मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – आनंदाचे फुटती झरे… – ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? आनंदाचे फुटती झरे  ? ☆ श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

खाली वाटा,वरती लाटा

धुक्यातूनी उठती

दूर बोगदा जया अंतरी

अंधाराची वस्ती

जरी एकटा, जाईन चालत

भेदून अंधाराला

दिसेल कैसा प्रकाश त्याला

तमात जो गुरफटला

पार करावी सगळी वळणे

सोडून सारे भले-बुरे

जगणे झाले फत्तर तरीही

आनंदाचे फुटती झरे

© सुहास रघुनाथ पंडित

सांगली (महाराष्ट्र)

मो – 9421225491

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #183 – 69 – “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर …”)

? ग़ज़ल # 69 – “वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ज़िंदगी खुशनुमा है जब दिल से दिल मिलता है,

जमाने में किसी को कहाँ सच्चा दिल मिलता है।

वक़्त ने बदल कर रख दी तहरीर आशियाने की,

एक घर में रहकर नहीं कोई हिलमिल मिलता है।

मुहब्बत में गुमसुम लोगों से क्या हाल पूछते हो,

ढूँढते माशूक़ पता उन्हें साँप का बिल मिलता है।

दोस्ती का खेल भी खूब खेला जा रहा आजकल,

काम निकला फिर कब दोस्त से दिल मिलता है।

रिश्ते नाते दिखावटी नुमाइश बनकर रह गए हैं,

आतिश को हाथ में नहीं कुछ हासिल मिलता है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 61 ☆ ।।प्रेम से परिवार बनता स्वर्ग समान है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।प्रेम से परिवार बनता स्वर्ग समान है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 61 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।प्रेम से परिवार बनता स्वर्ग समान है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

परिवार छोटी सी   दुनिया,   प्यार का संसार है।

एक अदृश्य स्नेह प्रेम का अद्धभुत सा आधार है।।

है बसा प्रेम तो स्वर्ग सा घर,अपना बन जाता।

कभी बन्धन रिश्तों का,  कभी मीठी तकरार है।।

[2]

सुख दुख आँसू मुस्कान, बाँटने का परिवार है नाम।

मात पिता आदर से परिवार,बनता है चारों धाम।।

आशीर्वाद,स्नेह, प्रेम,त्याग,डोरी से बंधे हैं सब।

प्रेम गृह छत तले परिवार, होता है स्वर्ग समान।।

[3]

तेरा मेरा नहीं हम  सबका, होता है परिवार में।

परस्पर सदभावना बसती है,यहाँ हर किरदार में।।

नफरत ईर्ष्या का कोई,स्थान नहीं घर के भीतर।

प्रभु स्वयं ही आ बसते, बन प्रेम मूरत घर संसार में।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपने वरक्स ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अपने वरक्स ??

(कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से)

फिर खड़ा होता हूँ

अपने कठघरे में,

अपने अक्स के आगे

अपना ही मुकदमा लड़ने,

अक्स की आँख में

पिघलता है मेरा मुखौटा,

उभरने लगता है

असली चेहरा..,

सामना नहीं कर पाता,

आँखें झुका लेता हूँ

और अपने अक्स के वरक्स

हार जाता हूँ अपना मुकदमा

हर रोज़ की तरह…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी ।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 125 ☆ ग़ज़ल – “जग तो मेला है…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गावव ग़ज़ल  – “जग तो मेला है…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #125 ☆  गजल – “जग तो मेला है…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अकेला चाहे भला हो आदमी संसार में

जिंदगी पर काटनी पड़ती सदा दो चार में।

 

कट के दुनियां से कहीं कटती नहीं हैं जिंदगी

सुख कहीं मिलता तो, मिलता है वो सबके प्यार में।

 

भुलाने की लाख कोई कोशिश करे पर हमेशा 

याद आते अपने हर एक तीज औ’ त्यौहार में।

 

जहाँ होते चार बरतन खनकते तो है कभी

अलग होते ही हैं सब रूचि सोच और विचारा में।

 

मन में जो भी पाल लेते मैल वे घुटते ही है

क्योंकि रहता नहीं स्थित भाव कोई बाजार में।

 

जो जहाँ जैसे भी हो सब खुश रहे फूलें-फलें

समय पर मिलते रहें, क्या रखा है तकरार में।

 

चार दिन की जिंदगी है, कुछ समय का साथ हैं

एक दिन खो जाना सबकों एक घने अंधियार में

 

है समझदारी यही, सबकों निभा सबसे निभें

जग तो मेला है जिसे उठ जाना है दिन चार में।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 17- अध्याय – 2 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं  टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे। 

हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)   

☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 17- अध्याय – 2 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आइए अब हम नव निधियों के बारे में बात करते हैं।

1-पद्म निधि, 2. महापद्म निधि, 3. नील निधि, 4. मुकुंद निधि, 5. नंद निधि, 6. मकर निधि, 7. कच्छप निधि, 8. शंख निधि और 9. खर्व या मिश्र निधि। माना जाता है कि नव निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष 8 निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं, लेकिन इन्हें प्राप्त करना इतना भी सरल नहीं है।

पद्म निधि:-

पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक गुण युक्त होता है। उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है।सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा से कई पीढ़ियों को धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। ये लोग उदारता से दान भी करते हैं।

महापद्म निधि:-

महापद्म निधि भी पद्म निधि की तरह सात्विक है। हालांकि इसका प्रभाव 7 पीढ़ियों के बाद नहीं रहता। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है।वह और उसकी 7 पीढियों तक सुख ऐश्वर्य भोगा जाता है।

नील निधि:-

नील निधि उनके पास होती है जो कि धन सत्व और रज गुण दोनों ही से अर्जित करते हैं।सामान्यतया ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है।इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। इस निधि का प्रभाव तीन पीढ़ियों तक ही रहता है।

मुकुंद निधि:-

मुकुंद निधि में रजोगुण की प्रधानता रहती है।इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोगादि में लगा रहता है। ऐसे व्यक्ति स्वयं निधि अर्जित करते हैं और स्वयं उसको खा पीकर समाप्त कर देते हैं।इसका एक उदाहरण नोएडा के पास रहने वाले मेरे मित्र के भाई साहब।भाई साहब किसान हैं और उनके पास बहुत ज्यादा जमीन है।इस जमीन को शासन ने एक्वायर की थी। उसके उपरांत मुआवजा दिया था।उस समय के हिसाब से मुआवजा की रकम काफी बड़ी थी।भाई साहब ने जमीन का मुआवजा पाने के उपरांत 10 साल तक लगातार ु के साथ पार्टी करने में व्यस्त रहे।उनका लिवर खराब हो गया जो कुछ बचा था वह दवा में खर्च हो गया और अंत में पूरी निधि समाप्त हो गई।मुकुंद निधि पहली पीढ़ी बाद खत्म हो जाती है।

नंद निधि:-

नंद निधि में रज और तम गुणों का मिश्रण होता है। माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। ऐसी निधि से संपन्न व्यक्ति अपनी प्रशंसा की सुनना चाहता है।अगर आप उसको उसकी अवगुणों के बारे में बताएं तो वह अत्यंत नाराज हो जाएगा।ऐसे व्यक्ति आपके आसपास काफी मात्रा में मिलेंगे जैसे कि आपके अपने अधिकारी।उनको अपने पिछले जन्म में किए गए कार्यों के कारण अधिकार मिले। इस जन्म में वे इस अधिकार में इतने गरूर में आ गए कि अगर उनको कोई उनकी बुराई बताएं तो वे अत्यंत नाराज हो जाएंगे।

मकर निधि:-

मकर निधि को तामसी निधि कहा गया है। तमस हम अंधकार को कहते हैं।राक्षस और निशाचर तामसिक वृत्ति के होते हैं।इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र को संग्रह करने वाला होता है। आज के बाहुबली राजनीतिज्ञ इसी निधि के उदाहरण है।ऐसे व्यक्ति का राज्य और शासन में दखल होता है। वह शत्रुओं पर भारी पड़ता है और मारपीट के लिए तैयार रहता है।।इनकी मृत्यु भी अस्त्र-शस्त्र या दुर्घटना में होती है। आतंकी घुसपैठिए मकर निधि के स्वामी होते हैं।डाकू भी इसी निधि के वाहक होते हैं।

शंख निधि:-

शंख निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा करता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार और यहां तक की अपने पत्नी और बच्चों को भी नहीं देता है। शंख निधि के परिवार वाले भी गरीबी में ही जीते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का उपयोग स्वयं के सुख-भोग के लिए करता है,। उसका परिवार गरीबी में जीवन गुजारता है।

कच्छप निधि:-

कच्छप निधि का साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है। न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न करने देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है। जिस प्रकार एक कछुआ अपने सभी अंगों को अपने अंदर समेट लेता है,और उसके ऊपर एक काफी मजबूत कवच रहता है,ऐसे ही कच्छप निधि वाले व्यक्ति धन होते हुए भी उसका उपभोग नहीं कर करते हैं और ना किसी को करने देते हैं।आप बहुत सारे ऐसे भिखारी देखोगे जिनके पास पैसा तो बहुत रहा है परंतु उन्होंने कुछ भी सुख नहीं होगा और उनके मरने के बाद उनके सामान में से लाखों रुपए बरामद हुए।

खर्व निधि:-

खर्व निधि को मिश्रत निधि कहते हैं। नाम के अनुरुप ही इस निधि से संपन्न व्यक्ति में अन्य आठों निधियों का सम्मिश्रण होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति को मिश्रित स्वभाव का कहा गया है। उसके कार्यों और स्वभाव के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। माना जाता है कि इस निधि को प्राप्त व्यक्ति घमंडी भी होता हैं,। यह मौके मिलने पर दूसरों का पैसा छीन सकता है। इसके पास तामसिक वृत्ति ज्यादा होती है।

अब इनमें से आप जो भी सिद्धि और निधि चाहते हो उसको देने के लिए हमारे आराध्य श्री हनुमान जी समर्थ है।आपको मन क्रम वचन को एकाग्र करके शुद्ध सात्विक मन से केवल स्मरण करना है। आपके लिए जो भी उपयुक्त होगा वह वे स्वयं प्रदान कर देंगे।

जय श्री राम। जय हनुमान। 

चित्र साभार – www.bhaktiphotos.com

© ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राजस्थान दिवस विशेष – अपना राजस्थान निराला… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता – राजस्थान दिवस विशेष – अपना राजस्थान निराला ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

(30 मार्च राजस्थान दिवस पर विशेष)

त्याग, प्रेम सौन्दर्य,शौर्य का राजस्थान है मेरा

रंग बिरंगी संस्कृति से भीगा राज्य है मेरा।

 

कण-कण जिसकी बनी कहानी ,

बलिदानों का जहान है मेरा।

इसी धरा से जन्मे बलिदानी ,

वीरों का आंचल है मेरा।

 

सघन वन भरी धरा यहां की,

कही झरे झरनों से पानी ,

कहीं बीहड़ , शुष्क ऋतु यहां की

कहीं कंटीली धरा वीरानी ।

 

गोडावण है शान यहां की

पश्चिम के रेतीले टीले की।

ऊंट जहाज है शान यहां की

खेजड़ी वृक्ष पहचान यहां की।

 

राज्य पुष्प रोहिड़ा यहां के

इनसे सजते बाग बगीचे।

चिंकारा राज्य पशु यहां के,

देखें अभ्यारण्य में जाके।

 

लोक वाद्य यंत्रों की खन खन

भपंग दुकाको,बंशी एकतारा ,

कोई बजाए ढोलक मंजीरा

तो कोई बजाए अलगोजा चिकारा।

 

अदभुत लोक संस्कृति भी देखो,

गीत , मल्हार, चिरमी सब गाएं

तीज, गणगौर त्यौहार मनाएं

गोरी फाग बधावा गाएं।

 

 

कहीं गूंजे भजन मीरा के

तो कहीं माता की भेंट यहां पे।

घूमर नृत्य आत्मा है यहां के

सब झूमे मदमस्त लहराके।

 

दादू पंथ और रैदास यहां से

राज धरा पावन महकाके।

पीथल, भामाशाह, राणा से।

योद्धा वीर ,भक्त स्वामी यहां से।

 

 

दुर्ग-दुर्ग में शिल्प सलोना ,

दुर्गा जैसी यहां हर नारी |

हैं हर पुरुष प्रताप यहाँ का,

आजादी का परम पुजारी |

 

बांध भाखड़ा-चम्बल बांटे ,

खुशहाली का नया उजाला |

भारत की पावन धरती पर,

अपना राजस्थान निराला ।

अपना राजस्थान निराला।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ 76 वें जन्मदिवस के अवसर पर डॉ कुंवर प्रेमिल जी का लघुकथा संग्रह “रोटी” विमोचित – बधाई एवं अभिनंदन ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

