हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ सवाल एक – जवाब अनेक – 5 ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

 

 

 

“सवाल एक – जवाब अनेक (5)”

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के एक प्रश्न का  विभिन्न  लेखकों के द्वारा  दिये गए विभिन्न उत्तरआपके ज्ञान चक्षु  तो अवश्य ही खोल  देंगे।  तो प्रस्तुत है यह प्रश्नोत्तरों की श्रंखला।  

वर्तमान समय में ठकाठक दौड़ता समाज घोड़े की रफ्तार से किस दिशा में जा रहा, सामूहिक द्वेष और  स्पर्द्धा को उभारकर राजनीति, समाज में बड़ी उथल पुथल मचा रही है। ऐसी अनेक बातों को लेकर हम सबके मन में चिंताएं चला करतीं हैं। ये चिंताएं हमारे भीतर जमा होती रहतीं हैं। संचित होते होते ये चिंताएं क्लेश उपजाती हैं, हर कोई इन चिंताओं के बोझ से त्रास पाता है ऐसे समय लेखक त्रास से मुक्ति की युक्ति बता सकता है। एक सवाल के मार्फत देश भर के यशस्वी लेखकों की राय पढें इस श्रृंखला में………

तो फिर देर किस बात की जानिए वह एकमात्र प्रश्न  और उसके अनेक उत्तर।  प्रस्तुत है  पांचवा उत्तर  जबलपुर के  प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री  राकेश सोहम जी की ओर से   –  

सवाल :  आज के संदर्भ में, क्या लेखक  समाज के घोड़े की आंख है या लगाम ?

जबलपुर से व्यंग्यकार श्री राकेश सोहम जी – 5

सवाल बड़ा पेंचीदा है। क्योंकि इसमें बचने का मार्ग ही नहीं छोड़ा। या मैं कहूं सवाल गलत है। दो आप्शन हैं और दोनों स्थिति बंधन की हैं। मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है। घोड़े की आंख बंधी होती है और लगाम तो है ही बंधन का प्रतीक। लगाम घोड़े को नियंत्रित करके उस ओर देखने को मजबूर करती है जिस मार्ग पर उसे बढ़ना है। खैर ! दूसरे दृष्टिकोण से  कुल जमा हिसाब ये कि लेखक एक सामाजिक प्राणी है। इसी समाज में रहकर अनुभवों को उर्वरा करता है। जब ये अनुभव के बीज, लेखनी की भूमि पर पल्लवित होते हैं तब समाज और परिवेश को दिशा देते हैं।

एक तर्किक चिंतक के अनुसार कोई भी सोच शाश्वत् नहीं होती। सोच परिवेश से बनती वह प्रभावित होती है। यही सोच चिंतन की गहराई में उतरकर परिमार्जित होती है। फिर कलाकार या साहित्यकार की कृति के रूप में ढल जाती है। कितने नए पुराने साहित्यकारों की कृतियां आज भी दशा दिशा दे रहीं हैं।

खैर ! दूसरे दृष्टिकोण से  कुल जमा हिसाब ये कि लेखक एक सामाजिक प्राणी है। इसी समाज में रहकर अनुभवों को उर्वरा करता है। जब ये अनुभव के बीज, लेखनी की भूमि पर पल्लवित होते हैं तब समाज और परिवेश को दिशा देते हैं।

सवाल बड़ा पेंचीदा है। क्योंकि इसमें बचने का मार्ग ही नहीं छोड़ा। या मैं कहूं सवाल गलत है। दो आप्शन हैं और दोनों स्थिति बंधन की हैं। मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है। घोड़े की आंख बंधी होती है और लगाम तो है ही बंधन का प्रतीक। लगाम घोड़े को नियंत्रित करके उस ओर देखने को मजबूर करती है जिस मार्ग पर उसे बढ़ना है। खैर ! दूसरे दृष्टिकोण से  कुल जमा हिसाब ये कि लेखक एक सामाजिक प्राणी है। इसी समाज में रहकर अनुभवों को उर्वरा करता है। जब ये अनुभव के बीज, लेखनी की भूमि पर पल्लवित होते हैं तब समाज और परिवेश को दिशा देते हैं।

सवाल :  आज के संदर्भ में, क्या लेखक  समाज के घोड़े की आंख है या लगाम ?

