैंक से काफी लोन लेकर उसे पचा जाते है, लेकिन ऐसे भी लोगों की कमी नहीं जो कर्ज, फर्ज और मर्ज का बराबर ख्याल रखते है। 

नारायणगंज (मंडला) एरिया के एक कर्जदार ने अपनी मृत्यु के बाद भी बैंक से लिए कर्ज को चुकाने सपने में अपने परिजन को प्रेरित किया जिससे उसके द्वारा २० साल पहले लिया कर्ज पट गया। जब लोगों को इस बात का पता चला तो लोगों ने दातों तले उगलियाँ दबा कर हतप्रद रह गए।

बात सोलह साल पुरानी है जब हम स्टेट बैंक नारायणगंज (म.प्र.) में शाखा प्रबन्धक के रूप में पदस्थ थे। इस मामले का खुलासा करने में हमें भी तनिक हिचक और आश्चर्य के साथ सहज रूप से विश्वास नहीं हो रहा था।  इसीलिए हमने कुछ अपनों को यह बात बताई, साथ ही अपनों को यह भी सलाह दी कि ”किसी से बताना नहीं ….. पर कुछ दिन पहले एक रिकवरी ऐसी भी आई।……..यह बात फैलते – फैलते खबरनबीसों तक पहुच गई, फिर इस बात को खबर बनाकर स्थानीय संवाददाता ने  खबर को प्रमुखता से अपने पत्र में प्रकाशित करवा दिया। खबर यह थी कि २० साल पहले एक ग्राहक ने बैंक से कर्ज लिया था, लेकिन कर्ज चुकाने के पहले ही वह परलोक सिधार गया …………। उसके बेटे ने एक दिन बैंक में आकर अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज की जानकारी ली, बेटे ने  बताया कि उसके पिता बार-बार सपने में आते है और बार-बार यही कहते है कि बेटा बैंक का कर्ज चुका दो, पहले तो शाखा के स्टाफ को आश्चर्य हुआ और बात पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन उसके बेटे के चेहरे पर उभर आई चिंता और उसके संवेदनशील मन  पर गौर करते हुए अपलेखित खातों की सूची में उसके पिता का नाम मिल ही गया,उसकी बात पर कुछ यकीन भी हुआ, फिर उसने बताया कि पिता जी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी, पर कुछ दिनों से हर रात को पिता जी सपने में आकर पूछते है की कर्ज का क्या हुआ? और मेरी नींद खुल जाती है फिर सो नहीं पता, लगातार २० दिनों से नहीं सो पाया हूँ, आज किसी भी हालत में पिता जी का कर्ज चुका कर ही घर जाना हो पायेगा। अधिक नहीं मात्र १६,५००/ का हिसाब ब्याज सहित बना, उसने हँसते -हँसते चुकाया और बोला – आज तो सच में गंगा नहाए जैसा लग रहा है।

अगले दो-तीन दिनों तक उसकी खोज -खबर ली गई उसने बताया की कर्ज चुकने के बाद पिता जी बिलकुल भी नहीं दिखे, उस दिन से उसे खूब नीदं आ रही है। जिन लोगों ने इस बात को सुना उन्हें भले इस खबर पर अंधविश्वास की बू आयी है, पर उस पवित्र आत्मा की प्रेरणा से जहाँ बैंक की वसूली हो गई वहीँ एक पुत्र पितृ-लोन से मुक्त हो गया,इस खबर को तमाम जगहों पढ़ा गया और हो सकता है कि  कई दूर-दराज शाखाओं की पुरानी अपलेखित खातों में इस खबर से वसूली हुई हो। पर ये सच है कि पहले के जमाने में स्टेट बैंक  का ग्राहक होना गर्व और इज्जत का विषय होता था। तभी तो लोग कहते थे कि स्टेट बैंक में ऐसे ईमानदार कर्जदार भी होते थे जो मरकर भी अपने कर्ज को चुकवाते हुए बैंक की वसूली का माहौल भी बनाते थे…… 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ #87 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में (भोपाल एवं जबलपुर) – 3 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है.

श्री अरुण डनायक जी ने महात्मा गाँधी जी की मध्यप्रदेश यात्रा पर आलेख की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार की है। आप प्रत्येक सप्ताह बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में  के अंतर्गत महात्मा गाँधी जी  की यात्रा की जानकारियां आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ आलेख #87 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में (भोपाल एवं जबलपुर) – 3 ☆ 

भोपाल :- वर्तमान मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गांधीजी अपने तीन दिवसीय प्रवास पर  सितंबर 1929 में रियासत के नवाब हमीदुल्ला खान के आमंत्रण पर पधारे। भोपाल में एक आमसभा बेनज़ीर मैदान में आयोजित की गई और यहां  गांधीजी का सावर्जनिक अभिनंदन किया गया। गांधीजी नवाब की सादगी भारी जीवन शैली से प्रभावित हुए और इसकी प्रसंशा उन्होंने आम सभा में भी की।  गांधीजी ने अपने भाषण में कहा कि “ देशी लोग भी यदि पूरी तरह प्रयत्नशील हों तो देश में रामराज्य की स्थापना की जा सकती है।  रामराज्य का अर्थ हिन्दू राज्य नहीं वरन यह ईश्वर का राज्य है। मेरे लिए राम और रहीम में कोई अंतर नहीं है। मैं सत्य और अहिंसा से परे किसी ईश्वर को नहीं जानता। मेरे आदर्श राम की हस्ती इतिहास में हो या न हो, मुझे इसकी परवाह नहीं। मेरे लिए यही काफी है कि हमारे  रामराज्य का प्राचीन आदर्श शुद्धतम  प्रजातन्त्र का आदर्श है। उस प्रजातन्त्र में गरीब से गरीब रैयत को भी शीघ्र और बिना किसी व्यय के न्याय मिल सकता था। “

गांधीजी ने यहां  भी अस्पृश्यता निवारण की अपील की और हिन्दू मुस्लिम एकता पर जोर दिया और अजमल जामिया कोष  के लिए लोगों से चन्दा देने की अपील की। गांधीजी को भोपाल की जनता ने खादी के कार्य के लिए रुपये 1035/- की थैली भेंट की। उन्होंने मारवाड़ी रोड स्थित खादी भंडार का अवलोकन किया।

उसी दिन 11 सितंबर 1929  की शाम को राहत मंजिल प्रांगण में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन हुआ और इसमें भोपाल के नवाब अपने अधिकारियों के साथ न केवल सम्मिलित हुए वरन फर्श पर  घुटने टेक कर प्रार्थना सुनते रहे। गांधीजी ने लौटते समय सांची के बौद्ध स्तूप देखने गए और वहां से आगरा चले गए.

जबलपुर :- महाकौशल के सबसे बड़े नगर, मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर, देश के उन  चंद शहरों में शामिल है, जिसे गांधीजी का स्वागत करने का अवसर चार बार मिला। गांधीजी पहली बार जबलपुर 21 मार्च 1921 को पधारे। जबलपुर से उन्हे कलकत्ता जाना था और उस दिन सोमवार था , गांधीजी का पवित्र दिन यानि  मौन व्रत, इसीलिए कोई आमसभा तो नहीं हुई पर उन्होंने सी एफ एंड्रयूज़ को जो पत्र लिखा उसमें मद्यपान और सादगी से रहने की उनकी सलाह पर लोगों के द्वारा अमल किए जाने की बात कही। गांधीजी का प्रभाव था कि  लोग मद्य व अफीम के व्यापार को समाप्त कर देना चाहते थे पर सरकार उनके इन प्रयासों को विफल करने में लगी थी ऐसा उल्लेख इस पत्र में उन्होंने किया। इस दौरान गांधीजी के साथ उनकी नई शिष्या मीरा बहन भी आई थी और वे खजांची चौक स्थित श्याम सुंदर दास भार्गव की कोठी में ठहरे थे.

दूसरी बार गांधीजी देश व्यापी हरिजन दौरे के समय,  सागर से रेल मार्ग से कटनी और फिर सड़क मार्ग से स्लीमनाबाद, सिहोरा, गोसलपुर, पनागर होते हुए, जहां आम जनता ने जगह जगह उनका भव्य स्वागत किया, जबलपुर दिनांक 03 दिसंबर 1933 को पधारे और साठियां कुआं स्थित व्योहार राजेन्द्र सिंह के घर ठहरे। जब गांधीजी का मोटर काफिला जबलपुर पहुंचा तो रास्ते में भारी भीड़ उनके दर्शन के लिए जमा थी और इस कारण गांधीजी को निवास स्थल तक पहुंचने  के लिए मोटरकार से उतरकर कुछ दूर पैदल चलना पड़ा था। यहां उनके अनेक कार्यक्रम हुए। शाम को  गोलबाज़ार के मैदान में आयोजित एक आमसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘यदि ऊंच नीच के  भेद को समूल नष्ट कर देने का यह प्रयत्न सफल हो जाता है तो जीवन के सभी क्षेत्रों में इसकी स्वस्थ प्रतिक्रिया होगी और पूंजी व श्रम के बीच की लड़ाई खत्म हो जाएगी और इसके स्थान पर दोनों में सहयोग और एकता स्थापित हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यदि हम  हिन्दू धर्म से अस्पृश्यता समाप्त करने में सफल हो जाते हैं तो आज भारत में हम जो वर्गों और संप्रदायों के बीच लड़ाई देख रहे हैं वह खत्म हो जाएगी। हिन्दू और मुसलमान के बीच तथा पूंजी और श्रम के बीच का मतभेद समाप्त हो जाएगा।‘ धार्मिक आंदोलनों की विवेचना करते हुए गांधीजी ने कहा कि ‘धार्मिक आंदोलनों की विशेषता यही है कि आने वाली सारी बाधाएं  ईश्वर की कृपा  से दूर हो जाती हैं।‘  गांधीजी को नगर की अनेक सार्वजनिक संस्थाओं और नेशनल ब्वायज स्काउट ने अभिनंदन पत्र भेंट किया और गांधीजी ने सभी सच्चे स्काऊटों को आशीर्वाद दिया। 4 दिसंबर को गांधीजी का पवित्र दिन मौन दिवस था इस दिन उन्होंने अपने अनेक साथियों को पत्र लिखे। लगातार दौरे के कारण गांधीजी को कमजोरी महसूस हो रही थी अत:  उनके चिकित्सक डाक्टर अंसारी द्वारा विश्राम की सलाह दी गई और हरिजन दौरे के आयोजकों को परामर्श दिया गया कि आगे के दौरों में एक दिन में अधिकतम चार घंटे का ही कार्यक्रम रखा जाए, बाकी समय आराम के लिए छोड़ दिया जाए। जबलपुर के गुजराती समाज ने गांधीजी के हरिजन कोष  हेतु रुपये छह हजार का दान दिया।

06 दिसंबर 1933 को गांधीजी ने मंडला में एक सभा को संबोधित  करते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि आप अपने  विश्वास पर तो सच्चे रहें और यदि इस मामले में (अस्पृश्यता के लिए) आप मुझसे सहमत नहीं हैं तो मुझे ठुकरा दें। ‘ लौटते समय वे नारायांगंज में रुके भाषण दिया, एक हरिजन के निवास पर भी गए। (ऐसा उल्लेख मेरे मित्र जय प्रकाश पांडे ने अपनी एक कहानी में किया है।)

