सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “वक्त के उस मोड़ पर ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 21 ☆

☆ वक्त के उस मोड़ पर

वक़्त के किसी-किसी मोड़ पर

ये आदमी भी

न जाने कौनसी छोटी-छोटी चीज़ों में

ख़ुशी ढूँढ़ लेता है, है ना?

 

कभी वो सहर की ताज़गी से मंत्रमुग्ध हो

कोई मुहब्बत की ग़ज़ल गुनगुनाने लगता है,

कभी वो दरिया की लहरों संग बहते हुए

अपने अलफ़ाज़ को साज़ दे देता है,

कभी वो बारिश की नन्ही-नहीं बूंदों में

अपने अक्स को खोज मुस्कुरा उठता है,

कभी वो लहराती हुई सीली हवाओं से

न जाने क्या गुफ्तगू करने लगता है,

कभी वो ऊंचे खड़े हुए दरख़्त को देखते हुए

उसकी हरी-हरी पत्तियों सा खिलखिला उठता है,

कभी वो शाम के केसरियापन से रंगत चुरा

अपनी बातों में उसे चाशनी सा घोल देता है,

और कभी-कभी तो सारी रात बिता देता है

दूधिया चाँदनी के इठलाने को निहारते हुए!

 

शायद ये आदमी

वक़्त के उस मोड़ पर

जान लेता है

कि वो मात्र एक सूखा हुआ पत्ता है

और वो ज़िंदगी के आखिरी पल जी रहा है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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