हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 105 ☆ कविता – बेटी ! मत बन मेरी जैसी ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता  ‘बेटी ! मत बन मेरी जैसी’।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 105 ☆

☆ कविता – बेटी ! मत बन मेरी जैसी — ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

ना जाने क्यों

मुझे आईने में

आज अपना नहीं

माँ का चेहरा नजर आया

पनीली-सी आँखें

बोल उठीं मुझसे

छोड़ दिया ना

तुम्हें भी सबने अकेला ?

बेटी ! माँ हूँ तेरी

पर मत बन मेरे जैसी |

घर के कामों को निपटाती

इधर-उधर, ऊपर-नीचे, आती-जाती

बोलोगी खुद से

सवाल तुम्हारे,

जवाब भी तुम्हारे ही होंगे | 

सन्नाटे को चीरती आवाज,

लौटेगी तुम तक बार-बार

टी. वी. चलाकर –

दूर करना चाहोगी,

घर में पसरे सूनेपन को

पर कोई नहीं तुम्हारी बात सुननेवाला |

मानों मेरी बात  |

बेटी ! माँ हूँ तेरी

पर मत बन मेरे जैसी |

शुरू हो गई है प्रक्रिया

तुम्हें पागल बनाने की

बड़े सलीके से

आईने में दिखती आँखें

मानों रो रही थीं –

कह रही थीं –

निकलो बाहर इस

भीतर – बाहर के सूनेपन से

इससे पहले तुम्हें कोई

पागल करार दे

बेटी ! माँ हूँ तेरी

पर मत बन मेरे जैसी |

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

आज का साधना मंत्र  – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – उत्सवधर्मी ??

जीवन की अंतिम घड़ी,

श्यामल छाया सम्मुख खड़ी,

चित्र चक्र-सा घूमा;

क्षण भर विहँसा ;

छाया के संग चल पड़ा,

छाया विस्मित.. !

जीवन से वितृष्णा

या जीवन से प्रीत?

न वितृष्णा न प्रीत;

ब्रह्मांड की सनातन रीत,

अंत नहीं तो आरंभ नहीं,

गमन नहीं तो आगमन नहीं,

मैं आदि सूत्रधार हूँ,

आत्मा का भौतिक आकार हूँ,

सृष्टि के मंच का रंगकर्मी हूँ,

सृजन का सनातन उत्सवधर्मी हूँ!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 135 ☆ बाल कविता – खेल खिलौने टुनटुन वाले… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 135 ☆

☆ बाल कविता – खेल खिलौने टुनटुन वाले… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

नौनू – मौनू की है जोड़ी

कभी खेलते घोड़ा – घोड़ी।।

 

घुँघरू बजते रुनझुन – रुनझुन

निश्छल मनभावन बड़े मगन।।

 

खेल खिलौने टुनटुन वाले

खेल खेलते हैं मतवाले।।

 

चूमें – झूमें  प्यार बढ़ाते

तनिक नहीं हैं वे शरमाते।।

 

सीख सिखाएँ हमको हरदम।

प्रेम सत्य है बाजे सरगम।।

 

ईश्वर के हैं रूप निराले

खुशियों से भर देते प्याले।।

 

बचपन है प्यारा सतरंगा

जैसे पावन बहती गंगा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मुझे कहिये अलविदा…” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता – ☆ “मुझे कहिये अलविदा…” ☆ श्री कमलेश भारतीय  

मैं जब

इस दुनिया में नहीं रहूंगा

उस दिन सबको

कितना अच्छा लगूंगा !

 

एकदम सबको मुझमें

खूबियां ही खूबियां नज़र आयेंगीं !

 

कल तक मैं

कितना बुरा था !

आज दुनिया से चला गया तो

इतना प्यारा लगने लगा !

यानी मेरे होने से ही

सारी समस्यायें थीं

और मेरे न होने से

यह दुनिया कितनी सूनी हो गयी !