07 दिसंबर 1933 को अपने जबलपुर प्रवास के अंतिम दिन गांधीजी ने हितकारिणी हाई स्कूल में आयोजित महिलाओं की सभा को संबोधित किया। इसके बाद गांधीजी खादी भंडार, और वहां से जवाहरगंज और गोरखपुर गए, गलगला में हरिजनों की सभा को संबोधित किया  और सदर बाजार स्थित दो मंदिरों के द्वार  हरिजन प्रवेश हेतु खुलवाए।  गांधीजी ने लिओनार्ड थिओलाजिकल कालेज में एक सभा को संबोधित किया और कहा कि ‘मैं संसार के महान धर्मों की समानता में विश्वास करता हूं और मैंने शुरू से ही दूसरे धर्मों को अपना धर्म समझना सीखा है, इसीलिए इस आंदोलन में (अस्पृश्यता के लिए)  शामिल होने के लिए दूसरे धर्मों के अनुयाईओं को आमंत्रित करने और उनका सहयोग लेने में कोई कठिनाई नहीं है। ‘ गांधीजी ने उपस्थित लोगों से अपील की कि वे हरिजन सेवक संघ के माध्यम से हरिजनों की सेवा करें और यदि वे उनका धर्म परिवर्तन कर उन्हे ईसाई बनाएंगे तो अस्पृश्यता निवारण के लक्ष्य में हम लोग  असफल हो जाएंगे।  उन्होंने ईसाइयों से कहा कि यदि आपके मन में यह विश्वास है कि हिन्दू धर्म ईश्वर की देन  न होकर शैतान की देन  है तो आप हमारी मदद नहीं कर सकते  और मैं ईमानदारी से आपकी मदद की आकांक्षा भी नहीं कर सकता।‘        

इस दौरे के बाद आठ वर्षों तक उनका जबलपुर प्रवास नहीं हुआ और 27 फरवरी 1941 को इलाहाबाद में कमला नेहरू स्मृति चिकित्सालय का उद्घाटन करने जाते समय वे अल्प काल के लिए जबलपुर में रुके और भेड़ाघाट के भ्रमण पर गए।

अगले वर्ष 1942 पुन: उनका जबलपुर में अल्प प्रवास हुआ और मदनमहल स्थित द्वारका प्रसाद मिश्रा के घर पर रुककर उन्होंने स्थानीय काँग्रेसियों से व्यापक विचार विमर्श किया। उनके आगमन की तिथि पर कुछ मतभेद हैं। कुछ स्थानों पर इस तिथि को 27 अप्रैल 1942 बताया गया है। इस दौरान अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक इलाहाबाद में हुई थी पर गांधीजी उस बैठक में स्वयं शामिल नहीं हुए थे।  उन्होंने इस बैठक में अपने विचार एक पत्र के माध्यम से मीरा बहन के माध्यम से भिजवाए थे। बाद में वे 9 अगस्त 1942 से 06 मई 1944 तक आगा खान पैलेस में नजरबंद रहे। गांधीजी 20 जनवरी 1942 को वर्धा से बनारस गए थे संभवतया इसी दौरान वे जबलपुर अल्प समय के लिए रुके होंगे.

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ याद गली से…. आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई के 50 साल ☆ श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

श्री अजीत सिंह

(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं।  इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है  आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आपका एक अविस्मरणीय संस्मरण  ‘याद गली से…. आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई के 50 साल । हम आपसे आपके अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)

☆ संस्मरण  ☆ याद गली से…. आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई के 50 साल ☆  

1970 का दशक वह समय था जब रेडियो समाचारों का सबसे विश्वसनीय लोकप्रिय माध्यम था।

1971 में पाकिस्तान के साथ 3 दिसंबर को युद्ध शुरू हो गया था और उसी समय फैसला लिया गया कि तुरंत जम्मू स्टेशन से स्थानीय समाचारों का बुलेटिन शुरू किया जाए जो पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जवाब देते हुए सही सच्ची खबरें जनता तक उन्ही की अपनी डोगरी भाषा में पहुंचाए। जाने माने डोगरी लेखक व पत्रकार ठाकुर पूंछी दिल्ली से आए और 6 दिसंबर को पहला बुलेटिन प्रसारित कर दिया। इस बुलेटिन के संपादक, संवाददाता व समाचार वाचक सब कुछ ठाकुर पूंछी ही थे।

दिन बीते तो सुविधाएं और साधन भी बढ़े।

हर्ष का विषय है कि आकाशवाणी जम्मू की क्षेत्रीय समाचार इकाई ने अपने अस्तित्व के 50 गौरवशाली वर्ष पूरे कर लिए हैं और मैं लगभग 20 वर्षों तक इसका हिस्सा रहा हूं।

ठाकुर पूंछी के बाद एक और साहित्यकार डी.आर. किरण कश्मीरी आए। फिर  ए एन कोकारिया और अशोक हांडू ने आने वाले वर्षों में समाचार इकाई की कमान संभाली।

पूर्व आर्मी कैप्टन पी जे एस त्रेहन पहले संवाददाता बने और उनके बाद जून 1979 में मैंने संवाददाता का कार्यभार संभाला। अलबेल सिंह ग्रेवाल उस समय स्टेशन डायरेक्टर थे।

लज्जा मन्हास, नरेंद्र भसीन व जोगिंदर पल सराफ उर्फ छतरपाल तीन नियमित न्यूजरीडर थे। आकस्मिक समाचार वाचकों का एक पैनल भी था। कुछ समय बाद दिल्ली से पहले सुदर्शन पराशर व फिर चंचल भसीन भी न्यूज रीडर के तौर पर आए।

