स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – आबे की खबर धरी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 239 – आबे की खबर धरी…
(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)
आबे की खबर घरी
हेरत मैं घरी घरी ।
बगिया के फूलपात
पतझर में निझर जात
रखवारी कौन करै
अँदयारी छाई रात
जागों मैं डरी डरी । आबे की खबर धरी ।
खेतन में फसल पात
आपन में होत जात
तकवारी कौन करै
अपनउ सें उजर जात ।
उन्ने है बैर कही । आबे की खबर धरी ।
उन्ना जो फटत जात
साँसों से जियत जात
जी ने की आस तऊ
धीरज अब घटत जात |
बदरी सी बरस परी । आबे की खबर धरी ।
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© डॉ. राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
सादर नमन