हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ संभावना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ संभावना

एक आयु के बाद

प्रसूति की संभावनाएँ

निरंतर घटती जाती हैं,

चिकित्साशास्त्र कहता है…,

एक आयु के बाद

प्रसूति की संभावनाएँ

निरंतर बढ़ती जाती हैं,

काव्यशास्त्र कहता है…!

अनुकूल, प्रतिकूल से परे

सदा विजिगीषु रहता है,

संभावना का अपना

एक शास्त्र होता है…!

 

आज मिली कालावधि प्रसूत हो।

©  संजय भारद्वाज 

21.10.2020,  रात्रि 10.01 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य #77 ☆ नवरात्रि विशेष – स्त्री सम्मान और नवरात्र ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  नवरात्रि पर्व पर विशेष विचारणीयआलेख स्त्री सम्मान और नवरात्र ।  इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी  का  हार्दिकआभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 77 ☆

☆ नवरात्रि विशेष स्त्री सम्मान और नवरात्र ☆

जहाँ हमारी संस्कृति में नार्याः यत्र पूज्चयनते रमन्ते तत्र देवता का उद्घोष था, दुखद स्थिति है कि आज प्रति दिन महानगरो में ही नही छोटे बड़े कस्बो गांवो तक में  स्त्री के प्रति अपराधो की बाढ़ सी आ गई लगती है. एक ओर तो महिलायें देश के लिये ओलम्पिक में कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, लड़कियां अंतरिक्ष में जा रही हें, सेना में स्थान बना रही हैं, जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष को कड़ी प्रतियोगिता दे रही हैं तो  दूसरी ओर स्त्रियो को  लैंगिक भेदभाव, केवल स्त्री होने के कारण अनेक बलात अपराधो का सामना करना पड़ रहा है.  कोई समाचार पत्र उठा लें, कोई चैनल चला लें नारी के प्रति पीड़ा भरी, प्रत्येक सभ्य मनुष्य  को मर्माहत करने वाली खबरें  देखने सुनने को मिल जाती हैं. मनोरंजन हेतु आयोजित किये जाने वाले  ऑर्केस्ट्रा आदि के आयोजनो में नृत्य कला के नाम पर अश्लीलता दिनों दिन सारी सीमायें लांघ रही है. इन आयोजनो में स्त्री  को केवल देह के रूप में, उपभोग की वस्तु के रूप में दिखाया-सुनाया जा रहा है. लोक नृत्य व विशेष रूप से भोजपुरी संगीत के नाम पर फूहड़ गीत धार्मिक आयोजनो का भी हिस्सा बन चुके हैं. हरियाणा के अनेक गांवो की चौपालो के मंचो पर सार्वजनिक रूप से बेहूदे डांस के आयोजन मनोरंजन व राजनैतिक दलो द्वारा भीड़ जुटाने हेतु  परम्परा का हिस्सा बन रहे हैं.

अनेक अभियानों, प्रयासों और कानूनी प्रावधानों के बावजूद देश में महिलाओं के प्रति हिंसा और यौन दुराचार की घटनाएं रुक नहीं रही हैं.विडम्बना है कि डेढ़-दो साल तक की बच्चियों के साथ भी दुराचार की खबरें आती हैं. विवाह में दहेज व अल्पायु में विवाह की कुरीति पर किसी हद तक नियंत्रण हो रहा है तो दूसरी ओर अभी भी हमारी मुस्लिम बहनो के प्रति कट्टरपंथी सोच के चलते समुचित न्याय नही हो पा रहा. विज्ञापनो में नारी शरीर का उन्मुक्त प्रदर्शन,  फैशन की अंधी दौड़ में स्वयं स्त्रियो द्वारा नारी स्वातंत्र्य व पुरुष से बराबरी के नाम पर दिग्भ्रमित वेषभूषा व जीवन शैली अपनाई जा रही है. सिने जगत युवा पीढ़ी का प्रबल मार्गदर्शक होता है, किन्तु देखने मिला कि आदर्शो की जगह खलनायको का महिमा मण्डन हाल की कुछ फिल्मो के माध्यम से हुआ. फिल्मी कलाकार नशे के गिरफ्त में दिखे ।

स्त्री के प्रति बढ़ती हिंसा व अपराध के अनेक कारण हैं पर सबसे प्रमुख कारण महिलाओं को केवल एक शरीर बना देना है. मीडिया, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री, बाजार सभी ही उन्हें वस्तु बनाने और उन्हें वस्तु होना समझाने में लगे हैं. महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, स्वयं स्त्री को बड़ी ही चतुराई से इसमें सहभागी बनाया जा रहा है. कानून की सरासर अवमानना करते हुये अवयस्क किशोर भी ऐसे मनोरंजन के आयोजनो में शामिल होते हैं जिनमें स्त्री को बेहूदे नृत्यो के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. इस सबका नव किशोरो के कोमल मन पर जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है उसी का दुष्परिणाम है कि निर्भया जैसे प्रकरणो में किशोर बच्चे भी अपराधी की भुमिका में पाये गये हैं. ऐसी सामाजिक परिस्थिति में स्त्रियों के लिए समता-समानता के संवैधानिक संकल्प को पूरा कर पाना तो दूर की बात है, लैंगिक न्याय, लैंगिक सम्वेदीकरण आदि के सामान्य से सामान्य कार्यक्रम भी सफल नहीं हो सकते। अश्लीलता हमारी लोक संस्कृति के अपार भण्डार और सांस्कृतिक धरोहर को भी ख़त्म कर रही है।चिंतन मनन का विषय है कि अश्लीलता को बढ़ावा देनेवाले लास्य और कामुकता के बीच का, और अच्छे और बुरे कार्यक्रम के बीच का अंतर स्थापित किया जावे. स्त्री को समाज में सम्मान का स्थान तभी मिल सकेगा जब हम किशोरों में, युवाओ में लड़कियो के प्रति सम्मान की भावना के संस्कार अधिरोपित करने में सफल हो सकेंगे.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन# 68 – नक्शे का मंदिर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक हाइबन   “नक्शे का मंदिर। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन  # 68 ☆

☆ नक्शे का मंदिर ☆

 नक्शे पर बना मंदिर। जी हां, आपने ठीक पढ़ा। धरातल की नीव से 45 डिग्री के कोण पर बना भारत के नक्शे पर बनाया गया मंदिर है। इसे भारत माता का मंदिर कह  सकते हैं। इस मंदिर की छत का पूरा नक्शा भारत के नक्शे जैसा हुबहू बना हुआ है। इसके पल में शेष मंदिर का भाग है।

इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता है । भारत के नक्शे के उसी भाग पर लिंग स्थापित किए गए हैं जहां वे वास्तव में स्थापित हैं । सभी बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन इसी नक्शे पर हो जाते हैं।

कांटियों वाले बालाजी का स्थान कांटे वालों पेड़ की अधिकता के बीच स्थित था। इसी कारण इस स्थान का नाम कांटियों वाले बालाजी पड़ा।  रतनगढ़ के गुंजालिया गांव, रतनगढ़, जिला- नीमच मध्यप्रदेश में स्थित भारत माता के इस मंदिर में बच्चों के लिए बगीचे, झूले, चकरी आदि लगे हुए हैं । इस कारण यह बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