हमने सप्ताह में दो बार क्षेत्रीय समाचार समीक्षा भी शुरू की जिसका आलेख स्थानीय पत्रकार लिखते थे।

पीएल गुप्ता, रतन अत्री और राजेश टिकू हमारे बेहद कुशल स्टेनोग्राफर थे ।

हमने साप्ताहिक न्यूज़रील कार्यक्रम भी शुरू किया ।  इसके लिए सीएल शर्मा, रचना विनोद, सुभाष शर्मा और राजेंद्र गुप्ता मेरे साथी थे ।

मुझे सभी मतगणना केंद्रों से टेलीफोन हॉटलाइन के साथ चुनाव परिणामों की लाइव कवरेज भी याद है ।  उस समय फैयाज शहरयार स्टेशन डायरेक्टर थे ।  वे बाद में ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक बने और हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं ।

ये सभी लोग अत्यधिक प्रतिभाशाली थे और उन्होंने रेडियो कार्यक्रमों व समाचारों का उच्च स्तर बनाने में उल्लेखनीय योगदान किया।

शेख अब्दुल्ला की वापसी

(मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के साथ। बीच में यशगंदोत्रा, तत्कालीन उप निदेशक सूचना विभाग)

जम्मू कश्मीर में आकाशवाणी के संवाददाता के रूप में काम करने के बीस वर्ष मेरे लिए इतिहास की गवाही का समय रहे।

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे और हमें विधान सभा में कुछ बड़ी दिलचस्प बहस सुनने को मिलती थी।

1975 में शेख अब्दुल्ला को सत्ता में लाने वाली कांग्रेस पार्टी ने बाद में  साथ छोड़ दिया और शेख अब्दुल्ला ने 1977 में अपने दम पर चुनाव जीता था। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस की प्रतिद्वंद्विता तेजी से बढ़ रही थी ।

1982 में शेख का निधन हो गया और उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पूर्ण समर्थन के साथ मुख्यमंत्री बने ।

(राष्ट्रपति वेंकटरमन का साक्षात्कार, साथ में डॉ फारूक अब्दुल्ला)

कश्मीर बनाम जम्मू प्रतिद्वंदिता राज्य में  बड़े लंबे समय से चलती आ रही है।  क्षेत्रीय भेदभाव जम्मू के लोगों की स्थायी शिकायत रही है ।  कश्मीरी नेतृत्व दरबार बदल की प्रथा को खत्म करना चाहता था, लेकिन जम्मू बार एसोसिएशन ने 1980 के दशक में एक लंबे आंदोलन के माध्यम से ऐसा नहीं होने दिया ।

लगभग हर बार जब दरबार जम्मू में शिफ्ट होता था, तो पहले दिन बंद का आह्वान होता था ।

राजनीति और उग्रवाद

(चुनाव-1996 के परिणाम की लाइव रेडियो कवरेज जम्मू से। बाएं से, चुनीलाल शर्मा, फय्याज शहरयार स्टेशन डायरेक्टर, सुभाष शर्मा, अजीत सिंह वरिष्ठ संवाददाता, के सी मन्हास और पी एल राज़दान.)

नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने संयुक्त रूप से 1987 का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की ।   चूंकि कोई विश्वसनीय भारत समर्थक विपक्षी दल कश्मीर घाटी में मैदान में नहीं बचा था और राजनीतिक शून्य  मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के उदय और 1989-90 में उग्रवाद के विस्फोट के रूप में उभरा।  जम्मू क्षेत्र में भी आने वाले वर्षों में उग्रवाद का बुरा असर पड़ा।  मैंने डोडा जिले के ग्राम चपनारी में एक भीषण नरसंहार की खबर भी कवर की थी  जिसमें दो बारातों के 25 सदस्यों को आतंकवादियों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया था। मारे गए लोगों में दोनों दूल्हे भी शामिल थे। ।  उनकी दुल्हनें अपने ससुराल के घरों तक पहुंचने से पहले ही विधवा हो गई थीं ।  समाचार पत्रों में अपने पतियों के शवों पर दुल्हनों के रोने की तस्वीरें दिल को दहलाने वाली थी।

मौलाना आजाद स्टेडियम में जब गवर्नर,  जनरल केवी कृष्णराव 26 जनवरी 1995 को जब अपना रिपब्लिक डे संबोधन दे रहे थे, तब वहां बम विस्फोट का समाचार भी मैंने दिया।  मेरे एक मित्र अबरोल सहित 8 लोग वहां शहीद हुए।

दूरदर्शन केंद्र श्रीनगर के स्टेशन डायरेक्टर लसा कौल ने रेडियो कॉलोनी जम्मू में मेरे घर पर नाश्ता किया और एक दिन बाद 13 फरवरी 1990 को जब वह वापस श्रीनगर गए तो आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी ।

मलिका पुखराज

जम्मू का सांस्कृतिक दृश्य भी बड़ा जीवंत था। अभिनव थियेटर और डोगरी संस्था गतिविधियों के केंद्र थे ।

प्रसिद्ध गायिका मलिका पुखराज 1988 में पाकिस्तान से अपने पैतृक शहर के जम्मू  लौटीं तो कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। मैंने उनके साथ रेडियो के लिए आधे घंटे का साक्षात्कार रिकॉर्ड किया ।

वैष्णो देवी और कप्लाश यात्रा

मैंने जम्मू क्षेत्र के लगभग सभी क्षेत्रों का दौरा कर वहां के जीवन के समाचार रेडियो पर प्रसारित किए। भदरवाह के रास्ते  कप्लाश झील के लिए लम्बी दुर्गम यात्रा एक अद्भुत अनुभव था ।  प्रीतम कटोच मेरे साथी थे और हमने भदरवाह से सियोज धार, वहां से  कप्लाश झील और आगे बनी व बसोहली तक लगभग 110 किलोमीटर तक पर्वतीय क्षेत्र में ट्रेकिंग की थी ।

