हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ??

भविष्य से

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी ⇒ मुंह में पानी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मुंह में पानी।)  

? अभी अभी ⇒ मुंह में पानी? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

गर्मी का मौसम है, सबको प्यास लगती है, गला सबका सूखता है। मुंह में इधर पानी गया, उधर हमारी प्यास बुझी। पानी और प्यास का चोली दामन का रिश्ता है।

 दुनिया की प्यास बुझाने वाले कुएं को भी हमने गर्मी में सूखते देखा है। प्यास कुएं को भी लगती है, उसका भी गला सूखता है। वहीं बारिश में यही कुआ मुंह तक लबालब भरा रहता है। जल है तो तृप्ति है, गर्मी है तो प्यास है। ।

होता है, अक्सर होता है ! प्यास नहीं, फिर भी हमारे मुंह में पानी आता है, जब कहीं असली घी की जलेबी बनाई जा रही हो। कभी किसी ऐसी नमकीन की दुकान के पास से गुजरकर देखें, जहां गर्मागर्म ताजी सेंव बन रही हो। खुशबू पहले नाक में प्रवेश करती है, और तुरंत पानी मुंह में आता है।

कहते हैं, हमारे शरीर में कई ग्रंथियां होती हैं, उनमें से एक ग्रंथि स्वाद की भी होती है। मुंह में पानी आना तो ठीक, लेकिन अगर मुंह से लार टपकने लगे, तो यह तो बहुत ही गलत है। लेकिन यह लार भी अनुभवजन्य है, महसूस की जा सकती है। फिर भी ताड़ने वाले ताड़ ही लेते हैं, जो कयामत की नजर रखते हैं। ।

लार टपकने की ग्रंथि को आप लालच की ग्रंथि भी कह सकते हैं। फिल्म जॉनी मेरा नाम में पद्मा खन्ना के डांस पर केवल प्रेमनाथ ने ही लार नहीं टपकाई थी। हमें तो भाई साहब, बहुत शर्म आई थी।

वैसे लार का क्या है, आजकल के बच्चे तो पिज़्जा, बर्गर और पास्ता देखकर ही लार टपकाना शुरू कर देते हैं।

लार टपकाने का एक और विकृत स्वरूप होता है, जिसे हवस कहते हैं। हमने लोगों को सिर्फ लार टपकाते ही नहीं, महिलाओं को इस तरह घूरते देखा है, मानो कुछ देर में उनकी आंखें ही टपक पड़ेंगी। ।

काश कोई ऐसा समर्थ योगी सन्यासी होता, जो इनको टपकाने के बजाय इनकी खराब नीयत को ही टपका देता। लेकिन आजकल के योगी इनको टपकाने के लिए खुद भी भाईगिरी पर उतर आते हैं और हमारे सनातन प्रेमी इनमें अपने आदर्श महामना चाणक्य के दर्शन करते हैं जिनका सिद्धान्त होता है, शठे शाठ्यम् समाचरेत्। इनका बाहुबलियों को टपकाना आजकल एनकाउंटर कहलाता है।

एक ग्रंथि भय की भी होती है। उसमें गला नहीं, मुंह सूखता है। रात को कोई डरावना सपना देखा, डर के मारे पसीना पसीना हो गए, घबराहट बेचैनी से मुंह सूख गया, हड़बड़ाहट में नींद खुल गई। गटागट पानी पीया, तब जाकर थोड़ा स्वस्थ हुए। ।

जैसे जैसे गर्मी बढ़ेगी, प्यास भी बढ़ेगी। फलों में रस होता है। संतरा, मौसंबी, तरबूज, खरबूजा, कच्ची कैरी का पना और फलों का राजा आम भी दस्तक दे ही रहा है। शरीर में तरावट बनी रहे।

मुंह में पानी का तो क्या है, कहीं बाजार में मस्तानी लस्सी का बोर्ड देखा, तो मुंह में पानी आया। लेकिन अगर लस्सी स्वादिष्ट नहीं निकली, तो सब मजा किरकिरा हो जाता है। क्या करें, रसना है ही ऐसी। जो इसका गुलाम हुआ, उसकी ऐसी की तैसी। ।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 205 ☆ व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 205 ☆  

? व्यंग्य – मार्केटिंग स्ट्रेटीज… ?