श्री विजयानंद विजय मुजफ्फरपुर बिहार से लिखते हैं – 6

भौतिकवाद की आँधी में, आधुनिकता के घोड़े पर सवार मनुष्य आज वक्त की रफ्तार से भी तेज दौड़ने की कोशिश कर रहा है, इससे बिलकुल बेपरवाह और लापरवाह कि हकीकत की जमीन क्या है, हमारा वजूद क्या है, हमारी हैसियत क्या है, हमारी औकात क्या है, हमारी सामाजिक-आर्थिक दशा और दिशा क्या है।बस, हम अंधानुकरण की मानसिकता में जी रहे हैं…कृत्रिम, बनावटी और दिखावे की संस्कृति के कहीं-न-कहीं पोषक बनते हुए।

नैतिक मूल्यों के भयंकर क्षरण के इस दौर में जहाँ मर्यादाएँ टूट रही हैं, मान्यताएँ खंडित हो रही हैं, परंपराएँ सूली पर चढ़ी हैं, आदर्श तार-तार हैं, अपसंस्कृतिकरण प्रबल है, आचार-व्यवहार सतही हो चले हैं, वहाँ लेखक, रचनाकार, कलाकार समय और समाज की आँखें खोलता है,उन्हें आइना दिखाता है, वास्तविकता से साक्षात्कार कराता है, हमें जगाता है, सजग-सचेष्ट करता है कि हममें वो सबकुछ बचा रहे, जो हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है, ताकि हम मनुष्य कहलाने योग्य बने रहें।

हम पृथ्वी के सबसे ज्ञानवान प्राणी समझे, माने, जाने और पहचाने जाते हैं, मगर हमारा यह ज्ञान कहाँ तिरोहित हो जाता है, जब हम परम स्वार्थ में डूबकर स्वजनों के ही दुश्मन बन जाते हैं, उनका अहित करते-सोचते हैं ? वक्त का मिजाज और स्वार्थ जब इंसान पर हावी होता है, तो वह उसकी पूरी सोच और विचारधारा पर हावी होने लगता है।जब यह नकारात्मक दिशा की ओर उन्मुख होता है, तो ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, नफरत की आग मन और विचार के साथ-साथ घर-समाज-राष्ट्र को भी भस्मसात करने पर उतारू हो जाती है।यह आत्मघाती प्रवृत्ति किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकती।यहीं रचनाकार, लेखक, कलाकार, सृजनधर्मी की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जहाँ उसे दिग्भ्रमित, दिशाहीन होती पीढ़ी को भटकाव से बचाकर समाज और राष्ट्रहित में उच्च आदर्शों और प्रतिमानों की स्थापना की ओर ले जाना होता है।यहाँ फटकार भी जरूरी है, चोट भी जरूरी है, कटाक्ष भी जरूरी है और प्यार-मनुहार भी जरूरी है, अपेक्षित अंकुश और लगाम भी जरूरी है। जरूरी है कि लेखक और रचनाकार अपनी भूमिका, अपने दायित्व, अपने कर्त्तव्य को समझें और समाज-राष्ट्र की दशा व दिशा सुधारने में अपना सकारात्मक सहयोग दें।

सवाल :  आज के संदर्भ में, क्या लेखक  समाज के घोड़े की आंख है या लगाम ?

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय, तिनसुकिया, असम से लिखती हैं -7

लेखक समाज रूपी घोड़े का क्या है  ?

लेखक समाज रूपी घोड़े की आँख और लगाम दोनों है क्योंकि जन साधारण लेखक की आँख से देखता है। फिल्म नाटक आदि के द्वारा लेखक जो परोसता है। वही जन सामान्य खाने की कोशिश करता है और इस घोड़े की लगाम तो शत प्रतिशत लेखक के ही हाथ में होती है। लेखक अपनी लेखनी की लगाम से समाज रूपी घोड़े के विचारों को बदलने की ताकत रखता है इसलिए लेखक को बहुत सोच समझकर अपनी लगाम का प्रयोग करना चाहिए।

लगाम में कसावट होनी चाहिए। लगाम ढीली छोड़ते ही घोड़े की चाल बदल जाती है। वे भटकने लगता है। लेखक पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। तभी महान कवि गुप्त जी ने कहा था –

“केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।

उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।”

कभी कभी एक सार्थक पंक्ति भी हृदय के तारों को झंकृत कर देती है।मस्तिष्क को सोचने के लिए मजबूर कर देती है। इसलिए ठीक ही कहा गया है कि तलवार से अधिक ताकत लेखनी में होती है।

लेखनी एक साथ लाखों लोगों को घायल कर सकती है। दिमाग में उत्पन्न विचारों, कल्पनाओं को कागज पर उकेरना एक लेखक की कला है। लेखक को लेखन से पहले यह सोचना चाहिए कि वह क्यों लिखना चाहता है? उससे समाज को क्या लाभ व हानि होगी। लेखक के लिए समाज का लाभ सर्वोपरि होना चाहिए।

एक अच्छा लेखक जब लिखने बैठता है तो हर पहलु के बारे में सोचकर उसे पूर्ण करता करता है।

लेखन शतरंज के खेल की तरह है फर्क सिर्फ इतना है की यहां आखिरी चाल सबसे पहले सोची जाती है।

फिल्म या टी. वी लेखन लेखकों पर एक बोझ होता है। उनकी अपनी पहचान विलुप्त हो जाती है। उसको जैसा कहा जाता है वह उसी दिशा में लिखता चलता है। पर सच्चे लेखक को यह सब स्वीकार नहीं करना चाहिए। उसे समाज को सदैव सकारात्मक और प्रेरणार्थक ही देने का प्रयत्न करना चाहिए। किसी भी लेखक की सोच निश्चित ही उसके व्यक्तित्व का ही हिस्सा होती है, लेकिन वो अपने लेखों में उन्हें पूरी ईमानदारी से प्रतिबिंबित करता है या नहीं, ये निश्चित करना अत्याधिक कठिन है।

लेखक का जैसा गहरा रिश्ता समाज से होना चाहिए वैसा आज नहीं है। लेखक को जिस तरह अपनी परंपरा,अपने आज और अपने भावी कल के बीच का पुल होना चाहिए वैसा पुल वो नहीं बन पा रहा है। घोड़े की लगाम ढीली पड़ती जा रही है। जिसका कारण है कि आज लेखक तो बहुत है पर प्रेमचंद नहीं हैं। जो भूमंडलीकरण और बाज़ारीकरण के दौर में भारतीय जीवन में आए बदलाव और स्थाई-सी हो चुकी समस्याओं के द्वंद्व और उससे उबरने की छटपटाहट को शब्दों में बयां कर सके।

(अगली कड़ियों में हम आपको विभिन्न साहित्यकारों के इसी सवाल के विभिन्न जवाबों से अवगत कराएंगे।)

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (41) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(कर्मयोग का विषय)

 

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।

बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्‌।।41।।

 

शुद्ध कर्म की बुद्धि एक होती सुदृढ महान

अकर्मण्यता है पालती कई बुद्धि अज्ञान।।41।।

 

भावार्थ : हे अर्जुन! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है, किन्तु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं।।41।।

 

Here, O joy of the Kurus, there is a single one-pointed determination! Many-branched and endless are the thoughts of the irresolute. ।।41।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Amazing Health Benefits of Laughter Yoga ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Amazing Health Benefits of Laughter Yoga

The benefits of Laughter Yoga are amazing. Laughter Yoga is a unique exercise routine that combines laughter exercises with yogic breathing which brings in more oxygen to the body and brain making one feel more energetic and healthy. It is a powerful cardio workout. In fact, 10 minutes of hearty laughter is equal to 30 minutes on a rowing machine. The foremost benefit of laughing is that one remains cheerful throughout the day. This sense of wellbeing comes from the release of feel good hormones called endorphins.

