(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का नवरात्रि पर्व पर विशेष विचारणीयआलेख स्त्री सम्मान और नवरात्र । इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 77 ☆
☆ नवरात्रि विशेष – स्त्री सम्मान और नवरात्र ☆
जहाँ हमारी संस्कृति में नार्याः यत्र पूज्चयनते रमन्ते तत्र देवता का उद्घोष था, दुखद स्थिति है कि आज प्रति दिन महानगरो में ही नही छोटे बड़े कस्बो गांवो तक में स्त्री के प्रति अपराधो की बाढ़ सी आ गई लगती है. एक ओर तो महिलायें देश के लिये ओलम्पिक में कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, लड़कियां अंतरिक्ष में जा रही हें, सेना में स्थान बना रही हैं, जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष को कड़ी प्रतियोगिता दे रही हैं तो दूसरी ओर स्त्रियो को लैंगिक भेदभाव, केवल स्त्री होने के कारण अनेक बलात अपराधो का सामना करना पड़ रहा है. कोई समाचार पत्र उठा लें, कोई चैनल चला लें नारी के प्रति पीड़ा भरी, प्रत्येक सभ्य मनुष्य को मर्माहत करने वाली खबरें देखने सुनने को मिल जाती हैं. मनोरंजन हेतु आयोजित किये जाने वाले ऑर्केस्ट्रा आदि के आयोजनो में नृत्य कला के नाम पर अश्लीलता दिनों दिन सारी सीमायें लांघ रही है. इन आयोजनो में स्त्री को केवल देह के रूप में, उपभोग की वस्तु के रूप में दिखाया-सुनाया जा रहा है. लोक नृत्य व विशेष रूप से भोजपुरी संगीत के नाम पर फूहड़ गीत धार्मिक आयोजनो का भी हिस्सा बन चुके हैं. हरियाणा के अनेक गांवो की चौपालो के मंचो पर सार्वजनिक रूप से बेहूदे डांस के आयोजन मनोरंजन व राजनैतिक दलो द्वारा भीड़ जुटाने हेतु परम्परा का हिस्सा बन रहे हैं.
अनेक अभियानों, प्रयासों और कानूनी प्रावधानों के बावजूद देश में महिलाओं के प्रति हिंसा और यौन दुराचार की घटनाएं रुक नहीं रही हैं.विडम्बना है कि डेढ़-दो साल तक की बच्चियों के साथ भी दुराचार की खबरें आती हैं. विवाह में दहेज व अल्पायु में विवाह की कुरीति पर किसी हद तक नियंत्रण हो रहा है तो दूसरी ओर अभी भी हमारी मुस्लिम बहनो के प्रति कट्टरपंथी सोच के चलते समुचित न्याय नही हो पा रहा. विज्ञापनो में नारी शरीर का उन्मुक्त प्रदर्शन, फैशन की अंधी दौड़ में स्वयं स्त्रियो द्वारा नारी स्वातंत्र्य व पुरुष से बराबरी के नाम पर दिग्भ्रमित वेषभूषा व जीवन शैली अपनाई जा रही है. सिने जगत युवा पीढ़ी का प्रबल मार्गदर्शक होता है, किन्तु देखने मिला कि आदर्शो की जगह खलनायको का महिमा मण्डन हाल की कुछ फिल्मो के माध्यम से हुआ. फिल्मी कलाकार नशे के गिरफ्त में दिखे ।
स्त्री के प्रति बढ़ती हिंसा व अपराध के अनेक कारण हैं पर सबसे प्रमुख कारण महिलाओं को केवल एक शरीर बना देना है. मीडिया, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री, बाजार सभी ही उन्हें वस्तु बनाने और उन्हें वस्तु होना समझाने में लगे हैं. महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, स्वयं स्त्री को बड़ी ही चतुराई से इसमें सहभागी बनाया जा रहा है. कानून की सरासर अवमानना करते हुये अवयस्क किशोर भी ऐसे मनोरंजन के आयोजनो में शामिल होते हैं जिनमें स्त्री को बेहूदे नृत्यो के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. इस सबका नव किशोरो के कोमल मन पर जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है उसी का दुष्परिणाम है कि निर्भया जैसे प्रकरणो में किशोर बच्चे भी अपराधी की भुमिका में पाये गये हैं. ऐसी सामाजिक परिस्थिति में स्त्रियों के लिए समता-समानता के संवैधानिक संकल्प को पूरा कर पाना तो दूर की बात है, लैंगिक न्याय, लैंगिक सम्वेदीकरण आदि के सामान्य से सामान्य कार्यक्रम भी सफल नहीं हो सकते। अश्लीलता हमारी लोक संस्कृति के अपार भण्डार और सांस्कृतिक धरोहर को भी ख़त्म कर रही है।चिंतन मनन का विषय है कि अश्लीलता को बढ़ावा देनेवाले लास्य और कामुकता के बीच का, और अच्छे और बुरे कार्यक्रम के बीच का अंतर स्थापित किया जावे. स्त्री को समाज में सम्मान का स्थान तभी मिल सकेगा जब हम किशोरों में, युवाओ में लड़कियो के प्रति सम्मान की भावना के संस्कार अधिरोपित करने में सफल हो सकेंगे.
