आध्यत्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – त्रयोदश अध्याय (12) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते ।

अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ।।12।।

ज्ञेय जो है परब्रम्ह वह, सत औ” असत से दूर

यह सब हो तो व्यक्ति में, अमृत सुख भरपूर ।।12।।

 

भावार्थ :  जो जानने योग्य है तथा जिसको जानकर मनुष्य परमानन्द को प्राप्त होता है, उसको भलीभाँति कहूँगा। वह अनादिवाला परमब्रह्म न सत्‌ ही कहा जाता है, न असत्‌ ही।।12।।

 

I will declare that which has to be known, knowing which one attains to immortality, the beginning-less supreme Brahman, called neither being nor non-being.।।12।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आशीष साहित्य # 44 – दृष्टि ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण  एवं  ज्ञानवर्धक आलेख  “दृष्टि। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 44 ☆

☆ दृष्टि 

 मैं अब आपको स्वर योग के विषय में कुछ बताता हूँ । सर्वप्रथम हाथों द्वारा नाक के छिद्रों से बाहर निकलती हुई श्वास को अनुभव करने का प्रयत्न कीजिए । देखिए कि कौन से छिद्र से श्वास बाहर निकल रही है । स्वर योग के अनुसार अगर श्वास दाहिने छिद्र से बाहर निकल रही है तो यह सूर्य स्वर होगा । इसके विपरीत यदि श्वास बाएँ छिद्र से निकल रही है तो यह चंद्र स्वर होगा एवं यदि जब दोनों छिद्रों से श्वास निकलता अनुभव हो तो यह सुषुम्ना स्वर कहलाएगा । श्वास के बाहर निकलने की उपरोक्त तीनों क्रियाएँ ही स्वर योग का आधार हैं । सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है । इसका रंग काला है । यह शिव स्वरूप है, इसके विपरीत चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात्‌ पार्वती का रूप है । इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं ओर स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी ओर अर्थात्‌ इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर । सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब दोनों ओर से श्वास निकले वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा ।

गांधार नाड़ी नाक में, हस्तिजिह्वा दाहिनी आंख में, पूषा दाये कान में, यशस्विनी बायें कान में, अलंबुसा मुख में, कुहू लिंग प्रदेश में और शंखिनी गुदा में जाती है । हठयोग में नाभिकंद अर्थात कुंडलिनी का स्थान गुदा से लिंग प्रदेश की ओर दो अंगुल हटकर मूलाधार चक्र में माना गया है । स्वर योग में कुंडलिनी की यह स्थिति नहीं मानी जाती है। स्वर योग शरीर शास्त्र से संबंध रखता है और शरीर की नाभि गुदामूल में नहीं, वरन उदर मध्य ही हो सकती हैं । इसीलिए यहाँ नाभिप्रदेश का तात्पर्य उदर भाग मानना ही ठीक है । श्वास क्रिया का प्रत्यक्ष संबंध उदर से ही है । स्वर योग इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य को नाभि तक पूरी साँस लेनी चाहिए । वह प्राण वायु का स्थान फेफड़ों को नहीं, नाभि को मानता है । गहन अनुसंधान के पश्चात अब शरीर शास्त्री भी इस बात को स्वीकारते हैं कि वायु को फेफड़ों में भरने मात्र से ही श्वास का कार्य पूरा नहीं हो जाता । उसका उपयुक्त तरीका यह है कि उससे पेड़ू तक पेट सिकुड़ता और फैलता रहे एवं डायफ्राम का भी साथ-साथ संचालन हो । तात्पर्य यह कि श्वास का प्रभाव नाभि तक पहुँचना जरूरी है । इसके बिना स्वास्थ्य खराब होने का खतरा बना रहता है । इसीलिए सामान्य श्वास को स्वर योग में अधूरी क्रिया माना गया है । इससे जीवन की प्रगति रुकी रह जाती है । इसकी पूर्ति के लिए योग के आचार्यों ने प्राणायाम जैसे अभ्यासों का विकास किया ।

तो वास्तव में हम प्रकृति और ब्रह्मांड में बाहरी परिवर्तन के साथ हमारे आंतरिक शरीर और मस्तिष्क के परिवर्तनों को समझ सकते हैं ।

 

 

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  Buddha#2 –  A Beautiful Story from the Buddha ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆ BUDDHA –  A Beautiful Story from the Buddha☆ 

Video Link >>>>

A Beautiful Story from the Buddha

The Buddha spoke to his son, the young novice Rahula, soon after the boy was ordained..