वाह ! मेरा न होना

कितना अच्छा है

और मेरा होना

कितना बड़ा दुखांत !

 

आप संभालिये

अपनी यह दुनिया !

मुझे कहिये अलविदा

और कभी भूले भी

याद न करना

इस सबसे खराब आदमी को !

आप सब कितने अच्छे हो !

भगवान् आपको सुखी रखे !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 47 ☆ ग़ज़ल – तभी समझो दीवाली… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल “तभी समझो दीवाली”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 47 ✒️

? ग़ज़ल – तभी समझो दीवाली…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

ग़रीबी और अमीरी का,

फ़र्क़ देता नहीं शोभा ।

यही अन्तर जब मिट जाए ,

तभी समझो है दिवाली ।।

 

सत्य की राह हम चुन लें,

राम आदर्श हों अपना ।

आतंक के बादल छठ जाऐं ,

तभी समझो है दिवाली ।।

 

हम सब मुस्कुराऐं तो ,

लगे छूटीं हैं फुलझरियां ।

अंधेरे दिल से हट जाएं ,

तभी समझो है दिवाली ।।

 

दहेज रूपी इस दानव को ,

आज संहारो मिल यारो ।

लेनदेन पे घर न बट जाऐं ,

तभी समझो है दिवाली ।।

 

जले मानवता का दीपक ,

प्रेम की उसमें हो बाती ।

सुख भारत में सिमट  आये ,

सलमा समझो है दिवाली ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 58 – सजल – रामराज्य का सपना खोया… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “रामराज्य का सपना खोया… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 58 – सजल – रामराज्य का सपना खोया… 

समांत- इया

पदांत- में

मात्राभार- 16

 

प्रजातंत्र की इस बगिया में।

खुशियाँ रूठीं हैं कुटिया में ।।

 

रामराज्य का सपना खोया,

भ्रष्टाचारों की कुठिया में ।

 

भीत खड़ी हैं भेद भाव की,

लटकीं हैं फोटो खुटिया में।

 

हिंदुस्तानी बचे कहाँ हैं,

सभी सो गए हैं खटिया में।

 

हवलदार की ताकत होती,

उसकी वर्दी सँग लठिया में।

 

खेत और खलिहान कृषक के,

देकर बैठे हैं अधिया में ।

 

चलो बचाएँ वर्षा-पानी,

भर-भरकर अपनी लुटिया में।

 

…………………..

6 सितम्बर 2021

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विस्मय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

बुधवार 9 नवम्बर से मार्गशीष साधना आरम्भ होगी। इसका साधना मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – विस्मय ??

वे दिखते हैं

जनवादी और

प्रगतिशील मंचों पर

‘सांस्कृतिक अस्मिता’ की

बखिया उधेड़ते हुए,

संस्कृति और इतिहास की

रक्षा के लिए सन्नद्ध खेमों में

‘वाम’ शब्द के अक्षरों और

मात्रा के चीथड़े करते हुए,

घोर साम्प्रदायिक आयोजनों और

सरकारी सेकुलरों की जमात में

समानुपाती संतुलन बनाते हुए,

हर तरह की सत्ता से

करीबी नाता जोड़

व्यवस्था को सदा गरियाते हुए,

अनुदान, प्रकाशन;

पुरस्कार की फेहरिस्त पर छाते हुए,

‘विद्रोही’ से लेकर

‘उपासक’ तक की उपाधि पाते हुए,

सुनो साथियो!

मैं चकित हूँ

अपने समय पर,

राजनीति और साहित्य की

अंतररेखा का अपहरण हुए

अरसा बीत गया और

हमें पता भी न चला!

मैं सचमुच चकित हूँ!!

