सिंधी साहित्य – कविता ☆ ‘साथ-साथ’… श्री संजय भरद्वाज (भावानुवाद) – ‘साणु-साणु…’ ☆ प्रा लछमन हर्दवाणी ☆

प्रा लछमन हर्दवाणी

(ई-अभिव्यक्ति में प्रा लछमन हर्दवाणी जी का हार्दिक स्वागत है। 3 मई 1942 को जन्मे प्रा लछमन हर्दवाणी जी ने अल्पायु में विभाजन की विभीषिका और उससे जुड़ी पीड़ा को अनुभव किया है। आपका समाज में एक बहुआयामी एवं ओजस्वी व्यक्तित्व के रूप में सम्माननीय स्थान है। सिंधी साहित्य में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। मराठी साहित्य के ज्ञाता होने के साथ ही आप एक बहुभाषी अनुवादक भी हैं। आपके मराठी, हिन्दी एवं सिंधी भाषा में अनुवादित साहित्य का अपना विशिष्ट  स्थान है। हाल ही में आपकी 100वीं पुस्तक प्रकाशित हुई है।

आज प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की हिंदी कविता “साथ-साथ का प्रा लछमन हर्दवाणी जी द्वारा सिंधी भावानुवाद।)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना 

? साथ-साथ  ??

चलो कहीं

साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें…!

© संजय भारद्वाज

सुबह 9:43 बजे, 25.08.22
प्रा लछमन हर्दवाणी जी द्वारा सिंधी भावानुवाद   
? साणु-साणु… ??
हलु त हलूं किथे

साणु मिली विहूं

न कोई शब्दु सोचूं

बस् खामोशी चऊं

खामोशी बुधूं …!

© प्रा लछमन हर्दवाणी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘साथ-साथ’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Together…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “साथ-साथ  .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना 

? साथ-साथ  ??

चलो कहीं

साथ मिल बैठें,

न कोई शब्द बुनें,

न कोई शब्द गुनें,

बस खामोशी कहें,

बस खामोशी सुनें…!

© संजय भारद्वाज

सुबह 9:43 बजे, 25.08.22
 English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi
? Together… ??

Let’s go and sit

somewhere, together

No crafting of confabulations,

No chiming of words,

Let reticence only speak,

Listening to the eerie silence…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 48 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है   “मनोज के दोहे…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 48 – मनोज के दोहे …. 

कण-पराग के चुन रहे,भ्रमर कर रहे गान।

कली झूमतीं दिख रही, प्रकृति करे अभिमान।।

 

नयनों में काजल लगा, देख रही सुकुमार।

चितवन गोरा रंग ले, लगे मोहनी नार।।

 

खोली प्रेम किताब की, सभी हो गए धन्य।

नेह सरोवर डूब कर, फिर बरसें पर्जन्य।।

 

तन पर पड़ी फुहार जब, वर्षा का संकेत।

सावन की बरसात में, कजरी का समवेत।।

 

गौरैया दिखती नहीं, राह गईं हैं भूल।

घर-आँगन सूने पड़े, हर मन चुभते शूल।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जलप्रलय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

 ? संजय दृष्टि – जलप्रलय ??

चम्मच, कटोरी,

प्याली, कड़छी,

हरेक, आदिग्रंथों में

वर्णित जलप्रलय

की धमकी देता रहा,

उधर अथाह समंदर,

पेट में पानी लिए,

चुपचाप मुस्कराता,

मंद-मंद बहता रहा..!

 © संजय भारद्वाज

3:15 बजे दोपहर, 17.10.2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 103 – खोज रही है तुम्हें निगाहें… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

 

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके खोज रही है तुम्हें निगाहें।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 103 – खोज रही है तुम्हें निगाहें✍

व्याकुल मन है, आकुल बाँहें खोज रही है तुम्हें निगाहें।

 

 नव बसंत उतरा है भू पर सौरव से भर उठी दिशाएँ

तरुओं ने नव पल्लव पाए गर्भवती हो गई लताएँ

वातावरण रसीला हो तो मन में उभरे चाहें।

 

सरिता की कल कल की धारा भी मौन निमंत्रण देती है

और नशीली हवा चहक कर सम्मोहित कर देती है

मधुर मदिर आमंत्रण की ही सभी देखते राहें।

 

मेरे नयन प्रतीक्षा कुल है मनमोहन ने रास रचा है

रास निमज्जित अर्पित है जो जितना भी शेष बचा है

 

वृंदावन की सुधियों को अब पूजें और निबाहें

व्याकुल मन है खोज रही है तुम्हें निगाहें।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 105 – “ऊपर से उड़-उड़ जाती है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “ऊपर से उड़-उड़ जाती है…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 105 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “ऊपर से उड़-उड़ जाती है”|| ☆

पहुँचा नहीं बाढ़ से

राहत को कोई अमला

छत पर खड़ी उदास

जोहती वाट रही कमला

 

गायें भूखी बँधी थान पर

जायें कहाँ जायें

भीगे, वस्त्र, बिछावन,

लत्तर गहरी विपदायें

 

आटा भीग गया डिब्बे का

“करता कुछ” कह कर

भिनसारे ही निकल

गया था बेचारा रमला

 

बच्चा चिल्लाता छप्पर से

भूख लगी मैया

मैया कहती हमको रोटी

पहुँचाओ भैया

 

है खराब मौसम ,डरता

है बाकी जीव -जगत

नहीं सहा जाता पानी

का यह भारी हमला

 

ऊपर से उड़-उड़ जाती है

बड़ी चील गाड़ी

रमला खड़ा दूर टीले पर

खुजलाता दाढ़ी

 

कभी बचाओ, कभी

भूख का, शोर सुनाई दे

लगता जैसे कक्षा में

कोई बोले इमला

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-08-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पर्यायवाची ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  पर्यायवाची ??

