हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “मानुष हौं तो वही रसखानि” – भाग – 2 ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆ “मानुष हौं तो वही रसखानि” - भाग - 2 ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆ कृष्णभक्त रसखान के सवैयों का काव्यानुभव (उत्तरार्ध) प्रिय पाठकगण सस्नेह वंदन!   जन्माष्टमी का पर्व हमने उत्साह सहित मनाया! उस पावन पर्व के अवसर पर हम कृष्णभक्त रसखान के ‘मानुष हौं तो वही रसखानि’ इस काव्य के अन्य सवैयों का काव्यानंद अनुभव करेंगे| धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी। खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥ वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी। काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥ उपरोक्त सवैये में एक गोपी अपनी सखी से कृष्ण के सुंदर रूप का वर्णन करते हुए कहती है, “अरी सखी, देख तो, धूल में खेलते खेलते कृष्ण का पूरा शरीर धूल से धूमिल हो गया है, कितना सुंदर लग रहा है ना! और हाँ देख उसके घुंघराले बाल कितनी खूबसूरती से बंधे हैं, एक चोटी उसके सर पर कैसी सज रही है (भले ही द्वारका जाकर उसे सोने...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 159 ⇒ अच्छे विचारों का अकाल… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "अच्छे विचारों का अकाल"।) अभी अभी # 159 ⇒ अच्छे विचारों का अकाल… श्री प्रदीप शर्मा  आजकल मौलिक और अच्छे विचारों का इतना अभाव हो गया है, कि मेरा यह शीर्षक भी मौलिक नहीं है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पुस्तक "अच्छे विचारों का अकाल" इसका जीता जागता उदाहरण है, जिसके लेखक प्रसिद्ध पर्यावरणविद श्री अनुपम मिश्र हैं। श्री मिश्र का इतना ही परिचय पर्याप्त है कि वे सुविख्यात कवि श्री भवानीप्रसाद मिश्र के सुपुत्र हैं। मनुष्य ईश्वर की एक अनुपम कृति है। मनुष्य को इस जगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी यूं ही नहीं माना जाता। हमारी संभावनाओं का आकाश कितना विस्तृत और विशाल है, हम ही नहीं जानते। सीखने से ही तो जानना शुरू होता है। सतत अभ्यास, चिंतन मनन और...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “मानुष हौं तो वही रसखानि” – भाग – 1 ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆ “मानुष हौं तो वही रसखानि” - भाग - 1 ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆ कृष्णभक्त रसखान के सवैयों का काव्यानुभव (पूर्वार्ध) प्रिय पाठकगण सस्नेह वंदन! प्रसिद्ध कृष्ण भक्त रसखान ब्रज भाषा के कवि हैं! वल्लभ सम्प्रदाय को संत वल्लभाचार्य ने प्रारम्भ किया| जब से गोकुल वल्लभ संप्रदाय का केंद्र बना, ब्रजभाषा में कृष्ण पर साहित्य लिखा जाने लगा। इस प्रभाव ने ब्रज (मथुरा गोकुल वृन्दावन की) की बोली भाषा को एक प्रतिष्ठित साहित्यिक भाषा बना दिया। सूरदास और रसखान की कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत मधुर ब्रजभाषा भाषा में रचित काव्य अत्यंत सुंदर भावानुभूति कराता है। उनके काव्य का मुख्य विषय 'कृष्णलीला' है। उसकी गहराई का अनुभव करना हो तो रसखान की कविताओं को पढ़ना ही एकमात्र उपाय है। इस लेख में, मैंने उनके प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण कुछ 'सवैये' नामक प्रसिद्ध काव्य प्रकार का अंतर्भाव करते हुए उनका रसग्रहण करने का प्रयत्न किया है| सैयद इब्राहिम खान उर्फ रसखान का जन्म काबुल (१५७८) में हुआ था और उनकी मृत्यु वृन्दावन (१६२८)...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 210 ☆ उड़ जाएगा हंस अकेला..! श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।” हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।) ☆  संजय उवाच # 210 ☆ उड़ जाएगा हंस अकेला..! आनंदलोक में विचरण कर रहा हूँ। पंडित कुमार गंधर्व का...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 158 ⇒ सुखासन… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "सुखासन"।) अभी अभी # 158 ⇒ सुखासन… श्री प्रदीप शर्मा  जब घरों में सोफे कुर्सियां नहीं थीं, तब आगंतुक को सबसे पहले बैठने के लिए आसन दिया जाता था। अगर बैठक हो, तो बैठने की व्यवस्था होती थी, अगर किसी गरीब के घर में तखत चारपाई अथवा टूटी फूटी कुर्सी भी ना हो, तो जमीन पर ही आसन, दरी, अथवा चटाई बिछा दी जाती थी। किसी भी आरामदायक स्थिति को आसन कहते हैं। नंगी जमीन पर बैठना अशुभ माना जाता है। यही आसन योगासन का भी एक प्रमुख अंग है। अष्टांग योग यम, नियम और आसन प्राणायाम से ही तो शुरू होता है, लेकिन सच तो यही है कि आसन प्राणायाम को ही लोग योग समझ बैठे हैं। वैसे प्राणायाम...