श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२४ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

हॉस्पेट बाज़ार से होटल लौटते समय एक बड़े चौराहे पर महात्मा गांधी उद्यान दिखा। हमने कुछ समय उद्यान में बिताने का निर्णय किया। घनी हरियाली के बीच पुष्पों, मध्यम ऊँचाई के आच्छादित पेड़ों के सायों में  फ़व्वारों की जल लहरियाँ मध्यम संगीत की धुन पर नृत्य कर रही थीं। पुरसुकुन माहौल पाकर एक हरी घास की मोटी सी कालीन पर आँख बंद कर लेट का ध्यानस्थ हो गए। समय रुक सा गया। जब थोड़ी देर बाद आँख खुली तो सुबह सी ताज़गी नसों में दौड़ रही थी।

तब तक चारों तरफ़ कई मुस्लिम परिवार बाल बच्चों सहित आकर आनंदित हो रहे थे। साथी ने पूछा – यहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है क्या ?

  • हाँ विजयनगर साम्राज्य के विध्वंस के बाद अधिकांश आबादी ने धर्म बदल लिया था। विजयनगर साम्राज्य की चार मुस्लिम रियासतों ने आपस में बांट लिया था। बाक़ी काम हैदरअली-टीपू सुल्तान ने निपटा लिया था।

लेकिन बाद में तो शिवाजी का मराठा साम्राज्य यहाँ स्थापित हुआ था।

  • सही है, लेकिन उन्होंने इनकी घर वापिसी की कोई मुहिम नहीं चलाई। और चलाई भी होती तो इन्हें किस जाति में वापस लेते।

मगर यहाँ के मुसलमान सीधे-सादे दिखते हैं।

  • हाँ, दक्षिण में अधिकांश शिया पंथ के मुसलमान हैं। जो उत्तर के तुर्की मुसलमानों जैसे कट्टर सुन्नी नहीं होते। इसीलिए दक्षिण में कम दंगे होते हैं। यहाँ दोनों कौमों में उतनी नफ़रत नहीं है।

महात्मा गांधी उद्यान में एक घंटा व्यतीत कर जब तक होटल लौटे, भोजन का समय हो चुका था। लौटकर मालूम हुआ, राजेश जी के चुम्बकीय व्यक्तित्व से प्रभावित होकर होटल के मालिक ने अपने बंगले की छत पर एक सामूहिक परिचय और रात्रिभोज का इंतज़ाम किया था। रात ग्यारह बजे तक आसमान से छिटक कर बरसती चाँदनी में कुछ साधु संतों की संगत में इन्द्रियों पर रंगत चढ़ाते आनंदित हुए। अगले दिन से वापिसी यात्रा शुरू होनी थी। पुस्तक से थोड़ा ऐहोले और बादामी का भूगोल और इतिहास देखते बारह बजे के आसपास मुलायम गद्दे पर नींद के आगोश में चले गए।

ऐहोले (Aihole) कर्नाटक राज्य के बागलकोट ज़िले में मलप्रभा नदी घाटी में फैले हुए 120 से अधिक शिला और गुफा मन्दिरों का एक समूह है। इसमें हिन्दू, जैन और बौद्ध स्थापत्य आकृतियाँ शामिल हैं। इन मन्दिरों व मठो का निर्माण 4थी–12वीं शताब्दी में चालुक्य राजवंश ने कराया था। लेकिन अधिकांश स्थापत्य 7वीं से 10वीं शताब्दी में निर्मित हैं। यह ऐहोले नामक गाँव के आसपास स्थित हैं, जो खेतों और बलुआ पत्थर के पहाड़ों के बीच बसा हुआ है। यहाँ से हुनगुन्दा लगभग 35 किमी दूर है, जिसके बिल्कुल नज़दीक ऐहोले है।

ऐहोले से चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह प्रशस्ति के रूप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है। इसके रचयिता जैन कवि रविकीर्ति थे। इस अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय की विजयों का वर्णन है। अभिलेख में पुलकेशी द्वितीय के हाथों हर्षवर्धन की पराजय के बारे में जानकारी मिलती है। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हर्ष और पुलकेशिन के मध्य युद्ध 630 और 634 ईसवी के बीच हुआ था। जिसमें पुलकेशिन ने नर्मदा नदी के उत्तर तक का बहुत सा हिस्सा दबा लिया था।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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