इसने कहा नेह,

उसने कहा देह,

फिर कहा नेह,

फिर कहा देह,

नेह…देह..,

देह…नेह..,

कालांतर में

नेह और देह

पर्यायवाची हो गए..!

 

© संजय भारद्वाज

प्रात: 8:35, 27.11.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 95 ☆ # पानी… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पानी… #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 95 ☆

☆ # पानी… # ☆ 

जिंदगी के खेल निराले हैं

यह समझ मे नही आने वाले हैं

कहीं बूंद बूंद को लोग तरसते हैं

कहीं तबाही लाने वाले हैं

 

मेघों पर दीवानगी छाई है

घनघोर घटाएं संग लाई है

बरस रहा है पानी ही पानी

पृथ्वी पर बाढ़ सी आई है

 

तूफान सब कुछ रौंद रहा है

आसमान दामिनी बनकर

कौंध रहा है

बह गये है गांव के गांव

इन्सान डर के मारे

मौन रहा है

 

कहीं पर आशियाने

लुट गए हैं

कहीं पर लाचारी में जीने

पीछे छूट गये है

ना शरीर पर वस्त्र

ना सर पर छत

ईश्वर जैसे उनसे

रूठ गये है

 

यह मेघों की कैसी

दीवानगी है

धरती पर फैली त्रासदी है

बाढ़ प्रलय बन गई है

मानव के हाथ

बस बेचारगी है

 

कहीं वर्षा नहीं तो अकाल है

कहीं खूब वर्षा तो काल है

जग में पानी ही तो जीवन है

कहीं बिना पानी हाल-बेहाल है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 107 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 107 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 107) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 107 ?

☆☆☆☆☆

तुम्हें बहुत गुरूर है कि तुम्हें

चाहने वाले बहुत हैं और…

हमें ये कि हमारी तरह तुम्हें

कोई चाह ही नहीं सकता…!

You feel too proud that you’ve

too many people loving you

And me; that no one can

ever love you like me…!

☆☆☆☆☆ 

 अक्सर वही दिए ,

हाथों को जला देते हैं,

जिन्हें हम हवा से

बचा रहे होते हैं…!

Often the same lamps

burn our hands,

That we keep protecting

from the wind…!

☆☆☆☆☆ 

 चेहरा तो शायद मिल जाएगा

हम से भी खूबसूरत…

पर जब बात दिल की आएगी

तो फिर क्या करोगे…!

Face, probably, you may find

ever better than mine, but…

When it comes to the heart,

tell me, what will you do…!

☆☆☆☆☆ 

कितनी खुदगर्ज़ हैं

ये तेरी यादें भी…

मतलब-बेमतलब कभी

भी चली आती हैं…!

 

How selfish are these

memories of yours…

They just keep visiting

whenever they feel like…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दर्प ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज ससम्मान  प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण एवं सार्थक कविता दर्प। )  

☆ कविता – दर्प ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

दर्प करना न्याय कहाँ?

’मैं’ में सिमटकर रहना सही कहाँ?

अपनी परिधि से निकलकर,

असीमित दुनिया में निकलकर,

स्वयं की बनानी एक पहचान,

मत कर अंधविश्वास, ज़रा सोचना

अमन के प्रकाश में मात्र ’हम’,

ताप की आग में तपता मात्र ’मैं’,

कभी किया था जूगनु ने भी दर्प,

लगा मात्र उससे होती रोशनी दुनिया में,

मात्र उससे ही, सोच ज़रा…

गलतफहमी में जी रहा था वह,

प्रकृति के आधार का टूटा गर्व,

चांद ने ली जगह जुगनू की,

चांदनी फैलाकर किया दर्प चांद ने भी,

सूरज ने दिखाई सही जगह चांद की,

संसार है नश्वर, अनुकर्षण,

दुनिया की क्षणभंगुरता को पहचान,

तत्वहीन… भ्रमित संसार में,

स्वमोह से मत कर गर्व,

नीर के बुलबुले पर मत लिख,

सीमित है शब्द ’मैं’, समझ नादां…

मत कर कोशिश नाकाम

मनचाहे शब्दों को….

असीमित बनाने की,

शाश्वत सत्य है ’हम’

जहां में मूल्य है ’हम’

विष्णुअवतार ने तोड़ा दर्प

रावण, हिरण्यकश्यप, कंस का

हुआ जय-जयकार

राम, नरसिंहावतार, कृष्ण का

न दर्प का अंश कृष्ण में

न तेरा न मेरा मात्र हमारा

कर विश्वास मात्र संसार में ’हम’

दर्प नहीं किया ब्रह्मा ने कभी

न अधिकार इन्सान को कभी,

अहंकार करने का …..

बह जाने दो इस शब्द को,

संसार रुपी सागर में

घुल जाने दो …..

शुभस्य शीघ्रम,

मात्र’ ’हम’… मात्र’ ’हम’।

©  डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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