One day the Buddha came to Rahula, pointed to a bowl with a little bit of water in it, and asked: “Rahula, do you see this bit of water left in the bowl?”

Rahula answered: “Yes, sir.”

“So little, Rahula, is the spiritual achievement of one who is not afraid to speak a deliberate lie.”

Then the Buddha threw the water away, put the bowl down, and said: “Do you see, Rahula, how that water has been discarded?

“In the same way, one who tells a deliberate lie, discards whatever spiritual achievement he has made.”

Again, he asked: “Do you see how this bowl is now empty?

“In the same way, one who has no shame in speaking lies is empty of spiritual achievement.”

Then the Buddha turned the bowl upside down and said: “Do you see, Rahula, how this bowl has been turned upside down?

“In the same way, one who tells a deliberate lie turns his spiritual achievement upside down and becomes incapable of progress.”

Therefore, the Buddha concluded, one should not speak a deliberate lie even in jest.

Text courtesy:

THE NOBLE EIGHTFOLD PATH

Bhikkhu Bodhi

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दौर का दर्द ☆ – डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत

 

( आज प्रस्तुत है डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी की एक समसामयिक विचारणीय कविता  “दौर का दर्द. यह सत्य है, इस दौर का दर्द उनकी पीढ़ियां याद रखेंगी जो भुगत रही हैं। अगली ब्रेकिंग न्यूज़ की चादर पिछली ब्रेकिंग न्यूज़ को ढांक देती है क्योंकि अधिकतर दर्शक संवेदनहीन मूक दर्शक हैं जिन्हें अगली ब्रेकिंग न्यूज़ की प्रतीक्षा रहती है। डॉ ज्योत्सना जी ने एक संवेदनशील साहित्यकार का कर्तव्य मानवता की कसौटी पर उतारने का सफल प्रयास किया है। इसके लिए उनके लेखनी को सादर नमन। )

☆ दौर का दर्द ☆

एक छलावा निगल गया

हर शहर की रौनक को

गरीबी को छल गया,

जो कल निकले थे

शहर में कमाने को

रोजी रोटी जुटाने को

आज लौट रहे हैं गाँव को

अपने घर को

फिर से जीने के लिए,

कुदरत का कहर या

सुविधाओं की कमी

मार रही बीच सड़क पर

कुचल रही रेल की पटरियों पर

दहाड़ मार मार कर रो रही गरीबी

सिर पटकती लाचारी

बेबसी मौन है अपने हालात पर,

चाहत गठरी उठाये चल रही

कल के सूरज की आस लिए

खेतों को देख रही हैं

दूरियों को नाप रही है

पैदल कोसों,

मुठ्ठी भर हौसलों संग

ठसीं ट्रकों की ट्रालियों में

ट्रैक्टरों में लदी

बैलगाड़ी खींचती हुई

चली जा रही है।

देश की सभ्यता

विकास की तस्वीर

घर बैठे टीवी चैनलों पर

खूब प्रसारित हो रही है।

समाचार की सुर्खियों का

शोर धीरे धीरे थम जायेगा

मगर इस दौर का दर्द

कभी न भूल पायेंगे ।।

 

© डॉ ज्योत्स्ना सिंह राजावत

सहायक प्राध्यापक, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर मध्य प्रदेश

सी 111 गोविन्दपुरी ग्वालियर, मध्यप्रदेश

९४२५३३९११६,

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  Meditation – Asanas ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  Meditation – Asanas ☆ 

Video Link >>>>

Meditation Asanas

SUKHASANA, ARDHA PADMASANA, PADMASANA, SIDDHASANA, SIDDHA YONI ASANA, SWASTIKASANA, DHYANA VEERASANA, SIMHASANA, VAJRASANA, ANANDA MADIRASANA, PADADHIRASANA, BHADRASANA

The main purpose of the meditation asanas is to allow the practitioner to sit for extended periods of time without moving and without discomfort. Only when the body has been steady and still for some time will meditation be experienced.

Deep meditation requires the spinal column to be straight and very few asanas can satisfy this condition. Furthermore, in high stages of meditation the practitioner loses control over the muscle of the body. The meditation asana, therefore, needs to hold the body in steady position without conscious effort.