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक हाइबन “नक्शे का मंदिर”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन # 68 ☆
☆ नक्शे का मंदिर ☆
नक्शे पर बना मंदिर। जी हां, आपने ठीक पढ़ा। धरातल की नीव से 45 डिग्री के कोण पर बना भारत के नक्शे पर बनाया गया मंदिर है। इसे भारत माता का मंदिर कह सकते हैं। इस मंदिर की छत का पूरा नक्शा भारत के नक्शे जैसा हुबहू बना हुआ है। इसके पल में शेष मंदिर का भाग है।
इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता है । भारत के नक्शे के उसी भाग पर लिंग स्थापित किए गए हैं जहां वे वास्तव में स्थापित हैं । सभी बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन इसी नक्शे पर हो जाते हैं।
कांटियों वाले बालाजी का स्थान कांटे वालों पेड़ की अधिकता के बीच स्थित था। इसी कारण इस स्थान का नाम कांटियों वाले बालाजी पड़ा। रतनगढ़ के गुंजालिया गांव, रतनगढ़, जिला- नीमच मध्यप्रदेश में स्थित भारत माता के इस मंदिर में बच्चों के लिए बगीचे, झूले, चकरी आदि लगे हुए हैं । इस कारण यह बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जीद्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “अवसरवादी”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 38 – अवसरवादी ☆
जो एक बार कार्य में हीला हवाली करता है ,उसे दुबारा कभी भी अवसर नहीं देना चाहिए। ऐसा एक संस्था प्रमुख ने अपने अधीनस्थ से कहा।
सर, बिना न नुकुर के तो कोई अच्छे कार्य आज तक हुए ही नहीं है। आखिर थोड़ा बहुत नक्शा तो दिखाना ही पड़ता है।
सही कहा, सरल कार्य को कठिन बना कर, रास्ते को बाधित करते हुए जीने की कला तो नौकरशाहों को सबसे पहले सिखाई जाती है। यही तो एटीट्यूट कहलाता है। सफल ऑफिसर वही माना जाता है, जो अपने लिए दुर्गम राहों से भी राह निकाल लेता है, और दूसरों को उसमें उलझा कर रख देता है।
जी सर, मेरा तो मानना है कि कोई कितना भी अच्छा क्यों न हो यदि कहने से न चले तो उसे बाहर का रास्ता दिखाने में देरी नहीं करनी चाहिए। कोई किसी को न तो बढ़ा सकता है न घटा सकता है। व्यक्ति स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता होता।
बिल्कुल सही ,अब मेरी कार्यशैली आपको समझ में आने लगी है। स्थायी कुछ भी नहीं होता है। जो कार्य करना चाहता है, उसे रास्ते भी मिलते हैं और मददगार भी। जब सब कुछ आपको दिया गया है तो उसे बेहतर कर के दिखाइए अन्यथा दूसरों को मौका देना होगा।
