डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सुमित्र के दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 108 – सुमित्र के दोहे  ✍

 

हे ! चेतन हे! ज्योतिर्मय, परम शक्ति के रूप ।

कितनी संज्ञा,विशेषण, कितने विविध स्वरूप।।

*

राम रूप में पधारे, कृष्ण रूप अवतार ।

राधा, मीरा, जानकी, रूपों का विस्तार।।

*

कठिन ज्ञान की साधना, निर्गुण का संधान ।

रूप लुभाता ह्रदय को , करुणा कृपा निधान।।

*

राघव माधव तुम्हीं हो, सृष्टि चेतना केंद्र ।

तुम ही विराजे प्रलय में, करुणा जगत गजेंद्र।।

*

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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