In this video, we have demonstrated how to get into the following meditation asanas:

SUKHASANA (easy pose)

ARDHA PADMASANA (half lotus pose)

PADMASANA (lotus pose)

SIDDHASANA (accomplished pose for men)

SIDDHA YONI ASANA (accomplished pose for women)

SWASTIKASANA (auspicious pose)

DHYANA VEERASANA (hero’s meditation pose)

SIMHASANA (lion pose)

VAJRASANA (thunderbolt pose)

ANANDA MADIRASANA (intoxicating bliss pose)

PADADHIRASANA (breath balancing pose)

BHADRASANA (gracious pose)

Practice note: A useful suggestion to make the above poses comfortable is to be place a small cushion under the buttocks.

Reference book:

ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA-by Swami Satyananda Saraswati

(This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.)

Music:

Oxygen Garden by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution licence (https://creativecommons.org/licenses/…)

Source: http://chriszabriskie.com/divider/

Artist: http://chriszabriskie.com/

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆  Meditation – Breathing with the Mind – Meditation Learning Video #6 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

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☆  Meditation – Breathing with the Mind ☆ 

Video Link >>>>

Meditation Learning VIDEO # 6

Learn and practice meditation breath by breath. When mindfulness of breathing is developed and cultivated, it is of great fruit and great benefit.

Instructions:

Sit down with legs folded crosswise, back straight and eyes closed.

Always mindful, breathe in; mindful, breathe out.

Breathing in long, understand: I am breathing in long; breathing out long, understand: I am breathing out long.

Breathing in short, understand: I am breathing in short; breathing out short, understand: I am breathing out short.

Breathe in experiencing the whole body, breathe out experiencing the whole body.

Breathe in tranquilizing the whole body, breathe out tranquilizing the whole body.

Breathe in experiencing rapture, breathe out experiencing rapture.

Breathe in experiencing pleasure, breathe out experiencing pleasure.

As you breathe in and out, observe your mental processes.

Be aware of the mental processes.

Breathe in experiencing mental formations, breathe out experiencing mental formations.

Breathe in tranquilizing mental formations, breathe out tranquilizing mental formations.

Ever mindful, breathe in; mindful, breathe out.

May all beings be happy, be peaceful, be liberated.

Open your eyes and come out of meditation.

(Based on the Anapanasati Sutta)

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हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ इरफ़ान खान – तुम कहीं नहीं जा सकते ….अभिनेता…. ☆ श्री वसंत काशीकर, श्री सुरेश पटवा और श्री अनिमेष श्रीवास्तव

पद्मश्री इरफ़ान खान

जन्म – 7 जनवरी 1967, जयपुर

मृत्यु – 29 अप्रैल 2020, कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट, मुंबई

श्री वसंत काशीकर,  वरिष्ठ  रंगकर्मी, जबलपुर  

? कम शब्दों में बहुत कुछ कहने वाले एक बेहतरीन अभिनेता को इस जहां ने खो दिया  ?

“ज़िंदगी में अचानक कुछ ऐसा हो जाता है, जो आपको आगे लेकर जाता है। मेरी ज़िंदगी के पिछले कुछ दिन ऐसे ही रहे हैं। मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी हुई है. लेकिन, मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और ताक़त ने मुझमें उम्मीद जगाई है।”– यह ट्वीट किया था इरफान खान ने दो साल पहले मार्च 2018 में जब उन्हें अपनी बीमारी के बारे में पता चला था।

कम शब्दों में बहुत कुछ कहने वाले, उम्दा अभिनय कर दर्शकों का दिल जीतने वाले एक बेहतरीन अभिनेता, इस जहां से खो गया। पर उसका अभिनय और यादें हमेशा मौजूद रहेंगी।

इरफान खान ने लीक से हटकर काम किया। गुलज़ार के तहरीर सीरियल से लेकर इंग्लिश मीडियम तक हर किरदार में इरफान ने अपना लोहा मनवाया है। उनके चाहने वालों के लिए बेहद दु:खद धक्का पहुंचाने वाली खबर है।

अभी तो सफ़र शुरू हुआ था और अचानक विराम लग गया। उम्र भी ज्यादा नहीं थी। 53 साल कोई मरने की उम्र है।

इस दौर में जब रोज मरने वालों की खबरें नहीं आंकड़े आ रहे हैं, फिर भी प्रिय अभिनेता का इस तरह अचानक गुज़र जाना स्तब्ध करता है। अभी कुछ दिनों पहले जयपुर में मां का निधन हो गया और लाॅकडाउन के चलते मां की अंतिम यात्रा में इरफान नहीं शरीक हो पाये और परसों खबर मिली कि तबियत बिगड़ने की वजह से इरफान को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती किया गया है।

