हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 130 ☆ भक्तिपरक दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 130 ☆

भक्तिपरक दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

 वागीशा लिखवा रहीं, जीवन का मकरंद।

छंद रचें मनहर सुखद , पुष्पित हो आनंद।।

शब्द – शब्द माधुर्य हो, शब्द बनें मधुमास।

कृष्ण प्रेम की बाँसुरी, नित्य रचाए रास।।

सबके अपने भाव हैं, कुछ का संत स्वभाव।

ग्रंथ पढ़ें हम ज्ञान के, कभी न डूबे नाव।।

आपस में सबका रहे, प्रेम भाव संवाद।

भक्ती का आलोक ही, गाए मीठे नाद।।

मन में हो शुचि व्याकरण, भरता ज्ञान प्रकाश।

सत्य पंथ आलोक से, लोभ – क्रोध हो नाश।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#152 ☆ विजयदशमी पर्व विशेष – पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है विजयदशमी पर्व पर विशेष रचना  “पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ…”)

☆  तन्मय साहित्य # 152 ☆

☆ विजयदशमी पर्व विशेष – पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

पर्व दशहरा तमस दहन का

करें सुधार, स्वयं के मन का।

पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ

फिर दूजों को हम समझाएँ।

 

संस्कृति औ’ संस्कार हमारे

प्रेम शांति के बोल उचारे,

पर्वोत्सव ये परम्पराएँ

 

खूब ज्ञान की, बातें कर ली

लिख-लिख कई पोथियाँ भर ली,

नेह भाव खुद भी अपनाएँ

 

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”

नहीं काम के, तेरे – मेरे,

यही सीख तो हमें सिखाए।

 

प्रवचन औ’ उपदेश चले हैं

पर खुद स्वारथ के पुतले हैं,

जनसेवा को कदम बढ़ाएँ

 

रावण आज, जलेंगे काले

मन में व्यर्थ, भरम ये पाले,

मन के कलुषित भाव जलाएँ

 

कल से वही कृत्य फिर सारे

मिटे नहीं, मन के अँधियारे,

दुराग्रही, दंभी, मिट जाएँ।

 

परम्पराएँ आज निभा ली

अन्तर्मन खाली का खाली,

रावण मन का आज जलाएँ

 

हिलमिल रहें, परस्पर सारे

मिटे तमस, फैले उजियारे,

गीत प्रीत के मन से गाएँ।

 

चलो!आज अपने को तोलें

नेह किवाड़, हृदय के खोलें,

राम-राज्य वापस फिर आये।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 41 ☆ नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ सलमा जमाल जी द्वारा नवरात्र पर्व पर रचित विशेष रचना  “कुष्मांडा देवी… ”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 41 ✒️

? नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-  डॉ. सलमा जमाल ?

(स्वतंत्र कविता)

नवरात्रि के चौथे दिन ,

कूष्मांडा की उपासना ।

विधि, मंत्र, भोग, पूजा से ,

दूर होती सभी यातना ।।

 

देवी की आठ भुजाएं ,

अष्ठभुजी कहलाती ,

धनुष, बाण ,कमल, कलश ,

चक्र – गदा – सुहाती ,

आठवें हाथ जपमाला ,

जिससे करें उपासना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

वाहन सिंह और निवास ,

सूर्य मंडल माना जाता ,

देवी को सूर्य देव की ,

ऊर्जा जाना जाता ,

यश,बल,आयु में वृद्धि हो,

करो मां की साधना ।

नवरात्रि ————————– ।।

 

करें स्मरण सांचे मन से ,

परिवार रहे खुशहाल ,

सुख – समृद्धि और निरोगता ,

रहे हज़ारों साल ,

मालपुए का भोग लगा ,

कपूर – गुलाब चढ़ावना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

बेल मूल पे चतुर्थी को ,

इत्र – मिट्टी – दही चढ़ाऐं ,

फल स्वरुप मनवांछित फल ,

“सलमा “भक्त जन पाऐं ,

जय कुष्मांडा मां कर दो,

पूर्ण सब की कामना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 53 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 53 – मनोज के दोहे….  

1 कृतार्थ

मन कृतार्थ तब हो गया, मिला मित्र संदेश।

याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।

2 कलकंठी

कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।

वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मन मोर।।

3 कुंदन

दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।

यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।

4 गुंजार

चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।

कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्य प्रदेश।।

5 घनमाला

घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।

बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

24-9-2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्र विशेष – कल्याणी ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ नवरात्र विशेष – कल्याणी  ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(विधा-कुण्डलियाँ)

कल्याणी नौ रूप रख, करती है उपकार ।

जग जननी ममता मयी, महिमा अपरम्पार ।।

महिमा अपरम्पार, ज्ञान की ज्योति जलाती ।

अंतस जागृत श्रेष्ठ, शरण में लाज बचाती ।।

 जपे योगिता नित्य,करे जयकारा वाणी ।

रहे समर्पित भाव, सदा माने कल्याणी ।।1!!

हे  कल्याणी कर कृपा, माता ब्रह्म  स्वरूप ।

अद्भुत दिखती तेज मय, सुंदर रूप अनूप ।।

सुंदर रूप अनूप, योगिता मोहित चरणन ।

अष्टभुजी है मात, कृपा कर जगदम्बें जन ।।

पूजे प्रेमा भाव, कहे माँ जग की त्राणी ।

भजते आठों याम, हृदय बस हे कल्याणी ।।2!!

