हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ विजयदशमी पर्व विशेष – हरियाणा में जलता है सबसे ऊंचा रावण ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका)

श्री विजय कुमार

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी  का विजयदशमी पर्व पर आधारित एक विशेष आलेख बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा महोत्सव – हरियाणा में जलता है सबसे ऊंचा रावण)

☆ बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा महोत्सव ☆

☆ आलेख – विजयदशमी पर्व विशेष – हरियाणा में जलता है सबसे ऊंचा रावण ☆

विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले के निर्माण के लिए पूरे विश्व में हरियाणा के अम्बाला जिला का बराड़ा कस्बा चर्चित रहा है। इस वर्ष सबसे ऊंचा रावण का पुतला (ऊंचाई 211 फीट) चंडीगढ़ में जलाया जाएगा। विश्व के सबसे ऊंचे रावण का पुतला दहन का प्रसारण वैसे तो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा प्रत्येक वर्ष किया जाता है। इस अवसर पर कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण करने हेतु कई टेलीविजन चैनल्स की ओ बी वैन भी आयोजन स्थल पर आती हैं।

श्री रामलीला क्लब, बराड़ा ;जिला अम्बालाद्ध के संस्थापक अध्यक्ष श्री राणा तेजिन्द्र सिंह चैहान द्वारा पिछले सात वर्षों से विश्व का सबसे ऊंचा रावण बनाने का निरंतर कीर्तिमान स्थापित किया जा रहा है। इस उपलब्धि का सम्मान करते हुए भारत की एकमात्र सर्व प्रतिष्ठित प्रीतिष्ठि  कीर्तिमान संकलन पुस्तक ‘लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड’ के (2011 से 2017 तक) छह वार्षिक संकलनों में बराड़ा में निर्मित होने वाले विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले को सम्मानपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। भारत के इतिहास में निर्मित होने वाला अब तक का यह सबसे पहला व अद्भुत रावण का पुतला है जिसने किसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर की कीर्तिमान पुस्तक में छह बार अपने नाम का उल्लेख कराया हो। बराड़ा के सबसे ऊंचे रावण के पुतले को छह बार लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में स्थान प्राप्त होना वास्तव हरियाणावासियों के लिए गर्व का विषय है। इस उपलब्धि का श्रेय क्लब के सभी सदस्यों को, खासतौर पर क्लब के संस्थापक अध्यक्ष श्री राणा तेजिंद्र सिंह चैहान एवं उनके निर्देशन में काम करने वाले लगभग सौ मेहनतकश सदस्यों को जाता है।

श्री चैहान ने बताया कि उनके सहयोगी और वे हर वर्ष अप्रैल -मई  माह से ही रावण बनाने का कार्य आरंभ कर देते हैं। अथक परिश्रम के बाद इसे दशहरे से दो-तीन दिन पूर्व दशहरा ग्राउंड में दर्शकों के देखने के लिये खड़ा कर दिया जाता है।

छह बार लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में नाम दर्ज करने के बाद रावण की ऊंचाई को प्रत्येक वर्ष बढ़ाते हुए अपने ही विश्व कीर्तिमान को तोड़ने का जो सिलसिला जारी था वह पिछले चार वर्षों से रोक दिया गया है। यह व्यवस्था तकनीकी कारणों से की गई है। दरअसल जिन क्रेनों की सहायता से रावण के विशाल पुतले को खड़ा किया जाता था उन क्रेन आपरेटर्स द्वारा 210 फुट ऊंचाई से अधिक ऊंचा पुतला न बनाए जाने की सलाह दी है। इस कारण पुतले की ऊंचाई 210 फुट ही निर्धारित की जा चुकी है।

राणा तेजिन्द्र सिंह चैहान के अनुसार विश्व कीर्तिमान स्थापित करने वाले इस रावण के निर्माण का मकसद समाज में फैली सभी बुराइयों को अहंकारी रावण रूपी पुतले में समाहित करना है। पुतले की 210 फुट की ऊंचाई सामाजिक बुराइयों एवं कुरीतियों जैसे अहंकार, आतंकवाद, कन्या भू्रण हत्या, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, बढ़ती जनसंख्या, दहेजप्रथा तथा जातिवाद आदि का प्रतीक है। रावण दहन के समय आतिशबाजी का भी एक उच्चस्तरीय आयोजन किया जाता है।

विजयदशमी के दिन दशहरा ग्राउंड में प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों की उपस्थिति में रिमोट कंट्रोल का बटन दबाकर विश्व कीर्तिमान स्थापित करने वाले इस विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले को अग्नि को समर्पित किया जाता रहा है।

श्रीरामलीला क्लब, बराड़ा विश्वस्तरीय ख्याति अर्जित कर चुका है। सामाजिक बुराइयों के प्रतीक विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले का निर्माण किए जाने का कीर्तिमान इस क्लब ने स्थापित किया है। इसमें कोर्इ संदेह नहीं कि सहयोगियों व शुभचिंतकों के समर्थन व सहयोग के बिना किसी भी संस्था का शोहरत की बुलंदी पर पहुंचना संभव नहीं होता।

श्रीरामलीला क्लब द्वारा प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाने वाली 14 दिवसीय शानदार रामलीला के उपरांत पांच दिवसीय दशहरा महोत्सव शुरू होता था। दशहरा महोत्सव में कवि सम्मेलन के अतिरक्त गीत-संगीत, गजल, सूफी गायन व कव्वाली जैसे आयोजन होते थे।

रावण को प्रकांड पंडित वरदानी राक्षस कहा जाता था। लेकिन कैसे वो, जिसके बल से त्रिलोक थर-थर कांपते थे, एक स्त्री के कारण समूल मारा गया? वो भी वानरों की सेना लिये एक मनुष्य से। इन बातों पर गौर करें तो ये मानना तर्क से परे होगा। लेकिन रावण के जीवन के कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिनसे कम ही लोग परिचित होंगे। पुराणों के अनुसार  –

कैसे हुआ रावण का जन्म?

