हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #255 ☆ आतंक पर दोहे… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपके आतंक पर दोहे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 255 ☆

☆ आतंक पर दोहे☆ श्री संतोष नेमा ☆

मानवता मरती गई, जिंदा बस आतंक

जिनके मन की क्रूरता, खूब मारती डंक

*

बच्चे, बूढ़े, नौजवां, महिला बनीं  शिकार

नफ़रत की इस जंग में, प्रेम बड़ा लाचार

*

नफ़रत, हिंसा ईर्ष्या, नहीं सिखाता धर्म

जिनके मन आतंक हो, उनके खोटे कर्म

*

जिनके मन बस विकृति हो, वे आतंकी लोग

निर्दोषों को मारते, लगा खून का रोग

*

मानवता की लास पर, करते जो नित नृत्य

उनको क्या जन्नत मिले, जिनके हिंसक कृत्य

*

अपने खोटे करम पर, करते वही गुरुर

जिनके हिय न दीन-धरम, रहें अहम में चूर

*

हेती या अल्कायदा, हिजबुल्लाह हमास

सब आतंकी संगठन, करते सभी बिनास

*

अपने अपने अहम के, होते सभी शिकार

इनको कब संतोष हो, मन में रखें विकार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रश्नोत्तर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्रश्नोत्तर  ? ?

शब्दों में आकार लिए

तुम्हारे अनगिनत प्रश्न

और मेरा अकेला

पर निराकार मौन,

क्या और अधिक

विस्तृत उत्तर

अपेक्षित है तुम्हें?

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 248 ☆ बाल गीत – मम्मा इत्ते  छोटे दिन … ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 248 ☆ 

☆ बाल गीत – मम्मा इत्ते  छोटे दिन  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सूरज लगता बाल सुमन।

जगकर प्रातः करें नमन।।

नरम धूप सूरज की भइया

ता – ता – ता – ता थप्पक – थइया।।

बैठ धूप में मम्मा सुन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

 *

शाम गुलाबी , सुबह ठिठुरती।

रात की रानी खूब महकती।

हरसिंगार महक गुनगुन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

शीत सताए हवा ठुमकती।

बदरा बिजली कभी चमकती।

गाल गुलाबी , शीतल तन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

 *

कभी कुहासा, कभी उजाला।

धूप विटामिन डी का प्याला।

ओढ़ रजाई भरता मन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

 *

महक मोगरा मन है हरती।

चाँद चाँदनी खूब दमकती।

मम्मा इत्ते छोटे दिन।

सूरज लगता बाल सुमन।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #277 – कविता – ☆ कलरव… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता कलरव…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #277 ☆

☆ कलरव… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

सुबह शाम वृक्षों के झुरमुट में

बैठती पंचायतें

दिनभर की हलचल का, करें सब बखान

पंछियों का होता नित, मृदु कलरव गान।

 

सूर्योदय भोर के, प्रकाश में विभोर हो

गाते नित मिले-जुले, स्वरों में प्रभाती

गौरैया, तोते, तीतर, बटेर कोयल सँग

जुड़ जाते काग भी, कबूतर,मैना साथी,

मिला-जुला मोहक कलरव प्रवाह

मधुरिम सी तान,

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

 

दाना-पानी तलासते, दिन भर यहाँ-वहाँ

पेट की जुगाड़ में, न देखते नदी पहाड़

मीलों की दूरियाँ, खग नापते इधर-उधर,

चुगना देते शिशुओं को, करते नेह लाड़,

गोधूलि बेला संध्या पूजन सँग

आरती-अजान

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

 

कलरव जल-जंगल का, मन का संताप हरे

नदियों की हँसती, इठलाती हर्षित लहरें

प्रणव गान प्रकृति में,  गुंजित है  निश्छल सा

पोषित करती फसलें, जल अमृतमय नहरें

खग,मृग,जल-जंगल को, सुनें-गुनें

प्रकृति विधान

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

 

दायित्वों को समझें, जो हमें निभाना है

गर भौरों की गुंजन, कलरव सुख पाना है

हरे-भरे वन, पर्यावरण शुद्ध स्वच्छ रखें

प्राणिमात्र के प्रति, सद्भाव शुभ दिखाना है

भूखे-प्यासे न रहे, ये निरीह पशु-पक्षी

रखें सदा ध्यान,

पंछियों का होता नित

मृदु कलरव गान।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 101 ☆ राजा जी की ड्योढ़ी ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “राजा जी की ड्योढ़ी” ।)       

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 101 ☆ राजा जी की ड्योढ़ी ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

राजा जी की ड्योढ़ी चढ़-चढ़

अब तो पाँव पिराने

दिन बदले न रातें बदलीं

बदले सभी ठिकाने।

 

कहाँ लगाएँगे अर्जी

कुछ तो बतलाओ भाई

कौन करेगा ईमानों की

अपनी अब सुनवाई ।

 

तारीख़ें बदली हैं केवल

सदा लगे जुर्माने ।

 

पोंछ पसीना अगुवाई में

खड़े लगाए आशा

उम्मीदों में झूल रही है

आशा और निराशा

 

विश्वासों की बागुड़ टूटी

दर्द लगे चिल्लाने ।

 

दुख के घर में रहते

हरदम बस अभाव ही काटे

अनुदानों में बँटी रेवड़ी

अपने हिस्से घाटे

 

यद्यपि हक़ में लिखी गईं सब

कविताएँ,अफ़साने।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मलाल न कर ये वक्त भी गुजर जायेगा… ☆ श्री हेमंत तारे ☆

