श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य  “यहां सभी भिखारी हैं)

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 5

☆ व्यंग्य ☆ “विवाह की उम्र पर बतंगड़…” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

“गोरी चलो न हंस की चाल जमाना दुश्मन है, तेरी उमर है सोलह साल जमाना दुश्मन है”। जी हाँ, न सिर्फ हमारे देश में वरन विश्व भर में लड़कियों के यौवन की शुरूआत को उनके सोलहवें वर्ष से ही माना जाता है। सभी देशों, भाषाओं में सोलह वर्ष की तरुणी के रूप सौंदर्य, यौवन, अदाओं और नाज-नखरों से न सिर्फ गीत-कविताएं वरन गद्य साहित्य भरा पड़ा है। “पसंद आ गई है एक काफ़िर हसीना, उमर उसकी सोला बरस 6 महीना”। ऐसा नहीं है कि सोलह बरस की लड़की को देखकर सिर्फ लड़कों के दिल में ही “कुछ कुछ होता है”, लड़कों को देखकर लड़कियों का हाल भी बेहाल हो जाता है-“मैं सोला बरस की, तू सतरा बरस का। मिल न जाएं नैना, इक दो बरस जरा दूर रहना। कुछ हो गया तो फिर न कहना…। ” हमारे देश में प्राचीन सामाजिक व्यवस्था के अनुसार लड़कों को तो 25 वर्ष की उम्र तक ब्रम्हचर्य का पालन करने का नियम था, किन्तु लड़कियों के विवाह की आयु 16 वर्ष के आसपास ही रखी गई थी। विवाह होते ही लड़की अपने पति और घर में व्यस्त हो जाती थी। शायद यही कारण था कि तब यौन अपराध भी नगण्य थे।

अभी हाल ही में लड़कियों की विवाह आयु भी लड़कों की आयु के समान ही 21 वर्ष तय कर दी गई है।। इसके पूर्व सरकार द्वारा लड़कियों के विवाह की निर्धारित आयु 18 वर्ष थी। प्राकृतिक रूप से भले ही 18 वर्ष से कम आयु में लड़की बालिग हो जाती हो पर 18 वर्ष के पूर्व उसके साथ विवाह करना या उसकी मर्जी से भी उसके साथ सम्बन्ध बनाना दण्डनीय अपराध था। अब यह उम्र 21 वर्ष हो गई है। कानून के भय से कुछ बंदिश तो लगी पर सम्पूर्ण समाज का दृष्टिकोण न बदल सका, चोरी छिपे बाल विवाहों की ख़बरें और अविवाहित युवतियों से छेड़छाड़-बलात्कार अथवा उनकी सहमति से यौन शोषण और फिर धोखाधड़ी की ख़बरें रोज के समाचारों का हिस्सा हो गई हैं। सरकार ने लड़कियों के बालिग होने की कानूनी उम्र तो 21 वर्ष निर्धारित कर दी, किन्तु साहित्य सृजन में लड़कियों के यौवन पर चर्चा करने उम्र की बंदिश नहीं लगाई। यौवन के गीत 16 वर्ष पर ही बनते रहे- “सोला बरस की बाली उमर को सलाम, ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम। ” एक समय मध्यप्रदेश में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर विवाद छिड़ गया था। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री लड़कियों के लिए विवाह की उम्र 21 वर्ष करना चाहते थे जबकि एक पूर्व मंत्री का कहना था कि जब चिकित्सकों के अनुसार लड़कियां 15 वर्ष की आयु में प्रजनन योग्य हो जाती हैं तो शादी की उम्र 21 वर्ष करने की क्या जरूरत है ? मंत्री जी के तर्क शायद लड़कियों के प्राकृतिक परिपक्वता के पक्ष में थे। वैसे आप सभी जानते हैं कि नेताओं की आदत मुहं चलाने की होती है। वे आम आदमी का ध्यान समस्याओं से हटाने के लिए दिनभर फालतू बातें करते हैं। अपने विरोधियों की बातों का बतंगड़ बनाना इनके लिए कठिन काम नहीं। व्यर्थ गाल बजाते रहना और अपनी बात पर कभी शर्मिंदा न होना, नेता के रूप में सफलता पाने की पहली शर्त है। विवाह की आयु बढ़ाने के पक्षधरों से मेरा कहना है कि आप तो विवाह का लड्डू खा चुके हैं अब आयु सीमा और बढ़ाकर नई पीढ़ी को क्यों तरसाना चाहते हैं ? जनसंख्या नियंत्रण हेतु बहुसंख्यकों के लिए फैमिली प्लानिंग तो है ही फिर विवाह के लिए आयु सीमा में वृद्धि की क्या आवश्यकता ? एक गोपनीय बात – मेरे एक परिचित ने अपना मुहं मेरे कान के पास लाकर कहा-“भाई साहब युवक/युवतियों को परेशान होने की जरूरत नहीं, बात सिर्फ विवाह के लिए उम्र बढ़ाने की चल रही है। “दिल विल-प्यार व्यार” को कौन रोक पाया है ? अस्तु, मैं तो यही कहूंगा नेताओं की बातों में मत पड़िये- “उम्र का हर दौर मजेदार है, अपनी उम्र का मजा लीजिये…। ”

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments