आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – मुक्तिका।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 235 ☆
☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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गैर से हमको क्यों गिला होगा?
आइना सामने मिला होगा
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झील सी आँख जब भरी होगी
कोई उसमें कमल खिला होगा
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गर हकीकत न बोल पायी तो
होंठ उसने दबा-सिला होगा
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कब तलक चैट से मिलेगा वह
क्या कभी खत्म सिलसिला होगा
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हाय! ऐसे न मुस्कुराओ तुम
ढह गया दिल का हर किला होगा
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झोपड़ी खाट धनुष या लाठी
जब बनी बाँस ही छिला होगा
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काँप जाते हैं कलश महलों के
नीव पत्थर कोई हिला होगा
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१.२.२०२५
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