माता वैष्णोदेवी की यात्रा तो अक्सर करते थे लेकिन मुझे याद है जब राज्यपाल जगमोहन ने पुरानी व्यवस्था बदल कर माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की स्थापना की थी ।  1979 तक, लगभग तीन लाख तीर्थयात्री सालाना वैष्णोदेवी यात्रा पर आते थे । अगले बीस साल में यह संख्या 50 लाख पार कर चुकी थी। सुविधाओं में व्यापक सुधार हुआ।

सलाल बिजलीघर व  ऊधमपुर रेल।

मैं साल 1980 में सलाल बांध जल विद्युत परियोजना स्थल पर था जब इसकी धारा को मोड़ने के लिए बनाई गई  सुरंग चालू की गई थी । कई वर्ष बाद जब जलाशय में पानी भरा गया और बिजली उत्पादन शुरू हुआ तो तीन दिन तक मैं वही रह कर समाचार देता रहा।

मैं ऊधमपुर में था जब इंदिरा गांधी ने बरसात के दिन 1983 में जम्मू-ऊधमपुर रेलवे लाइन की नींव रखी थी । दिल्ली से ऑल इंडिया रेडियो के संवाददाता  एसएम कुमार के साथ मैंने  जम्मू से ऊधमपुर तक रेल लाइन के प्रस्तावित ट्रैक के साथ  यात्रा की और  लोगों की आकांक्षाओं को रिकॉर्ड किया ।  जब मैंने एक छात्र से पूछा कि क्या उसने ट्रेन देखी है, तो उसका सीधा सादा सा  जवाब  था कि उसने अपनी किताब में एक ट्रेन देखी है ।  मैं कुछ पुराने लोगों से मिला, जिन्होंने अपने जीवन में ट्रेन में कभी यात्रा नहीं की थी ।

एक बार कुछ मजदूर बाहु किले के नीचे निर्माणाधीन रेल सुरंग के अंदर फंस गए थे ।  डिप्टी चीफ इंजीनियर सुरिंदर कौल की अगुवाई में इंजीनियरों की यह बड़ी कामयाबी थी कि तीन दिन बाद सभी को सुरक्षित निकाल लिया गया । मजदूरों ने वे तीन दिन ऑक्सीजन की कमी के साथ घुप अंधेरे में बिताए थे।

रेलवे लाइन तैयार होने में काफी समय लगा, लेकिन 1998 में दिल्ली ट्रांसफर के समय मैंने पहले स्टेशन बजालटा तक तवी नदी के पार पहाड़ पर चलती ट्रेन को देखा था।

श्रीनगर, दिल्ली और कारगिल तक

1990 में लसा कौल की हत्या के बाद बंद हुई क्षेत्रीय समाचार इकाई को फिर चालू करने के लिए  मुझे वरिष्ठ संवाददाता के पद पर तरक्की देकर 1992 में श्रीनगर भेजा गया था पर जम्मू से संबंध बना रहा क्योंकि सर्दियों के छह महीनों के लिए  दरबार के साथ जम्मू आना होता था।

1998 में जब मेरा तबादला दिल्ली हुआ तो अंजलि शर्मा ने जम्मू और कश्मीर के मेरे अनुभव पर इंटरव्यू रिकॉर्ड किया।

मैं जून 1999 में कारगिल युद्ध को कवर करने के लिए 26 दिनों के टूर पर दिल्ली से गया था। जिस दिन टाइगर हिल पर कब्जा हुआ उस दिन मैं द्रास से होकर कारगिल पहुंचा था। वापसी में दोस्तों से मिलने के लिए जम्मू में रुका था ।  अंजलि ने फिर से मेरा साक्षात्कार लिया कि मैंने कारगिल में क्या देखा ।

मित्र और मेंटर

एक संवाददाता को विविध समाचार स्रोतों के साथ निकट तालमेल से कार्य करना होता है ।  इनमें राजनीतिक नेता, ट्रेड यूनियन लीडर, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साथी पत्रकार और राज्य सरकार के अधिकारी शामिल थे ।  मैं विशेष रूप से कहना चाहता हूं कि मुझे सूचना विभाग के उच्च अधिकारियों

के बी जंडियाल,  महेंद्र शर्मा, यश गंदोत्रा,  ज्योतिषवर पथिक और ओ. पी. शर्मा का भरपूर सहयोग मिला।

मैंने अपने जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा जम्मू में बिताया ।  जब मैं 33 साल का था तब मैं वहां गया था और 53 साल की उम्र में वहां से आया।  यह मेरा जम्मू का  अनुभव ही था कि मुझे 1990 में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संवाददाता “कॉरेस्पोंडेंट ऑफ द ईयर” का आकाशवाणी पुरस्कार मिला ।

(1997 में ऑल इंडिया रेडियो जम्मू के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान मुख्यमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला के साथ )

मुझे याद है कि 1997 में मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने रेडियो कश्मीर जम्मू के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान मुझे ट्रॉफी से सम्मानित किया था ।

किस्सा गोजरी बुलेटिन का।

जम्मू कश्मीर के घुमंतु गुज्जर समुदाय की गोजरी भाषा में बुलेटिन की शुरुआत एक दिलचस्प घटना के साथ हुई।

ऑल इंडिया रेडियो के केंद्रीय अधिकारी इसे शुरू नहीं करना चाहते थे पर एक समय चौधरी गुलजार अहमद के नेतृत्व में आए  गुज्जर प्रतिनिधिमंडल ने घोषणा कर दी कि यदि गोजरी बुलेटिन शुरू नहीं किया गया तो से अपनी भैंसों के झुंड से रेडियो परिसर को भर देंगे। इसकी नोबत नहीं आई।  गोजरी बुलेटिन जल्द ही शुरू हो गया।।  मुंशी खान, अनवर हुसैन और हसन परवाज़  न्यूजरूम में  हमारे साथी थे जो गोजरी बुलेटिन संभालते थे।