रावण एक ऐसा योग है जिसके बल से सारा ब्रह्माण्ड कांपता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो रावण जिसे राक्षसों का राजा कहा जाता था वो किस कुल की संतान था। रावण के जन्म के पीछे के क्या रहस्य हैं? इस तथ्य को शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। रावण के पिता विश्वेश्रवा महान ज्ञानी ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। विश्वेश्रवा भी महान ज्ञानी सन्त थे। ये उस समय की बात है जब देवासुर संग्राम में पराजित होने के बाद सुमाली माल्यवान जैसे राक्षस भगवान विष्णु के भय से रसातल में जा छुपे थे। वर्षों बीत गये लेकिन राक्षसों को देवताओं से जीतने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। एक दिन सुमाली अपनी पुत्री कैकसी के साथ रसातल से बाहर आया, तभी उसने विश्वेश्रवा के पुत्र कुबेर को अपने पिता के पास जाते देखा। सुमाली कुबेर के भय से वापस रसातल में चला आया, लेकिन अब उसे रसातल से बाहर आने का मार्ग मिल चुका था। सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि पुत्री वह उसके लिए सुयोग्य वर की तलाश नहीं कर सकता इसलिये उसे स्वयं ऋषि विश्वेश्रवा के पास जाना होगा और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखना होगा। पिता की आज्ञा के अनुसार कैकसी ऋषि विश्वेश्रवा के आश्रम में पहुंच गई । ऋषि उस समय अपनी संध्या वंदन में लीन थे। आंखें खोलते ही दृष्टि ने अपने सामने उस सुंदर युवती को देखकर कहा कि वे जानते हैं कि उसके आने का क्या प्रयोजन है? लेकिन वो जिस समय उनके पास आई है वो बेहद दारुण वेला है जिसके कारण ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने के बाद भी उनका पुत्र राक्षसी प्रवृत्ति का होगा। इसके अलावा वे कुछ नहीं कर सकते। कुछ समय पश्चात् कैकसी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसके दस सिर थे। ऋषि ने दस शीश होने के कारण इस पुत्र का नाम दसग्रीव रखा। इसके बाद कुंभकर्ण का जन्म हुआ जिसका शरीर इतना विशाल था कि संसार में कोई भी उसके समकक्ष नहीं था। कुंभकर्ण के बाद पुत्री सूर्पणखा और फिर विभीषण का जन्म हुआ। इस तरह दसग्रीव और उसके दोनों भाई और बहन का जन्म हुआ।

रावण ने क्यों की ब्रह्मा की तपस्या?

ऋषि विश्वेश्रवा ने रावण को धर्म और पांडित्य की शिक्षा दी। दसग्रीव इतना ज्ञानी बना कि उसके ज्ञान का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई सानी नहीं था। लेकिन दसग्रीव और कुंभकर्ण जैसे जैसे बड़े हुए उनके अत्याचार बढ़ने लगे। एक दिन कुबेर अपने पिता ऋषि विश्वेश्रवा से मिलने आश्रम पहुंचे तब कैकसी ने कुबेर के वैभव को देखकर अपने पुत्रों से कहा कि तुम्हें भी अपने भाई  के समान वैभवशाली बनना चाहिए। इसके लिए तुम भगवान ब्रह्मा की तपस्या करो। माता की आज्ञा मान तीनों पुत्र भगवान ब्रह्मा के तप के लिए निकल गए। विभीषण पहले से ही धर्मात्मा थे। उन्होंने पांच हजार वर्ष एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप करके देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद पांच हजार वर्ष अपना मस्तक और हाथ ऊपर रखकर तप किया जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और विभीषण ने भगवान से असीम भक्ति का वर मांगा।

क्यों सोता रहा कुंभकर्ण?

कुंभकर्ण ने अपनी इंद्रियों को वश में रखकर दस हजार वषो± तक कठोर तप किया। उसके कठोर तप से भयभीत होकर देवताओं ने देवी सरस्वती से प्रार्थना की। तब भगवान से वर मांगते समय देवी सरस्वती कुंभकर्ण की जिह्ना पर विराजमान हो गईं और कुंभकर्ण ने इंद्रासन की जगह निंद्रासन मांग लिया।

रावण ने किससे छीनी लंका?