कटीले पेड़~

नक्शे पर सेल्फी ले

फिसले युवा।

~~~~~~~

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

09-09-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 38 ☆ अवसरवादी ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “अवसरवादी”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 38 – अवसरवादी ☆

जो एक बार कार्य में हीला हवाली करता है ,उसे दुबारा कभी भी अवसर नहीं देना चाहिए। ऐसा एक संस्था प्रमुख ने अपने अधीनस्थ से कहा।

सर, बिना न नुकुर के तो कोई अच्छे कार्य आज तक हुए ही नहीं है। आखिर थोड़ा बहुत नक्शा तो दिखाना ही पड़ता है।

सही कहा,  सरल कार्य को कठिन बना कर,  रास्ते को बाधित करते हुए जीने की कला तो नौकरशाहों को सबसे पहले सिखाई जाती है। यही तो एटीट्यूट कहलाता है। सफल ऑफिसर वही माना जाता है, जो अपने लिए दुर्गम राहों से भी राह निकाल लेता है, और दूसरों को उसमें उलझा कर रख देता है।

जी सर, मेरा तो मानना है कि कोई कितना भी अच्छा क्यों न हो यदि कहने से न चले तो उसे बाहर का रास्ता दिखाने में देरी नहीं करनी चाहिए। कोई किसी को न तो बढ़ा सकता है न घटा सकता है। व्यक्ति स्वयं ही अपने भाग्य का  निर्माता होता।

बिल्कुल सही ,अब मेरी कार्यशैली आपको समझ में आने लगी है। स्थायी कुछ भी नहीं होता है। जो कार्य करना चाहता है, उसे रास्ते भी मिलते हैं और मददगार भी। जब सब कुछ आपको दिया गया है तो उसे बेहतर कर के दिखाइए अन्यथा दूसरों को मौका देना होगा।

जी सर जी, यह एक बड़ा सत्य है। अक्सर लोग ये शिकायत करते दिखते हैं कि मुझे कोई महत्व नहीं  देता। कारण साफ है , जब आप उपयोगी बनेंगे, तभी पूछ परख बढ़ेगी। कार्य गुणवत्तापूर्ण हो, कुछ नयापन हो, सबसे महत्वपूर्ण बात उससे मानवता को लाभ पहुँचे। ऐसे लोग जो जरूरत के समय बहानेबाजी करें, उन्हें दुबारा अवसर न दें। हमेशा बैकअप प्लान तैयार रखें। सबसे महत्वपूर्ण स्वयं को तराशें, वन मैन आर्मी को ही सब पसंद करते हैं। अधिकारी वही बनता है , जो जरूरत पड़ने पर हर कार्य को बखूबी कर सके। अक्सर व्यक्ति आखिरी क्षणों में ही हिम्मत हार जाता है। और धैर्य खो देता है। बस वहीं से उसकी तरक्की रुक जाती है।

सही कहा आपने। दो लोगों की लड़ाई में सही परिणाम नहीं आने पाता, जो बलशाली हुआ उसी की तरफ पड़ला झुक जाता है। तटस्थ लोग ही इसके दोषी होते हैं क्योंकि सेफ जोन के चक्कर में वे मूक दर्शक बन कर पूरी फिल्म का आनन्द उठाते हैं ,सर जी।

ऐसे लोग भी हमको चाहिए क्योंकि भीड़तंत्र की आवश्यकता संस्थाओं को पड़ती ही है।

जी सर , अब पूरी तस्वीर मेरी आँखों में छप चुकी है। अब दुबारा आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा।

चलिए देर आये दुरस्त आये कहते हुए संस्था प्रमुख हँस दिए।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 45 ☆ दो मुक्तक ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  “दो मुक्तक.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 45 ☆

☆ दो मुक्तक  ☆ 

 

भारती के मान पर अभिमान होना चाहिए।

देशभक्तों का सदा सम्मान होना चाहिए।

जो वतन पर जान की बाजी लगाकर मर-मिटे,

उन शहीदों के नाम हिन्दुस्तान होना चाहिए।।

 

धर्म कविता का परस्पर प्यार होना चाहिए।

शब्दशः सद्भाव का संचार होना चाहिए।

भेद ना हो बाहरी बर्ताव का दिल से कभी,

कवि हृदय का सत्य ही औजार होना चाहिए ।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्रि विशेष☆ देवी गीत – महिमा मां बड़ी तुम्हारी है …….. ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित नवरात्रि पर्व पर विशेष  देवी गीत महिमा मां बड़ी तुम्हारी है……..। ) 

☆ नवरात्रि विशेष  ☆ देवी गीत – महिमा मां बड़ी तुम्हारी है …….. ☆