एक रिपोर्टर के रूप में, मैं उन महत्वपूर्ण दो दशकों के दौरान जम्मू के इतिहास का गवाह था जब यह क्षेत्र पंजाब और कश्मीर के उग्रवाद के बीच था ।

खंड मिट्ठे लोक डोगरे

मैंने करीब दो दशक पहले जम्मू छोड़ दिया था, लेकिन जम्मू ने मुझे एक दिन भी नहीं छोड़ा है ।  जम्मू की यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी। मैं अपने कई ‘खंड मिट्ठे लोक डोगरे’ दोस्तों की कंपनी को कभी नहीं भूल सकता ।

वेद भसीन, बलराज पुरी, गोपाल सच्चर, बीपी शर्मा, डीसी प्रशांत, मास्टर रोशन लाल और रामनाथ शास्त्री मेरे गुरु जैसे थे ।  उनमें से ज्यादातर अब नहीं हैं ।  मैं केबी जंडियाल, गोपाल सच्चर, विजय वर्मा, प्रीतम कटोच, अनवर हुसैन, अनिल आनंद, नसीब सिंह मन्हास, संत कुमार शर्मा, अंजलि शर्मा और कुछ अन्य जैसे दोस्तों से कभी-कभी बात करता हूं ।

मैं अक्सर यू-ट्यूब पर डोगरी गाने सुनता हूं ।  ‘फौजी परदेसी नौकरा, दिल लगदा नी मेरा हो..’ डोगरी गायिका सरस भारती इन दिनों मेरी फेवरेट हैं।

मैं उन सभी को बधाई देता हूं जो वर्तमान में आरएनयू जम्मू को उसके स्वर्ण जयंती वर्ष में संभाले हुए हैं । आप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें, ऐसी मेरी कामना है और आप सभी के लिए आशीर्वाद है।

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ तुलाराम चौक ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव

श्री अरुण श्रीवास्तव 

 

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उनका ऐसा ही एक पात्र है ‘असहमत’ जिसके इर्द गिर्द उनकी कथाओं का ताना बना है। आप प्रत्येक बुधवार साप्ताहिक स्तम्भ – असहमत  आत्मसात कर रहे हैं। ‘असहमत’ से सहमत होने या न होने के लिए आपको प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ ‘असहमत’ पढ़ना पड़ेगा।)

☆ संस्मरण ☆ तुलाराम चौक ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

(भारतीय स्टेट बैंक, तुलाराम चौक, जबलपुर – यादों के झरोखे से, श्री अरुण श्रीवास्तव जी  की कलम से।)

सदाबहार शब्द की परिभाषा शायद यहीं पर चरितार्थ होती हैं. समय के साथ दुकानदारों की पीढ़ियां हेंडिंग ओवर और टेकिंग ओवर की बैंकिंग शब्दावली को साकार करती रहती हैं. ऐसा कहा जाता है कि “वक्त से ही कल और आज होता है याने वक्त की हर शै गुलाम और वक्त का हर शै पे राज़ भी होता है’.

किन्तु, ये चौराहा तो किसी ज़माने के नुक्कड़ सीरियल की याद दिलाता हैं जहां संबंधों की गर्मजोशी वक्त को थाम कर कहती है कि ज्यादा से ज्यादा क्या करोगे वक्त जी, बालों का रंग ले लोगे, चेहरे के नूर को झुर्रियों से एक्सचेंज कर लोगे. तो कर लो कौन तुम्हें पकड़ पाया है. पर तुम्हारी पहुंच और ताकत शरीर की सिर्फ ऊपरी तह तक ही है. झुर्रियों के मालिक के ख्वाबों तक, खयालों तक और सबसे बड़ी बात कि दिलों तक तुम्हारी पहुंच नहीं है.

आज भी जब तुलाराम चौक से गुज़रते हैं वो लोग जिन्होनें स्टेट बैंक में अपनी सुबहों को रातों में बदला था और बदले में पाया था , वेतन, ओवरटाईम, बोनस, इंक्रीमेंट, एरियर्स और प्रमोशन तो उनकी नज़रें उस भवन पर थम जाती हैं जहां से कभी हंसने की आवाजें,और हमेशा ही बैंकिंग हॉल की चहल पहल, कभी सामने बाहर निकल कर नारेबाजी की बहुत सारी यादें उन्हें रामभरोसे होटल की चाशनी से तर खोबे की जलेबी जैसा ही तर कर देती है. गुजरे हुये वक्त को फिर जीने की चाहत, कदमों को होटल की तरफ खींच लेती है और वो ये भूल जाते है कि वो डायबिटीज़ से ग्रस्त हैं. उस वक्त वो बीते समय के नौजवान हीरो बनकर खोबे की जलेबियों से मिले आनंद में डूब जाते है. फिर किशोर कुमार का गाना बाहर नहीं दिलों के अंदर बज़ता है “कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन”. जलेबी और मेचिंग गर्म और ताज़े नमकीन के स्वाद के बाद अगला पड़ाव स्वादिष्ट कड़क मीठी अदरकी चाय का होता है जो बाकायदा स्वाद ले लेकर पी जाती है पर फिर भी फीकी लगती है क्योंकि इस चाय को कड़कदार और मज़ेदार बनाने वाली मोतियों याने मित्रों की माला बिखर चुकी है. दिल में एक टीस सी उठती है इन पंक्तियों के साथ “मैं अकेला तो न था, थे मेरे साथ कई, वो भी क्या दिन थे मेरे ,मेरी दुनियां थी नई “ की धुन या गीत गुनगुनाते हुये.