पुस्तक मेला चल रहा था । तीन बड़े व्यंग्यकारों की नई किताबों का विमोचन होने को था, प्रकाशक एक ही था इसलिए विमोचन समारोह अलग अलग दिनों में रखे गए । पहले वरिष्ठ व्यंग्यकार की पुस्तक लोकार्पित हुई, मंच पर लगे बैनर पर उनकी फोटो के नीचे लिखा हुआ था “देश के सर्व श्रेष्ठ व्यंग्यकार“। दूसरे दिन जब दूसरे व्यंग्य लेखक की किताब का विमोचन हुआ तो बैनर पर लिखा था “विश्वस्तरीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार“। जब तीसरे व्यंग्यकार की पुस्तक विमोचन होना थी तो प्रकाशक ने समारोह के पोस्टर पर लिखवाया, मेले में विमोचित “सर्वश्रेष्ठ किताब“।

एक पाठक तीनो ही कार्यक्रमों में उपस्थित रहा और तीनों किताबे खरीद कर पढ़ चुका था, जब अगली बार वह प्रकाशक से मिला तो उसने कहा तीनों ही किताबों में नया कुछ नहीं मिला वही पुरानी रचनाएं अलट पलट कर नई किताबें छाप दी है आपने। प्रकाशक मुस्करा कर बोला मार्केटिंग स्ट्रेटीज

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग – 29 – रेल की सवारी ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 29 – रेल की सवारी ☆ श्री राकेश कुमार ☆

हमारे जीवन की सबसे अधिक यात्राएं रेल द्वारा ही संभव हो पाई हैं। ऐसा नहीं है, कि परिवार से रेल सेवा में कोई कार्यरत था, जिसकी वज़ह से पास सुविधा या मुफ्त यात्रा का लालच रहा हो। क्योंकि यात्राएं लंबी दूरी की होती थी और सस्ती भी होती थी, इसलिए रेल यात्रा का आनंद हमेशा प्राथमिकता रही हैं। पिकनिक / पर्यटन आदि के लिए भी हमें रेल से ही जाना पसंद हैं।

यहां विदेश में जब रेल यात्रा की जानकारी प्राप्त हुई, हमारे तो तोते उड़ गए। सार्वजनिक सड़क साधन से भी महंगी रेल यात्रा है। हवाई और जल यात्रा का स्वाद चखने के पश्चात रेल यात्रा की कसक दिल में वैसी ही थी, जैसा भरपूर भोजन तृप्ति के बाद में कुछ मीठे की इच्छा “शक्कर रोगी” को होती हैं।

न्यु हैम्पशायर के पास “माउंट वाशिंगटन” नामक पर्वत है, जिसकी ऊंचाई करीब छै हज़ार तीन सौ फीट हैं। यहां कार द्वारा, हाइकिंग (पर्वतारोहण) और रेल मार्ग से जाने की सुविधा भी है। धरातल से तीन मील की यात्रा “कॉग” रेल द्वारा एक घंटे से कम समय में हो जाती हैं। पर्वत जो कि अमेरिका के उत्तर पूर्वी भाग में मिसिसिपी नदी के पास में है। यहां का परिवर्तनशील मौसम ही इसकी पहचान बन चुका है। रेल यात्रा 1869 से भाप इंजन द्वारा आज भी जारी है। कुछ इंजन बायो डीजल से भी चलते हैं। शिखर पर मौसम अत्यंत ठंडा हो जाता है। इसलिए साथ में ठंडी हवा से सुरक्षित रहने के लिए उचित कपड़े होना आवश्यक है। भाप के इंजन से यात्रा करने से कपड़े गंदे होने की संभावना की चेतावनी यहां के स्टेशन पर अंकित है। जिसको पढ़ कर बचपन में कोयले के कण आंख में जाने पर मां की साड़ी के आंचल में फूँक मार कर आंख की सिकाई करने की याद जहन में आ गई।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ डाॅ. ममता चन्द्रशेखर – जबलपुर की कृति ‘स्वदेश’ को प्रादेशिक वृन्दावन लाल वर्मा (उपन्यास) पुरस्कार – अभिनंदन ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 डाॅ. ममता चन्द्रशेखर – जबलपुर की कृति ‘स्वदेश’ को प्रादेशिक वृन्दावन लाल वर्मा (उपन्यास) पुरस्कार – अभिनंदन🌹