दसग्रीव अपने भाइयों से भी अधिक कठोर तप में लीन था। वो प्रत्येक हजारवें वर्ष में अपना एक शीश भगवान के चरणों में समर्पित कर देता। इस तरह उसने भी दस हजार साल में अपने दसों शीश भगवान को समर्पित कर दिये। उसके तप से प्रसन्न हो भगवान ने उसे वर मांगने को कहा तब दसग्रीव ने कहा कि देव दानव गंधर्व किन्नर कोई भी उसका वध न कर सकें। वो मनुष्यों और जानवरों को कीड़ों की भांति तुच्छ समझता था। इसलिये वरदान में उसने इनको छोड़ दिया। यही कारण था कि भगवान विष्णु को उसके वध के लिए मनुष्य अवतार में आना पड़ा। दसग्रीव स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने लगा था। रसातल में छिपे राक्षस भी बाहर आ गये। राक्षसों का आतंक बढ़ गया। राक्षसों के कहने पर लंका के राजा कुबेर से लंका और पुष्पक विमान छीनकर स्वयं बन गया लंका का राजा।

कैसे हुआ रावण का वध?

मां दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री की पूजा के साथ नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के साथ ही साथ भगवान राम का भी ध्यान पूजन किया जाता है। क्योंकि इन्हीं नौ दिनों में भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध करके दशहरे के दिन रावण का वध किया था जिसे ‘अधर्म पर धर्म की विजय’ के रूप में जाना जाता है।

भगवान राम का जन्म लेना और रावण का वध करना यह कोई सामान्य घटना नहीं है। इसके पीछे कई कारण थे जिसकी वजह से विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा।

अपनी मौत का कारण सीता को जानता हुआ भी रावण सीता का हरण कर लंका ले गया। असल में यह सब एक अभिशाप के कारण हुआ था।

यह अभिशाप  रावण को भगवान राम के एक पूर्वज ने दिया था। इस संदर्भ में एक कथा है कि बल के अहंकार में रावण अनेक राजा-महाराजाओं को पराजित करता हुआ इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुंचा। राजा अनरण्य और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण अनरण्य रावण के हाथों पराजित हुआ। रावण राजा अनरण्य का अपमान करने लगा।

अपने अपमान से क्रोध्त होकर राजा अनरण्य ने रावण को अभिशाप दिया कि तूने महात्मा इक्ष्वाकु के वंशजों का अपमान किया है इसलिए मेरा शाप है कि इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के पुत्र राम के हाथों तुम्हारा वध होगा।

ईश्वर विधान के अनुसार भगवान विष्णु ने राम रूप में अवतार लेकर इस अभ्िाशाप को फलीभूत किया और रावण राम के हाथों मारा गया।

©  श्री विजय कुमार

सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)

संपर्क – # 103-सी, अशोक नगर, नज़दीक शिव मंदिर, अम्बाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
ई मेल- [email protected] मोबाइल : 9813130512

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विजयदशमी पर्व विशेष – विजयादशमी के दोहे ☆ प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

☆ विजयदशमी पर्व विशेष – विजयादशमी के दोहेप्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे ☆

विजयादशमी पर्व तो, कहे यही हर बार।

 नीति,सत्य अरु धर्म से, पलता है उजियार।।

 

अहंकार से हो सदा, इंसां की तो हार।

विनत भाव से हो सतत, मानव का सत्कार।।

 

मर्यादा का आचरण, करे विजय-उदघोष।

कितना भी सामर्थ्य पर, खोना ना तुम होश।।

 

लंकापति मद में भरा, करता था अभिमान।

तभी हुआ सम्पूर्ण कुल, का देखो अवसान।।

 

विजयादशमी पर्व नित, देता यह संदेश।

विनत भाव से जो रहे, उसका सारा देश।।

 

निज गरिमा को त्यागकर, रावण बना असंत।

इसीलिए असमय हुआ, उस पापी का अंत।।

 

पुतला रावण का नहीं, जलता पाप-अधर्म।

समझ-बूझ लें आप सब, यही पर्व का मर्म।।

 

विजय राम की कह रही, सम्मानित हर नार।

नारी के सम्मान से, ही सुखमय संसार।।

 

उजियारा सबने किया, हुई राम की जीत।

आओ हम गरिमा रखें, बनें सत्य के मीत।।

 

कहे दशहरा मारना, अंतर का अँधियार।

भीतर जो रावण रहे, उस पर करना वार।।

 

बुरे कर्म ना पोसना, वरना तय अवसान ।

निरभिमान की भावना, लाती है उत्थान।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे 

प्राचार्य, शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 91 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 91 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

घर आँगन की नींव में, प्रेम और विश्वास।

बंधन केवल रक्त का, रखता कभी न पास

 

मात-पिता से ही मिला, सुंदर घर परिवार

रिश्तों की इस डोर में, खूब पनपता प्यार

 

महल अटारी को नहीं, समझें घर संसार

घर सच्चा तो है वही, जहाँ परस्पर प्यार

 

पगडंडी में सो रहे, कितने जन लाचार

मजदूरों की सोचिए, जो हैं बेघर बार।

 

वक्त आज का देखिए, नव पीढ़ी की सोच

रखते जो माँ बाप को, वशीभूत संकोच।।

 

घर की शोभा वृद्ध हैं, इनका रखिए मान

रौनक इनसे ही बढ़े, खूब करो सम्मान

 

साँझे चूल्हे टूटकर, गाते निंदा राग

नई सदी के दौर में, खत्म हुआ अनुराग

 

पिता गए सुरलोक को, सब कुछ अपना त्याग

संबंधों के द्वार पर, बँटवारे की आग

 

कलियुग में सीमित हुए, आज सभी परिवार

घर बन गए मकान सब, सिमट गया संसार

 