पर अलसेट पाये वक्त के होंठों पर कुटिल मुस्कान आ जाती है जो शायद यादों के तिलस्म में खोये शख्स को वक्त की अहमियत बतलाते हुये कहती है कि –

“सब कुछ तुम्हारे हाथ में नहीं है, कुछ ऐसा भी है जो हमारे हाथ में है जनाब”

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ #86 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में – 2 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है.

श्री अरुण डनायक जी ने महात्मा गाँधी जी की मध्यप्रदेश यात्रा पर आलेख की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार की है। आप प्रत्येक सप्ताह बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में  के अंतर्गत महात्मा गाँधी जी  की यात्रा की जानकारियां आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ आलेख #86 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में – 2 ☆ 

छिंदवाड़ा :- गांधीजी यहां  अली भाइयों (मौलाना मुहम्मद अली एवं मौलाना शौकत अली) के आमंत्रण पर आए और 06 जनवरी 1921 को  एक आमसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने एक तरफ खिलाफत के अपमान का परिमार्जन करने हेतु कांग्रेस के आंदोलन का समर्थन किया तो दूसरी तरफ पंजाब में घटित जलियाँवाला बाग के अन्याय का विरोध भी किया। गांधीजी ने सैनिकों से कहा कि जनरल डायर जैसे  अत्याचारी का बेहूदा हुकूम मानने की अपेक्षा बहादुरी से  उसकी गोली खाकर मरना स्वीकार करें और इस प्रकार  सैनिकों से राजभक्ति की अपेक्षा देशभक्ति को मनुष्य का धर्म मानते हुए उसका अनुपालन करने को कहा। उन्होंने सैनिकों से निर्भय होकर कांग्रेस की सभाओं में शामिल होने का आग्रह किया. उन्होंने उपाधिधारियों से उपाधि त्यागने, वकीलों से वकालत छोड़ देने, पंद्रह वर्ष से अधिक आयु के बालकों से स्कूल छोड़ देने का आह्वान किया। इसके अलावा उन्होंने स्वदेशी के महत्व को रेखांकित करते हुए चरखा चलाने, हिन्दू मुस्लिम एकता को मजबूत करने और अस्पृश्यता के कलंक को मिटाने का भी अनुरोध किया। जहां एक ओर गांधीजी ने वकीलों और विद्यार्थियों से बहिष्कार की अपील की तो दूसरी तरफ आर्थिक दृष्टि से कमजोर वकीलों को कांग्रेस की ओर से मदद व विद्यार्थियों से पढ़ाई छोड़ने के बाद देशहित  के अन्य कार्यों से संलग्न होने की सलाह दी। इस प्रकार गांधीजी की  सभा से लोगों का उत्साह बढ़ा और अंग्रेजी शासन व उपाधिधारियों से उनका भय खत्म हुआ।

सिवनी व जबलपुर के अल्प प्रवास पर गांधीजी 20 व 21 मार्च 1921 को पधारे। सिवनी में  सभा को संबोधित करते हुए, कांग्रेस के नेता भगवान दीन यहां गिरफ्तार कर लिए गए थे, इसीलिए जनता का मनोबल बढ़ाने गांधीजी यहां विशेष रूप से आए और भाषण भी दिया। उन्होंने मद्यपान न करने की सलाह दी और कहा कि इससे बेहतर तो गंदे नाले का पानी पीना है।  गंदे नाले का पानी पीने से तो बीमारी होती है पर शराब पीने से आत्मा मलिन हो जाती है।

खंडवा :- इस नगर को महात्मा गांधी का स्वागत करने का अवसर दो बार मिला।  पहली बार बापू मई 1921 में जब वे अंबाला से भुसावल जाते हुए खंडवा में रुके थे। यद्दपि  यहां  उस दिन उन्होनें किसी सभा को संबोधित तो नहीं किया लेकिन रास्ते में पड़ने वाले छोटे-छोटे स्टेशनों पर उपस्थित जनसमूह को उन्होंने अवश्य संबोधित किया। ऐसे ही एक भाषण में उल्लेख है कि स्टेशन पर आए जनसमूह से उन्होंने तिलक स्मृति कोष के लिए दान देने की अपील की, स्वराज का अर्थ केवल टोपी तक सीमित न रखते हुए विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और खादी अपनाने का आग्रह किया और उन्हें  फूल भेंट करने की जगह स्वराज के लिए धन देने को कहा। गांधीजी ने अस्पृश्यता निवारण हेतु भी लोगों से कहा कि भंगी-चमार को अस्पृश्य न माने और उनकी और ब्राह्मण की समान सेवा करें। दूसरी बार गांधीजी 1933 में खंडवा आए और तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष रायचंद नागड़ा के आवास पर रुके। रेलवे स्टेशन पर गांधीजी का स्वागत माखनलाल चतुर्वेदी की बहन कस्तूरी बाई ने सूत की माला पहना कर किया और स्थानीय घंटाघर चौक  में विशाल आमसभा को संबोधित किया और अस्पृश्यता को दूर करने हेतु लोगों से इस पुनीत कार्य में जुट जाने की अपील की। खंडवा में जिस स्थान पर गांधीजी की सभा हुई थी, वहां स्मारक का निर्माण किया गया और उस जगह को गांधी चौक नाम दिया गया। यहां  एक लगे स्मृति पटल  के अनुसार गांधीजी ने 01अप्रैल 1930 को खंडवा में आम सभा को संबोधित किया था, लेकिन यह तिथि सही है पर वर्ष गलत है।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 112 ☆ बचपन के दिन…. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपके बचपन के संस्करण  ‘बचपन के दिन….’ )  