भोपाल। साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग, भोपाल द्वारा अखिल भारतीय 13 (तेरह) एवं प्रादेशिक 15 (पन्द्रह) कृति पुरस्कार कैलेण्डर वर्ष 2021 के पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। अखिल भारतीय प्रति पुरस्कार रुपये 1,00,000/- (रुपये एक लाख) एवं प्रादेशिक प्रति पुरस्कार रुपये 51,000/- (रुपये इक्यावन हजार) के साथ शाॅल, श्रीफल, स्मृति चिह्न और प्रशस्ति के साथ रचनाकारों को अलंकृत किया जाता है।

वर्ष 2021 के प्रादेशिक पुरस्कारों की श्रेणी में डाॅ. ममता चन्द्रशेखर – जबलपुर की कृति ‘स्वदेश’ को प्रादेशिक वृन्दावन लाल वर्मा (उपन्यास) पुरस्कार के लिए चुना गया है। शिक्षा के क्षेत्र के अतिरिक्त आपका सामाजिक, साहित्यिक एवं संस्कृतिक क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान रहा है। यूथ हॉस्टल ऑफ़ इंडिया (YHAI) के पुस्तकालयों के लिए आपके साहित्यिक कार्यों का योगदान अनुकरणीय है। 

इस अभूतपूर्व सफलता के लिए उन्हें हार्दिक बधाई तथा भविष्य में और अधिक सफलता की कामना ।  

साभार –  श्री मनोज जौहरी 

भोपाल, मध्यप्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ डॉ निशा अग्रवाल की पुस्तक “शिक्षा का बदलता स्वरूप” का विमोचन संपन्न ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 डॉ निशा अग्रवाल की पुस्तक “शिक्षा का बदलता स्वरूप” का विमोचन संपन्न 🌹

8 अप्रैल 2023 को अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा हिंदी भवन, नई दिल्ली में साहित्यिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में डॉ निशा अग्रवाल की पुस्तक “शिक्षा का बदलता स्वरूप” का विमोचन किया गया। आप जयपुर निवासी डॉ निशा बाड़ी (धौलपुर) के श्री जगदीश प्रसाद जी मंगल पिपरैट वाले की सुपुत्री है। ये एक शिक्षाविद होने के साथ साथ लेखिका, गायिका, कवयित्री, स्क्रिप्ट राइटर और एंकर हैं। कार्यक्रम वरिष्ठ साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध कवि श्री विजयकिशोर मानव की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में मेरठ यूनिवर्सिटी से प्रो.(डॉ) नवीन चंद्र लोहनी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध वेदों एवं उपनिषदों की ज्ञाता डॉ मृदुल कीर्ति ऑस्ट्रेलिया से एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मृदुला बिहारी जयपुर से शामिल हुई। कार्यक्रम में संस्था अध्यक्ष डॉ इंदु झुनझुनवाला, सह अध्यक्ष डॉ अमरनाथ अमर महा सचिव चंदा प्रहलादका, सह सचिव डॉ मंजरी पांडेय, उपसचिव डॉ रचना शर्मा, उपाध्यक्ष डॉ भीमप्रकाश शर्मा , पश्चिम जोन अध्यक्ष डॉ निशा अग्रवाल , राव शिवराज पाल एवं अनेक विद्वतजन शामिल हुए।

इस कार्यक्रम में डॉ निशा अग्रवाल की ” शिक्षा का बदलता स्वरूप” पुस्तक का लोकार्पण समस्त विद्वतजनों के कर कमलों द्वारा हुआ। डॉ निशा ने बताया कि उनकी इस पुस्तक को प्रकाशित करने का मुख्य उद्देश्य आज की युवा पीढ़ी को समयानुरूप शिक्षा के बदलते स्वरूप से रूबरू कराना है।