आज कला की दुनिया ने एक बेहतर कलाकार खो दिया है।

 सादर श्रद्धांजलि 

– वसंत काशीकर, वरिष्ठ रंगकर्मी, जबलपुर 

श्री सुरेश पटवा, वरिष्ठ लेखक, भोपाल

☆  इरफ़ान खान दिवंगत ☆ 

इरफान अली खान का जन्म राजस्थान के एक मुस्लिम परिवार में बेगम खान और जगदीर खान के घर पर हुआ था। उनके माता पता टोंक जिले के पास खजुरिया गाँव से थे और टायर का कारोबार चलाते थे। इरफान और उनके अच्छे दोस्त सतीश शर्मा क्रिकेट खेलते थे तथा बाद में, उन्हें साथ में सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए 23 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों हेतु प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कदम रखने के लिए चुना गया था। धन की कमी के कारण वे टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए नहीं पहुँच सके।

उन्होंने 1984 में नई दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति अर्जित की और वहीँ से अभिनय में प्रशिक्षण प्राप्त किया।

इरफ़ान हिन्दी अंग्रेजी फ़िल्मों व टेलीविजन के एक कुशलअभिनेता रहे हैं। उन्होने द वारियर, मकबूल, हासिल, द नेमसेक, रोग जैसी फिल्मों मे अपने अभिनय का लोहा मनवाया। हासिल फिल्म के लिये उन्हे वर्ष 2004 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वे बालीवुड की 30 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। इरफान हॉलीवुड मे भी एक जाना पहचाना नाम हैं। वह ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर और द अमेजिंग स्पाइडर मैन फिल्मों मे भी काम कर चुके हैं। 2011 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया  60वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार दिया गया।

इरफ़ान खान का निधन 29 अप्रेल को मुम्बई की कोकीलाबेन अस्पताल में हुआ था, जहाँ वे ट्यूमर के संक्रमण से भर्ती थे। वर्ष 2018 में उन्हें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (अंत:स्रावी ट्यूमर) का पता चला था, जिसके बाद वे एक साल के लिए ब्रिटेन में इलाज हेतु रहे। एक वर्ष की राहत के बाद वे पुनः कोलोन संक्रमण की शिकायत के कारण मुम्बई में भर्ती हुए। इस बीच उन्होंने अपनी फ़िल्म अंग्रेज़ी मीडियम की शूटिंग की, जो उनकी अंतिम फिल्म थी। उन्हें अंत:स्रावी कैंसर था, जोकि हॉर्मोन-उत्पादक कोशिकाओं का एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर है।

2008 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार – लाइफ़ इन अ… मेट्रो

2004 – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार – हासिल 

 कलाकार को विनम्र श्रद्धांजली

– सुरेश पटवा, सुप्रसिद्ध लेखक एवं फिल्मों के स्वर्णिम युग के शोध कर्ता, भोपाल 

 

श्री अनिमेष श्रीवास्तव, वरिष्ठ रंगकर्मी, भोपाल

? तुम कहीं नहीं जा सकते ….अभिनेता…. ?

मेरे लिए तुम्हारा जाना ऐसा है जैसे कोई नाराज़ हो कर, बिना बताए मेरे बहुत पास से उठ चला गया हो।

तुम कहीं नहीं जा सकते हो अभिनेता.. जानता हूँ कि मुझे खिजाने के लिए कोई स्वांग कर रहे हो.. पर बता दूं इस बार अपने अभिनय में जान नहीं डाल पाये तुम।

मरने का अभिनय करने के लिए मरा नहीं जाता है दोस्त..

चलो अब खेल बहुत हुआ वापस आ जाओ। तुम्हारी इस हरक़त से कोई नाराज़ नहीं होगा और ना ही तुम्हे कुछ बोलेगा।

जल्दी आ जाओ हम इंतज़ार कर रहे हैं मित्र..

आओ और अपनी किसी फिल्म के माध्यम से हमें रिझाओ, मनाओ, रुलाओ, घमकाओ, गरियाओ, गिड़गिड़ाओ, हंसाओ, बहकाओ, समझाओ, बतियाओ..

आओ चले आओ कि हम तुम्हे खूब याद कर रहे हैं..

