अध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता ☆ पद्यानुवाद – अष्टदशोऽध्याय: अध्याय (27) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।

हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः॥

लोभी हिंस्र, फलेच्छु व भोगी मलिन विचार

हर्ष-शोक के भाव से राजस नित लाचार ।।27।।

भावार्थ :  जो कर्ता आसक्ति से युक्त कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाववाला, अशुद्धाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है वह राजस कहा गया है॥27॥

Passionate, desiring to obtain the rewards of actions, cruel, greedy, impure, moved by joy and sorrow, such an agent is said to be Rajasic.

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विधान  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? सभी मित्रों को दुर्गाष्टमी की हार्दिक बधाई ?

त्योहार विधिवत एवं सामूहिक रूप से मनाएँ।

अनुरोध है कि कन्यापूजन निमित्त अधिकाधिक निर्धन बच्चियों को भोजन कराएँ।

यह हमारा सामाजिक दायित्व भी है। साथ ही इन बच्चियों के जीवन में थोड़े समय के लिए आनंदरस घोल कर हम स्वयं भी आनंदित होंगे। यूँ भी आनंद से ही परमानंद की दिशा में यात्रा हो सकती है।     …संजय भारद्वाज 

☆ संजय दृष्टि  ☆ विधान ☆

चाँदनी के आँचल से

चाँद को निरखते हैं,

इतने विधानों के साथ

कैसे लिखते हैं..?

सीधी-सादी कहन है मेरी

बिम्ब, प्रतीक,

उपमेय, उपमान

तुमको दिखते हैं..!

 

©  संजय भारद्वाज 

21.10.20, रात्रि 10:09

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ वजन नहीं है ☆ श्री बसंत कुमार शर्मा

श्री बसंत कुमार शर्मा 

(ई- अभिव्यक्ति में प्रसिद्ध साहित्यकार श्री बसंत कुमार शर्मा जी का हार्दिक स्वागत है।आप वर्तमान में वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक, जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेल हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आज प्रस्तुत है आपकी एक व्यंग्य रचना  वजन नहीं है।)

प्रिय  लेखन विधाएँ – गीत, नवगीत, दोहा, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा

प्रकाशन – विभिन्न साझा संकलनों एवं पत्र/पत्रिकाओं में दोहा, गीत, नवगीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा आदि का सतत प्रकाशन

पुस्तक प्रकाशन – बुधिया लेता टोह – गीत नवगीत संग्रह – 2019 – काव्या प्रकाशन, दिल्ली

☆ व्यंग्य – वजन नहीं है ☆

हमें नया नया कवितायें लिखने का शौक लगा, जैसे तैसे तुकबंदी कर हमने एक गजल लिखी और हमने अपने परम मित्र को सुनाई, और कोई शायद सुनने को तैयार न होता, तो वे बोले कि गजल  तो ठीक है लेकिन मतले यानी गजल के पहले शेर में वजन नहीं है. लोग शायर के वजन के साथ साथ हर शेर में भी वजन ढूंढते रहते हैं. मैं सोचता हूँ कि शेर में वजन की क्या जरूरत, अगर वजन की जरूरत होती तो शायर शेर का नाम शेर न रखकर हाथी रख लेते. हाथी तो काफी वजनदार होता है. मुझे एक चुटुकला याद आता है जिसके  लेखक का नाम मुझे ज्ञात नहीं, चुटुकलों के लेखक अधिकतर अज्ञात ही होते हैं,जिसे बचपन में कभी सुना था, आप भी सुन लीजिये “एक बार एक कवि सम्मलेन चल रहा था जिसमें एक नौसिखिये कवि को काव्य पाठ करने को अचानक कह दिया, उन नए कवि को को तो कुछ आता ही नहीं था, उन्होंने कहा भी कि श्रीमान मुझे कुछ नहीं आता, लेकिन वरिष्ठ कविगण कहाँ मानने वाले उन्होंने कहा नहीं भाई एक शेर तो बनता है, तो मायूसी से नव कवि उठ कर खड़ा हुआ और बोला “मुम्बई से दिल्ली तक….., दिल्ली से मुंबई तक….” एक श्रोता बीच में चिल्लाया “गुरू शेर में वजन नहीं है”. यह सुनकर कवि जो हूट होने की कगार पर खड़ा था, बोला “बैठ जाओ भाई, बैठ जाओ, रफ़्तार नहीं दिख रही तुम्हें, हमेशा वजन नहीं देखना चाहिए, कभी कभी रफ़्तार भी देख लिया करो”. खैर अब हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, शायरी या कविता जो भी कह लो उसमें रफ़्तार के साथ साथ पर्याप्त वजन भी हो.