रहें परस्पर प्रेम से, यह जीवन का कोष

मुट्ठी बाँधे चल पड़ो, गर चाहें “संतोष”

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (46-50) ॥ ☆

 

पहले कि गज पर्वताकार सा वह श्शैवाल को चीर तट पास आता

रेवा का गज से बिलोड़ा गया जल, तरंगो में बढ़ तीर तक पहुंच जाता ॥ 46॥

 

उस वन्य हाथी का बहताहुआ मद नदी जल में स्नान से धुला क्षण भर

मगर देख अज सेना के हाथियों  की पुनः वह पड़ा कपोलों से निकल कर ॥ 47।

 

सतपर्ण के दूध सी गंध वाले उस गज के मद की प्रखर गंध पाते

सेना के हाथी भड़क से हुये रूष्ट चिंघाड़ के निज प्रबलता दिखाते ॥ 48॥

 

उस गजने क्षण भर में सेना शिविर सारा झकझोर सबको असीमित डराया

घोड़े भगे रथ गिरा धुरी टूटी सैनिक चकित दौड़ सबको बचाया ॥ 49॥

 

वनगज का वध नृपति को वर्ज्य है, जानते हुये अजने भगाने के मन से ।

उस झपटते वन्य गज पर किया घात, हल्का धनुष और बाण हन के ॥ 50॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १५ ऑक्टोबर – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

?१५ ऑक्टोबर  – संपादकीय  – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ?

? वैविध्यपूर्ण विचारांचं सोनं नेहेमीच लुटत राहणाऱ्या ई – अभिव्यक्तीच्या सर्व लेखक – लेखिका, कवी – कवयित्री आणि सर्व रसिक वाचकांना आजच्या “दसऱ्याच्या शुभदिनी“ संपादक मंडळाकडून अनेकानेक शुभेच्छा. ?

आज “वाचन-प्रेरणा दिन“ — जगभरातील संपूर्ण साहित्यक्षेत्राला ज्यांच्यामुळे प्रसिद्धीच्या आणि लौकिकाच्या झोतात येण्यास आणि दीर्घकाळ त्या झोतात राहण्यास उद्युक्त केले जाते, अशा तमाम रसिक वाचकांना या विशेष दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा. मा. अब्दुल कलाम यांचा जन्मदिन हा वाचन-प्रेरणा दिन म्हणून साजरा केला जातो. ज्ञानसंपन्न आणि माहितीसमृद्ध समाजाची घडण, व्यक्तिमत्व विकास, साहित्य आणि भाषाविकास यासाठी वाचन संस्कृती जोपासणे गरजेचे आहे, हा दूरदर्शी विचार यामागे आहे. डॉ. कलाम म्हणत असत की ‘एक चांगले पुस्तक शंभर मित्रांप्रमाणे असते.’ त्यांचा रोख मुख्यत्वे विद्यार्थी आणि तरुण वर्गाकडे होता.

 “ जे आपणासी ठावे ते इतरांसी सांगावे । शहाणे करून सोडावे सकल जन “ हा अतिशय व्यापक विचार श्री. रामदास स्वामींनीही खूप वर्षांपूर्वी समाजाला दिलेला आहे. इथे 

 “ शहाणे “ या शब्दाचा अर्थ ‘विवेक-विचार- समृद्ध’  हाच अपेक्षित आहे, असे निश्चितपणे म्हणावे लागेल. आणि आपले विचार इतरांच्या विचारांशी ताडून पाहिले तरच ते जास्त जास्त समृद्ध होऊ शकतात. इतरांचे विविध विषयांवरचे विचार जाणून घेण्यासाठी  “वाचन “ हा  राजमार्ग आहे. . अभिवाचन, काव्यवाचन, समूह वाचन, वाचन कट्टा, असे अनेक उपक्रम याच उद्देशाने सुरु झालेले दिसतात. म्हणूनच, प्रत्येक जातिवंत वाचकाने इतर अनेकांना वाचनासाठी प्रेरणा द्यावी, या उद्देशाने हा दिवस साजरा केला जावा , एवढीच अपेक्षा. 

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आज १५ ऑक्टोबर — डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम यांचा जन्मदिन . ( १५/१०/१९३१ –२७/०७/२०१५ ) 

“  पीपल्स प्रेसिडेंट “ म्हणून गौरवले जाणारे भारताचे ११ वे राष्ट्रपती, भारतरत्न पुरस्कार आणि इतर कितीतरी पुरस्कारांचे मानकरी, “ मिसाईल मॅन “ म्हणून जगभरात ख्यातनाम असलेले, आणि विज्ञान-तंत्रज्ञान क्षेत्रात काम करण्यासाठी उत्सुक असणाऱ्या सर्वांचेच “ प्रेरणास्थान “ असणारे एक सर्वोत्कृष्ट वैज्ञानिक आणि शास्त्रज्ञ — अशी डॉ. कलाम यांची ओळख खरंतर सर्वांनाच आहे. 