It decreases the negative effects of stress on your body which is the root cause of all illness. Laughter Yoga is a single exercise that deals with physical, mental and emotional stress simultaneously. It also strengthens the immune system, lowers blood pressure, CONTROLS BLOOD SUGAR and keeps your heart healthy. It is a powerful antidote against depression – the number one sickness today.

Laughing promotes a healthy heart. In a good bout of laughter, there is a dilation of blood vessels all over the body. We’ve all seen or experienced this as a flushed appearance and feeling of warmth. Pulse rate and blood pressure rise as the circulatory system is stimulated before settling down, below the original levels. In a nutshell, laughter helps tone the circulatory system of the body.

Laughter and breathing exercises help to increase the breathing capacity of the lungs and increase the net supply of oxygen to the body. Laughter sessions, along with deep breathing, are like chest physiotherapy – especially for those who smoke and suffer from bronchitis and respiratory airway obstruction.

A weak immune system is a major cause for almost all sicknes and ill health. Laughter boosts immune system. Oxygen is one of the primary catalysts for all metabolic reactions in the human body. Ongoing scientific studies show that lack of oxygen is the major cause of most diseases. Laughter Yoga flushes the lungs and fully oxygenates the blood and major organs leaving one bursting with energy and vitality and free from disease.

Diabetes is emerging as a major health hazard worldwide. Japanese scientist Murakami’s experiment to ascertain the effect of laughter on the blood sugar levels has affirmed that laughter has a lowering impact on blood sugar. Murakami indentified 23 genes that can be activated with laughter. In addition, it also reduces the stress hormone cortisol responsible for increase in sugar levels and stabilizes the immune system, which if weakened, can affect the production of insulin in the pancreas.

Laughter has a profound positive impact on allergies, with many practitioners reporting complete disappearance of all symptoms of asthma, skin and other allergies. Though not an intervention for countering physical causes of allergies; Laughter Yoga is a definite tool to remedy stress. It helps to reduce the risk factors by boosting the immune system, encouraging deep breathing and flushing the lungs of stale air and generating a feeling of wellness.

Those suffering from life threatening diseases not only go through physical pain; they also face immense psychological trauma. Not just the patient, but family, friends and care givers all need positive reinforcement. Having a positive mental attitude greatly influences the course of the disease. We have had many members suffering from cancer, immune disorders, multiple sclerosis and other chronic diseases who have reported relief from their symptoms, thereby reducing their medications.

Depression is often associated with physical pain, feelings of despair, loss of appetite, immobility, insomnia and other cardiovascular problems. Practicing Laughter Yoga regularly helps to resolve most of these ailments as it is one of the fastest ways of boosting heart rate, reducing blood pressure, providing an excellent cardio workout and alleviating pain. Extended hearty laughter is a body exercise with powerful body-mind healing effects.

The combination of natural pain killers with movements in laughter exercises makes Laughter Yoga a powerful tool for physiotherapy. Many practitioners have reported reversal of frozen shoulder and other movement limitations due to stroke, arthritis, and injury. Endorphins released as a result of laughter help in reducing the intensity of pain in those suffering from arthritis, spondylitis and muscular spasms of the body.

Scientific studies have proved that a few days of laughter exercises and deep breathing lowers blood pressure thus reducing the risk of a heart attack. Having too much cholesterol in the blood can lead to the hardening and narrowing of the arteries in the major vascular systems. A daily dose of laughter opens the arteries and allows the blood to flow freely to all parts of the body thus preventing a cardiac failure.