बचपन में हम सरकंडे जैसे दुबले पतले थे, माँ कहती रहती थी कि दूध, दही, घी और माखन खाओ जिससे तुम्हारा वजन थोड़ा सा बढ़ जाये, बचपन में तो वजन बढ़ नहीं पाया लेकिन आजकल जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है, वजन भी बढ़ रहा है. ज्यादातर लोगो के साथ ऐसा ही होता है. एक बार हमें सर्दी जुकाम हुआ, हम डॉक्टर साहिबा के पास गए, हमारी श्रीमती जी साथ में ही थीं. श्रीमती जी ने डॉक्टर साहिबा को ये भी बता दिया कि इनका वजन अचानक से 8-10 किलो कम हो गया है और वो भी एक हफ्ते में. डॉक्टर साहिबा ने खतरे को भांपते हुए तुरंत हमारा थाइराइड टेस्ट करवा दिया, पता चला कि हमें वजन कम करने वाला थाइराइड हो गया है. थाइराइड की बीमारी भी अजीब है जो वजन बढ़ाना चाहता है उसका कम और जो कम करना चाहता है उसका बढ़ा देती है, याने ज्यादातर उल्टे ही काम करती है. यह भी अधिकतर देखा गया है कि श्रीमती जी को वजन बढ़ाने वाला थाइराइड होता है और श्रीमान जी को वजन कम करने वाला. दोनों आपस में चाह कर भी इसे बदल नहीं सकते. हमने सोचा हो सकता इसी कारण से हमारी शायरी में वजन नहीं आ पा रहा था. खैर डॉक्टर साहिबा और ऊपर वाले की दुआओं से अब सब कुछ नियंत्रण में आ गया है, कम से कम कुछ लोग तो यह कहने लगे हैं कि आपकी शायरी में थोड़ा वजन आ गया है, यानी दमदार हो रही है. हमारा वजन कम होना भी रुक गया है. उन सभी मित्रों का शुक्रिया कि जिन्होंने कठिन समय में हमारा साथ दिया, जिन्होंने नहीं दिया उनका भी शुक्रिया. पुरानी कहावत है जो दे उसका भला जो न दे उसका भी भला.

हलकी चीजें आसानी से चल सकती हैं, दौड़ सकती हैं, उड़ सकतीं हैं. भारी चीजों को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है. लेकिन साहब सरकारी कार्यालयों में तो उल्टा ही होता है, फाइल पर वजन न हो तो आगे चलना तो दूर, खिसकती भी नहीं. सभी तरह के आवेदन हवा में ही उड़ जाते हैं और रद्दी की टोकरी में विराजमान होकर अपनी सद्गति को प्राप्त होते हैं. ये अलग बात हैं कि सरकार आवेदनों को उड़ने से बचने के लिए पेपरवेट खरीदने पर भी बजट का कुछ हिस्सा खर्च करती है, लेकिन सरकारी लोग, कभी कभी उनका इस्तेमाल टेबल पर गोल-गोल घुमाकर फिरकी का आनंद लेते हुए दिख जाते हैं.

एक और बात आजकल देखने में आती है कि नेताओं के भाषणों में एक आध बात पसंद आ जाती है तो खुसुर पुसुर होने लगती है कि नेताजी की इस बात में तो कुछ वजन है, इसी वजन के आधार पर कुछ वोटों का जुगाड़ हो जाता है और उन्हें चुनाव में जीत हासिल हो जाते है, हालांकि उनका वह थोड़ा सा वजन भी, ज्यादातर भाषण तक ही सीमित रह जाता है. चुनाव के बाद सारे नेता और उनके चमचे ही क्रमश: वजनदार होते चले जाते हैं. जनता क्रमश: और भी दुबली होती चली जाती है, फिर हवा में यहाँ से वहाँ रद्दी कागज़ की तरह उड़ती रहती है. आप को कुछ भी करवाना हो तो वजनदार होना या साथ में वजनदार की सिफारिश होना या वजनदार लिफाफा होना जरूरी है. यह वजन कुछ खास लोगों के पास ही होता है, बाकी तो राम ही राखे.

जब लोग अपने बेटे के लिए दुल्हन तलाशने निकलते हैं तो उन्हें दुल्हन वजन में कम और दहेज़ वजन में ज्यादा चाहिए होता है. शादी होकर नई बहू जब घर में आती है, तो घर की वजनदार महिलायें दहेज़ में मिले या उपहार में आये गहनों को हाथ में ले उन्हें उछाल उछाल कर वजन का अनुमान लगाने और यह पता लगाने का प्रयास करते हुए देखी जा सकतीं हैं कि वजनदार रिश्तेदारों, मित्रों और शुभचिन्तकों ने अपने वजन के हिसाब से गहने दिए हैं कि नहीं. उपरोक्तानुसार वजन के हिसाब से ही फिर बहू को ससुराल में इज्जत प्रदान की जाती है. जो दुलहन वजनी दहेज़ के साथ ससुराल नहीं आती कभी कभी समय से पूर्व ही भगवान को प्यारी हो जाती हैं.

अमीरों और गरीबों के वजन के शौक भी अलग अलग किस्म के होते हैं.यहाँ पर मैं शरीर के वजन की बात कर रहा हूँ. जिनके शरीर का वजन ज्यादा होता है उन्हें हर कोई कुतूहल की दृष्टि से देखता है, रिक्शा, टैक्सी, बसों और खासकर कहीं लाइन में लगे भारी आदमी को मुसीबत का सामना करना पड़ता है, यदि वो महिला हुई तो उसकी परेशानी और विकराल रूप धारण कर लेती है. जहाँ अमीर अपना वजन कम करने के लिए महँगे-मंहगे जिम या घर पर विशिष्ट किस्म के उपकरणों का इस्तेमाल कर अपना वजन कम करने का प्रयास करते रहते हैं,कुछ अति उत्साही लोग आजकल वजन कम करने के लिए ऑपरेशन भी करवाने लगे हैं.उनका वजन कम होता हो या न होता हो, उनका धन अवश्य कम हो जाता है. वहीँ गरीब लोग पेट में दो रोटी का वजन डालने के लिए धूप में मेहनत कर दो रोटी के वजन के बराबर पसीना निकाल देता है और साथ में गाली खाता है सो अलग. अंतत: अमीर और गरीब दोनों ही अपने अपने प्रयासों में असफल होते है. न अमीर का वजन कम होता है न गरीब का बढ़ता है. प्रभु की लीला अपरम्पार, पाया नहीं किसी ने पार.

© श्री बसंत कुमार शर्मा

संपर्क : 354, रेल्वे डुप्लेक्स, फेथ वैली स्कूल के सामने, पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स, जबलपुर (म.प्र.) पिनकोड- 482001

मोबाइल : 9479356702

ईमेल : [email protected]

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नवरात्रि विशेष☆ देवी गीत – ….तुम्हारे दर्शन को ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित नवरात्रि पर्व पर विशेष  देवी गीत ….तुम्हारे दर्शन को । ) 

☆ नवरात्रि विशेष  ☆ देवी गीत – ….तुम्हारे दर्शन को ☆

 

पावन नवरात्री की बेला, उमड़ी है माँ भीड़,  तुम्हारे दर्शन को

 

मां सबकी तुम एक सहारा, पाने को आशीष तुम्हारा

आये चल के बड़ी दूर से, तुम्हें चढ़ाने नीर, तुम्हारे दर्शन को

 

तुम्हें ज्ञात हर मन की भाषा, आये हम भी ले अभिलाषा

छू के चरण शाँति पाने माँ, मन है बहुत अधीर, तुम्हारे दर्शन को

 