कल्याणी माँ शारदा, देना इक वरदान ।

भक्ति- शक्ति अरु ज्ञान दें, छंद साधिका मान ।

छंद साधिका मान, श्रेष्ठ लिख  रचना तेरी ।

करती हूँ गुणगान,  कष्ट को हरना मेरी ।।

प्रेमा तो मतिमंद ,अमृत भर दें अब वाणी ।

सुर में  गाऊँ गीत, कृपा कर माँ कल्याणी ।।3!!

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजातशत्रु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना (नवरात्र साधना)

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।

अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

मंगल भव। 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – अजातशत्रु ??

उगते सूरज को

अर्घ्य देता हूँ;

पश्चिम रुष्ट हो जाता है,

डूबते सूरज को

वंदन करता हूँ;

पूरब विरुद्ध हो जाता है,

मैं कितना भी चाहूँ

रखना समभाव,

कोई न कोई

पाल ही लेता है वैरभाव,

तब कालचक्र ने सिखाया,

अनुभव ने समझाया,

प्रथम या मध्यम पुरुष

निर्धारित नहीं कर सकता,

उत्तम पुरुष की आँख में

बसती है अजातशत्रुता..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 108 – सुमित्र के दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सुमित्र के दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 108 – सुमित्र के दोहे  ✍

 

हे ! चेतन हे! ज्योतिर्मय, परम शक्ति के रूप ।

कितनी संज्ञा,विशेषण, कितने विविध स्वरूप।।

*

राम रूप में पधारे, कृष्ण रूप अवतार ।

राधा, मीरा, जानकी, रूपों का विस्तार।।

*

कठिन ज्ञान की साधना, निर्गुण का संधान ।

रूप लुभाता ह्रदय को , करुणा कृपा निधान।।

*

राघव माधव तुम्हीं हो, सृष्टि चेतना केंद्र ।

तुम ही विराजे प्रलय में, करुणा जगत गजेंद्र।।

*

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 110 – “इस अतृप्ति के महासमर में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत –इस अतृप्ति के महासमर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 110 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “इस अतृप्ति के महासमर के” || ☆

सभी सदस्यों को इस घर के

बोझ पिता जी थे

मन बहलाने को बच्चों का-

रोज, पिता जी थे i

 

सब के तानों का हुजूम

उन पर टूटा करता

सदा ठीकरा अगर बुरा

उन पर फूटा करता

 

अपनी आँखों में उदासियाँ

और हँसी मुख पर

इस घर की सारी खुशियों

की खोज पिता जी थे

 

बाहर के कमरे में लेटे

रहते खटिया पर

दरवाजे, चबूतरे के

पत्थर के पटिया पर

 

रहें खाँसते भोजन की

अनवरत प्रतीक्षा में

इस अतृप्ति के महासमर

के भोज पिता जी थे

 

चौथा चरण डसे जाता

सम्मान प्रतिष्ठा को

किन्तु कभी कम नहीं किया

घर के प्रति निष्ठा को

 

और सूर्य सा आभा-मंडल

थे बिखेर देते

पूरे घर की गरिमाओं का

ओज पिता जी थे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-09-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैसा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना (नवरात्र साधना)

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।

अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

मंगल भव। 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – पैसा ??

पैसा कमाता है आदमी,

पैसे के पहियों पर

दौड़ने लगता है आदमी,

आदमी और पैसा कमाता है,

पैसे को लग जाते हैं पंख,

उड़ने लगता है आदमी,

आदमी बहुत पैसा कमाता है,

आदमी ढेर पैसा कमाता है,

निगाहों में चढ़ने लगता है आदमी,

अब पैसा खाता है आदमी,

अब पैसा पीता है आदमी,

पर पैसे की सवारी अब

नहीं कर नहीं पाता थुलथुला आदमी,

ज्यों-ज्यों ज़बान पर चढ़ता है पैसा,

त्यों-त्यों निगाहों से उतरता है आदमी,

इससे उस तक,

आदि से इति तक,

न कहानी बदलती है,

न नादानी बदलती है,

पैसा, आदमी की

नादानी पर हँसता है,

कवि, पैसे और आदमी की

कहानी पर हँसता है..!

आपका दिन सार्थक हो। 🍁

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 9:06 बजे, 2.11.20)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 100 ☆ # माता ! तेरा ही सहारा है… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “#माता ! तेरा ही सहारा है…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 100 ☆

☆ # माता ! तेरा ही सहारा है… # ☆ 

अंधकार में जग सारा है

दुःख दर्द का मारा है

भक्तों ने तूझे पुकारा है

माता! तेरा ही सहारा है

 

धरती पर कितना पाप बढ़ गया

अहंकार कुछ के सर चढ़ गया

सत्य कदम कदम पर हारा है

माता! तेरा ही सहारा है

 

घर घर में तेरी ज्योत जल रही

भक्ति भाव से तेरी पूजा चल रही

हाथ जोड़े तेरे दर पे

भक्त बेचारा है

माता! तेरा ही सहारा है

 

एक वर्ग कितना शोषित है

जोर ज़ुल्म से कितना पीड़ीत है

ढूंढ रहा  वह किनारा है

माता! तेरा ही सहारा है

 

मनोकामना तू पूरी कर दें

सब भक्तो की झोली भर दें

पोंछ लें इन आंखों से

जो बहती धारा है

माता! तेरा ही सहारा है

 

नवरात्रि के यह पावन नौ दिन

भक्ति, व्रत, पूजा करते है हर दिन

हर मंदिर में गूंजता

माता का जैकारा है

माता! तेरा ही सहारा है

 

इन अधर्मी यों को दंड दे माता

भक्तों को शक्ति प्रचंड दें माता

हर युग में, तूने ही तो तारा है

माता! तेरा ही तो सहारा है /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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