श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “संकल्प का प्रकल्प…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 243 ☆ संकल्प का प्रकल्प… ☆
कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता किंतु अंकुरित होकर, पौध बनकर पुनः नवसृजन का चक्र चलाते हुए अनगिनत चने उत्पन्न कर सकता है। जहाँ एकता में बल होता है वहीं एक व्यक्ति भी संकल्प शक्ति के बल पर कुछ भी कर सकता है। अतः किसी भी हाल में निराश होने की आवश्यकता नहीं होती है। आपको पूरी हिम्मत के साथ लक्ष्य के प्रति सजग होना चाहिए तभी मंजिल आ कदम चूमेंगी और लोग आपके साथ होंगे।
आइए संकल्प लें-
गौरैया की देखभाल करेंगे
दाना पानी रख दिया, चहक- चहक कर बोल ।
आँगन गौरैया दिखी, मुस्काती मुँह खोल ।।
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आहट पाते ही उड़े, गौरैया घर दूर।
फिर चुपके से आ चुगे, दाने सब भरपूर ।।
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बना घोसला पेड़ पर, हरी भरी सी छाँव।
कलरव से जग गूँजता, चलो चलें हम गाँव ।।
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खुशियों से जीवन भरा, रहे हमेशा आस ।
इनकी सेवा से बढ़े, जीवन में विश्वास ।।
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© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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