सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – सूखते पनघट…।
रचना संसार # 49 – गीत – सूखते पनघट… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
☆
नित प्रताड़ित पेट होता,
काल के निर्देश में।
गोद का बच्चा तड़पता,
भूख के आवेश में।।
*
शूल पैरों में चुभे हैं,
आँसुओं की सरि बही।
कूदते चूहे उदर में,
वेदना कैसी सही।।
नापते बस हैं सड़क को,
बात सच्ची है यही।
रोज फटता वक्ष माँ का,
दूध बनता है दही।।
छेद बर्तन में हुए हैं,
आह भरते देश में।
*
सूखते पनघट सभी हैं,
आँख से आँसू ढले।
पीर अंतस् में बड़ी है,
रिक्त घट भी अब छले।।
ठोकरें मिलतीं समय की,
हाथ अंतर्मन मले।
मौत भी आती नहीं है
वेदना में उर जले।।
घाव मिलता नित नया है,
डूबते हैं क्लेश में।
*
झाँकता कोई नहीं है,
खेलते सब गोटियाँ।
भीत घर की ताकती है,
कब बनेंगी रोटियाँ।।
रो रहा चूल्हा बड़ा है,
धूल लिपटी चोटियाँ।
वोट भर की चाहते हैं,
नोचते सब बोटियाँ।।
मौन हैं डिब्बे घरों के,
लोग पेशोपेश में।
☆
© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268
ई मेल नं- [email protected], [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