हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 79 ☆ इमारतें ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “इमारतें । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 79 ☆

☆ इमारतें ☆

क्या सोचती हैं यह इमारतें

यूँ ही बरसों से तनहा खड़ी हुई?

 

क्या यह किसी के इंतज़ार में हैं?

या कोई ऐसा दर्द है हो वो

बयान करने में कतराती हैं?

या कोई ऐसा घाव है

जिसपर मरहम तो लगायी कई बार

पर वो उन ज़ख्मों को भर नहीं पायीं?

 

ऊपर से तो कोई दरार नज़र नहीं आती-

पर क्या यह अंदर से टूट चुकी हैं

और कुछ कहती ही नहीं?

 

क्यों नहीं बातें करतीं यह

उनके चहुदिशा में खड़े

उन आसमान छूते दरख्तों से?

या फिर उनपर लहरा रहे पीले फूलों से?

क्या उन्हें सब कुछ बासी सा लगने लगा है?

 

इन इमारतों के भीतर आते-जाते मैंने

कई आदमी देखे हैं…

उनके आगे भी यह क्यों मौन धारण किये हैं?

क्यों नहीं बयान कर देतीं यह अपनी दास्ताँ

किसी ऐसे दोस्त से जो उन्हें समझ सके?

 

सुनो ए इमारत!

बस, अभी तो बसंत का आगमन हुआ है…

यह खिलने का मौसम है,

मुरझाने का नहीं!

चलो, हम-तुम मिलकर ही डोलते हैं

इन लचकती डालियों के संग,

और मस्त हो जाते हैं

इस खूबसूरत समां में!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 85 – संस्मरण – बोलता बचपन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  “संस्मरण – बोलता बचपन।  हम एक ओर बेटियों को बोझ मानते हैं और दूसरी ओर नवरात्रि पर्व पर उन्हें कन्याभोज देकर  उनके देवी रूप से आशीर्वाद की अपेक्षा करते हैं।  यह दोहरी  मानसिकता नहीं तो क्या है ?  इस  संवेदनशील विषय पर आधारित विचारणीय संस्मरण एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 85 ☆

?? संस्मरण – बोलता बचपन ??

‘बेटा भाग्य से और बेटियां सौभाग्य से प्राप्त होती हैं।’  इसी विषय पर पर आज एक  संस्मरण – सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ 

ठंड का मौसम मैं और पतिदेव राजस्थान, कुम्बलगढ़ की यात्रा पर निकले थे। जबलपुर से कोटा और कोटा से ट्रेन बदलकर चित्तौड़गढ़ से कुम्बलगढ ट्रेन पकड़कर जाना था। क्योंकि ट्रेन चित्तौड़गढ़ से ही प्रारंभ होती थी।

हम ट्रेन पर बैठ चुके थे, ट्रेन खड़ी थी। स्टेशन पर मुसाफिरों का आना जाना लगा हुआ था। जैसे ही ट्रेन की सीटी हुई, दौड़ता भागता आता हुआ एक बिल्कुल ही गरीब सा दिखने वाला परिवार अचानक एसी डिब्बा में घुस कर बैठ गया। तीन चार सामान जो उन्होंने साड़ी और चादर की पोटली बना बांध रखा था। तीन बिटियाँ को चढ़ा, एक बेटा और स्वयं पति पत्नी चढ़कर बैठ गए।

सीटी बजते ही ट्रेन चल पड़ी। जल्दी-जल्दी चढ़ने से सभी हाँफ रहे थे, उनको कुछ लोगों ने डाँटा और कुछ सज्जनों ने कहा कि ठीक है अगले स्टेशन पर उतर कर सामान्य डिब्बा में चले जाना।

कंपकंपाती ठंड और उनकी दशा देख बहुत ही दयनीय स्थिति लग रही थी। परंतु बातों से वो बहुत ही बेधड़क, बोले जा रहे थे।

तीनों बच्चियों को महिला बार-बार आँखें दिखा डांट रही थी और पाँच वर्ष का एक बेटा जिसे गोद में बड़े प्यार से बिठा रखी थीं।

बेटे के हिसाब से उसको पूरा स्वेटर मोजा जूता सभी कुछ पहनाया गया था।

परंतु बच्चियों में सिर्फ एक बच्ची के पैरों पर चप्पल दिख रही थी। बाकी दो फटेहाल कपड़ो में दिख रहीं थीं। और फटी साड़ी को आधा – आधा कर सिर  से बांध गले में लपेट पूरे शरीर पर ओढ रखी थीं।