Stress is the number one killer today, and most illnesses are stress related. Laughter Yoga is an instant stress buster which takes care of physical, mental and emotional stress simultaneously. It has been scientifically proven that laughter reduces the level of stress hormones like cortisol and epinephrine and enhances positive emotions.

Laughter exercises are short and easy and can be added to your existing fitness programme. It can be a value addition to Yoga groups, Tai-Chi groups, aerobic centres, meditation centres, health clubs, sports and fun activities. Laughter Yoga is the latest health craze sweeping the world where anyone can laugh without any reason. It is truly a life changing experience for millions. It is scientifically proven and a lot of fun. People can feel the benefits right from the very first session.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

 

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English Literature – Poetry – ☆ Bequest ☆– Ms Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

☆ Bequest ☆

(Ms. Neelam Saxena Chandra’s  poem “Bequest”  will definitely compel you to think that how dark night and dark side of life follows like a ghost for whole life, particularly in dark.  Still, I find a silent message to struggle with present for the future.)

 

So peaceful was her life,

The sea provided her a peaceful calm;

The waves were lovely and soothing

Having a composed charm…

 

Suddenly it was dark

The albatross shrieked;

There were wild tremors

Jeopardy reeked…

 

Life changed for her

In the fraction of a second,

There was water and water

And then everything blackened…

 

The enchanting sea

Engulfed her near and dear ones;

The waves which had been tranquil erstwhile

Suddenly became destructive like dragons…

 

As she was helplessly watching the destruction,

There was a loud uproar-

One particular large wave jumped at her

And she was dragged ashore…

 

The harbour waves kept

Pushing and pulling her;

But she kept holding on

Like a providential survivor…

 

Although she could endure and live on,

She still feels hapless and sad-

Her near and dear ones

Have left for the other world and are dead…

 

The sea has given her a bequest

She does not want to remember at all;

The waves: they still come and go

But she no more listens to their call…

 

The ghosts of the past

Shall live on with her forever;

Life shall normalize and she may forget it in the daylight

But the silent night shall make her remember it forever…

 

© Ms Neelam Saxena Chandra

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Poetry,
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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ? मी एक मनस्वी ? – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

?मी एक मनस्वी ?

(सुश्री प्रभा सोनवणे जी  हमारी  पीढ़ी की एक ज्येष्ठ मराठी साहित्यकार हैं । उनका यह  संस्मरण  आलेख/संस्मरण निश्चित ही हमारी समवयस्क पीढ़ी को अस्सी  के दशक के दिन याद दिला देगा। )

मनस्वी, अविचाराने, अव्यवहार्य असं मी अनेकदा वागलेली आहे.

आई वडिलांची भीती वाटायची, धाक होता. खरंतर चाकोरीबध्द आयुष्य असायला हवं होतं, पण मी चाकोरी बाहेरचे अनुभव घेतले,आठवीत असताना मुली म्हणाल्या कुठेतरी सहलीला जाऊ, एक मैत्रीण म्हणाली, “हिच्या शेतावर जाऊ” – म्हणजे माझ्या, आई परवानगी देणं शक्य नव्हतं, मैत्रिणीच्या शेतावर, जवळच जाणार असं सांगितलं, आमचं गाव, शेत पंधरा किलोमीटर होतं, एसटी नं जावं लागणार होतं जवळ कंपासबॉक्स साठी वडिलांनी दिलेले पैसे होते ते खर्च केले, ट्रीप चा आनंद घेतला, सहाजणी गेलो होतो, सहल छान झाली, त्या सहलीवर आशा देव नावाच्या आमच्या मैत्रिणीने कविताही केली, अर्थातच संध्याकाळी आईला समजलं, बोलणी खावी लागली, पण एक वेगळा अनुभव घेतला!  लग्न अतिशय जुन्या मताच्या घरात झालं, हातात बांगड्या, डोक्यावर पदर!  मैत्रिणीबरोबर ब्युटीपार्लर मध्ये गेले तिथे ब्युटीशियन म्हणाली, कुरळ्या केसांसाठी बॉयकट बेस्ट, मैत्रीण म्हणाली तिच्या घरी चालणार नाही!पण मी एक दिवस जाऊन बॉयकट करून आले, पण स्ट्रीक्टली डोक्यावर पदर घेऊन वावरले! १९८३ सालची गोष्ट!