भाव सुमन रंगीन सजाये, पूजा की थाली ले आये

माला , श्रीफल , और भौग में , फल मेवा औ खीर, तुम्हारे दर्शन को

 

मन की कहने, मन की पाने, आशा की नई ज्योति जगाने

तपते जीवन पथ पर चलते, मन में है एक पीर, तुम्हारे दर्शन को

 

मां भू मंडल की तुम स्वामी, घट घट की हो अंतर्यामी

देकर आशीर्वाद, कृपाकर, लिख दो नई तकदीर, तुम्हारे दर्शन को

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कविता का जन्म ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की एक विचारणीय कविता कविता का जन्म।  

☆ कविता – कविता का जन्म ☆

 

कैसे होता है

कविता का जन्म

वो केसे उपजती है

सजती और

सजाती है जीवन को

कैसे होता है

कविता का जन्म

वो कैसे उपजती है

सजती और

सजाती है जीवन को

मन को।

 

माना कि

प्रेम शक्ति है

जीवन जीने की

उससे भी ज्यादा अहमियत है पसीने की

प्रेम और पसीना

दोनों जरूरी हैं

कविता के लिए

और कविता जरूरी है जीवन के लिए

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature ☆ Stories ☆ Weekly Column – Samudramanthanam – 12 – Airavata ☆ Mr. Ashish Kumar

Mr Ashish Kumar

(It is difficult to comment about young author Mr Ashish Kumar and his mythological/spiritual writing.  He has well researched Hindu Philosophy, Science and quest of success beyond the material realms. I am really mesmerized.  I am sure you will be also amazed.  We are pleased to begin a series on excerpts from his well acclaimed book  “Samudramanthanam” .  According to Mr Ashish  “Samudramanthanam is less explained and explored till date. I have tried to give broad way of this one of the most important chapter of Hindu mythology. I have read many scriptures and take references from many temples and folk stories, to present the all possible aspects of portrait of Samudramanthanam.”  Now our distinguished readers will be able to read this series on every Saturday.)    

Amazon Link – Samudramanthanam 

☆ Weekly Column – Samudramanthanam – 12 – Airavata ☆ 

Another round of churning started. This time both teams Suras and Asuras were doing it with calm mind. Bali the king of Asura thought in his mind “I am satisfied with what I have means kingdom of underworld but my other Asura friends and our guru ‘Sukrachrya’ are not satisfied. Sukra says we need to increase our power so that we can permanently dominate over heaven and Sura”

In other hand Sura king ‘Indra’ is thinking “as Lord Vishnu given us surety that liquid of immortality comes as an end product of this churning which will make all Suras Immortal. But when amrita comes from ocean; will we be able to drink it alone? We have to be careful about it”

Soon sound of trumpet come and mount Mandara start tilt in left side. All were worried. Four elephants in four direction started to come down from space and start raining from their tusk.

Then suddenly mount Mandara fall one side in ocean and a huge elephant started to come up in the upper layer of ‘Kshirasāgara’.  O! it is ‘Airavata’ who once taken ocean support due to anger and disappointment when sage ‘Durvasa’ given crush to ‘Indra’.

Yes, Airavata who was once Indra mount emerge from ocean with very large body and having seven trunks. Indra in wonder because before his ‘Airavata’ go to ocean he contains only single trunk.

Indra said, “O! Gajaraja, king of elephants welcome back I was like lifeless without you, come again and be my mount.

Gajraja Airavata said, “King, I was not disrepair because of Sage ‘Durvasa’ curse but because of your arrogance.  O! king of Sura and now I can’t live in heaven whose king is “Indra’ better is I’ll live here in this ‘Kshirasāgara’.

Indra replied, “You fool, are you forget that you are talking to king of Swarga, heaven the great ‘Indra’.”

Lord Vishnu appear again and said, “Indra duty of a king is to protect and serve his people and subject not to be served by them. Your arrogance is increasing with flow of everchanging time. The words which were said by Gajraja Airavata are on our instructions, just to check your patience and ego. I am sorry Indra but you lost in this test. Now I have to consult with Brahma, Shiva and other great sage to make someone else like ‘Varuna’ as a king of Heaven”

After listening this a smile emerge on the face of ‘Varuna’.