त्यांच्याबद्दल विशेषत्वाने सांगण्याची गोष्ट अशी की इतक्या विविध कामांमध्ये सतत अतिशय कार्यमग्न असूनही डॉ. कलाम यांनी पंचवीसहूनही जास्त पुस्तके लिहिलेली आहेत. ही बहुतेक सर्व पुस्तके इंग्रजी भाषेत लिहिलेली असली, तरी इतर अनेक भाषांप्रमाणेच मराठीतही ती अनुवादित केली गेली असल्याने मराठी वाचकांसाठी ज्ञानाचा आणि माहितीचा मोठाच खजिना उपलब्ध झालेला आहे. त्यापैकी काही पुस्तकांचा नामोल्लेख इथे करणे फक्त  उचितच नाही तर आवश्यक आहे ——–” Wings of Fire “– “ अग्निपंख “ हे त्यांचे आत्मचरित्र. // “ अदम्य जिद्द “ – (अनुवादित नाव ) // “ Ignited Minds–Unleashing the power within India “–” प्रज्वलित मने “ // “ India – My Dream “ // “India 2020 – a vision for The New millenium “ —-

“ भारत २०२० : नव्या सहस्रकाचा भविष्यवेध “ // “ सायंटिस्ट टू प्रेसिडेंट “ याच अनुवादित नावाचे त्यांचे आत्मकथन // “ Turning Points “– याच नावाने मराठी अनुवाद . ——आणि इतर कितीतरी पुस्तके. आणखी एक विशेष गोष्ट म्हणजे, सन २०१२ मध्ये त्यांनी भारतीय तरुणांसाठी 

“ भ्रष्टाचाराचा पराजय करण्यासाठी मी काय करू शकतो “ या विषयावर आधारित एक कार्यक्रम सुरु केला होता. त्यांना फक्त भारतातच नाही तर जगभरातल्या अनेक देशांनी सन्मानपर पुरस्कार प्रदान करून गौरवले होते. खरोखरच भारताचे “ भूषण “ ठरलेल्या डॉ. अब्दुल कलाम यांना त्यांच्या आजच्या जन्मदिनी अतिशय मनापासून आदरांजली . 

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आज प्रसिद्ध कवी श्री. नारायण सुर्वे यांचा स्मृतिदिन. ( १५/१०/१९२६ – १६/०८/२०१० ) 

समाज परिवर्तन व्हायलाच हवे, हा विचार अगदी मनापासून करणाऱ्या श्री. नारायण सुर्वे यांनी आपला हा विचार स्वतःच्या कवितांमधून, अनेक कवनांमधून अतिशय प्रभावीपणे लोकांसमोर मांडला. हा विचार कविवर्य केशवसुत यांच्या जातकुळीतला होता. याबाबत अशी एक आठवण सांगितली जाते की, श्री. पु.ल.देशपांडे एकदा असे म्हणाले होते की, “ अरे, केशवसुत कशाला शोधताय ? तुमचा केशवसुत परळमध्येच रहातोय.” या एकाच वाक्यात सुर्वे यांच्याबद्दल बरंच काही सांगितलं गेलं आहे असं म्हटल्यास ते वावगं ठरणार नाही. श्री सुर्वे यांच्यावर मार्क्सवादी विचारांचा पगडा होता, असं त्यांच्या कविता बघता म्हटलं जातं—–

“शेकडो वेळा चंद्र आला, तारे फुलले , रात्र धुंद झाली —

भाकरीचा चंद्र शोधण्यातच जिंदगी बरबाद झाली —-” किंवा —

“असे आम्ही लक्षावधी नारीनर, दिवस असेतो वावरतो–

राबता , खपता आयुष्य मेणबत्तीसम विझवून घेतो —” 

 —-अशा धाटणीची  त्यांची कविता संवेदनशील मनाला थेटपणे  जाऊन भिडणारी आहे. 

१९९५ साली परभणी इथे झालेल्या अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद श्री. सुर्वे यांनी भूषविले होते. पद्मश्री पुरस्काराबरोबरच सोविएत रशियाच्या नेहरू अवॉर्डसह अनेक पुरस्कार त्यांना प्राप्त झालेले होते. त्यांच्या स्मृतिप्रीत्यर्थ पुणे येथे, तळागाळातल्या साहित्यिकांना आणि कलावंतांना हक्काचे व्यासपीठ मिळवून देणारी, “ नारायण सुर्वे कला अकादमी “ स्थापन करण्यात आली आहे. त्यांच्या नावानेही काही पुरस्कार दिले जातात. त्यांचे काव्यसंग्रहही प्रकाशित झाले आहेत. कवितेची अशी वेगळी वाट आपलीशी करणारे कविवर्य नारायण सुर्वे यांना विनम्र श्रद्धांजली.  

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मराठी नाटककार आणि विनोदी लेखन करणारे साहित्यिक श्री. वसंत सबनीस यांचाही आज स्मृतिदिन  ( ६/१२/१९२३ – १५/१०/२००२ ) 

सुरुवातीच्या काळात कवी म्हणून ओळख प्राप्त केलेले श्री. सबनीस, पुढे विनोदी लेखक आणि नाटककार म्हणून प्रसिद्ध झाले. चिल्लरखुर्दा, मिरवणूक, आमची मेली पुरुषाची जात , असे त्यांचे बरेच विनोदी लेखसंग्रह, आणि, बोका झाला संन्यासी, आत्याबाईला आल्या मिशा , अशासारखे बरेच विनोदी कथासंग्रह प्रसिद्ध आहेत. तसेच सौजन्याची ऐशी तैशी , गेला माधव कुणीकडे, घरोघरी हीच बोंब, अशी त्यांची नाटके गाजलेली आहेत. विच्छा माझी पुरी करा या त्यांच्या नाटकाने तर यशस्वितेचा विक्रम केलेला आहे. तमाशा या लोककला प्रकाराला आधुनिक रूप देण्याचा पहिला महत्वाचा प्रयत्न म्हणून त्यांचा “ छपरी पलंगाचा वग “ या नावाचा वग खूपच उल्लेखनीय ठरला होता, आणि त्यावरूनच “ विच्छा माझी —” हे नाटक साकार झाले. मार्मिक राजकीय भाष्य आणि चतुर संवाद ही वैशिष्ट्ये असणाऱ्या या नाटकाने लोकनाट्याला वेगळे परिमाण दिले. या नाटकाचे “ सैंय्या भये कोतवाल “ हे हिंदी रूपांतरही खूप लोकप्रिय झाले. सबनीस यांनी लिहिलेले दोन एकांकिका-संग्रह प्रसिद्ध आहेत. त्यांना दोन वेळा महाराष्ट्र राज्याचा ‘ उत्कृष्ट वाङ्मय पुरस्कार ‘ दिला गेला होता. “ किशोर “ या तेव्हाच्या प्रसिद्ध मासिकाचे ते प्रमुख संपादक होते. श्री. वसंत सबनीस यांना मनःपूर्वक श्रद्धांजली.  

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

(संपादक मंडळासाठी)

ई अभिव्यक्ती मराठी

संदर्भ :- १) कऱ्हाड शिक्षणमंडळ, “ साहित्य- साधना दैनंदिनी “ . २) गूगल गुरुजी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सिध्दीदात्री… ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक

श्रीमती अनुराधा फाटक

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सिध्दीदात्री… ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक ☆ 

नवव्या दिवशी सिध्दीदात्री

पूजन मन समृध्दीसाठी

तू मारिलेस राक्षस रिपू

आम्ही संपवू विकारशत्रू

 त्यासाठी  सिध्दीदात्री

तुझे करितो पूजन !

 

© श्रीमती अनुराधा फाटक

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 92 – आरती ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? साप्ताहिक स्तम्भ # 92 – विजय साहित्य ?

☆ ? आरती ?  कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

(स्वरचित  आरती. निर्मिती  विजया दशमी 18/10/2018.)

आरती सप्रेम जय जय जय अंबे माता

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||धृ||

सदा पाठिशी रहा उभी मुकांबिका होऊनी

शिवशक्तीचे प्रतिक तू सिंहारूढ स्वामींनी

कोल्लर गावी महिमा गाई  भक्त वर्ग मोठा .

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||1||

ब्राम्ही रूप हे तुझेच माते चतुर्मुखी ज्ञानी

सप्तमातृका प्रातः गायत्री हंसारूढ मानी

सृजनदेवता ब्रम्हारूपी रक्तवर्णी कांता

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||2||

माहेश्वरी रूप शिवाचे , व्याघ्रचर्म धारीणी

जटामुकूट  शिरी शोभतो तू सायं गायत्री

त्रिशूल डमरू त्रिनेत्र धारी तू वृषारूढा.

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||3||

स्कंदशक्ती तू कौमारी तू नागराज धारीणी

मोर कोंबडा हाती भाला तू जगदोद्धारीणी.

अंधकासूरा शासन करण्या आली मातृका

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||4||

विष्णू स्वरूपी वैष्णवी तू ,शंख, चक्र, धारीणी

माध्यान्ह गायत्री माता तू शोभे गरूडासनी.

मनमोहिनी पद्मधारीणी तू समृद्धी दाता.

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||5||

नारसिंही भद्रकाली तू,पानपात्र धारीणी

गंडभेरूडा , शरभेश्वर शिवशक्ती राज्ञी

लिंबमाळेचा साज लेवूनी शोभे अग्नीशिखा.

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||6||

आदिमाया,आदिशक्ती,विराट रूप धारीणी

रण चंडिका शैलजा  महिषासूर मर्दिनी

महारात्री त्या दिव्य मोहिनी ,शोभे जगदंबा .

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||7||

सप्तमातृका रूपात नटली देवी कल्याणी

भगवती तू, माय रेणुका  शोभे नारायणी

स्तुती सुमनांनी आरती  कविराजे सांगता

कृपा रहावी  आम्हां वरती, दे आशिष आता .||8||

© कविराज विजय यशवंत सातपुते 

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  9371319798.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कौसल्येचा राम…. – महाकवी ग.दि. माडगूळकर ☆ प्रस्तुति – श्री विकास मधुसूदन भावे

स्व गजानन दिगंबर माडगूळकर ‘गदिमा’

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जन्म – 1 ओक्टोबर 1919  मृत्यु – 14 डिसेंबर 1977 ☆

☆ कवितेचा उत्सव ☆ कौसल्येचा राम…. – महाकवी ग.दि. माडगूळकर ☆ प्रस्तुति – श्री विकास मधुसूदन भावे☆  

कबीराचे विणतो शेले कौसल्येचा राम

भाबड्या या भक्तासाठी देव करी काम 

 

एक एकतारी हाती भक्त गाई गीत

एक एक धागा जोडी जानकीचा नाथ

राजा घनश्याम!

 

 दास रामनामी रंगे, राम होई दास

एक एक धागा गुंते,रूप ये पटास

राजा घनश्याम!