इस पुस्तक की विषय वस्तु को चार इकाइयों में विभाजित किया गया है, जिसके अंतर्गत समयानुसार शिक्षा के बदलते स्वरूप का वर्णन किया गया है। प्राचीनकाल की शिक्षण पद्धति से लेकर आधुनिक काल और वर्तमान की शिक्षा प्रणाली का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में शिक्षा के विशिष्ट परिशिष्ट को भी शामिल किया गया है जिसके अंतर्गत डॉ निशा ने आज की युवा पीढ़ी की मानसिक स्थिति तथा तनाव में आकर हो रही आकस्मिक घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए इससे निवारण के उपायों पर भी प्रकाश डाला है।

निःसंदेह यह पुस्तक शोधार्थियों एवं उन सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी जो देश के भावी अध्यापक बनने जा रहे हैं। तथा उच्च शिक्षा को प्राप्त कर रहे है।

साभार –  डॉ निशा अग्रवाल

जयपुर ,राजस्थान  

 ☆ (ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)  ☆ एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री  ☆ 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 20 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं  टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे। 

हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)   

☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 20 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

अर्थ :– किसी और देवता की पूजा न करते हुए भी सिर्फ हनुमान जी की कृपा से ही सभी प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है। जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है उसके सब प्रकार के संकट और पीड़ा मिट जाते हैं।

भावार्थ :- उपरोक्त दोनों चौपाइयों में एक ही बात कही गई है। आप को एकाग्र होकर के हनुमान जी को अपने चित्त में धारण करना है। आप अगर ऐसा कर लेते हैं तो कोई भी व्यक्ति, विपत्ति, संकट पीड़ा, व्याधि आदि आपको सता नहीं सकता है। हम सभी श्री हनुमान जी से अष्ट सिद्धि और नव निधि के अलावा मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। श्री हनुमान जी की सेवा करके हम सभी प्रकार के सुख अर्थात आंतरिक और बाएं दोनों प्रकार के सुख प्राप्त कर सकते हैं।

आपको चाहिए कि आप अपने आपको मनसा वाचा कर्मणा हनुमान जी के हवाले कर दें। जिससे आप जन्मों के बंधन से मुक्त हो सकें।

संदेश :- अपने स्वभाव को श्री हनुमान जी की भांति नरम रखें और दयावान बनें।

इन चौपाईयों के बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ :-

1-और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

2-संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जब भी आप कभी किसी संकट में पड़े इन दोनों चौपाइयों का 11 माला प्रीतिदिन का पाठ करें।साथ ही संकट को दूर करने का स्वयं भी प्रयास करें। हनुमान जी की कृपा से आपका संकट दूर हो जायेगा।

विवेचना :- उपरोक्त दोनों चौपाइयों में मुख्य रूप से एक ही बात कही गई है अगर आपको सभी संकटों से सभी व्याधियों से सभी बीमारियों से सभी खतरों से बचना है तो आप को हनुमान जी को समझना होगा। पहली पंक्ति में कहा गया है :-

“और देवता चित्त न धरई | हनुमत सेइ सर्व सुख करई || “

इस चौपाई को सुनने से ऐसा प्रतीत होता है की कवि तुलसीदास जी कह रहे हैं कि आपको और किसी देवता को अपने चित्त में धारण करने की आवश्यकता नहीं है। आपको केवल हनुमान जी की वंदना करनी है। जबकि तुलसीदास जी ने ही रामचरितमानस में भगवान शिवजी, भगवान ब्रह्मा जी, भगवान विष्णुजी, भगवान श्री रामचंद्र जी और हनुमान जी सब के गुण गाए हैं। फिर उन्होंने हनुमान चालीसा में केवल हनुमान जी की वंदना के लिए क्यों कहा है। आइए इसको समझने का प्रयास करते हैं।