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #200 ☆ समय–सर्वश्रेष्ठ उपहार ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख समय–सर्वश्रेष्ठ उपहार। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)  ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 200 ☆ ☆ समय–सर्वश्रेष्ठ उपहार ☆ आधुनिक युग में बढ़ रही प्रतिस्पर्द्धात्मकता की भावना ने बच्चों, परिवारजनों व समाज में आत्मकेंद्रिता के भाव को जहां पल्लवित व पोषित किया है; वहीं इसके भयावह परिणाम भी सबके समक्ष हैं। माता-पिता की अधिकाधिक धन कमाने की लिप्सा ने, जहां पति-पत्नी में अलगाव की स्थिति को जन्म दिया है; वहीं उनके हृदय में उपजे संशय, शंका,...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 156 ⇒ दिवा-स्वप्न (फैंटेसी)… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "दिवा-स्वप्न (फैंटेसी) "।) अभी अभी # 156 ⇒ दिवा-स्वप्न (फैंटेसी)… श्री प्रदीप शर्मा    मैं तो एक ख्वाब हूं, इस ख्वाब से तू प्यार ना कर ! गोपियों के तो मन दस बीस नहीं थे, लेकिन जब हम सो जाते हैं, तब भी स्वप्न में हमारा मन जागता रहता है, लेकिन क्योंकि हम सोये हुए रहते हैं, इसलिए यह मन अवचेतन मन कहलाता है। हमारे चेतन होते ही यह अवचेतन मन सो जाता है। अब उनका क्या, जो उठते जागते भी सपने देखा करते हैं। आप इन्हें दिवा स्वप्न भी कह सकते हैं और खयाली पुलाव भी। मन की गति को कोई नाप नहीं पाया। कल्पना लोक में विचरने के लिए यह स्वतंत्र है। जहां रवि की नहीं पहुंच, वहां पहले से...
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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हिंदी दिवस विशेष 🇮🇳 राष्ट्रभाषा : मनन-मंथन-मंतव्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) संजय दृष्टि – हिंदी दिवस विशेष 🇮🇳 राष्ट्रभाषा : मनन-मंथन-मंतव्य - संजय भारद्वाज, अध्यक्ष, हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे भाषा का प्रश्न समग्र है। भाषा अनुभूति को अभिव्यक्त करने का माध्यम भर नहीं है। भाषा सभ्यता को संस्कारित करने वाली वीणा एवं संस्कृति को शब्द देनेवाली वाणी है। किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति नष्ट करनी हो तो उसकी भाषा...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 155 ⇒ संन्यासियों का राजयोग… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "संन्यासियों का राजयोग"।) अभी अभी # 155 ⇒ संन्यासियों का राजयोग… श्री प्रदीप शर्मा  संन्यास मनुष्य जीवन की वह श्रेष्ठतम अवस्था है, जहां ज्ञान, विवेक और वैराग्य अपनी चरम अवस्था में पहुंच जाते हैं। एक संन्यासी का कोई अतीत नहीं होता, कोई रिश्तेदार नहीं होता, अस्मिता अहंकार से परे उसके लिए मोक्ष के द्वार सदा खुले रहते हैं। चार वर्णों के आश्रम में संन्यास का स्थान अंतिम है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ के बाद की अवस्था है संन्यास। अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति को ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य माना गया है। अगर ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करते हुए संन्यास का भाव जागृत हो जाए तो अर्थ और काम से मुक्त हो साधक धर्म और मोक्ष का मार्ग भी अपना...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #150 – आलेख – “ओजोन कवच की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” (सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक शिक्षाप्रद आलेख - “ओजोन कवच की आत्मकथा”) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 149 ☆  ☆ आलेख - “ओजोन कवच की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆ मैं हूं ओजोन कवच, पृथ्वी की पारदर्शक छत। मैं वायुमंडल के ऊपरी भाग में मौजूद हूं, जहां से मैं सूर्य से आने वाले हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करता हूं। ये विकिरण मनुष्यों, पौधों और जानवरों के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं। वे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान और अन्य कई बीमारियों का कारण बन सकते हैं। मेरी खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। उन्होंने सूर्य से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कुछ...
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