विनम्र श्रद्धांजलि

– अनिमेष श्रीवास्तव, वरिष्ठ रंगकर्मी, भोपाल 

 

लंबे समय तक कैंसर से लड़ते लड़ते आखिर मशहूर अभिनेता  पदमश्री प्राप्त  इरफ़ान  खान असमय में  सिर्फ 53 वर्ष की उम्र में हम सब को अलविदा कह गए। ई-अभिव्यक्ति परिवार की और से विनम्र श्रद्धांजलि – विनम्र श्रद्धांजलि

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (39) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)

 

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ।। 39 ।।

तुम ही वायु, यम अग्नि , जल, चंद्र, औ” पुरूष पुराण

तुम्हें हजारों नमन है , बारम्बार प्रणाम  ।। 39 ।।

भावार्थ :  आप वायु, यमराज, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजा के स्वामी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता हैं। आपके लिए हजारों बार नमस्कार! नमस्कार हो!! आपके लिए फिर भी बार-बार नमस्कार! नमस्कार!!॥39॥

 

Thou art Vayu, Yama, Agni, Varuna, the moon, the creator, and the great-grandfather. Salutations, salutations unto Thee, a thousand times, and again salutations, salutations unto Thee!

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 44 – आज्ञाताच्या हाका☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  इस सदी के लिया आह्वान  “आज्ञाताच्या हाका  ।  हमारे समवयस्कों का सारा जीवन निकल गया और आज हम एक ऐसे दोराहे पर खड़े हैं  जो हमें अनजान राहों पर ले जाते हैं।  अक्सर तीसरी अदृश्य राह  भी है जो हमें दिखाई नहीं पड़ती जो हमें  अनजान और जोखिम भरी राह  पर ले जाती है। ऐसे क्षणों में हम जीवन के बीते हुए अनमोल क्षणों की स्मृतियों में खो जाते हैं और भविष्य दिखाई ही नहीं देता। आज की परिस्थितियों में सुश्री प्रभा जी ने मुझे निःशब्द कर दिया है । यदि आप कुछ टिपण्णी कर सकते हैं तो आपका स्वागत है। इस भावप्रवण अप्रतिम  रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 44☆

☆ आज्ञाताच्या हाका ☆ 

  या जगण्याला

आता कोणती आस?

हे वैश्विक विघ्न टळावे,

हाच एक ध्यास!

☆ आज्ञाताच्या हाका ☆ 

(एक मुक्त चिंतन )

 आयुष्य अवघे आता नजरेसमोर येते,

बालपण, किशोरावस्था, तारुण्य,

मनी घमघमते,

 

सूरपारंब्या, विटी दांडू, लगोरी ,सागरगोटे,

मनसोक्त खेळ…. ते हुंदडणे…

सारेच हृदयी दाटे…

 

ते दिवस छानसे होते,

शाळेची हिरवी वाट…

ती रम्य सख्यांची साथ….

दाटते धुके घनदाट

 

काॅलेज एक काहूर

काळजात कशी हूरहूर

उमटली दिनांची त्या ही

जगण्यावरी एक मोहर

 

संसार तसाही झाला,

जशी जगरहाटी असते…

प्राक्तनात होते ते ते ,घडले….

अन तोल असेही सावरले.

 

या जगण्यात रमले खूप

वय या वळणावर आले …..

मन उगाच गहिवरले…

बदलले रंग अन रूप….

 

अतर्क्य, अनाकलनीय आहे

इथला हा भव्य पसारा…

जाहले पुरे हे इतुके,

सारेच भरभरून येथे वाहे….

 

हे असेच राहिल येथे…

धरित्री, आकाश, हवा अन पाणी …

या आज्ञाताच्या हाका….पडतात आताशा कानी

 

मी खुप साजरे केले

जगण्याचे सौख्य सोहळे

कोणत्या दिशेला  आता..

आयुष्य – सांज मावळे…..

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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आध्यत्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (33) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना)

तस्मात्त्वमुक्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ्‍क्ष्व राज्यं समृद्धम्‌ ।

मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्‌ ।। 33 ।।

 

तो उठ , यश पा , जीत अरि , भोग राज्य समृद्ध।

मैनें पहले ही हने , निमित्त मात्र कर युद्ध ।। 33 ।।

 

भावार्थ :  अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन! (बाएँ हाथ से भी बाण चलाने का अभ्यास होने से अर्जुन का नाम ‘सव्यसाची’ हुआ था) तू तो केवल निमित्तमात्र बन जा॥33॥

 

Therefore, stand up and obtain fame. Conquer the enemies and enjoy the unrivalled kingdom. Verily, they have already been slain by Me; be thou a mere instrument, O Arjuna!

 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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