दोनों दंपत्ति भी लगभग कपड़े, स्वेटर, शाल पहने हुए थे। मेरे मन में बड़ी ही छटपटाहट होने लगी।

उसमें से छोटी बच्ची बहुत ही चंचल और नटखट, बार- बार देखकर मुस्कुरा कर कुछ कहना चाह रही थीं।

बातों का सिलसिला शुरु हो गया “आप कहां जा रही हैं आंटी जी?”  बस बात शुरू हो गई। पतिदेव नाराज हो रहे थे परंतु बच्चों की मासूमियत के कारण बात करने लगी।

बात कर ही रही थी कि आँखें दिखा बस महिला बात करना शुरु कर दी…” छोरियां है मैडम जी। बड़ी वाली तो शौक से आई ।बाकी दो छोड़ो वो तो राम जाणे और इस समर्थ बेटे को बहुत मन्नत और पूजा पाठ के बाद पाया है हमणे। या छोरियां तो किसी काम की ना रहेंगी।”

“एक दिन ससुराल चली जाएंगी और वंश तो बेटा ही चलावे है। इसीलिए बेटे की चाह में यह छोरियां हो गई है।”

“इन छोरियों को पालने का जी न करता है, परंतु रुखी- सूखी देकर पाल रहे हैं। सोच रहे हैं बारह-बारह बरस की हो जाएंगी तो शादी कर दूंगी। बाकी खुद जाणेगी।”

पूरे डिब्बे में उनकी बातों को मैं और मेरी सहेली और बाकी सभी सुन रहे थे। सभी आश्चर्य से देखने लगे।

” समर्थ की मन्नत पूरी करने हम चित्तौड़गढ़ माता की मंदिर जा रहे हैं। या छोरियां भी पीछे लग रखी इसलिए लाना पड़ा। बहुत पिटाई की पर नहीं माणी।” तीनों बच्चों के मासूम से मुसकुराते चेहरे हाँ में सिर हिला रहे थे।

ट्रेन अपनी रफ्तार से बढ़ती चली जा रही थी। मैं आवाक उसकी बातों को सोचने लगी ‘क्या ऐसा भी होता है कि वाकई माँ- बाप के लिए बेटियां बोझ होती हैं!’ कहने सुनने के लिए शब्द नहीं थे। कुछ बोलने की स्थिति भी नहीं लग रही थीं। तीनों बिटिया गोल बनाकर चिया- चुटिया खेलने में मस्त हो गई थी।

शायद हँसता मुस्कुराता बचपन मानो कह रहा हो “जाने दीजिये हम आखिर छोरियाँ (बेटियाँ) ही तो हैं।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.४१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.४१॥ ☆

 

अङ्गेनाङ्गं प्रतनु तनुना गाढतप्तेन तप्तं

सास्रेणाश्रुद्रुतम अविरतोत्कण्ठम उत्कण्ठितेन

उष्णोच्च्वासं समधिकतरोच्च्वासिना दूरवर्ती

संकल्पैस तैर विशति विधिना वैरिणा रुद्धमार्गः॥२.४१॥

दुर्देव से है रूंधी राह जिसकी

कि वह दूरवासी यही जानता है

स्वतः क्षीण तन से जलन से नयन से

तुम्हें भी विकल पर प्रबल मानता है

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? सम्पादकीय निवेदन ?

 

ई अभिव्यक्ती मराठी साठी साहित्य पाठविण्याविषयी निवेदन

दि. 13/04/2021 पासून साहित्य पाठवताना खालील सूचना विचारात घ्याव्यात ही विनंती.

 

सौ. उज्वला केळकर यांचेकडे खालील प्रकारातील साहित्य पाठवावे.

जीवनरंग (कथा), क्षण सृजनाचे, आत्मसाक्षात्कार, वाचताना वेचलेले  (आपल्या वाचनातील उल्लेखनीय उतारे कविता इ.) व नवीन सुरू होणारी सदरे.

संपर्कासाठी: Email- kelkar1234@gmail.com WhatsApp – 9403310170

 

श्री.सुहास रघुनाथ पंडित यांचेकडे खालील प्रकारातील साहित्य पाठवावे.

कवितेचा उत्सव, काव्यानंद, विविधा(ललित लेख).

संपर्कासाठी: Email –  soorpandit@gmail.com) WhatsApp – 94212254910

 

सौ. मंजुषा मुळे यांच्याकडे खालील प्रकारातील साहित्य पाठवावे:

मनमंजुषा (आठवणी, जुन्या घटना, व्यक्तीचित्र), इंद्रधनुष्य (संग्रहीत साहित्य) व पुस्तकावर बोलू काही.

संपर्कासाठी :  Email –  msmulay@gmail.com WhatsApp – 9822846762

सर्वांनी या सूचनांचे काटेकोरपणे पालन केल्यास प्रत्येक साहित्य प्रकार योग्य वेळेत लावता येईल.

सर्वांच्या सहकार्याची खात्री आहेच.

धन्यवाद

संपादक मंडळ, ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

सौ मंजुषा सुनीत मुळे जी यांचे ई-अभिव्यक्ति (मराठी) मध्ये हार्दिक स्वागत.

कृपया संपादक मंडळाविषयी माहितीसाठी या लिंक वर क्लिक करा >> ABOUT US

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? सम्पादकीय निवेदन ?

आज पाडव्याच्या शुभ मुहुर्तावर आम्ही एक, ’आत्मसाक्षात्कार’ हे नवीन सदर चालू करत आहोत. आपला लेखन प्रवास, स्वत:च स्वत:ची मुलाखत घेऊन उलगडायचा, असे या सदराचे स्वरूप आहे. आज शुभारंभाला आपण वाचणार आहात, सांगलीच्या ज्येष्ठ विदुषी, लोकसाहित्याच्या अभ्यासिका डॉ. तारा भावाळकर यांची मुलाखत.

 

ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 93 ☆ गुढी उभारू दारी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 93 ☆

☆ गुढी उभारू दारी ☆

 

नववर्षाचे स्वागत करुया गुढी उभारू दारी

गुढीस साडी नेसवलेली होय पैठणी कोरी

 

अंधाराची सुटका करण्या अवतरली ही स्वारी

एक सूर्य अन् दिशा उजळल्या धरतीवरच्या चारी

 

सडसडीत ह्या युवती साऱ्या साड्या नेसुन भारी

सज्ज स्वागता उभ्या ठाकल्या घरंदाज ह्या पोरी

 

गुढी बांधली नववर्षाची बळकट आहे दोरी

प्रसादात या लिंब कोवळे गूळ आणखी कैरी

 

चौदावर्षे वनवासाची सजा संपली सारी

आयोध्याच्या नगरीमधले हर्षलेत नर नारी

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

ashokbhambure123@gmail.com

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ चैत्र  पालवी ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

☆ कवितेचा उत्सव ☆ चैत्र  पालवी ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ 

 

काल होते शुष्क सारे

आज  फुटले हे धुमारे

पालवीचे हात झाले

अन् मला केले इशारे

चैत्र आला,चैत्र आला

सांगती हे  रंग  सारे

नेत्र झाले तृप्त आणि

शब्द  हे  अंकुरले

आम्रवृक्षाच्या तळाशी

दाट छायेचा विसावा

पर्णराशीतून अवचित

कोकीळेचा सूर यावा

ही कशी बिलगे सुरंगी

रंग मोहक लेऊनी

मधुरसाच्या पक्वपंक्ती

वृक्ष हाती घेऊनी

जांभळीला घोस लटके

शिरीषातूनी खुलती तुरे

पळस,चाफा,सावरीच्या

वैभवाने मन भरे

चैत्र डोले हा फुलांनी

वृक्ष सारे मोहोरले

पाखरांच्या गोड कंठी

ॠतुपतीला गानसुचले

भावनांचे गुच्छ सारे

शब्दवेलीवर फुलावे

रंग माझ्या अंतरीचे

त्यात मी पसरीत जावे

साल सरले एक आता

सल मनातील संपवावे

स्वप्नवेड्या पाखराने

चैत्रमासी गीत गावे.

 

©  श्री सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ शुभकामना ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

☆ कवितेचा उत्सव ☆ शुभकामना ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

नवे संवत्सर

नवसंक्रमण

सुखस्वप्नांना

नवे परिमाण ||

 

कात टाकूनी

सृष्टी नव्याने

बहरून येईल

नव्या जोमाने ||

 

नव्या वाटेवर

सरतील भोग

नव्या दमाचे

नवे उपभोग ||

 

लाभो सकलांना

आरोग्याचा ठेवा

आनंदाने जावे

सौख्याच्या गावा ||

 

सर्वे सन्तू निरामय:

ही मनोमनी प्रार्थना

नवे वर्ष सुखाचे जावो

देते शुभकामना ||

 

© सौ. ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ फरिश्ता….भाग 2 ☆ सौ. सुनिता गद्रे

सौ. सुनिता गद्रे

☆ जीवनरंग ☆ फरिश्ता….भाग 2 ☆ सौ. सुनिता गद्रे ☆ 

“अभी भी मुझे बहुत कुछ याद है,मम्मा” हे सांगताना तिचे डोळे लकाकत होते. “आपल्या वाटेतच ते गाव आहे. तर त्यांच्या घरावर आपण अचानक जाऊन हल्ला करायचाय. कशी आहे माझी आयडिया?” विचारताना तिच्या शरीरातलं ते अजब रसायन जणू ऍक्टिव्हेट झालंयअसं मला वाटलं.

“मला नाही बाईआवडली ही आयडिया.अगं, खूप वर्षांपूर्वी…. जवळजवळ वीसेक वर्षांपूर्वी… ट्रेनमध्ये झालेली थोडीशी ओळख ती काय ..आणि त्याच्या आधारावर त्यांच्याकडे अचानक जायचं म्हणजे काय?या मधल्या कालखंडात काय काय घडलं असेल,… ते तिथेच रहाताहेत का?… ते आपल्याला ओळखतील तरी का?

“माझं बोलणं मध्येच तोडून ती म्हणाली,”मम्मा यार ,नको बोअर करू! नाही भेटले तर कोई बात नहीं.पण जर भेटले तर… इमॅजिन कर, कित्ती कित्ती थ्रीलिंग गोष्ट असेल.”

एडवेंचर एक्साइटमेंट ,थ्रील या दुनियेत गर्क झालेल्या तिला इतर काही समजूनच घ्यायचे नव्हते.

लगबगीनं आवरून आम्ही जोधपूरला जाणाऱ्या ट्रेन मध्ये बसलो. गाडीनं वेग पकडला अन् माझ्या मनानं पण भूतकाळातल्या आठवणीत  वेगानं प्रवेश केला.

…..

साधारण मे 1999 मधली ती घटना.उन्हाळ्याच्या सुट्टीमध्ये आम्ही तिघी मायलेकी पुण्याला आलो होतो. निनाद गेली तीन वर्ष साऊथ आफ्रिकेत होता. पण अचानक मुदतीपूर्वीच काम संपल्यामुळे तो परत दिल्लीत आला होता. त्यामुळे मीही घाईगडबडीने मुलींसह दिल्लीत परत जायला निघाले होते .पुणे स्टेशन वर आम्हाला सी ऑफ करायला माहेर आणि सासरचा बराच मोठा गोतावळा जमला होता. गाडीत बसण्या पूर्वीच नेहमीप्रमाणं सानवीचं रडणं सुरू झालं.

“मै यही रहूंँगी… दिल्ली नहीं जाऊँगी” तिचा हट्ट चालू झाला होता. सोनाली आपली सर्वांना बाय् करून सगळ्यांनी गिफ्ट दिलेली कॉमिक्स चाळत होती.

गाडीने स्पीड पकडला.मीही आपले सामान व्यवस्थित लावून सहप्रवाश्यांवर एक नजर टाकून आपल्या सीटवर विराजमान झाले. सोनाली कॉमिक्स मध्ये बुडून गेली होती. तर सानवी खिडकी जवळच्या सीट वर कब्जा करण्याच्या खटाटोपात होती.

मला प्लॅटफॉर्मवर असतानाच प्रकर्षाने जाणवलेली गोष्ट म्हणजे बरेच फौजी इकडे तिकडे वावरत होते… आणि ते बरोबरच होते म्हणा, कारण ते कारगिल युद्धाचे दिवस होते. सं पूर्ण देशात समाजाच्या प्रत्येक थरात तेव्हा वेगळ्या तर्‍हेचे  वातावरण निर्माण झाले होते. वीररसाची ,देशप्रेमाची भावना आबालवृद्धांत जागृत झालेली होती.काहीतरी आगळेवेगळे, भव्यदिव्य घडावे असे सगळ्यांनाच वाटत होते. आमच्य बोगीत चढणाऱ्या काही फौजींना पाहून माझ्या मनात खूप अभिमान व आदरयुक्त अशी भावना जागृत झाली होती.

मनात अजून सैनिकांचेच विचार चालू होते. तेवढ्यात सानवीनं मला जरा हलवलं. हळू आवाजात ती सांगू लागली,

“मम्मा ते मुच्छड अंकल आहेत नां त्यांनी मला त्यांची सीट द्यायचं प्रॉमिस केलंय. प्लीssज मी तिथं जाऊन बसू? तू सांगितलेले सगळं मला याद आहे. ओकेsss….!” आणि माझ्या होकारा-नकाराची वाटही न पाहता ती खिडकीजवळच्या सीटवर जाऊन बसली सुद्धा.

मी मुलींना त्या शाळेत जाऊ लागल्या, तेव्हापासून असं बजावून ठेवलं होतं की आपण खूपदा तिघीच इथे राहतो. डॅडी कधी परदेशात असतो तर कधी इथे. पण हे सगळे कोणालाही  सांगायचे नाही. आपल्या घराचा पत्ता.एरीया, फोन नंबर, पण कोणा परक्या व्यक्तीला सांगायचा नाही. कोणी खायला दिले तर घ्यायचे नाही.कोणी कुठे ‘टच’ केला तर ओरडायचे… अनोळखी व्यक्ती बरोबर जायचे नाही. ओळखीच्या व्यक्तींबरोबर ही माझी परवानगी घेतल्याशिवाय ,मला सूचना दिल्या शिवाय जायचे नाही.  कशी खबरदारी घ्यायची हे समजावून सांगताना…  किडनॅपिंग, रेप ,या सारख्या विक्रृत गोष्टी त्या निष्पाप जीवांना त्यांना कळेल अशा भाषेत सांगताना मला खूप प्रयास पडले होते.

………

माझं लक्ष गेलं तेव्हा सानवी खिडकीबाहेर चे सीन बघण्यात गर्क होती. पण हळूहळू ती अंकल बरोबर गप्पा मारतेय हे मला कळलं होतं. मी डोळे मिटून पेंगुळलेल्या अवस्थेत बसले होते.गप्पांचे काही शब्द,काही वाक्ये,काही संदर्भ माझ्या कानावर पडत होते.

“अच्छा, तो अंकल आप सेना में है ?आप जवान है ?तो जैसे हमारी किताब में ‘जय जवान जय किसान’ लेसन है वैसे ?

“हॉ गुडिया”

“फिर आप बुड्ढे हो जाओगे तब भी जवान कहलाओगे?  मैं आपको जवान अंकल ही बुला सकूंगी , है ना ?” सानवीआणि अंकल ची प्रश्नोत्तरे चालू होती. अंकल चे हसणे कानावर पडले, “नही गुडिया अगर प्रमोशन नहीं मिला तो 17 साल की सर्विस के बाद हमें रिटायर होना पडता हैं। हमारी जगह नये जवान आते हैं. अपनी आर्मी हमेशा जवान रहनी चाहिये ना इसलिये!” अंकल तिला अगदी मनापासून समजावून सांगत होते.

  क्रमशः…

© सौ सुनीता गद्रे

माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ चैत्र गुढीपाडवा ☆ सुश्री संगीता कुलकर्णी

सुश्री संगीता कुलकर्णी

 ☆ विविधा ☆ चैत्र गुढीपाडवा ☆ सुश्री संगीता कुलकर्णी ☆ 

सोनपिवळ्या किरणांनी

आले नवीन वर्षे

नवं वर्षाचा हर्ष

मनोमनी दाटे. .!!

निसर्गाचा आदर करण्यासाठी मराठी महिन्यातला पहिला महिना

चैत्र — चैत्र महिना

चैत्र पाडवा… म्हणजेच गुढीपाडवा. मराठी नवीन वर्षातला पहिला सण. हिंदू कालगणनेनुसार चैत्र शुद्ध प्रतिपदा म्हणजे नवीन वर्षाची सुरुवात.. नवीन वर्ष, नवीन संकल्प. … चैत्र महिना म्हटला की आपल्या  डोळ्यासमोर येते ती झाडांना फुटलेली पालवी… गुढीपाडव्यापासून सुरु होणारे सण, चैत्र गौरीचे आगमन त्यासाठी अंगणामध्ये रेखाटलेलं सुंदर चैत्रांगण, राम नवमी, अक्षय्य तृतीया… दारावरती लावलेलं झेंडूच्या फुलांचं आंब्याच्या पानांचे तोरण, नवीन खरेदी, घरोघरी उभारलेली गुढी…  एक वेगळ्याच प्रकारची प्रसन्नता वातावरणात असते.

तिच्या स्वागतासाठी अंगणात काढलेली रांगोळी चित्रे म्हणजेच चैत्रांगण..