कवितेमुळे बाहेरचं जग दिसलं, बॉयकट, बांगड्या न घालणं याला मान्यता मिळाली….म्हणजे कुणी नावं तरी ठेवली नाहीत! कवितेच्या कार्यक्रमांना जाणं हे माझ्यासाठी दिव्यच होतं, विरोध पत्करून बाहेर पडले!

येरवड्याच्या शाळेत नोकरी साठी अर्ज करा,नंतर सुट्टीत बी.एड.करा असे एका सुहृदाने सुचवलं! पण जिद्द, महत्वाकांक्षी काहीच नव्हतं,

पुढे स्वतःचा दिवाळी अंक सुरु केला तिथेही चिकाटी कमी पडली, पुढे एका मोठ्या अंकाच्या संपादकाने स्वतः फोन करून संपादकीय विभागात आमंत्रित केलं, दोन महिने बिनपगारी काम केले, पैसे त्यांनी दिले नाहीत मी मागितले नाहीत, हा अव्यवहारीपणा!

पण त्याची खंत वाटली नाही, तो एक चांगला अनुभव होता, बस रिक्षाचे पैसे अक्कल खाती जमा!

अविचाराचे अनेक प्रसंग घडले, पण मी हे स्वतःच मान्य करते मी आळशी आणि बिनमहत्वाकांक्षी बाई आहे त्या मुळे *जो मिल गया उसीको मुकद्दर समझ लिया*

स्वतः कष्ट करून अर्थार्जन करायला हवे होते असे वाटते कधी तरी, पण फार खंतही वाटत नाही! कारण तसं सुखवस्तू आयुष्यच वाट्याला आलं कुठलं ही चॅलेंज नसलेलं!

माझ्या इतर जावांपेक्षा माझं आयुष्य वेगळं आहे, फक्त घरात रमले असते तर आयुष्य वेगळं झालं असतं,    मी शिस्तबद्ध, गृहकृत्यदक्ष, संसारी अजिबात नाही, पण गृहिणीपद ब-यापैकी सांभाळले, रांधा वाढा उष्टी काढा इती कर्तव्य अजूनही चालूच आहेत!

माझी एक कविता आहे,

मी नाही कुणाची

यशोमय गाथा,

मी एक मनस्वी,

मुक्त छंदातली कविता !

© प्रभा सोनवणे, पुणे

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (40) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(कर्मयोग का विषय)

 

यनेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते ।

स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्‌॥

किये गये हर कर्म का होता कभी न नाश

थोड़ा सा भी धर्म नित करता पाप विनाश ।।40।।

भावार्थ :   इस कर्मयोग में आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूप महान भय से रक्षा कर लेता है।।40।।

 

In this there is no loss of effort, nor is there any harm (the production of contrary results or transgression). Even a little of this knowledge (even a little practice of this Yoga) protects one from great fear. ।।40।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Practice Yoga ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Practice Yoga

 

Mrs. Radhika Bisht

Founder: LifeSkills

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Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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English Literature – Poetry – ☆ Woman ☆– Ms Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

☆ Woman ☆

(Ms. Neelam Saxena Chandra’s  poem “Woman”  will definitely compel you to think not only “woman’s emotions” but “Woman Power” too.  Amazingly scripted.)

 

Everyone thought that I am a breeze

Flowing gently over hills and vales,

Regaling all those who come my way,

Revitalizing those whose heart ails.

