श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे । आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 256 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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करें सृजन ऐसा सदा, बढ़े राम से प्रीति |
राम नाम का जाप कर, चलें नीति संग रीति ||
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प्रेम प्रकट उनसे किया, शब्द हुए तब मूक |
भाव चेहरे के कहें, अन्तस के हर रूप ||
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नैनों से नैना मिलें, होकर जब आसक्त |
झुके नयन खुद ही करें, प्रेम आपना व्यक्त ||
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कहने को तो जगत में, सुख के दिवस अनंत |
दुख का रेला बहे तो, सुख का होता अंत ||
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सुख की गहराई कभी, माप सका है कौन |
दुख के दल दल में फँसे, प्रश्न खड़े हैं मौन ||
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जीवन भर छूटे नहीं, सुख की गहरी आस |
जीवन मर्यादित रहे, यही बात है खास ||
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दो मुख के संसार में, करते दुहरी बात |
चाल दुरंगी चल रहे, आज यही हालात ||
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तन मन जन धन पर कभी, करना नहीं गुमान |
तभी बढ़ेगा आपका, इस जीवन में मान ||
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कोरी बातों से कभी, बनें न कोई काम |
मिलते निष्ठा, लगन से, हमें सुखद परिणाम ||
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अन्तस की सुनिए सदा, कहता यह संतोष |
रखें नियंत्रित जीभ को, किए बिना ही रोष ||
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