श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “लंबे दिन”।)       

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 106 ☆ लंबे दिन ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

पेड़ को

घेरे खड़ी है छाँव

दिन लंबे हुए हैं ।

 

सूर्य पर

चढ़ती जवानी

का असर है

धरा की

चूनर लुटी

यह ख़बर है

धँसे हैं

सूखी नदी में पाँव

चट गूँगे हुए हैं ।

 

भोर लटकी

सकोरे में

एक चिड़िया

गर्म साँसें

छोड़ती है

साँझ बुढ़िया

बिक गए

सब चाँदनी के गाँव

शामिल पहरुए हैं ।

 

रात चटकी

चूड़ियों सी

धुला काजल

नहीं लौटा

गया जब से

दूत बादल

पिया के

जाने कहाँ हैं ठाँव

बेबस मन हुए हैं ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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