(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं उनकी एक भावप्रवण गीत “गीत – मुझको दो प्यारी सौगातें”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 70 – साहित्य निकुंज ☆
☆ गीत – मुझको दो प्यारी सौगातें ☆
मन की पीड़ा सुन लो अब तुम,
मुझको दो प्यारी सौगातें।
जीवन के खालीपन को तुम,भर दो सुख से प्यारी रातें।।
झेली हमने अब तक पीड़ा,
जीवन में अब सुख बरसाओ।
मैं सपनों का शहजादा हूं
अपनी पीड़ा मुझे सुनाओ।
बार बार में कहता तुमसे,दे दो मुझको बीती बातें।।
मुझे सौंप दो आंसू सागर,
कंटक सारे दुख के बादल
चहक उठेंगी तेरी खुशियां
छटे सारे दुख के बादल।
खुशी तुम्हारे कदम चूमती,ले लो मुझसे सारी रातें।।
किया समर्पित अपनेपन को,
पूजा के सब भाव सजाकर।
दिया जलाया मन के अंदर
आरत की थाली ही बनकर।
विरहाग्नि शांत हुई अब तो,
कर दो प्यार की बरसातें।
मन की पीड़ा सुन लो अब तुम,मुझको दो प्यारी सौगातें।
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं “छह मुक्तक”.)
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना “फिर कुछ दिन से…” । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 72 ☆ फिर कुछ दिन से… ☆
(हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह समय-समय पर “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत चुनिंदा रचनाएँ पाठकों से साझा करते रहते हैं। हमारा आग्रह है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। आज प्रस्तुत है श्री अमरेन्द्र नारायणजी की एक विचारणीय कविता “सौहार्द्र बढ़ाने की बातें !”।)
☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ सौहार्द्र बढ़ाने की बातें !☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें सफर रिश्तों का तथा मृग तृष्णा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता मंजर शहीद के घर का। )
Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>> मृग तृष्णा
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 23 ☆मंजर शहीद के घर का ☆
कैसा मंजर होगा उस शहीद के घर का,
जिस घर से माँ का आशीर्वाद लेकर वो सरहद पर गया था ||
टिकट था मगर रिजर्वेशन नही मिला,
सरहद पर तत्काल पहुंचो कैप्टन का पैगाम आया था ||
अफ़सोस किसी ने उसकी एक ना सुनी,
रिज़र्वेशन कोच से बेइज्जत कर उसे नीचे उतार दिया ||
लोग तमाशाबीन बने देख रहे थे,
उन्होने भी उसे ही दोषी ठहरा कर अपमानित किया ||
जनरल डिब्बा ठसाठस भरा हुआ था,
किसी ने भी उसे बैठने क्या खड़ा भी नहीं होने दिया ||
सामान की गठरी बना गैलरी में बैठ गया,
पैर समेटता रहा, आते-जाते लोगों की ठोकरे खाता रहा ||
सरहद पर दुश्मन गोले बरसा रहा था,
उसे जल्दी पहुंचना जरूरी था इसलिए हर जिलालत सहता रहा ||
पत्नी की याद में थोड़ा असहज हो रहा था,
उसका मेहंदी भरा हाथ आँखों के सामने बार-बार आ रहा था ||
माँ का नम आँखों से उसे विदा करना,
माँ का कांपता हाथ उसे सिर पर फिरता महसूस हो रहा था ||
-2-
पिता के बूढ़े हाथों में लाठी दिख रही थी,
सिर टटोलकर आशीर्वाद देता कांपता हाथ उसे दिख रहा था ||
पत्नी चौखट पर घूंघट की आड़ में उसे देख रही थी,
उसकी आँखों से बहता सैलाब वह नम आँखों से महसूस कर रहा था ||
दुश्मन के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया,
दुश्मन ने उसे पकड़ लिया और निर्दयता से सिर धड़ से अलग कर दिया ||
इतना जल्दी वापिस लौटने का पैगाम आ जाएगा,
विश्वास ना हुआ, बाहर भीड़ देखकर घर में सब का दिल बैठ गया ||
नई नवेली दुल्हन अपने मेहँदी के हाथ देखने लगी,
किसी ने खबर सुनाई उसका जांबाज पति देश के काम आ गया ||
कांपते हाथों से माँ ने बेटे के सिर पर हाथ फेरना चाहा,
देखा सिर ही गायब था, माँ-बहू का हाल देख पिता भी घायल हो गया ||
पिता ने खुद को संभाला फिर माँ-बहू को संभाला,
कांपते हाथों से सलामी दी, कहा फक्र है मुझे मेरा बेटा देश के काम आया ||
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “साँचा”। )
आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –