हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 176 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 176 – मनोज के दोहे ☆

गुनिया धन है पा गया, बुधिया रहा गरीब।

शिक्षा का मतलब सही, पाएँ बड़ा नसीब।।

 *

मंजिल  रहती  सामने, चलने भर की देर।

बैठ गया थक-हार कर, पहुँचा वही अबेर।।

 *

भटक रहा मानव बड़ा, ज्ञानी मन मुस्काय।

ईश्वर का तू ध्यान कर, फिर आगे बढ़ जाय।।

 *

दगाबाज फितरत रहे, मत करिए विश्वास।

सावधान उससे रहें, जब तक चलती श्वास।।

 *

उलझन बढ़ती जा रही, सुलझाएगा कौन।

जिनको हम अपना कहें, क्यों हो जाते मौन।।

 *

उमर गुजरती जा रही, व्यर्थ करे है सोच ।

चलो गुजारें शेष अब, हट जाएगी मोच।।

 *

जितना तुझसे बन सके, करता जा शुभ काम।

ऊपर वाला लिख रहा, पाप पुण्य अविराम।।

 *

सुप्त ऊर्जा खिल उठे, जाग्रत रखो विवेक।।

सही दिशा में बढ़ चलो, राह मिलेगी नेक।।

 *

मन-संतोष न पा सका, बैठा पैर पसार।

लालच में उलझा रहा, मिला सदा बस खार।।

 *

उठो सबेरे घूमने, रोग न फटके पास।

स्वस्थ रहेंगी इन्द्रियाँ, मन मत रखो उदास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 237 – सुमित्र के दोहे… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं, आपके भावप्रवण दोहे।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 237 – सुमित्र के दोहे… ✍

मेरे मन की विफलता, तेरे मन का ताप ।

हैं लहरें एहसास की, कह जाती चुपचाप।।

*

मन को कसकर बांध लो, कड़ी परीक्षा द्वार ।

चाह रहा में हारना, तुम जीतो सरकार।।

*

नाम तुम्हारा कुछ नहीं, हम भी हैं बेनाम ।

अलग-अलग थे कब हुए, जाने केवल राम।।

*

आयु रूप की संपदा, सब कुछ है बेमेल ।

एकाकी अर्पित हुआ, यह किस्मत का खेल।।

*

 दिल के भीतर वायलिन, झंकृत है हर तार।

  भावों का पूजार्चन, साधे    बंदनवार।।

*

बार-बार में कर रहा, तर्क और अनुमान।

 सत्यापित कैसे करूं, जन्मों की पहचान।।

*

दो क्षण के सानिध्य ने, सौंप दिए मधुकोष।

तृषित आत्मा को मिला, अद्वितीय परितोष।।

*

प्रेम तृषा की वासना, अद्भुत तिर्यक रेख।

चातक मन की चाहना, मौन मुग्ध आलेख।।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 237 – “काँटा चुभता ही रहता-…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत काँटा चुभता ही रहता-...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 237 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “काँटा चुभता ही रहता-...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

माँ, आँगनसे घिसट-घिसट

ओसारे थी आयी ।

तभी अन्तरा से अब बन

पायी है स्थायी ॥

 

नहीं सुना करती थीं बहुयें

याचन भोजन का ।

माँ को देहरी से चौका

तो था सौ योजन का ।

 

पार नहीं कर पाती थी

दुख भरी लखन-रेखा-

यह दूरी माँ को बन

उभरी थी गहरी खाई ॥

 

गठिया का प्रकोप घुटनों

में ऐसे था बढ़ता ।

ज्यों बरसाती नाला थोड़े

जल में  है चढ़ता ।

 

दर्द दबाती फिर भी

काँटा चुभता ही रहता-

भोजन के मिलने में

था जो अविश्वास भाई ॥

 

रोटी का न मिलना

जीवन सार हीन दिखता ।

माँ का, सुत, विश्वास खो

चुका जबसे मरे पिता ।

 

बेचारी माँ, वैसे मन ही

मन में थी  चिन्तित –

आखिर मेरे लिये कौन

घर में उत्तरदायी ?

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

 संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – छोटापन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – छोटापन ? ?

स्थूल में दबी

सूक्ष्म आकांक्षाएँ,

सूक्ष्म आकांक्षाओं में बसी

स्थूल तुच्छताएँ,

बड़ा दिखने का

ढोंग भर भरता है,

आदमी भीतर से

प्राय:  छोटा ही निकलता है…!

?

© संजय भारद्वाज  

 15:49 बजे, 22.5.2035

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री महावीर साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता होली…।)

☆ होली… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

ब्रज में, उड़ रही खूब गुलाल,

होली, खेल रहे नन्द लाल,

राधा हाथ में, रंग लिए हैं,

सखियों को भी, संग लिए हैं,

मच रहा खूब धमाल,

होली, खेल रहे नन्द लाल,

कान्हा ने भी, रंग बरसाया,

रंगों का, बादल उमड़ाया,

धानी, चूनर हो गई लाल,

होली खेल रहे नंदलाल,

राधा कान्हा, दोनों संग में,

प्रेम रंग के, एक ही रंग में,

नाचे, सुर, दे दे के ताल,

होली खेल रहे नंदलाल,

धरती अम्बर, झूम रहे हैं,

अपने भाग्य को, चूम रहे है,

अखियां हुईं, निहाल,

होली खेल रहे नंद लाल.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 219 ☆ # “प्रेम का संदेशवाहक…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता प्रेम का संदेशवाहक…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 219 ☆