☆ संस्मरण # 112 ☆ बचपन के दिन….  ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

बचपन के दिनों को जिंदगी के सबसे सुनहरे दिनों में गिना जाता है। ये वो सबसे खास पल होते हैं, जब न ही किसी चीज की चिंता होती है और न ही किसी चीज की परवाह। हर किसी के बचपन का सफर यादगार और हसीन होता है, इसलिए अक्सर लोगों से मुंह से यह कहते जरूर सुना होगा कि ‘वो दिन भी क्या दिन थे’

बचपन पचपन के बाद थोड़ा ज्यादा याद आता है,

कंचे खेलते वे दिन,

पतंग लूटने की जद्दोजहद,

गिल्ली डंडा की उड़ती हुई गिल्ली,

तितली पकड़ने की भाग-दौड़,

कागज के हवाई जहाज का क्लास रूम में उड़ाना,

समय बिताने के लिए करना है कुछ काम,

हरी थी, मन भरी थी,

लाख मोती जड़ी थी,

राजा जी के बाग में 

दुशाला ओढ़े खड़ी थी, 

अखण्ड अंताक्षरी के मजे।

मोर-पंख किताबों में छुपाना,

स्कूल की छुट्टी होने पर

दौड़ते- भागते

एक दूसरे को टंगड़ी मारना,

वो सच, वो झूठ, वो खेल, वो नाटक, वो किस्से, वो कहानी

परियों वाली……

जबलपुर के नरसिंह बिल्डिंग परिसर में हमारा बीता बचपन,

नरसिंह बिल्डिंग में भले 60-70 परिवार रहते थे पर नरसिंह बिल्डिंग परिसर भरा पूरा एक परिवार लगता था । सभी हम उम्र के दोस्तों के असली नाम के अलावा घरेलू चलतू निक नेम थे, जो बोलने बुलाने में सहज सरल भी होते थे, जो उन 60-70परिवार के लोग बड़ी आत्मीयता से बोलते थे, निक नेम से ही सब एक दूसरे को जानते थे, जैसे फुल्लू, गुल्लू, किस्सू, गुड्डू, मुन्ना, मुन्नी, सूपी, राजू, राजा, नीतू, संजू, बबल, लल्ला, बाला, जग्गू आदि … आदि, सभी सुसंस्कारवान और सबका लिहाज और सम्मान करने वाले…….

तो एक दिन अचानक जयपुर से फुल्लू भाई (अनूप वर्मा) का फोन आया कि नरसिंह बिल्डिंग के फ्लैट नंबर 22  में 46 साल पहले रहने वाले मिस्टर कुमार नासिक से जबलपुर पहुँचे हैं और 46 साल पुरानी यादों को ताजा करने वे नरसिंह बिल्डिंग पहुचे हैं,अनूप ने नंद कुमार का फोन नंबर भी भेजा, हमने कुमार से बात की, पता चला कि वे मानस भवन के पास की पारस होटल में रूके हैं, 46  साल बाद पहली बार किसी को देखना और मिलकर पहली बार बात करना कितना रोमांचक होता है,जब हम और कुमार ने नरसिंह बिल्डिंग के उन पुराने दिनों के एक एक पन्ने को याद करना चालू किया,कुछ हंसी के पल,कुछ पुराने अच्छे लोगों के बिछड़ जाने की पीड़ा आदि के साथ कुमार ने सब परिवारों को दिल से याद किया, लाल ज्योति की याद आई, जग्गू और किस्सू को याद किया,मुरारी से मुलाकात का जिक्र आया,तो छत में रहने वाली नर्स बाई के जग्गू की बात हुई,रवि कल्याण,मीरा,चींना याद आए,ऊधर बिशू राजा ललिता से लेकर साधना, सूपी, शोभा, चिनी, मुन्नी, विनीता, संजू, भल्ला आदि सब कहाँ और कैसे की कुशलक्षेम बतायी गई, सात समंदर पार बैठी जया,नीलम, बड़े फुल्लू,अरविन्द,और सरोज दीदी को भी याद किया, 46 सालों का लेखा जोखा की बात करते हुए कुमार ने हंसी की फुलझड़ियां छोड़ते हुए बताया कि हमारे घर के नीचे फ्लैट नंबर 7और फ्लैट नंबर ८ में ‘ई एस आई’ का अस्पताल था जिसमें नीले रंग का छोटा सा बोर्ड  लगा था जिसमें लिखा था “छोटा परिवार सुखी परिवार ” पर डिस्पेंसरी के ऊपर नौ बच्चे का परिवार, डिस्पेंसरी के बाजू में नौ बच्चों का परिवार फिर बोर्ड में लिखी इबारत का नरसिंह बिल्डिंग में कितने घरों में पालन की समीक्षा में लगा कि नरसिंह बिल्डिंग में नौ बच्चे के परिवार खूब थे,पर गजब ये था कि सभी परिवारों में, अदभुत तालमेल और अपनत्व भाव था, पूरा भारत देश उस नरसिंह बिल्डिंग परिसर में बसा था, सभी त्यौहार सभी मिलजुल कर मनाते, एक नरसिंह बिल्डिंग परिसर ऐसी फलने वाली जगह थी जहाँ हर तरफ से सबके पास विकास के दरवाजे खुले मिले हर किसी ने हर फील्ड में उन्नति पाई ।

कुछ दिन बाद जयपुर से खबर आई कि मित्र छोटा फुल्लू (अनूप वर्मा) नहीं रहा, उसके साथ बिताए बचपन के दिन याद आये तो इतना सारा लिख दिया।

बचपन की सारी यादें साथ हैं,

 वे सारे लम्हें मेरे लिए खास हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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