हनुमान चालीसा के पहले और दूसरे दोहे की विवेचना लिखते समय मैंने हनुमान चालीसा लिखते समय तुलसीदास जी की उम्र का पता लगाने का प्रयास किया है। अंत में हमारे द्वारा यह नतीजा निकाला गया की हनुमान चालीसा लिखते समय गोस्वामी तुलसीदास जी 10 से 15 वर्ष के रहे होंगे। गांव में कई प्रकार के देवता होते हैं। मेरे अपने गांव में हमारे ग्राम देवता बेउर बाबा और सती माई हैं। हमारी कुलदेवी बाराही जी हैं। ग्राम में जहां सब बच्चे खेलते थे वहां पर एक छोटा सा मंदिर है जिसमें हनुमान जी की प्रतिमा और शिवलिंग विराजमान है। दुष्ट शक्तियों से रक्षा के लिए गांव की एक कोने में काली माई हैं। अब इन सभी मंदिरों में कोई व्यक्ति प्रतिदिन नहीं जा सकता है। क्योंकि सभी मंदिरों में प्रतिदिन जाने में काफी समय लगेगा। होता यह है विशेष अवसरों पर छोड़कर हर व्यक्ति अपना एक आराध्य ढूढ़ लेता है। कोई व्यक्ति बेउर बाबा के मंदिर पर प्रतिदिन जाता है। कुछ परिवार के लोग काली माई के मंदिर पर प्रतिदिन जाते हैं। और कुछ लोग गांव के बीच में बने हुए भगवान शिव और हनुमान जी के मंदिर में प्रतिदिन जाते हैं। आइए यह भी देखें कि इस का चुनाव किस तरह से होता है। मैं जब छोटा था तो मैं प्रतिदिन अपने बाबू जी के साथ गंगा स्नान को जाता था। बाबूजी गंगा स्नान कर लौटते समय अपने लोटे में गंगा जल भर लेते थे। रास्ते में बेउर बाबा का मंदिर पडता था। वहां पर रुक कर के हम थोड़ा सा जल बेउर बाबा और सती माई पर चाढ़ाते थे। हमारे घर के पास में शिव जी और हनुमान जी का मंदिर था। ध्यान रखें शिव लिंग और हनुमान जी की प्रतिमा दोनों एक साथ एक ही कमरे में थी। यहां पर हम लोग शिवलिंग के ऊपर गंगाजल डालकर शिवजी का अभिषेक करते थे और हनुमान जी के पैर छूते थे। इसके बाद घर आ जाते थे। काली जी के मंदिर में हम किसी विशेष दिन ही जाते थे। काली जी का मंदिर जिनके घर के पास था वह लोग प्रतिदिन काली जी के मंदिर जाते थे। इस प्रकार हर व्यक्ति ने अपना अपना देवी या देवता चुन लिया था। देवी और देवता चुनने में घर के नजदीक होना ही एकमात्र मापदंड था। किसी के दिमाग में यह नहीं था कि फला देवता बड़े हैं या फला देवता छोटे हैं। परंतु फिर भी ज्यादातर बच्चों के आराध्य हनुमान जी हुआ करते थे। मैं अब जब इसके बारे में सोचता हूं तो मुझे ऐसा समझ में आता है इसमें बहुत बड़ा रोल जन स्रुतियों का और हनुमान चालीसा का है। बच्चों के बीच में एक विचार काफी तेजी से फैला था कि जब भी रात में बड़े बाग में जाना हो तो हनुमान चालीसा का जाप करना चाहिए। अगर हनुमान चालीसा याद नहीं है तो हनुमान जी हनुमान जी कहते हुए जाना चाहिए। बड़े बाग में रात में जाने की आवश्यकता के कारण हम सभी बच्चों को हनुमान चालीसा कंठस्थ हो गई थी। बचपन में हनुमान जी से लगी लौ आज भी ज्यों की त्यों विद्यमान है।

तुलसीदास जी ने भी हनुमान चालीसा अपने बाल्यकाल में लिखी है। उनको भी रात्रि में छत पर जाना पड़ता था। हम बालकों की तरह से वह भी रात में छत पर जाने से डरते थे। इसलिए उन्होंने भी हनुमान जी का सहारा लिया।

मूल बात यह है कि आपको एक ऊर्जा स्रोत का सहारा लेना चाहिए। ऊर्जा स्रोत के अलावा इधर-उधर देखना आपके चित्त को भ्रमित करेगा। इसीलिए तुलसीदास जी ने लिखा कि हमें केवल हनुमान जी को ही अपने चित्त में धारण करना है।और अगर हनुमान जी की सेवा करेंगे तो हमें सभी प्रकार के सुख में प्राप्त होंगे।

महिम्न स्तोत्र में पुष्पदंत कवि कहते हैं-

‘‘रुचीनां वैचित्‍​र्याऋजु कुटिल नानापथजुषां’’

लोगों के रुचि-वैचित्‍​र्य के कारण ही वे भिन्न-भिन्न देवताओंका पूजन करते हैं। लोगों की प्रकृति में अंतर होने के कारण उनकी ईश-कल्पना में भी अन्तर रहेगा ही। इसलिए किस आकार में, किस स्वरुपमें ईश्वरका पूजन करना चाहिए इस सम्बन्ध में शास्त्रकारोंने कोई आग्रह नहीं रखा। दो भिन्न-भिन्न देवताओं के मानने वालों के बीच में अज्ञान के कारण झगडा होता है। इस झगडे को मिटाने के लिए भगवान कहते हैं कि-

यो यो यां यां तनु भक्त: श्रद्धयार्चितुमिच्छति।

तस्य तस्याचलां श्रद्धा तामेव विद्धाम्यहम्।।

सतया श्रद्धय युक्तस्तस्याराधनमीहते।

लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हितान्।।

‘‘जो व्यक्ति जिस देव का भक्त होकर श्रद्धा से उसका पूजन करने की इच्छा करता है उस व्यक्ति की उस देव के प्रति श्रद्धा को मैं दृढ करता हूँ’’ ‘‘श्रद्धा दृढ होने पर वह व्यक्ति उस देव का पूजन करता है और मेरे द्वारा निर्धारित उस व्यक्ति की वांछित कामनाएँ उसे प्राप्त होती है।’’ इस दृष्टि से देखने पर मूर्ति को परम्परा का समर्थन प्राप्त है ऐसी हमारे आराध्य देव की मूर्ति में ही चित्त सरलता से एकार्ग हो सकता है।

तुलसीदास जी इसके पहले लिख चुके हैं की मन क्रम वचन से एकाग्र होकर के हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए। अब अगर हनुमान जी की हम ध्यान लगाते हैं तो सबसे पहले हमें हनुमान जी के हाथ में गदा दिखती है। जिससे वे शत्रुओं का संहार करते हैं। उसके बाद उनका वज्र समान मुख मंडल दिखता है। फिर उनका मजबूत शरीर और उनका आभामंडल दिखाई पड़ता है।

हम सभी जानते हैं कि उपासना में अनन्यता की आवश्यकता है। इस चौपाई द्वारा तुलसीदास जी शास्त्रीय मूर्तिपूजा का महत्व समझाते हैं। मूर्ति पूजा भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा मानव सभ्यता को दी गई एक बहुत बड़ी भेंट है। मूर्ति पूजा के कारण हम आसानी से अपने इष्ट का ध्यान लगा सकते हैं। मूर्तिपूजा एक पूर्ण शास्त्र है। मानव अपने विकाराें को परख ले, उन्हे क्रमश: कम करे, शुद्ध करें, उदात्त करें और अन्त में विचार और विकार रहित स्थिति में आ जाए जिसके लिए मूर्ति पूजा अत्यंत आवश्यक है। मूर्ति पूजा मनुष्य को शुन्य से अनंत की ओर ले जाती है। मूर्ति पूजा की शक्ति अद्भुत है। यह मानव को अनंत से मिलाने का रास्ता बनाती है।