 

विणुनिया झाला शेला ,पूर्ण होई काम

ठायी ठायी शेल्यावरती दिसे राम नाम

राजा घनश्याम!

 

हळूहळू उघडी डोळे पाही जो कबीर

विणुनिया शेला गेला सखा रघुवीर

कुठे म्हणे राम ?

(या कवितेचे रसग्रहण काव्यानंद मध्ये दिले आहे.)

गीतकार- महाकवी ग.दि. माडगूळकर

प्रस्तुति – श्री विकास मधुसूदन भावे

चित्र : साभार Gajanan Digambar Madgulkar – Wikipedia

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कठीण होत आहे ☆ श्री नारायण सुर्वे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ कठीण होत आहे ☆ श्री नारायण सुर्वे ☆ 

दररोज स्वतःला धीर देत जगणे;

कठीण होत आहे.

 

किती आवरावे आपणच आपणाला;

कठीण होत आहे.

 

भोकांड पसरणा-या मनास थोपटीत झोपवून येतो

भुसा भरलेले भोत दिसूनही;थांबणे;

कठीण होत आहे.

 

तडजोडीत जगावे.जगतो:

दररोज कठीण होत आहे

 

आपले अस्तित्व असूनही नाकारणे;

कठीण होत आहे.

 

समजून समजावतो, समजावूनही नच मानलो

कोठारात काडी न पडेल,हमी देणे;

कठीण होत आहे.

 

© श्री नारायण सुर्वे

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – काव्यानंद ☆ कौसल्येचा राम…. महाकवी ग. दि. माडगूळकर ☆ श्री विकास मधुसूदन भावे

श्री विकास मधुसूदन भावे

परिचय  

श्री विकास मधुसूदन भावे कला शाखेचा पदवीधर असून रिलायन्स एनर्जी लिमिटेड या कंपनीत ३४ वर्षे नोकरी करून २०१० मध्ये सेवानिवृत्त झाले. ‘ स्वप्नातल्या कळ्यांनो, उमलू नकाच केव्हा….’ यासारखे तरल भावकाव्य लिहिणारे विख्यात कविवर्य कै. म. पां. भावे या त्यांच्या वडिलांकडून त्यांना कवितेचा वारसा मिळाला आहे.

‘त्रिमिती‘ हा  कवितासंग्रह प्रकाशित.

चित्रकविता ही त्यांची खासियत आहे.

महाराष्ट्र टाईम्स मधील वाचनीय सदरात त्यांची पुस्तक परिक्षणे प्रसिद्ध झाली आहेत. अनेक नियतकालिके, साप्ताहिके, मासिके व दिवाळी अंकांमधून त्यांच्या कथा, लेख, कविता प्रकाशित झाल्या आहेत.

वडील कविवर्य कै. म.पां.भावे यांच्या ‘अरे संसार संसार ‘ या विडंबन गीतांच्या कार्यक्रमात व अन्य गाण्यांच्या कार्यक्रमात निवेदक म्हणून त्यांचा सहभाग.

रेडिओ विश्वासवर ‘मला आवडलेले पुस्तक‘ या कार्यक्रमात त्यांनी दोन वेळा पुस्तक परीक्षण सादरीकरण केले आहे.

अक्षरमंच कला अकादमी, मुंबई आयोजित राज्यस्तरीय स्पर्धा क्रमांक ४ मध्ये ‘ कलावंत’ या विषयात सर्वोत्कृष्ट काव्यलेखनात त्यांच्या कवितेला दुसरा क्रमांक, अक्षरमंच सामाजिक व सांस्कृतिक प्रतिष्ठान,कल्याण तर्फे आयोजित राज्यस्तरीय काव्यलेखनात ३ रा क्रमांक , फेब्रुवारी २०२० मध्ये मराठी ग्रंथसंग्रहालय ठाणेतर्फे भरविण्यात आलेल्या ‘ चांदणे संमेलनात ‘ विडंबन स्पर्धेत दुसरा क्रमांक, ‘ रोज एक कविता ‘ या फेसबुक पेजतर्फे घेण्यात आलेल्या ‘ चित्रावरुन कविता ‘ या स्पर्धेत उत्तेजनार्थ पारितोषिक अशाप्रकारे बक्षिसे व पारितोषिकांनी ते गौरवांकित आहेत.

☆ काव्यानंद ☆ कौसल्येचा राम…. महाकवी ग. दि. माडगूळकर ☆ श्री विकास मधुसूदन भावे

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स्व गजानन दिगंबर माडगूळकर ‘गदिमा’

रसग्रहण: कौसल्येचा राम….

“कबीराचे विणतो शेले कौसल्येचा राम”.—- कवी, गायक,आणि संगीतकार या तिघांच्याही कौशल्यामुळे हे गाणं केंव्हाही ऐकलं तरी आपल्या हृदयावर राज्य करतं, आणि थोडाफार काळ का होईना, भक्तीचा मळा आपल्या चंचल मनामधे फुलत रहातो. या गाण्याचे शब्द आहेत शब्दप्रभू गदिमा यांचे. भक्ती अशी असावी,  दृढ विश्वास असा असावा की  परमेश्वर तुमच्या मदतीला धावून यायलाच हवा, हे गदिमा एका ओळीतच सांगतात—

“भाबड्या या भक्तासाठी देव करी काम”

भक्त हा ‘ भाबडा ‘ असावा. परमेश्वरावर अढळ विश्वास आणि निस्सीम भक्ती …. जी कोणत्याही प्रसंगात जराही डळमळीत होत नाही. भाबडा म्हणजे असा माणूस जो आपली सर्व कामं करताना “ईश्वरेच्छा बलियेसी” असा विचार करून प्रत्येक ठिकाणी ईश्वराचं अधिष्ठान आहे अशी मनाची पक्की बैठक तयार करतो.