फाल्गुनाचा निरोप घेत अलगद येऊ घातलेल्या चैत्राचं निर्सगाने केलेलं एक सुंदरस खुलं असं स्वागत. . निसर्गच नाही तर अवघं चराचर चैत्राचं स्वागत करायला उत्सुक असतं.

गीष्मऋतूतही वाळलेल्या झाडाला कोवळा कोंब फुटतो व बघता बघता हिरवाई सळसळते. कोवळ्या पालवीने भारावलेली झाडे वार्‍याचे बोट पकडून डोलू लागतात. रंगीबेरंगी फुले आनंदाने नाचू लागतात. पक्षांचा किलबिलाट सुरू होतो व तो आपल्या कानांना तृप्तीचे काही क्षण देऊन जातो. सृष्टीचा हा नवनिर्मितीचा काळ. .या नवनिर्मितीचे वसंतोत्सवात आगमन होते व सर्वत्र आनंदाची हर्षाची गुढी उभारली जाते..

चित्रा या नक्षत्रावरून वर्षातल्या या पहिल्या महिन्याला चैत्र असं संबोधलं जातं. हिंदू या पंचांगानुसार गुढीपाडवा हा साडेतीन मुहूर्तापैकी एक मुहूर्त. . अत्यंत शुभ असा दिवस मानला जातो. या चैत्रापासून मराठी नवीन वर्षाला सुरूवात होते. महाराष्ट्राच्या सांस्कृतिक परंपरेतलं मानाचं पानं. म्हणजेच ही गुढी. .!!

ब्रम्हदेवाने याच दिवशी सृष्टीची निर्मिती केली. गुढीपाडवा हे संकल्प शक्तीचे गुढत्व दर्शविते. “आमचे प्रत्येक पाऊल आमच्या समृद्धी करता आता पुढेच पडत राहील ”

असे प्रतिपदा सांगते म्हणून या दिवशी शुभसंकल्प केल्यास तो संकल्प आपल्या जीवनाला फलदायी होतो. याकरिताच सत्य संकल्पाची गुढीची मुहूर्तमेढ रोवायची असते. गुढी म्हणजे नावीन्य, स्वागतशीलता नवनिर्मितीची प्रेरणा उत्साह आनंद. …!!

चैत्र महिन्यांत जर आपण सभोवतालच्या सृष्टीचे अवलोकन केले तर असे लक्षात येत की, शुष्क झालेली सृष्टी, पानांची मोठ्या प्रमाणावर झालेली पानगळ, निष्पर्ण झालेले वृक्ष हे आता चैत्राच्या नव पालवीने फुललेले असतात. वसंत ऋतूची चाहूल ही कोकीळ कंठातून फुटणाऱ्या सु-स्वराने लागलेली असते. निसर्गातल्या परिवर्तनाचा, नवे चैतन्याचे, नवे सृष्टीचे स्वागत दारी गुढी लावून करायचे हा पण त्या मागचा एक उद्देश आहे.

सुगंधी फुले जसं वातावरण सुगंधीत प्रफुल्लित करतात तसं प्रत्येकाच्याही आयुष्यात प्रेमाचा सुगंध मायेचा सुगंध असाच दरवळावा असं यातून सुचित होत असतं. .म्हणून नववर्षाच्या निमित्ताने आपण सर्वांनी नवकल्पनांच्या, नवविचारांच्या उत्तुंग अश्या गुढ्या उभारूया व मंगलमय संस्कृतीचं तोरण बांधूया. ..!

संस्कृतीच्या क्षितीजावर

उजळून आली

नवी पहाट. .!

क्षण मोलाचे

घेऊन आली

पुन्हा नव्याने आयुष्यात..!

क्षण ते सारे

वेचून घेऊ

नववर्षे आनंदे

साजरे करू. ..!!!

दरवर्षी आपण नव्या वर्षाचे स्वागत करतो. नव्या संकल्पना करतो. यंदा निसर्गाशी प्रतारणा न करता पर्यावरणपूरक वागण्याचा संकल्प करूया… निसर्ग प्राणी संपदा यांचे रक्षण केले तरच मानवजातीची आरोग्यदायी गुढी उभी करू शकू…

निसर्गातील बदल सुखावहपणे मानवाच्या समोर आल्हादकपणे ठेवणारा यंदाचा गुढीपाडवा सर्वांनाच आरोग्यसंपदेचं दान देणारा ठरो हीच मनोकामना… !!

 

©  सुश्री संगीता कुलकर्णी 

लेखिका /कवयित्री

ठाणे

9870451020

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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