76 वें जन्मदिवस के अवसर पर डॉ कुंवर प्रेमिल जी का लघुकथा संग्रह “रोटी” विमोचित – बधाई एवं अभिनंदन

‘गीत पराग’ पत्रिका की सम्पादिका डॉ गीता गीत जी द्वारा रिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी के 76 वें जन्मदिवस पर उनके आवास में एक सादे कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। डॉ राजेश पाठक ‘प्रवीण’ एवं संस्कारधानी के गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति में डॉ कुंवर प्रेमिल जी के सद्य  प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘रोटी’ का विमोचन किया गया।

डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 450 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं बारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है, जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।  

🌹 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डॉ कुंवर प्रेमिल जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌹

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ गंध… ☆ सौ. नेहा लिंबकर ☆

सौ. नेहा लिंबकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ गंध… ☆ सौ. नेहा लिंबकर ☆

गंध मोगऱ्याचा, चाफ्याचा,  गुलाबाचा 

मंद  मंद त्या वासाचा

 

गंध मृदगंधाचा, पावसाच्या सरींचा

गंधाळलेलया धुंद वार्‍याचा

 

गंध पराक्रमाचा,  वीरांचा

इतिहासाचे क्षण  जपण्याचा

 

गंध कोऱ्या करकरीत पुस्तकांचा

वाचनाने समृद्ध होण्याचा

 

गंध आजीच्या गोधडीचा

उबदार मायेत लपेटण्याचा

 

गंध आईच्या ममत्वाचा

कधीच न संपणाऱ्या मायेचा

 

गंध सप्त सुरांच्या मैफिलीचा

मंत्र मुग्ध श्रवण भक्तीचा

 

गंध उपासनेचा,  पूजेचा

निर्गुणा पर्यंतच्या प्रवासाचा

 

गंध अन्नपूर्णेच्या रसाचा

चवी चवीने  तृप्त होण्याचा

 

गंध  हाकेच्या  मैत्रीचा

मनमोकळ्या गप्पांचा अन् खळखळून हसण्याचा

 

गंध  हिरव्या मायभूचा अन् देशाचा

अभिमानाने मान उंचावण्याचा

 

गंध  सर्व आप्त परिवाराचा

नात्यांचा भावबंध बहरण्याचा

 

रंगुनीया गंधात  साऱ्या

गंधमय जीवन जगण्याचा…

 

© सौ.  नेहा लिंबकर

पुणे 

मो – 9422305178

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 146 – कहाणी माई बाबांची ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 146 – कहाणी माई बाबांची ☆

पाहून दुःखीतांची व्यथा  

कळवळले बाबांचे मन।

माईनेही दिली साथ

सोडून सारे मोह बंधन।

नाही किळस वाटली भळभळत्या जखमांची।

 

फाटक्या कपड्यांची,

नि झडलेल्या बोटांची ।

सुसंस्कृतांनी बहिष्कृत

केलेल्या कुष्ठरोग्यांची ।

 

असाह्य पिडीत जीवांची

जाणून गाथा या जीवांची।

धुतल्या जखमा आणि

केली त्यांनी मलमपट्टी ।

 

घातली पाखरं मायेची 

केली वेदनांशी गट्टी ।

अंधारी बुडलेल्या जीवांना

दिली उमेद जगण्याची ।

 

पाहून अधम दुराचार

लाहीलाही झाली मनाची।

हजारोने जमली जणू

फौजच ही दुखीतांची

 

रक्ताच्या नात्यांने नाकारले

तीच गत समाजाची ।

कुत्र्याची नसावी अशी

तडफड पाहून जीवांची।

दुःखी झाली माई बाबा ऐकून कहानी कर्माची ।

 

पोटच्या मुलांनाही लाजावे

अशी सेवा केली सर्वांची ।

जोडली मने सरकारनेही

दिली साथ मदतीची ।

 

स्वप्नातीत भाग्य लाभले।

नि उमेद आली जगण्याची।

आनन्द वन उभारले।

माणसं मिळाली हक्काची ।

 

अंधारच धुसर झाला नि

प्रभात झाली जीवनाची ।

देवही करी हेवा अशीच

करणी माई आणि बाबांची ।

 

आम्हालाच किळस येते

तुमच्या कजट विचारांची।

तुमच्या कुजट विचारांची।

तुमच्या कुजट विचारांची ।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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