सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “वो नज़्म ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 22 ☆

☆ वो नज़्म

किसी ने समझा कि मेरी नज़्म गुलाब थी

किसी ने समझा कि साज़ छेड़ती रबाब थी

 

किसी ने कहा उसकी धार बहुत ही पैनी थी

लोग समझ बैठे कातिलाना कोई तेज़ाब थी

 

किसी ने पढ़कर “वाह-वाह” तो की, पर कहा

वो एहसासों को अच्छे से छुपाती नकाब थी

 

कोई रात भर एक टक बांधे निहारता रहा

कि उसे ऐसा महसूस हुआ वो महताब थी

 

मेरे लब चुप रहे, किसी से कभी कह न सके

वो नज़्म तेरे ही लिए लिखी थी, बेहिसाब थी

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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