पूजा कर्मकांड नहीं है वरन कर्मकांड पूजा में व्यक्ति को व्यस्त करने का एक तरीका है। सर्व व्यापी परमात्मा को एक मूर्ति में बांध देना कहां तक उचित है। मूर्ति पूजा के विरोधी अक्सर यह बात कहते हैं। परंतु यह भी सत्य है चित्त को एकाग्र करने के लिए मूर्ति पूजा अत्यंत आवश्यक है।

जीवन में मन काफी महत्वपुर्ण है। मन है तो सुनना है, मन है तो बोलना है, मन है तो सब कुछ है। मन को शांत करने पर ही नींद आती है। इसलिए जीवन की प्रत्येक क्रिया में मन आवश्यक है। भोगार्थ भी मन है और मुक्ति के लिए भी मन है। मन ही मूर्ति का आकार लेता है तब उसे ही एकाग्रता कहते हैं। ऐसी एकाग्रता अधिक समय तक टिकनी चाहिए।

इस प्रकार मन को यदि भगवान जैसा बनाना हो तो भगवान का ध्यान करना जरुरी है। भगवान ने मूर्तिपूजा का महत्व (सगुण साकार भक्ति का महत्व ) गीता के बारहवे अध्याय में बहुत ही अच्छी तरह समझाया है।

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।

श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मता:।।

(गीता 12-2)

जो मुझमें मन लगाकर और सदा समान चित्तवाले रहकर परम श्रद्धा से मेरी उपासना करता है, वह मेरी दृष्टि से सबसे श्रेष्ठ योगी है।

मन को एकाग्र करना कितना कठिन है यह बात गीता में अर्जुन ने भगवान श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय के 34 में श्लोक में कही है।

चंचल हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम््।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।

(गीता 6-34)

अर्थ:-हे कृष्ण! मन बलवान, चंचल, बलपुर्वक खींचनेवाला और आसानी से वंश में नहीं हो सकता। इसलिए मन को नियंत्रण में रखना वायु को रोकने के बराबर है।’’

अर्जुन के इस प्रश्न का जवाब देते हुए भगवान कहते हैं।

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृहते।।

(गीता 6-33)

हे महाबाहु अर्जून! सचमुच मन चंचल है एव निग्रह करने में कठीन है। फिर भी सतत अभ्यास एवं वैराग्य से हे कुन्तीपुत्र! उसे वश में किया जा सकता है।

मन को एकाग्र करने के अभ्यास योग में पाँच बातें अपेक्षित है- 1) आदरबुद्धि 2) दृढता 3) सातत्य 4) एकाकीभाव और 5) आशारहितता

इस प्रकार मेरे विचार से स्पष्ट हो गया की गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह कहना चाहा है कि आप हनुमान जी या कोई भी ऊर्जा पुंज को अपने दिल में धारण करें और वही ऊर्जा पुंज (हनुमान जी) आपको सभी कुछ प्रदान करेंगे। आपको इधर उधर नहीं भागना चाहिए।

आपके ऊपर अगर कोई संकट आएगा विपत्ति आएगी व्याधि आएगी तो सब कुछ हनुमानजी मिटा कर समाप्त कर देंगे। बस आपको हनुमान जी की एकाग्र भक्ति करनी है। जय श्री राम। जय हनुमान। 

चित्र साभार – www.bhaktiphotos.com

© ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ग्रीष्म युग…. ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ग्रीष्म युग… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

सुखी मना  भाव पुन्हा

तोच जुना    ग्रीष्मात.

 

दुःख तसे   उन्ह तप्त

झळ  युक्त   अस्वस्थ.

 

याद गीत    गुप्त प्रीत

भेट नीत      काळजा.

 

सत्य बात    घडी घात

तुझी साथ   मरण.

 

एक मात्र    जीव सल

जणू दल    जीवंत.

 

 गत्  जन्म    ऋतू साक्ष

तो गवाक्ष     आशाळ.

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #183 ☆ ठोकरून गेला… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 183 ?

☆ ठोकरून गेला…  ☆

देहास फक्त माझ्या वापरून गेला

काळीज मी दिलेले ठोकरून गेला

 

माती सुपीक होती फाळ टोचणारा

देहास तापलेल्या नांगरून गेला

 

प्रेमात गुंतल्याची चाल बेगडी ती

जाळे शिताफिने तो कातरून गेला

 

एकाच तो फळाला चाखण्यास आला

कित्येक का फळांना टोकरून गेला ?