Indra fall in the feet of Lord Vishnu and said “God please doesn’t do this and keep mercy on me. You can understand my situation. This churning making me restless. In one end waiting for amrita I am losing my senses on other hand we have to do this churning with our born rivals Asura who are already attack over us when we go there to do planning of this churning. Above all this, there is a most important thing of my angriness is on the behavior of ‘Airavata’ himself”

King of Asura Bali said, “Lord of universe I think you are right it is time to change the king of heaven. Now affairs of heaven must be given in to the hands of Asura. I as a king of Asura take vow that I will run worldly affairs which is managed by heaven with whole honesty. Indira said some Asura have attack over them when they are our guest but he hasn’t mention that I as the king of Asura has killed that Asura by my own hands who attacked over our guests. Also till now we didn’t get anything from this churning of ‘Kshirasāgara’, so Gajraja Airavata belongs to Asura”

© Ashish Kumar

New Delhi

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हाँ, तू इंसान है ☆ श्री कपिल साहेबराव इंदवे

श्री कपिल साहेबराव इंदवे 

(युवा एवं उत्कृष्ठ कथाकार, कवि, लेखक श्री कपिल साहेबराव इंदवे जी का एक अपना अलग स्थान है. आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशनधीन है. एक युवा लेखक  के रुप  में आप विविध सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के अतिरिक्त समय समय पर सामाजिक समस्याओं पर भी अपने स्वतंत्र मत रखने से पीछे नहीं हटते.  आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित एक कविता  हाँ, तू इंसान है।) 

 ☆ कविता – हाँ, तू इंसान है ☆

किरदार बदले,

सूरतें बदली,

जगह बदली शहर भी

लेकिन,

काम वही,

अंज़ाम वहीं

काम भी इतना घिनौना

कि हैवानियत भी शर्मसार हो जाए

ख़ुद को समझने वाले इन्सान को देखकर

जानवर भी ख़ुदकुशी कर जाए

हे इन्सान,

सदियों से नारी को

तूने कमज़ोर बनाया है

कभी निर्भया, आसिफा,

कभी प्रियंका, मनीषा

न जाने कितने नामों को सताया है।

ख़ुद बुराई भी जिसके खिलाफ़ खड़ी हो

ऐसा घिनौना काम हुआ हैं

कई शहरों के नाम बदले

हर जगह एक ही अंजाम हुआ है

हैवानो से भी उपर उठकर

इन्सान तेरे कर्म हैं

इंसानियत तूझमे जिंदा ही नहीं

ऐसा तू बेशर्म हैं।

हे,

इंसानियत के नाम पर कलंक

क्या तुझमें दिल नहीं,

किसी मासूम की चीत्कार से

तेरा कलेजा फट जाता नहीं,

सिर्फ एक बार सोच कर देख

तू इन्सान है

हाँ,

तू इन्सान है।

 

 © कपिल साहेबराव इंदवे

मा. मोहीदा त श ता. शहादा, जि. नंदुरबार, मो  9168471113

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बाल कविता – इंद्रधनुष ☆ सुश्री ज्योती महाजन

☆ बाल कविता – इंद्रधनुष ☆ सुश्री ज्योती महाजन ☆ 

 

रंग बिरंगे फूलों जैसा

रंगोली के रंगों जैसा

तितली के सुंदर पंखों जैसा

दुल्हन की रंगी मेहंदी जैसा

मन को भाता नयन सुहाता

बच्चों और बड़ों का प्यारा

रहा है और रहेगा सबका दुलारा

बरसात के बाद आसमान में झलकता

विशाल निले अम्बर को सजाता

सात रंगों से बना सजीला

मानो स्वर्ग का द्वार लचीला

सबको लुभाता, कितना प्यारा

धरती पर मानों स्वर्ग है उतरा….

मन भावन स्वरूप खुशी दिलाता

– इंद्रधनुष है यह कहलाता…

 

©  सुश्री ज्योती महाजन

Mobile:  8830167199

Email id:  [email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ केल्याने होतं आहे रे – श्रीचामुण्डेश्वरी चरणावली – ८ ☆ श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

☆ केल्याने होतं आहे रे ☆

???श्रीचामुण्डेश्वरी चरणावली -८ ?

!!श्रीराम समर्थ!!

देवी महिषासुरमर्दिनी

श्रीक्षेत्र तुळजापूर येथे

नवरात्रातील महाष्टमीला -श्रीतुळजा भवानी देवीची महिषासुरमर्दिनी अलंकार पूजा बांधली जाते.

देवी भगवतीने महिषासुराचा वध कसा केला याचे वर्णन आज मुक्तछंद काव्यात गुंफून आई भवानी मातेच्या चरणी सविनय अर्पण! इदं न मम !!

?? ?☘️???

 

त्रिभुवन सुंदरी आदिमाया पार्वती!

रविकिरणांसम तेजोमय कांती !

गळा मुण्डमाळा जपमाळा एका हाती !

कमलासनस्थिता जगदंबा भगवती!

महिषासुरा वधण्या देवांनी दिली शक्ती!!

 

आला धावून महिषासुर सेनापती चिक्षूर!

करी वर्षाव बाणांचा देवी भगवती वर !

भगवतीने केले बाणांनी चिक्षूरास जर्जर !

चिक्षूराने फेकला त्रिशूल भद्रकालीवर !

चिक्षूरदैत्याचा केला तिने चक्काचूर !!

 

होताच चिक्षूराचा वध आला धावून चामर

त्रिनेत्री देवीने गदाप्रहारे केला त्याचा चक्काचूर !!

 

ताम आणि अंधक दैत्याना बाणांनी मारिले!

उग्रवीर्य महाहनू यांची मस्तके उडविली आकाशी त्रिशूले !

उग्रदैत्यास वृक्षपाषाणाने करालास मुष्टिप्रहारे!

उग्रास्य उग्रवीर्य महाहनू दैत्यांच्या मुंड्या उडविल्या तलवारे !

मुंडके बिडालाचे धडावेगळे केले तलवारे !

दुर्धर-दुर्मुख यांची वाट यमलोकी बाणप्रहारे !!

 

ऐकून हाहा:कार महिषासुर झाला चिंताक्रांत !

रुप घेऊनी रेड्याचे थैमान घातले रणांत!

हल्ला केला सिंहासनी देवी झाली क्रोधित !

हाती घेऊन त्रिशूल धावली महिषासुरावर !

पकडून पायी चेपिले केला शूलप्रहार मानेवर !

अखेर मोहित करून खड्गे मारिला महिषासुर!!

 

आनंदी झाले सर्व त्रिभुवन सुरवर !

देवतांना संजीवन देणाऱ्या मातेचा केला जयजयकार !!

 

आई महिषासुरमर्दिनीचा उदोउदो

आई भवानीचा उदोउदो

आई जगदंबेचा उदोउदो

आई अंबाबाईचा उदोउदो

आई रेणुकेचा उदोउदो

 

उदो उदो उदो उदो उदो उदो उदो ऽऽऽ

!!श्रीजगदंबार्पणमस्तु!!

क्रमश:. ….

©️®️ साधक- उर्मिला इंगळे

सातारा

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 58 – रंग…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #58 ☆ 

☆ रंग…! ☆ 

आई . . . .

मी चित्र काढत असताना

तू..

माझ्या आयुष्यात भरलेले

सारेच रंग..

मी चित्रात भरण्याचा

प्रयत्न करतो… .

पण..

कितीही प्रयत्न केला..,

तरी

तू माझ्या आयुष्यात

भरलेले सारेच रंग

मला चित्रात भरणं

कधी जमलंच नाही

कारण…

तू माझ्या आयुष्यात

भरलेल्या रंगापुढे

हे रंग नेहमीच

अपुरे पडतात…!

अपुर्ण वाटतात. . . !

 

© सुजित कदम

पुणे, महाराष्ट्र

मो.७२७६२८२६२६

Please share your Post !

Shares