© संजय भारद्वाज 

( बुधवार, दि 31.5.2017, प्रातः 11.08)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ संदेशपूर्ण चौपाईयाँ ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ संदेशपूर्ण चौपाईयाँ  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मानवता का धर्म निभाना। ख़ुद को चोखा रोज़ बनाना।।

बुरे सोच को दूर भगाना। प्रेमभाव को तुम अपनाना।।(1)

 

दयाभाव के फूल खिलाना। पर-उपकारी तुम बन जाना।।

झूठ कभी नहिं मन में लाना। मानव बनकर ही दिखलाना।।(2)

 

निर्धन को तुम निज धन देना। उसके सारे दुख हर लेना।।

भूखे को भोजन करवाना। करुणा का तुम धर्म निभाना।।(3)

 

अंतर में उजियारा लाना। द्वेष,पाप तुम दूर भगाना।।

लोभ कभी नहिं मन में लाना। ख़ुद को सच्चा संत बनाना।।(4)

 

ईश्वर को तुम नहिं बिसराना। अच्छे कामों के पथ जाना।।

अपनी करनी को चमकाना। मानवता का सुख पा जाना।।(5)

 

भजन,जाप को तुम अपनाना। मंदिर जाकर ध्यान लगाना।।

वंदन प्रभुजी का नित करना। अपने पापों को नित हरना।।(6)

 

अहंकार को दूर भगाना। विनत भाव को उर में लाना।।

कोमलता से प्रीति लगाना। संतों की सेवा में जाना।।(7)

 

भजन,आरती में खो जाना। सद् वाणी प्रति राग जगाना।।

बुरी बात हर ,परे हटाना। दुष्कर्मों को आज मिटाना।।(8)

 

जीवन को नहिं व्यर्थ गँवाना। दान,पुण्य से प्रीति लगाना।।

हर प्राणी से दया दिखाना। स्वारथ को तो दूर भगाना।।(9)

 

नैतिकता के पथ पर चलना। समय गँवा,नहिं आँखें मलना।।

मानव बन ही रहना होगा। गंगा जैसा बहना होगा।।(10)

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 113 – गीत – तुम कैसे सब सहती हो ? ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – तुम कैसे सब सहती हो ।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 113 – गीत – तुम कैसे सब सहती हो ✍

पल-पल विकल हुआ करता हूं तुम कैसे सब सहती हो।

कली सरीखी सुबह चटकती छा जाती है अरुणाई

एहसासों का सूरज सिर पर छाया करती पहुनाई

छाया कहां दहा करती है लगता तुम ही दहती हो।

लगता समय बहा जाता है कौन कहां पर ठहरा है

कामयाब क्या होगी मरहम गांव जहां पर गहरा है

नीर नयन से बहता रहता लगता तुम ही बहती हो।

क्षण भर भूल नहीं पाता हूं याद कहां से आएगी

भूल भटक कर आ भी जाए छवि अपनी ही पाएगी

ध्यान और धूनी में क्या है केवल तुम ही रहती हो ।

पल-पल विकल हुआ करता हूं तुम कैसे सब सहती हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 115 – “साधते हों सगुन…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “साधते हों सगुन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 115 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “साधते हों सगुन” || ☆

इस समूचे दिवस

का आलेख-

ज्यों रहा है लिख ।

समय का मंतिख ।

 

घूप कैसी हो

व कैसी छाँव ।

गली महतो की

रुकें ओराँव ।

 

साधते हों सगुन

देहरी पर ।

तो दिखे पोती

हुई कालिख ।

 

एक ही ओजस्व

का दाता ।

जिसे सारा विश्व

है ध्याता ।

 

शाक पर है वही

निर्भर देवता ।

तुम जिसे समझा

किये सामिख ।

 

इस लगन पर

सब नखत एकत्र ।

करेंगे प्रारंभ

अनुपम सत्र ।

 

पक्ष में होंगी

सभी तिथियाँ |

यही देंगे वर

शुभंकर रिख ।

 

मंतिख = भविष्य वक्ता,

सामिख= सामिष

लगन= लग्न

नखत= नक्षत्र

रिख= ऋषि

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

04-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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