श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “जतन कीजिए…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 244 ☆ जतन कीजिए… ☆
मातु चरणों में हर पल नमन कीजिए ।
जिंदगी आप अपनी चमन कीजिए ।।
पूज्यनीय भी यही, वंदनीय भी यही ।
ये दुखी हो न ऐसा जतन कीजिए ।।
अक्सर हम अपने विचारों में बदलाव उनके लिए करते हैं, जो कुछ नहीं करते क्योंकि हर व्यक्ति आखिरी क्षण तक जीत के लिए प्रयास करता है उसे लगता है शायद ऐसा करने से कोई अंतर आए। सत्य तो यही है कि मूलभूत स्वभाव किसी का नहीं बदलता हाँ इतना अवश्य होता है कि परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने पड़ जाते हैं।
ऐसे लोग जो निरन्तर अपने लक्ष्य के प्रति संकल्पबद्ध होकर परिश्रम करते हैं उनसे भले ही कुछ ग़लतियाँ जाने- अनजाने क्यों न हो जाएँ अंत में वे विजयमाल वरण करते ही हैं। ऐसी जीत जिससे कई लोगों को फायदा हो वो वास्तव में स्वागत योग्य होती ही है।
शांति और सुकून से बड़ा कुछ भी नहीं, इसे हर कीमत पर हासिल करना चाहिए। सत्यनिष्ठा के साथ कदम से कदम मिलाते हुए चलते रहें जीत आपकी राह निहार रही है।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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