एक एकतारी हाती भक्त गाई गीत

एक एक धागा जोडी जानकीचा नाथ

कबीराची श्रीरामांच्या प्रती असलेली भक्ती एवढी श्रेष्ठ दर्जाची आहे की  एकतारी घेऊन प्रभू रामचंद्रांची स्तुतीभजनं म्हणताना तो देहभान विसरून जात असे. प्रल्हादानं लहान वयात केलेल्या भगवंतभक्तीचं फळ म्हणून विष्णूने नृसिंहरूप धारण करून प्रल्हादाचं रक्षण केलं आणि त्याचा भक्तीमार्ग निष्कंटक केला.  तर नामदेवाच्या हट्टापुढे प्रत्यक्ष पांडुरंगाला सगुण रूपात येऊन प्रसाद भक्षण करावा लागला.  प्रभू रामचंद्रांनी कबीराची त्यांच्याप्रती असलेली निर्मळ भक्ती पाहून एकतारीच्या पार्श्वभूमीवर एकेक धागा विणत कबीराचं काम करण्यात कोणताही कमीपणा मानला नाही. तुमचा भक्तीभाव आणि भक्तीमार्ग जर  खरा असेल तर देवही तुमचं काम करतोच करतो हा विश्वास या घटनेमधून सामान्य माणसाला मिळतो.

दास रामनामी रंगे राम होई दास

एक एक धागा गुंते रूप ये पटास

नामाचा महिमा हा फार मोठाअसतो हे सर्व संतांनी सांगून ठेवलं आहे.  राघवाचा निस्सिम भक्त कबीरही आपल्या एकतारीची सुंदर साथ घेत रामनाम घेण्यामधे अगदी रंगून गेला आहे. भक्तांची काळजी देवाला असते असं म्हणतात आणि म्हणूनच कबीराचं काम पूर्ण करण्यासाठी प्रत्यक्ष प्रभू रामचंद्रांनी पुढाकार घेतला आहे. श्रीरामांच्या पवित्र हातातून धाग्याला धागा  जोडला जातोय आणि हळूहळू कबीराचा शेला आकार घेतो आहे. पण कबीराला मात्र या गोष्टीचं भान नाहीये. “दास रामनामी रंगे राम होई दास” या शब्दांमधून गदिमांची काव्यप्रतिभा आणि शब्दयोजना या दोन्ही गोष्टींचा एकत्रित अनुभव आपल्याला अनुभवायला मिळतो‌.

विणुन सर्व झाला शेला पूर्ण होई काम

ठायी ठायी शेल्यावरती दिसे रामनाम

लुप्त होई राम कौसल्येचा राम

खरी भक्ती आणि खोटी भक्ती यातला फरक माणसाला जरी समजला नाही तरी परमेश्वराला तो निश्चितच कळतो. त्याप्रमाणेच परमेश्वर आपल्या भक्तांसाठी, त्यांच्या अडचणी सोडवण्यासाठी त्यांना मदत करायची की नाही हे ठरवत असतो. कबीराची श्रीरामांवर असलेली श्रद्धा आणि भक्ती सर्वज्ञात तर होतीच, पण प्रभू रामचंद्रांनाही त्याच्या भक्तीविषयी खात्री पटली म्हणूनच कबीराची आणखी कोणतीही परीक्षा न घेता स्वहस्ते मदत करून  शेला विणून पूर्ण केला. अर्थात प्रभू रामचंद्रांनी स्वहस्ते विणलेल्या त्या शेल्यावर जागोजागी रामनामाची मोहोर उमटली होती.  संपूर्ण शेला विणून कबीराचं काम पूर्ण केल्यानंतर मात्र प्रभू श्रीराम तिथून अदृश्य झाले.

हळूहळू उघडी डोळे पाही जो कबीर

विणुनीया शेला गेला सखा रघुवीर

कुठे म्हणे राम कौसल्येचा राम

श्रीरामांच्या भजनामधे तल्लीन होऊन गेलेला कबीर काही काळानंतर भानावर आला. विणून पूर्ण झालेल्या संपूर्ण शेल्यावर जेंव्हा त्याने “श्रीराम” “श्रीराम” अशी अक्षरं पाहिली, तेंव्हा त्याच्या लक्षात आलं कि आजूबाजूचं जग विसरून ज्या दैवताच्या भजनपूजनात तो रंगून गेला होता, त्या प्रभू श्रीरामांनी आपल्या हातांनी कबीराचा शेला विणून, एकप्रकारे त्याचीच सेवा केली होती.

माणिक वर्मा यांच्या आवाजातील “देव पावला” चित्रपटातील या गाण्याला संगीत दिलं आहे महाराष्ट्र भूषण पु ल देशपांडे यांनी. गदिमांनी लिहिलेलं हे गाणं माणिक वर्मा यांच्या गोड आवाजात ऐकताना मनाला ख-या भक्तीची साक्ष पटत जाते.

© श्री विकास मधुसूदन भावे

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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