नवरात्रि पर्व में पूजा की महिमा मां बड़ी तुम्हारी है

हर गाँव शह , घर घर जन जन में पूजा की तैयारी है

 

सबके मन भाव सुमन विकसे, मौसम उमंग से पुलकित है

हर मंदिर मढ़िया देवालय में, भीड़ भक्त की भारी है

 

सात्विक मन की पूजा सबकी होती अक्सर है फलदायी

संसार तुम्हारी करुणा का, मां युग युग से आभारी है

 

श्रद्धा के सुमन भरा करते, जीवन में  मधुर सुगंध सदा

आशीष चाहता इससे मां, तेरा हर चरण पुजारी है

 

अनुराग और विश्वास जिन्हें है अडिग तुम्हारे चरणों में

उन पर करुणा की वर्षा करने की माता अब बारी है

 

कई रूपों, नामों धामों में, है व्याप्त तुम्हारी चेतनता

अति भव्य शक्ति, गुण की, महिमा तव जग में हे माँ न्यारी है

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे – श्रीचामुण्डेश्वरी चरणावली – ६ ☆ श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

तांबडी जोगेश्वरी या पुण्याच्या ग्रामदेवतेचे मंदिर स्थापनेपासून व त्यानंतरचे पेशवेकालीन वर्णन आजच्या चारोळ्यांमध्ये गुंफलं आहे.

रुणुझुणुत्या पाखरा

या चालीवर म्हणून पहाव्यात खूप छान वाटतात.

– साधक उर्मिला इंगळे

☆ केल्याने होतं आहे रे ☆

???श्रीचामुण्डेश्वरी चरणावली -६ ?

!!श्रीराम समर्थ!!

 

जोगेश्वरी तांबडी ती

ग्रामदेवता पुण्याची

ग्राम संरक्षक देवी

वर्षे तीनशें पूर्वीची !!

 

आहे उल्लेख पुराणीं

नाम तिचे योगेश्वरी

रुप प्राकृत तियेचे

शोभे नाम जोगेश्वरी !!

 

वध ताम्रासुराचा तो

पराक्रम करणारी

चतुर्भुजा स्वयंभू ती

नवसाला पावणारी !!

 

हाती डमरु त्रिशूळ

पानपात्र नि मुंडके

ताम्रासुरास वधून

रुप आगळे झळके !!

 

मूर्ती रहस्य आख्यान

जीव शिव एकरुप

पुण्यामध्ये स्थिरावले

जोगेश्वरी निजरुप !!

 

दिले खाजगीवाल्यांनी

बांधुनिया देवालय

जिवाजीने दिली जागा

उभे राहिले आलंय !!

 

झाले प्रसिद्ध मंदिर

येता पेशवे पुण्याला

भट श्रीवर्धनकर

आले पुण्य उदयाला !!

 

होते दुर्मिळ दर्शन

दूर होती योगेश्वरी

पुण्यामध्ये विसावली

जगन्माता जोगेश्वरी !!

 

लग्न मुंजीच्या अक्षता

येती वाजत गाजत

जोगेश्वरी आशीर्वाद

करी लक्षुमी स्वागत !!

 

रमा सगुणा पार्वती

पेशव्यांचा राणीवसा

राधा आनंदी जानकी

जोगेश्वरी वाणवसा !!

 

दिली अक्षत देवीस

लग्न द्विबाजीरावांचे

अमृत नी विनायक

व्रतबंध पेशव्यांचे !!

 

माधवराव पेशवे ते

जातायेता मोहीमेस

जोगेश्वरी देवालयी

येत होते दर्शनास !!

 

जोगेश्वरी पालखीत

सणावारी मिरविते

पेठेपेठेतुनी माता

मुख दर्शन दाविते !!

 

नवरात्री जोगेश्वरी

जाई तुळजापुरास

पेशव्यांचा लवाजमा

भवानीच्या दर्शनास !!

क्रमश:. ….

©️®️ साधक- उर्मिला इंगळे

सातारा

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ घालमेल ☆ सौ ज्योती विलास जोशी

सौ ज्योती विलास जोशी 

☆ कवितेचा उत्सव ☆ घालमेल ☆ सौ ज्योती विलास जोशी ☆ 

करोनाचा विळखा

घट्ट होत चाललाय

माणूस परिस्थितीचा

गुलाम होऊ घातलाय

 

करोनाने माणसाला

अगदी पेचात टाकलंय

जणू आभाळाने क्षितिजाला

घेरून टाकलय

 

शाश्वत असा सूर्य

उद्या क्षितिजावर उगवेल

पण आशेचा किरण कोणता

हे माणसाला कसे उमगेल?

 

दुसऱ्याच्या दुःखाने

खरंच काळजात चर्र होते

पण इतके वरवरचे की

लगेचच विसरते

 

आपण आपले बरे

दुसरे गेले उडत

बेदरकार विचारांची

मन का ठेवते पत?

 

परदुःख शीतल

परिणीती झाली आज

लाज वाटली स्वतःची

मन झाले नाराज

 

बातमी एखादी जीवघेणी

काळीज पार वितळवते

वयच होते कारणीभूत

म्हणून मृत्यूला स्वीकारते

 

भडका आगीचा उठत नाही

घरात जोवर ठिणगी पडत नाही

आज सुपात तर उद्या जात्यात

याची जाणीव कशी होत नाही?

 

पोट भरून ढेकर दिलेले