 

Air, that I am, I have various shapes

And the tender breeze was just one form;

When time summons me to rise,

My own strength I outperform.

 

Stronger and stronger I blow and blow

Stirring all those who come my way;

Affection does win me over anytime

But arrogance makes me harder sway.

 

The more the hostility, the more my outburst,

My anger then assumes the form of tempest;

Crushing everything that comes in my path,

Submerging the vast cities and the forests…

 

I am a woman

The way you perceive me, a reflection you shall see;

If you love and admire me, I shall be a gentle breeze,

If you downcast me, I shall rise like a phoenix!

 

© Ms Neelam Saxena Chandra

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Poetry,
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुक्ता जी के मुक्तक ☆ –डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

मुक्ता जी के मुक्तक 

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है  डॉ मुक्ता जी के अतिसुन्दर एवं भावप्रवण मुक्तक – एक प्रयोग।)

 

आओ! आज तुम्हारी मुलाकात

खुद से करवाऊं

मन की ऊहापोह से

रू-ब-रू कराऊं

यूं तो ज़िन्दगी में तूफ़ान

आते जाते रहेंगे

आओ!तुम्हें सागर की लहरों से

पार उतरना सिखलाऊं

 ◆◆◆

कौन, कब, कहां मिल जाये

नहीं मालूम

उजड़े गुलशन में

कब बहार आ जाए

नहीं मालूम

यूं तो कांटों से भरी है यह ज़िन्दगी

हमसफ़र कब तक साथ निभाये

नहीं मालूम

◆◆◆

तेरी यादों के बियाबां में

भटक रहा इत उत

तेरी तलाश में

दरश पाने को बेकरार

मन बावरा

◆◆◆

मिलते हैं लोग

इस जहान में

बिछुड़ जाने को

बदलते मौसम की तरह

बदल जाती है पल भर में

उनकी फि़तरत, उनका मिजाज़

◆◆◆

समय की सलीब पर

लटका इंसान

आत्मावलोकन करता

अंतर्मन में झांकता

रोता चिल्लाता

प्रायश्चित करता

खुद की तलाश में

मरू सी प्यास लिए

इत उत भटकता

परन्तु उदासमना

खाली हाथ लौट जाता

◆◆◆

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ पार्टियों में कोहराम ☆ – डॉ कुन्दन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

☆ पार्टियों में कोहराम ☆

(लोकतन्त्र के महापर्व पर डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी का एक  सामयिक एवं सटीक व्यंग्य।)  

 

पार्टियों में इस वक्त भगदड़ का आलम है।सब तरफ बदहवासी है।बात यह हुई कि एक पार्टी ने जन-जन की प्यारी, दर्शकों की आँखों की उजियारी, परम लोकप्रिय ठुमका-क्वीन और जन-जन के प्यारे, दर्शकों के दुलारे झटका -किंग को फटाफट पार्टी में शामिल करके लगे-हाथ चुनाव का टिकट भी पकड़ा दिया है।चुनाव का टिकट एकदम ठुमका-क्वीन और झटका-किंग की पसंद का दिया गया है ताकि उन्हें जीतने में कोई दिक्कत न हो।तबसे उनके क्षेत्र के उनके भक्त टकटकी लगाए बैठे हैं कि कब भोटिंग हो और वे अपने दुलारे कलाकारों की सेवा में अपने भोट समर्पित करें।

विरोधी पार्टियों वाले बदहवास दौड़ रहे हैं। लगता है जैसे कोई बम फूट गया है। बुदबुदा रहे हैं—–‘दिस इज़ अनफ़ेयर। हिटिंग बिलो द बेल्ट।हाउ कैन दे डू इट?’