 

दाटी करून स्वप्ने सोबतीस होती

गर्दीत आठवांच्या चेंगरून गेला

 

मी बाहुलीच झाले फक्त नाचणारी

तोडून सर्व दोऱ्या डाफरून गेला

 

आकाश चांदण्याचे सोबतीस त्याच्या

पाहून का मला तो गांगरून गेला

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ हात… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल 

? विविधा ?

☆ हात… ? ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

मला सांगा हात म्हणजे काय? हात तिच्या ••• एवढच?

हात एक अवयव आहे. शरीराचा महत्वाचा भाग आहे.हाताशिवाय काम करू शकत नाही. तरी कामात हात असणे म्हणजे ‘कामात’ हात ••• का कामात ‘हात’ •••हा प्रश्न पडल्याने हातातले काम तसेच राहू शकते.

असो पण आज मी तुम्हाला हाताची गोष्ट सांगणार आहे.

एका गावात एक कष्टाळू माणूस रहात होता. त्याचा हात चांगलाच चालायचा. त्यामुळे त्याच्या कामाच्या गतीसाठी कोणीच त्याचा हात धरू शकत नव्हते. यामुळेच तो आपली कामे तर आटोपायचाच पण सगळ्या गावकर्‍यांना हात द्यायचा.  त्याच्या याच स्वभावा मुळे तो ग्रामप्रमुखाचा उजवा हात बनला. त्याने असा हातात हात दिल्यामुळे ग्रामप्रमुखालाही कोणापुढे हात पसरायची किंवा हात जोडायची वेळच यायची नाही.

परंतु या कष्टाळू माणसाच्या मुलीचा हात एका धनाढ्य माणसाच्या मुलाने मागितला. तेव्हा ग्राम प्रमुखाच्या हातावर तुरी देऊन त्याला हातोहात फसवून स्वत: मुलीचे दोनाचे चार हात करण्यासाठी हातावर पाणी सोडून तिचे कन्यादानही केले.

त्यामुळे त्या ग्राम प्रमुखाचा हात अचानक सोडल्यामुळे हातच मोडला गेला. पण याला धडा शिकवण्यासाठी त्याने तयारी केली. तो म्हटला मी काही हातात बांगड्या भरल्या नाहीत.  मी असा हातावर हात धरूनही बसणार नाही. मी तुझ्याशी चार हात करायला तयार आहे.

या गरीब कष्टाळू माणसाला हात उचलणे शक्य नव्हते. त्याने पुन्हा त्याच्याशी हस्तांदोलन करणेही अशक्य होते. त्याच्या हातात काहीच राहिले नव्हते. यांच्यात फूट पाडण्याच्या कामात धनाढ्य माणसाचा हात असल्याचे उशीरा कळले.

जणू काही आयुष्याचे पत्ते खेळताना त्या धनाढ्याने याचा हात ओढला होता.

काय नशीबात आहे हे जाणण्यासाठी ज्योतिष्याला हात दाखवला. त्याचा हात बघून ज्योतिष्याने मात्र हात साफ केला.त्याच्या भावनांवर हात मारला.

हात उंचावून म्हणाला सारं काही त्याच्या हातात आहे. असे म्हणून हात हलवून तो गेला सुद्धा.

निराश अंत:करणाने तो हात हलवत रिकाम्या हाताने परत आला.

पण म्हणतात ना••• हातच्या कंकणाला आरसा कशाला? तसे ग्राम प्रमुखाला चांगल्या कामाच्या प्रचितीने कष्टाळू माणसाचा हातगुण चांगला असल्याचे लक्षात आले आणि रातोरात या हाताचे त्या हातालाही कळू न देता त्याच्याशी हात मिळवणी केली. गावाच्या भल्यासाठी असे करणे त्याच्या हातचा मळच होता.  त्यानंतर मात्र यांचे हात कधी सुटले नाहीत.

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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