पैशाचा ऊहापोह करतात

गरीब बिचारे मृत्यूला

गृहीत धरून चालतात

 

गरीब-श्रीमंत लहान-थोर

भेदभाव न करोनाच्या ठाई

जो तो आपल्या प्राक्तनाच्या

वेटोळ्यामध्ये अडकला जाई

 

माणसाला माणसापासून

दूर लोटलंस देवा

मनात असून देखील

घडत नाही की रे सेवा!

 

तेहतीस कोटी देवांना

आर्जव आहे दीनवाणी

नात्यांची पकड सैल नका करू

हीच तुम्हा चरणी विनवणी

 

नको विवंचना नको भ्रांत

चुकले माकले कर माफ

लेकराला घे पदरात

अन् कर मन साफ

 

दुःख झाले अतोनात

मन झाले जड

तुझ्याशिवाय कुणाला सांगू

अन् विषयाला लावू कड?

 

© सौ ज्योती विलास जोशी

इचलकरंजी

[email protected]

9822553857

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे अंबे ! जगदंबे ! ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

☆ कवितेचा उत्सव ☆ हे अंबे ! जगदंबे ! ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी☆ 

 

 

हे अंबे!जगदंबे!धाव घेई झडकरी

षड्रिपुचे महिष तूच, टाक गे विदारुनी

काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर दाटले

छेद पटल दूर सार, रिपु भारी पातले

विश्वजननी आस तुझी, दाटली उरातुनी

अधीर मना धीर द, धाव पंचतत्वातुनी

तेज तूच, तूच आप, तूच वायु, तू धरा

व्यापिलेस व्योम सर्व, मम मनाच्या प्रांगणी

मी कन्या तव माते, अज्ञ आहे जाणुनी

तव क्रुपे बरसु दे, काव्यगंगा रोमातुनी

शक्तिदात्री, स्फूर्तीदात्री, करवीर निवासिनी

छत्र तुझे मज लाभो, प्रार्थिते मनोमनी.

 

 © सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

कोल्हापूर

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ बोध कथा – कृतघ्न वाघ ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी

☆ जीवनरंग ☆ बोध कथा – कृतघ्न वाघ ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी ☆ 

||कथासरिता||

(मूळ –‘कथाशतकम्’  संस्कृत कथासंग्रह)

? बोध कथा?

कथा ३. कृतघ्न वाघ

एका अरण्यात एक वाघ रहात होता. अरण्यातील प्राण्यांना मारून तो आपली उपजीविका करीत असे. एकदा त्याने रानातील रेड्याला मारून त्याचे भक्षण केले. तेव्हा रेड्याचे एक हाड वाघाच्या दातात अडकले व चिकटून बसले. त्याने ते काढण्याचा खूप प्रयत्न केला. पण व्यर्थ! ते हाड काही केल्या निघेना. दातातून पू व रक्त वाहू लागले. तो वेदनेने तळमळू लागला.शेवटी तो वाघ झाडाच्या बुंध्यापाशी जबडा पसरून बसला. हे हाड कसे निघेल? मी जिवंत राहीन की नाही? काय करावे? या विचारांनी वाघ चिंताग्रस्त झाला.

अचानक त्याचे लक्ष झाडावर बसलेल्या कावळ्याकडे गेले. अंधःकारात जणू दीपदर्शनच!  त्याने कावळ्याला आपली व्यथा कथन केली. पुढे तो कावळ्याला म्हणाला, “जर तू माझ्या मुखातून हाड काढून मला जीवदान दिलेस, तर मी तुला दररोज मी शिकार केलेल्या प्राण्याचे मांस तुझ्या अपेक्षेप्रमाणे देईन. माझ्यावर एवढे उपकार कर.” वाघाने वारंवार प्रार्थना केल्याने व त्या पशुश्रेष्ठाचे दुःख पाहून कावळ्याला दया आली. वाघाच्या मुखात प्रवेश करून त्याने ते हाड काढले, व वाघाला वेदनामुक्त केले.

नंतर वचन दिल्याप्रमाणे, ”आता तू मला मांस दे” अशी कावळ्याने वाघाला विनंती केली. तेव्हा, “माझ्या मुखात प्रवेश करून तू मला त्रास दिलास, त्यामुळे मी असंतुष्ट आहे. तू वर माझ्याकडे मांस मागतोस? तू क्षणभरही इथे थांबू नकोस. दूर जा!” असे वाघाने कावळ्याला सुनावले.

तात्पर्य – संकटकाळात ज्याने मदत केली आहे अशा व्यक्तीचे लोकांना सुखकारक काळात विस्मरण होते.

अनुवाद – © अरुंधती अजित कुळकर्णी

कथासरिता उपक्रम साहित्य कट्टा,संयोजन- डॉ. नयना कासखेडीकर

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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