विरोधी पार्टियों के वे उम्मीदवार परेशान हैं जो ठुमका-क्वीन और झटका-किंग के चुनाव-क्षेत्र से खड़े होने वाले हैं।आँखों में आँसू भरकर कहते हैं, ‘भैया, हम जीत गये तो मूँछ ऊँची होना नहीं है और अगर हार गये तो नाक कट कर यहीं सड़क पर पड़ी दिखायी देगी।नाक पर रूमाल रखकर चलना पड़ेगा।अगली बार पता नहीं पार्टी टिकट दे या नहीं।कहाँ फँस गये!’

सभी दूसरी पार्टियों ने अपने सीनियर कार्यकर्ताओं को आदेश जारी कर दिया है कि तत्काल जितनी ठुमका-क्वीन और जितने झटका-किंग राज्य में मिल सकें उन्हें भरपूर प्रलोभन देकर झटपट पार्टी में ससम्मान शामिल करायें। उन्हें तुरंत उनकी पसंद का चुनाव टिकट नज़र किया जाएगा। इस काम के लिए हर पार्टी ने दो दो हेलिकॉप्टर मुकर्रर कर दिये हैं ताकि काम तत्काल हो और दूसरी पार्टी वाले क्वीनों और किंगों को झटक न लें।

ज़्यादा बदहवास उस पार्टी के उम्मीदवार हैं जिसने सबसे पहले क्वीन और किंग को अपने पाले में खींचा है। क्वीन और किंग के चुनाव -क्षेत्र से जिनको टिकट मिलने की उम्मीद थी उनकी नींद हराम है। वे बड़े नेताओं के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं——-‘सर, यह क्या किया? हमारे चुनाव-क्षेत्र का टिकट क्वीनों और किंगों को दे दिया तो हम कहाँ जाएंगे? सर, हम तीस साल से पार्टी की सेवा कर रहे हैं। तीन बार लगातार चुनाव जीते हैं।’

जवाब मिलता है, ‘जीते हो तो लगातार मलाई भी तो खा रहे हो। कौन सूखे सूखे सेवा कर रहे हो। पंद्रह साल में आपकी संपत्ति में जो बरक्कत हुई है उसकी जाँच करायें क्या?’

बेचारा उम्मीदवार बगलें झाँकने लगता है।

बड़े नेताजी समझाते हैं, ‘सवाल ‘विन्नेबिलिटी’ का है।हमें किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना है।क्वीन और किंग की पापुलैरिटी जानते हो?एक ठुमका मारते हैं तो सौ आदमी गिर जाता है। दो तीन लाख भोट तो आँख मूँद के आ जाएगा। आपकी सभा में तो सौ आदमी भी इकट्ठा करने के लिए पाँच सौ रुपया और भोजन का प्रलोभन देना पड़ता है। पार्टी की भलाई का सोचो। सत्ता हथियाना है या नहीं?’

उम्मीदवार आर्त स्वर में कहता है, ‘सर, यही हाल रहा तो एक दिन सदनों में कोई पालीटीशियन नहीं बैठेगा। सब तरफ किंग और क्वीन ही दिखायी पड़ेंगे। तब कैसा होगा, सर?’

नेताजी कहते हैं, ‘तो आपकी छाती क्यों फटती है? सदन में सुन्दर और स्मार्ट चेहरे दिखेंगे तो आपको बुरा लगेगा क्या? एक अंग्रेज लेखक हुए हैं—-आस्कर वाइल्ड। उन्होंने एक जगह लिखा कि सुन्दर चेहरे वालों को ही दुनिया पर राज करना चाहिए। सदनों में सुन्दर चेहरे रहेंगे तो दर्शक सदन की कार्यवाही देखने में ज़्यादा दिलचस्पी लेंगे। सदन में सदस्यों की उपस्थिति भी सुधरेगी। हम जो कर रहे हैं समझ बूझ के कर रहे हैं। ज़्यादा टाँग अड़ाने की कोशिश न करें। हमको इनडिसिप्लिन की बातें पसंद नहीं हैं।’

उम्मीदवार अश्रुपूरित नयनों के साथ विदा हुए।

 

© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)

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