श्री हेमंत तारे 

श्री हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक,  चंद कविताएं चंद अशआर”  शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक ग़ज़ल – मलाल न कर ये वक्त भी गुजर जायेगा।)

✍ मलाल न कर ये वक्त भी गुजर जायेगा… ☆ श्री हेमंत तारे  

दर पर खडा  आज  भी  कोई  पूरनम  होगा

कौन  जाने  किसने  किसको  रुलाया   होगा

*

कर    लेते   थे   दीदार  बन्द  आंखों  से कभी

अब वो बीनाई न रही, ये उम्र का सितम होगा

*

फिज़ा     में   तहलील   महक   का  इशारा   है

तू परीशाँ न हो, वो यहीं कहीं, आस-पास होगा

*

सुना     है   के   वो   घिरा  रहता  है   रकीबों  से

जो वफ़ादार होगा वो ही ईश्क में क़ामयाब होगा

*

लाजिमी  है  के   कोई  राज पोशिदा ना रहे

किया है ईश्क, तो भरोसा भी जताना होगा

*

मलाल   न  कर   ये   वक्त   भी   गुजर   जायेगा

चन्द लम्हों कि है बात, अब शम्स जलवागार होगा

*

इतना बेबस भी न हो, कुछ कदम और चल,

उस  ख़म   पर  वाके   मयकदा  खुला   होगा

*

तू  खुशहाल  है “हेमंत”,  ये   महज  इत्तेफ़ाक  नही

बहुत किया है धूप का सफ़र, ये उसका असर होगा

(बीनाई = आंखों की रोशनी, फिज़ा = वातावरण, तहलील = घुली हुई, रकीब = मुहब्बत में प्रतिद्वंदी, पोशिदा = छिपा हुआ, शम्स = सूरज, ख़म = मोड , वाके = स्थित)

© श्री हेमंत तारे

मो.  8989792935

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ ग़ज़ल # 104 ☆ पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 104 ☆

✍ पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

दामन के बशर दाग छुपाने में लगे हैं

ये किसमें कमी क्या है गिनाने में लगे हैं

 *

पल अगला मिले या न मिले कुछ नहीं मालूम

सामान कई वर्ष जुटाने में लगे हैं

 *

पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला

माशूक को ग़म अपना सुनाने में लगे हैं

 *

कुत्ते की न हो पाई कभी पूछ है सीधी

हैवान को इंसान बनाने में लगे हैं

 *

औरों से बड़ा होना है खुद को बड़ा करना

पर दूसरों को लोग झुकाने में लगे हैं

 *

जो सोचते कल बच्चों का धन जोड़ बना दें

कर वो न हुनरमंद मिटाने में लगे हैं

 *

मुझपे वो सितम करने से तौबा करें इक दिन

जो सब्र  की बुनियाद हिलाने में लगे है

 *

ले नाम अरुण जिसका धकडता है मेरा दिल

महबूब मेरे मुझको भुलाने में लगे हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 98 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 4 ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे। 

इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 98 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 4 ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

कहीं से लौटकर हारे-थके जब अपने घर आये। 

तो देखा माँ के चेहरे पर समंदर की लहर आये। 

वहाँ आशीष की हरदम घटाएँ छायी रहती हैं, 

मुझे माता के चरणों में सभी तीरथ नजर आये।

0

ठान ले तू अगर उड़ानों की, 

रूह काँपेगी आसमानों की, 

जलजलों से नहीं डरा करते, 

नींव पक्की है जिन मकानों की।

0

माँ के बिना दुलार कहाँ है, 

पत्नी के बिन प्यार कहाँ है, 

बच्चों की किलकारी के बिन 

सपनों का संसार कहाँ है।

0

बेटी को उसका अधिकार समान मिले, 

पूरा करने उसको भी अरमान मिले, 

अगर सुशिक्षित और स्वावलंबी हो जाये 

तो पीहर में क्यों उसको अपमान मिले।

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कहन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कहन ? ?

तुमसे कुछ कहना था..,

आदि-अंत,

सुख-दुख,

जीवन-मृत्यु,

दिवस-रात्रि,

पूर्व-पश्चिम,

आँसू-हँसी,

प्रशंसा-निंदा,

न्यून-अधिक,

सहज-असहज,

सरल-जटिल,

सत्य-असत्य,

अँधकार-प्रकाश,

और विपरीत ध्रुवों पर बसे

ऐसे असंख्य शब्द,

ये सब केवल विलोम नहीं हैं,

ये सब युगल भी हैं,

बस इतना ही कहना था…!

?

© संजय भारद्वाज  

7:11 बजे संध्या, 16 अप्रैल 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 172 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 172 – मनोज के दोहे ☆

ग्रीष्म प्रतिज्ञा भीष्म सी, तपा धरा का तेज।

मौसम के सँग में सजी, बाणों की यह सेज।।

 *

सूरज की अठखेलियाँ, हर लेतीं हैं प्राण।

तरुवर-पथ विचलित करे, दे पथिकों को त्राण।।

 *

बना जगत अंगार है, धधक रहे अब देश।

कांक्रीट जंगल उगे, बदल गए परिवेश।।

 *

तपती धरती अग्नि सी, बनता पानी भाप।

आसमान में घन घिरें, हरें धरा का ताप ।।

 *

भू-निदाघ से तृषित हो, भेज रही संदेश।

इन्द्र देव वर्षा करो, हर्षित हो परिवेश।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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