जी सर जी, यह एक बड़ा सत्य है। अक्सर लोग ये शिकायत करते दिखते हैं कि मुझे कोई महत्व नहीं देता। कारण साफ है , जब आप उपयोगी बनेंगे, तभी पूछ परख बढ़ेगी। कार्य गुणवत्तापूर्ण हो, कुछ नयापन हो, सबसे महत्वपूर्ण बात उससे मानवता को लाभ पहुँचे। ऐसे लोग जो जरूरत के समय बहानेबाजी करें, उन्हें दुबारा अवसर न दें। हमेशा बैकअप प्लान तैयार रखें। सबसे महत्वपूर्ण स्वयं को तराशें, वन मैन आर्मी को ही सब पसंद करते हैं। अधिकारी वही बनता है , जो जरूरत पड़ने पर हर कार्य को बखूबी कर सके। अक्सर व्यक्ति आखिरी क्षणों में ही हिम्मत हार जाता है। और धैर्य खो देता है। बस वहीं से उसकी तरक्की रुक जाती है।
सही कहा आपने। दो लोगों की लड़ाई में सही परिणाम नहीं आने पाता, जो बलशाली हुआ उसी की तरफ पड़ला झुक जाता है। तटस्थ लोग ही इसके दोषी होते हैं क्योंकि सेफ जोन के चक्कर में वे मूक दर्शक बन कर पूरी फिल्म का आनन्द उठाते हैं ,सर जी।
ऐसे लोग भी हमको चाहिए क्योंकि भीड़तंत्र की आवश्यकता संस्थाओं को पड़ती ही है।
जी सर , अब पूरी तस्वीर मेरी आँखों में छप चुकी है। अब दुबारा आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा।
चलिए देर आये दुरस्त आये कहते हुए संस्था प्रमुख हँस दिए।
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं “दो मुक्तक”.)
☆ जीवनरंग ☆ बोध कथा – कृतघ्न वाघ ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी ☆
||कथासरिता||
(मूळ –‘कथाशतकम्’ संस्कृत कथासंग्रह)
बोध कथा
कथा ३. कृतघ्न वाघ
एका अरण्यात एक वाघ रहात होता. अरण्यातील प्राण्यांना मारून तो आपली उपजीविका करीत असे. एकदा त्याने रानातील रेड्याला मारून त्याचे भक्षण केले. तेव्हा रेड्याचे एक हाड वाघाच्या दातात अडकले व चिकटून बसले. त्याने ते काढण्याचा खूप प्रयत्न केला. पण व्यर्थ! ते हाड काही केल्या निघेना. दातातून पू व रक्त वाहू लागले. तो वेदनेने तळमळू लागला.शेवटी तो वाघ झाडाच्या बुंध्यापाशी जबडा पसरून बसला. हे हाड कसे निघेल? मी जिवंत राहीन की नाही? काय करावे? या विचारांनी वाघ चिंताग्रस्त झाला.
अचानक त्याचे लक्ष झाडावर बसलेल्या कावळ्याकडे गेले. अंधःकारात जणू दीपदर्शनच! त्याने कावळ्याला आपली व्यथा कथन केली. पुढे तो कावळ्याला म्हणाला, “जर तू माझ्या मुखातून हाड काढून मला जीवदान दिलेस, तर मी तुला दररोज मी शिकार केलेल्या प्राण्याचे मांस तुझ्या अपेक्षेप्रमाणे देईन. माझ्यावर एवढे उपकार कर.” वाघाने वारंवार प्रार्थना केल्याने व त्या पशुश्रेष्ठाचे दुःख पाहून कावळ्याला दया आली. वाघाच्या मुखात प्रवेश करून त्याने ते हाड काढले, व वाघाला वेदनामुक्त केले.
नंतर वचन दिल्याप्रमाणे, ”आता तू मला मांस दे” अशी कावळ्याने वाघाला विनंती केली. तेव्हा, “माझ्या मुखात प्रवेश करून तू मला त्रास दिलास, त्यामुळे मी असंतुष्ट आहे. तू वर माझ्याकडे मांस मागतोस? तू क्षणभरही इथे थांबू नकोस. दूर जा!” असे वाघाने कावळ्याला सुनावले.
तात्पर्य – संकटकाळात ज्याने मदत केली आहे अशा व्यक्तीचे लोकांना सुखकारक काळात विस्मरण होते.