☆ # “प्रेम का संदेशवाहक…” # ☆

झुलसाती गर्मी में

बेमौसम

वर्षा की यह फुहारें

कितनी मन को सुकून दे पाती हैं  

शरीर और आत्मा

दोनों को

भीतर और बाहर से

कितनी ठंडक पहुंचाती हैं  

घर हो या बाहर

सड़क पर या दफ्तर

चिलचिलाती धूप में

गर्मी का कहर

देह को पसीने से

तर-बतर कर देता है

अंदर उमस और बेचैनी

भर देता है

तब शीतल हवा का एक झोंका

पंखे से हो या  कूलर से हो

या ए सी से हो

या नीम के पेड़ से

शरीर और मन को

शीतलता देता है

मन हर लेता है

ऐसी तपन में

कहीं से

एक ठंडे पानी का प्याला

मिल जाए तो लगता है

की वर्षों की प्यास बुझ गई

जीवन जीने की एक

आस जग गई

अमराई के

कच्चे आम का शरबत

नींबू का रस भरा शरबत

या गन्ने का मसाले वाला

मीठा रस

ठंडी हवा देता हुआ

खिड़की का खस

स्वर्गीय आनंद देता है

दिलों पर छा जाता है

इस मौसम में

दो प्यासे तन

दो प्यासे मन

जब एक हो जाते हैं

तब वह

प्रेम का संदेशवाहक बनकर

सारी कायनात पर

छा जाते हैं ./

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ मनुष्यता… ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ मनुष्यता… डॉ जसवीर त्यागी 

एक समय के बाद

चीज़ें खराब होकर टूटने लगती हैं

 

हम उनको

तत्काल बाहर नहीं फेंक पाते

 

अपने जीवन में उनकी उपयोगिता को

स्मृतियों की खूँटी पर बांधकर रखते हैं

 

धीरे-धीरे समय का सूर्य तेज होता है

एक दिन हमें लगता है

टूटी हुई चीज़ को ठीक नहीं किया जा सकता

वे अपना सर्वश्रेष्ठ बहुत पहले अर्पित कर चुकी हमें

 

और किसी दिन

हम टूटी हुई चीजों की निरर्थकता को निरखते हुए

उन्हें घर से बाहर कर देते हैं

 

टूटी हुई चीजों को

एक झटके में अपने से दूर नहीं कर पाते हम

कुछ दिनों तक अपने पास रखते हैं उन्हें

 

यह पास रखना ही

मनुष्यता को बचाकर रखना है।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 236 – दर्शन दे उजियारो ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  – मुक्तिका)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 236 ☆

☆ दर्शन दे उजियारो ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

☆ 

वल्कल-पर्ण वसन धारो माँ!

सुमन सुमन से सिंगारो माँ!

सफल सुफल फल भोग लगाओ-

कंद-मूल ले उपकारो माँ!

ले मकरंद मधुप आए हैं

ग्रहण करो उद्धारो

शारद! शत वंदन स्वीकारो…

.

अली-कली जस गाते माता!

रवि-शशि दीप जलाते माता!

तितली नर्तित करें अर्चना-

जुगनू जगमग भाते माता!

तारक गण आरती उतारें

दे वरदान निहारो

शारद! शत वंदन स्वीकारो…

.

कमल वदन मृगनैनी मैया!

दिव्य छटा पिकबैनी मैया!

करतल हैं गुलाब से कोमल-

भव्य नव्य शुचि सैनी मैया!

चरण चमेली हरसिंगारी

चंदन भाल सँवारो

शारद! शत वंदन स्वीकारो

.

बेला वेणी सोहे जननी!

बाला महुआ मोहे जननी!

सूर्यमुखी माथे की बिंदी-

गुड़हल करधन बाँधे जननी!

कर भुजबंध पलाशी कलियाँ

चंपा बाला धारो

शारद! शत वंदन स्वीकारो

.

माया मोह वासना घेरे

क्रोध लोभ लेते पग फेरे

काम न आते रिश्ते-नाते

लूटें, आँख तरेरे

अँगुरी थामो मातु दुलारो

शारद! शत वंदन स्वीकारो

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२३.५.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ कुछ क्षणिकाएं… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ कुछ क्षणिकाएं… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

(२३ मई विश्व विवशता दिवस और विश्व कछुआ दिवस के उपलक्ष्य में)

[ १ ]

नेपथ्य में

सुविधाजीविता

स्टेज पर अभिनीत

मजबूरी

दिखा देती है सच से

मीलों दूरी

[ २ ]

विवशता

स्वयं को विवश पा रही है

महंगाई डायन की तरह

अपना कद

बढ़ाती ही जा रही है।।

[ ३ ]

बहुत लुभाती हैं

सोने की जंजीरें

बाँधते बाँधते

खोलती जाती हैं

तुम्हारा हर राज़

धीरे धीरे।।

[ ४ ]

नदियों को

कूड़ादान बनाकर

खाली पीली बहसते हो

वृथा हैं तुम्हारे

वाद और प्रतिवाद

सुनाई नहीं देता

उनका आर्त्तनाद।।

[ ५ ]

हमें पता है

तुम रावण के सिर

आसानी से गिन लोगे

पर मजबूरी के कितने ?

जवाब कहाँ से दोगे।।

[ ६ ]

जंगल उजाड़कर

पर्यावरण की

रक्षा करोगे

मौसम दुर्वासा है

 बच न सकोगे

कोप से।।

[ ७ ]

लगभग

समान हैं दोनों के

गुणधर्म

कछुए की फितरत और

मजबूरी का मर्म।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सत्य… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सत्य…  ? ?

जितनी बातें

गुप्त समझी गईं,

उनके रहस्य

खुल गए

कभी न कभी..,

पर जगत में

अपवाद का

सिद्धांत भी बना रहा,

पारदर्शी होने पर भी

सत्य का गुपित

सदा बना रहा..!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:19 बजे, 22.5.2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री महावीर साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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