(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है “क़ैद”। )
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(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)
We present an English Version of Ms. Neelam Saxena Chandra’s mesmerizing poem “लिखावट”. We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this awesome translation.)
Ms Neelam Saxena Chandra
(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division.
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “कई चित्र बादल के … ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– ।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ कई चित्र बादल के … ☆
सूरज की किरनों को
ऐसे मत टाँक री
फिसल रहा आँखों से
इन्द्र का पिनाक* री
खुद की परछाई जो
दुविधा में छोटी है
उसको इतना छोटा
ऐसे मत आँक री
ऐंठ रही धूप तनिक
खड़ी कमर हाथ धरे
देखती दुपहरी को
ऊँची कर नाक री
(रेखाचित्र – श्री राघवेंद्र तिवारी )
कई चित्र बादल के
बनते- बिगड़ते हैं
लगे दबा दशानन
बाली की काँख री
छाया छत से छूटी
टंगी दिखी छींके पर
लगा छींट छप्पर की
जा गिरी छमाक री
घिर आई शाम धूप
फुनगी पर पहुँच गई
पीली उम्मीद बची
एक-दो छटाँक री
हौले-हौले नभ में
उतर रहा चन्द्रमा
लगता है लटक रही
मैदा की गाँकरी
* पिनाक= धनुष, शिव जी का धनुष, यहाँ आशय सिर्फ धनुष से है!
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “मोम का गुड्डा”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 29 ☆
☆ मोम का गुड्डा ☆
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
दिन में सूरज जैसा रूप क्या कहूँ,
रात की चाँदनी जैसी कोमलता क्या कहूँ,
सुन्दर सजीला रूप क्या कहूँ।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
वर्षों किया इंतज़ार क्या कहूँ,
हर दिन हर पल रो-रो कर काटे क्या कहूँ,
इतनी खुशियों की सौगात लेकर आया है क्या कहूँ।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
इतना प्यार मुझे दिया है क्या कहूँ,
मेरे मोम के गुड्डे में प्यार करने वाला दिल है,
मेरे मोम के गुड्डे में खेलने, कूदने वाला नटखट मन है।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
पल में हँसने, पल में रोने वाला मासूम मन है,
हर्ष उल्लास से भरता सुन्दर तन है,
वो मोम का गुड्डा कोई और नहीं मेरा प्यारा बेटा आरुष है।
मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,
उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,
इस सौगात के लिए भगवान् का धन्यवाद क्या कहूँ,
न जाने कितने जन्मों से कितने रिश्तों में हमसाथ था वो आरुष है क्या कहूँ,
कभी वो मेरा बेटा, भाई, बहन के रिश्तों में बंधा था, सूरज की पहली किरण (आरुष) क्या कहूँ।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एकअतिसुन्दर कविता “नयी सदी का सूरज”।)